tag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post2284191776062967444..comments2023-12-26T21:51:11.012+05:30Comments on नई बात: कुम्भकर्ण का विरोध पत्रचन्दनhttp://www.blogger.com/profile/06676248633038755947noreply@blogger.comBlogger45125tag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-60115143381923951082010-07-23T16:09:56.023+05:302010-07-23T16:09:56.023+05:30wo lekhak hi kya jinki koi nayi rachna aane par pu...wo lekhak hi kya jinki koi nayi rachna aane par purana lupt ho jaye,pathak jab lekhak ki koi bhi rachna prathambaar padhta ho to wo uske liye nayi hi hoti hai aur ak baar hi kyu kai baar padhke bivinna dristikon se uski alochnaye hoti hai,tabhi to RABINDRANAATH TEGOR ki rachnao par aaj bhi alochna hoti hai ise agar hum chhichhla kahen to hum khud bhi bahut gahere paani ke nahi rahe jayenge raha sawal bahas ki hum kisise bahas nahi kar rahe hai hum aapke paathak hai aur aapke lekh par apna vaktabya aap ko presit kar rahe hai.aapki is rachna ko padhne me mujhe der ho gai islie mujhe kshama kareAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-5644646317041929642010-07-22T21:25:33.655+05:302010-07-22T21:25:33.655+05:30chandan,
aapke dwara likhaa kumbhakarna ki virodh ...chandan,<br />aapke dwara likhaa kumbhakarna ki virodh patra humne padha.samalochana karne ka hak to har lekhak ka hai par alochana me shistata bhi hona aavashayak hai khas kar wo agar bujurgon ka ho,kyoki in bujurgo ki batay gaye path par chalkar hi aaj hum likhne ki yogya bane hai.aapke virodh patra me agar thodi vinamrata hoti to wo ruchikar hota,aap jayse gyani lekhak se yahi ummid hai.vimalendu se baat hui uske vichar bhi is khetra me yahi haiAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-9548226081883295042010-07-09T21:53:44.478+05:302010-07-09T21:53:44.478+05:30किसी भी बात को पूरी तरह बिना जाने कूद पड़ना मूर्खत...किसी भी बात को पूरी तरह बिना जाने कूद पड़ना मूर्खता से अधिक लड़कपन का लक्षण है. ये लेख अगर किसी साहित्यिक पत्रिका में लिखे किसी लेखक के लेख का उत्तर होता तो अच्छा होता न की एक समाचार पत्रिका में फ़ोन करके लिए गए सवालों का जवाब पर ......चन्दन तुम अच्छे कहानीकार हो , बोलते समय भाषा का ध्यान रखना इसलिए ज़रूरी नहीं है की तुम किसी बुज़ुर्ग से मुखातिब हो बल्कि इसलिए की तुम रचनाकार हो<br />काशीनाथ सिंहAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-1565636944699003682010-07-08T22:47:38.743+05:302010-07-08T22:47:38.743+05:30सही बात है विमल, चन्दन का ब्लॉग पढ़ कर खुशी मिलती ह...सही बात है विमल, चन्दन का ब्लॉग पढ़ कर खुशी मिलती है. मैं भी इस कमेंट्स की लाइन को नहीं बढ़ाना चाहता था मगर एक बात दुबारा कहने के लिए रुक गया.