Thursday, January 14, 2010

लोहड़ी और अपनी भाषा

यह यादगारी मैं चलती कार में लिख रहा हूँ, बॉस लोग सो रहे है और मेरे पास यही भर मौका है। इन दिनों यात्राओं में ऐसा व्यस्त हूँ कि अपने लैपटॉप के पासवर्ड की याद भर है और इतना भी समय नहीं मिल रहा कि पासवर्ड को एक बेहद जरूरी खत लिखूँ। पर इस बीच एक सुनाने लायक बात घटी। हुआ ये कि मैं, मेरा बॉस, मेरी कम्पनी का एक प्रॉडक्ट मैनेजर 13 जनवरी को जम्मु की यात्रा पर थे। कुल 570 किलोमीटर। सुबह सात बजे हम चले। ठंढ यह कह रही थी कि आज नहीं तो कभी नहीं। ये सबको पता था कि रात दस बजे से पहले पहुंचना नही होगा। बॉस का ड्राईवर, यहीं जिक्र कर दूँ, पंजाबी है।

रास्ते भर हमारे पास हैपी लोहड़ी के फोन और सन्देश आते रहे। इनदिनों पंजाब और हरियाणा में खूब सारी व्यवसायिक और आत्मीय मित्र बने हैं। रास्ते में हम जब पैसे और टारगेट की बात करते करते थक जा रहे थे तब लोहड़ी की बात कर ले रहे थे। पंजाब से गुजरते हुये ऐसी रौनके नहीं दीख रही थी जैसी हमने (और आश्चर्य कि हम सबने!) उम्मीद की थी। लोहड़ी पर बाजार बन्द नहीं थे। कार के डेक में सुबह से आरती और भजन बज रहे थे।
शाम ढल रही थी। ड्राईवर बार बार कभी बॉस के, कभी मेरे फोन से अपने घर फोन कर रहा था और लोहड़ी की तैयारियों के बारे में पूछ रहा था। जब कभी उसकी पत्नी फोन पर नही मिल रही थी तो नाराज भी हो ले रहा था। बात बात में पंजाबी गानों का जिक्र छिड़ गया। बड़े मैनेजर और अधिकारियों को ऐसा हमेशा लगता है कि वे दुनिया की सारी बाते जानते हैं। यहाँ भी। इन दिनों मैं पंजाबी गीत संगीत पर कुछ काम कर रहा हूँ और इसी सिलसिले में गुरुदास मान के गानों की एक सीडी मेरे लैपटॉप में पड़ी हुई थी। पंजाबी गीतों की किसी बात पर प्रॉडक्ट मैनेजर ने कोई शर्त मढ़ी थी और मैने वो सीडी निकाल ली। अब इस शर्त को भूल जाईये।
असल में हुआ यह कि गुरुदास मान की सीडी देख ड्राईवर की खुशी का पारावार नहीं रहा। सीडी लगाते ही हमने जो गाना सुना वह था: लाई बेकद्रा नाल यारी, टुट गई तड़क कर के। बेहतरीन गीत। फिर तो सारे पद ओहदे भूल ड्राईवर ने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसकी खुशी कैसी थी ये मैं चाहूँ तो भी नहीं बता पाउंगा। उसने करीब चार गाने सुने और चारो बार बॉस से कहा: ‘’चन्दन सर ने मेरी लोहड़ी बना दी।‘’ अपनी भाषा के करीब होने भर से त्यौहार मन गया।

हमने कोई अलाव नहीं जलाया। कोई रेवड़ी ना ही खाई, ना ही जलाई। तिल के लड्डू याद किये। गुरुदास मान के गीत सुने और लोहड़ी मनाई।

8 comments:

डॉ .अनुराग said...

कुछ गाने ड्राइवर अमर रखते है ..

KK Mishra of Manhan said...

सुन्दर लेखन, वह भी यात्रा के दौरान

Unknown said...

बेहतरीन पीस लिखा है आपने। जितनी अच्छी कुनाल की चमक धमक वाली भाषा लगती है उतनी ही अच्छी आपकी सादगी। आप बिल्कुल बनावटी नही होते हुए भी बड़ी बात कहते है। वैसे पासवर्ड को खत लिखने की बात समझ में नहीं आई। ऐसा तो नही कि पासवर्ड बदलने जैसी कोई बात है?

SAVITA BHABHI said...

बहुत उत्तम विचार हैं आपके....और जैसे विचार हैं वैसा ही लेखन भी।
कभी समय निकालकर हमारे दरवाजे पर भी दस्तक दीजिए....
http://savitabhabhi36.blogspot.com

आशुतोष पार्थेश्वर said...

बहुत ही मीठा,चन्दन भाई आपको पढ़ते हुए भीतर कहीं कुछ जुड़ता जाता है, सुन्दर गद्य!

Aparna Mishra said...

gud1 & v face such incidences in daily life, but very few of us potrait it into such beautiful way......

Chandan!!!! Some journeys, songs & voice make the incidence memorable for life tym Like ur CD incident will always remain in the Driver's heart....

विमलेश त्रिपाठी said...

चलते-चलते में लिखा हुआ...अच्छा लगा।।।।
सुंदर गद्य..........
विमलेश

Vandana said...

Very nice Chandan.Very touching and compelling.