<br />Window 98 बहुत अच्छा operating system था मगर अब उसकी डिस्क सिर्फ चाय के कप रखने के काम आती है ताकि चादर पर दाग न लगे. बेकार में इसे वापस कंप्यूटर में डालने से कोई फायदा नहीं. <br />"Monument से प्यार है तो अच्छी बात है लेकिन उसमे घर बनाने लगेंगे तो उसका बेडा गर्क होगा और अपना बंटाधार !!!<br />सुखिया दास कबीर है, दुखिया सब संसार !!!"Bodhisatvahttps://www.blogger.com/profile/10124782855343642490noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-50591241173671657222010-07-08T15:55:38.476+05:302010-07-08T15:55:38.476+05:30चन्दन गुरु. बहुत हो गया. तुमने अपनी बात लिखी और सह...चन्दन गुरु. बहुत हो गया. तुमने अपनी बात लिखी और सही समय पे लिखी जिसका कुछ युवा रचनाकारों ने जो तुमसे सहमत थे समर्थन किया, जो नहीं सहमत थे समर्थन नहीं किया. अब सूरज की इतनी शानदार कविता आ जाने के बाद भी यहीं पे कमेंट्स की संख्या बढ़ रही है वहां नहीं तो ये चिंताजनक बात है. तुम्हारा ब्लॉग पढने लिखने वाला गंभीर टाइप का ब्लॉग है, सूरज की कविता के बाद कुछ और अच्छा आना चाहिए, कायदे की बहस की जगह छीछालेदर होने लगी है. इस ब्लॉग को मोहल्ला मत बनाओ.addictionofcinemahttps://www.blogger.com/profile/09104872627690609310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-52467064217004963672010-07-08T13:18:22.419+05:302010-07-08T13:18:22.419+05:30रविशंकर, अब तुम्हारी नौकरी पक्की समझो, चन्दन के इस...रविशंकर, अब तुम्हारी नौकरी पक्की समझो, चन्दन के इस लेख ने तुम लोग का वो काम बना दिया जिसे तुम लोग पांच छ साल से चप्पल घिस घिस के बना पर ढेर बनारसी मत बनो. चन्दन मैनेजमेंट करके सोसलवर्क नही कर रहा है तो तुम कौन सा कर रहे हो? चन्दन की तो अभी कहानी भी छपी अगर वो अच्छा नही है तो तुम ही कुछ् महान लिख देते. आज जिस तरह उछल उछल के चन्दन को गाली दे रहे हो और पाठ पढ़ा रहे हो जरा उसी तरह उस तुम्हारे ही शब्दो मे “कुछ कठोर’ पर भी अपनी राय रख देते. पर वो तो तुम्हे नौकरी दिलाने वाले लोग है, कैसे करोगे? चन्दन एक इंसान है और कमी होगी कुछ ना कुछ, पर जो काम वो कर रहा है उसके बाद तुम जैसे नौकरी ढूढ़क उसके पासंग भी नही ठहरते. <br /><br />अमित, चन्दन किसी पर बोलने लायक है या नही यह तो तय होना बाकी है पर तू तो चन्दन पर बोलने लायक नही ही है. <br /><br />चन्दन, जब इन चापलूसों को जबाव देने की हिम्मत नही थी तो ऐसा शान्दार लिखने की जरूरत क्या थी? तुम्हे अपना पक्ष रखना चाहिये..<br /><br />अशोक चौबेAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-40715394757499922252010-07-08T12:46:56.287+05:302010-07-08T12:46:56.287+05:30gaurav solanki ji ,aap log yeh sub kya likhte reht...gaurav solanki ji ,aap log yeh sub kya likhte rehto ho. aaj ke samaaj ko dekhiye. kahani kya kahin bhi kisi bhi field me yuava ka arth kya hai. woh aisa kya naya kur raha hai. ye yuva yuva karke bahut suspicion create kur rahe ho aaplog. wahi rahul gandhi ka hauwaa jaisa. ye sahi hai ki tippani kathore kee gayi hai lekin hindi sahitya ka sabse kamjor hissa yahi hai ki woh jyadatur kisi bhi roop me resistance front pur nahi rahi.sahitya manoranjun bana rahega to uska koi mutlub nahi. baat kamane ki nahi commitment kee hai. management pudhkur social work to ho nahi rahi hoga bhai ji. bharat jaise desh me likhna kya sirf manoranjun kee dristi se kitna prabhavi hai.aap log to mujhse jyada padhe likhe ho.gaurav baboo aap hi socho. ravi shankarAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-60752170089663092962010-07-08T11:57:58.883+05:302010-07-08T11:57:58.883+05:30@ गौरव जी, आप भी किसका जबाव दे रहे हैं? अब ऐसे दिन...@ गौरव जी, आप भी किसका जबाव दे रहे हैं? अब ऐसे दिन आ गये कि अमित जैसों को भी गम्भीरता से लेना होगा. जैसी टिप्पणी इन्होने चन्दन पर की है उससे जाहिर होता है कि वे बुजुर्गों द्वारा की गई अपमानजनक टिप्पणियों से काफी खुश हैं. ये भी मानते होंगे कि अगर काशी ने विज्ञापनबाज और ज्ञान ने मनुष्यविरोधी कहा तो सही ही कहा. वैसे अमित नाम के शक्स की प्रोफाईल देखिये – इनके नाम का ब्लॉग है जो 2008 मे बना है यह दिखा रहा है और दो सालों से उस पर कोई पोस्ट छपी ही नही है. अब आप इस इंसान की गम्भीरता का जायजा ले सकते हैं. आप एक बात नोटिस कर लिजिये कि चन्दन जी के इस तर्कपूर्ण और साहसिक लेख के बाद उन लोगों में कितनी तेजी से हलचल हुई है जो यो तो नौकरिया कर रहे हैं, पर महाविद्यालयों या विश्वविद्यालयों की नौकरी चाहते हैं. वो यहाँ पर छद्म नाम से कमेंट करते होंगे और अपने बॉस लोगों को फोन कर कहते होंगे: सर, मैने चन्दन के खिलाफ बहुत कड़ी टिप्पणी कर दी है, अब तो मुझे नौकरी मिल जायेगी? चन्दन की कहानियाँ आने वाले समय का आईना हैं, इसे समझने में इन्हे काफी मेहनत करनी होगी. <br /><br /> @ चन्दन जी, आप इन मौकापरस्तों की बातों से ना घबराईये, इस लेख के बाद आपकी छवि हम सब के मन में कई गुना बढ़ गई है.Unknownhttps://www.blogger.com/profile/13411169240505553630noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-3436861509580017972010-07-08T11:29:20.957+05:302010-07-08T11:29:20.957+05:30सब के जवाब देना खोखली दीवारों पर सिर मारने जैसा हो...सब के जवाब देना खोखली दीवारों पर सिर मारने जैसा हो सकता है इसलिए मैं अमित से कहना चाहूंगा कि कोई भी रचना कितनी भी महान हो, उसका रचनाकार इंसानी खूबियों और कमियों वाला एक साधारण इंसान होता है. लेकिन यह आदत बना दी गई है कि काम से ज्यादा उस व्यक्ति की बात करो. नई कहानियों से ज्यादा नए कहानीकारों की और चन्दन के लेख से ज्यादा उसकी मैनेजमेंट की डिग्री की. काशी का अस्सी से ज्यादा महान काशीनाथ सिंह नहीं हो सकते और अभी मेरे ऊपर भी एकतरफा होने का आरोप लगेगा, इसलिए यह भी जोड़ दूं कि मेरी नजर में कर्मभूमि या गबन प्रेमचंद से और दिल्ली की दीवार या पॉल गोमरा का स्कूटर उदय प्रकाश से बड़े हैं. अगर कोई अमित आकर कहते हैं कि "ज्ञानरंजन ने अपने जीवन में जो किया, उस पर बोलने लायक अभी चंदन पाँडे का मुँह नहीं खुल पाया है" तो वे घोर निराशावादी व्यक्ति हैं और उसी परंपरा से आते हैं जो यह मानती है कि आने वाला कल बीते हुए कल या आज से खराब ही होगा. यही सोच उन वरिष्ठ लोगों की है जिन्होंने तय कर लिया है कि उनके स्वर्णिम युग के बाद अब सब बाजार से ही नियन्त्रित होगा. लेकिन कोई बताए तो कि वो बाजार है कहाँ? मैं बहुत सारे युवा लेखकों को जानता हूं जो अद्भुत प्रतिभावान हैं लेकिन उन्हें पैसे की जरूरत है. अगर उस बाजार का रास्ता कोई बताए तो वे कम से कम कुछ दिन ठीक से जी तो लें. जिस बाजार में हिन्दी या साहित्य की एक ढंग की किताब तक ढूंढ़ पाना बहुत मेहनत का काम है, उसके लिए कोई लिखना भी चाहे तो क्या कमा लेगा सर जी?गौरव सोलंकीhttps://www.blogger.com/profile/12475237221265153293noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-21532597161569266282010-07-08T09:47:13.736+05:302010-07-08T09:47:13.736+05:30चन्दन जी, सर्वप्रथम आपको नया कहानी के लिये बधाई. क...चन्दन जी, सर्वप्रथम आपको नया कहानी के लिये बधाई. कर्ज की समस्या को सही अर्थों में नये तरीके से देखने की अच्छी कोशिश की है आपने. <br />यह बहस जब से शुरु हुई तब से मैं पढ़ रही हूँ. हिन्दी की छात्रा होने के नाते इसकी जानकारी है कि हर वरिष्ठ पीढ़ी नयों पर अन्यावश्यक आक्रमण करती है. पर तहलका में जिस भाषा का इस्तेमाल बुजुर्गों ने किया है वो अशोभनीय है और अपमानजनक है. थोड़ी तल्खी आपकी भाषा में भी है पर उसमें आपने किसी अपमानजनक शब्दावली का प्रयोग नही किया है. यही आपकी विशेषता है. जो लोग आपका विरोध कर रहे हैं वो तर्कपूर्ण बात नही कर रहे है. वो जिस तत्परता और तेजी से आपके खिलाफ बोलने आये हैं उसी तेजी से अगर मनुष्यविरोधी या विज्ञापनबाज आदि का विरोध किये होते तो इनकी बौखलाहट परिभाषित होती. इसका अर्थ यह भी है कि आपका जो विरोध कर रहा है वो कहीं ना कहीं पूरी युवा पीढ़ी को मनुष्यविरोधी कहे जाने से खुश है. इसलिये आपसे अनुरोध है कि आप मन लगाकर लिखते पढ़ते रहें.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07888593319600169228noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-73151455434767760062010-07-08T08:17:19.040+05:302010-07-08T08:17:19.040+05:30“आलोचना की भाषा की कोई मर्यादा होनी चाहिए”, इस पंक...“आलोचना की भाषा की कोई मर्यादा होनी चाहिए”, इस पंक्ति को लिखने वाले चंदन पाँडे क्या अपना फ्रस्ट्रेशन लिखते हुए इस पंक्ति का मतलब नहीं समझते? <br />“बुजुर्गियत की अचूक और कुठाँव मार झेल रहे...”, ये लिख कर चंदन पाँडे क्या ये कहना चाहते हैं कि बुजुर्ग होना किसी प्रकार से हेय है या चंदन पाँडे ये कहकर उम्र बढ़ने का जो नकारात्मक भाव होता है, उसे गहराना चाहते हैं? दरअसल ये चंदन की खुद की चुकी अभिव्यक्ति है। <br />चंदन पाँडे के ‘नया’ में क्या नया है? हिंदी की अगर बात छोड़ ही दें तो अंग्रेजी के चर्चित-पुरस्कृत किंतु घटिया साहित्य से प्रेरित कहानी के समरूप कहा जाए या समतुल्य? विश्वनाथ जी ने गलत नहीं कहा कि सब एक जैसे रच रहे हैं, अपवाद होते हैं लेकिन चंदन पाँडे खुद कह रहे हैं कि वो अपवाद नहीं हैं। इसके अलावा चंदन के ही शब्दों में काले अक्षरों के बराबर वाली भैंसों के दुधारूपन की हकीकत को ग्वाले बेहतर समझते हैं। <br />मजेदार बात ये है कि चंदन पाँडे को अपनी श्रेणी खुद तय करनी, बतानी पड़ रही है। इससे भी ज्यादा मजेदार बात ये है कि एक ओर तो वह कहते हैं कि मैं उन कहानीकारों में से नहीं हूँ, जिनकी कहानियों में ‘ये, ये , ये’ है, फिर कहते हैं कि मेरी कहानियों में ‘ये, ये’ है, और ‘ये’ आएगा। <br />चंदन पाँडे ने ये कह कर, कि किसी की वजह से कोई कहानीकार स्थापित होता है भला, बढ़िया मजाक किया है। अब आखिर चंदन पाँडे भी तो स्थापित हुए न भला। और विज्ञापन गुरू को विज्ञापन विधि बताने की हिमाकत कौन कर सकता है भला! <br />अगर पहले लोगों के पास कहानी लिखने का समय रहता था तो अब क्या हो गया! वाकई मोबटरिंग (मोबाइल बटरिंग) बहुत समय खाऊ पद्धति है!<br />चंदन पाँडों को ‘नंगातलाई का गाँव’ और ‘काशी का अस्सी’ जैसा कुछ अलग शिल्प खोजने के लिए जीवन भर सिर पटक-पटक मरना होगा, आत्मदाह से क्षणमात्र में मुक्ति उनके भाग्य में नहीं है। ज्ञानरंजन ने अपने जीवन में जो किया, उस पर बोलने लायक अभी चंदन पाँडे का मुँह नहीं खुल पाया है, ये वैसे ही है जैसे कोई बच्चा बोलना सीखने से पहले ही आँय-बाँय बकने लगे।<br />चंदन पाँडे ने जो किसी योद्धा का शहीदाई अंदाज अपनाया है, उससे और कुछ हो न हो, ये तो जरूर है कि चंदन पाँडे अपने इन कृत्यों से कुछ दिनों के लिए चर्चा में आ जाएंगे। मैनेजमेंट की पढ़ाई का इस्तेमाल चंदन अपनी ब्रांडिंग में बढ़िया तरह से कर रहे हैं।<br />तहलका ने भी पता नहीं कैसे अभिव्यक्ति के नाम पर कुछ भी छाप दिया।amithttps://www.blogger.com/profile/16326425158446559776noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-82364134812794662752010-07-08T08:11:17.153+05:302010-07-08T08:11:17.153+05:30ये तुम लोग क्या बकवास करते हो। कोई काम-धाम नहीं है...ये तुम लोग क्या बकवास करते हो। कोई काम-धाम नहीं है क्या। लगता है कि तुम लोगों का पेट काफी भरा है इसलिए जुगाली करने में काफी मजा आ रहा है। जरा ये सोचो कि तुम लोग जिस आम आदमी और ये और वो, का दंद-फंद करते हो, उसका ढ़ेला भी भला होता है क्या। हिंदी कहानी और युवा की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह पुरानी पीढ़ी की तरह सिर्फ लिख रही है, फ्रंट पर उसकी कहीं मौजूदगी नहीं है। तो तुम्हें और क्या कहा जाए। गल्प रच कर तुम लोगों ने ऐसा क्या नया कर दिया है, जो पुरानी पीढ़ी से अलग हो। -रविशंकरAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-85726647277626069982010-07-08T00:20:27.641+05:302010-07-08T00:20:27.641+05:30चन्दन आपका यह लेख पढ़कर मुझे अशोक वाजपेयी का अज्ञेय...चन्दन आपका यह लेख पढ़कर मुझे अशोक वाजपेयी का अज्ञेय पर लिखा वह लेख याद आया – बूढ़ा गिद्ध पंख क्यों फैलाये? आपके इस लेख से आपको कुछ तात्कालिक नुकसान जरूर होंगे पर यह ऐतिहासिक महत्व का आलेख बना है. इतने साहस और अपने आप को दाव पर लगा कर यह लेख लिखने के लिये साधुवाद!रहिमनhttps://www.blogger.com/profile/02347140143324352847noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-87350794351257615862010-07-07T09:15:40.812+05:302010-07-07T09:15:40.812+05:30CHANDAN AAP YAH KYA BAKVAS KAR RAHE HAIN. AAPAKE B...CHANDAN AAP YAH KYA BAKVAS KAR RAHE HAIN. AAPAKE BLOG PAR IS TARAH KA CHOOTIYAPA ACHHA NAHEE LAG RAHA. BHAI, SANJEV NE KAUN SA KISI KA KHET HADAP LIYA HAI KI UNHE AAP CHALAK KAH RAHE HAIN. SANJEEV TO HINDI LEKHAKON KEE US DHARA KE PRATINIDHI HAIN JO CHALAKI JANATE HEE NAHEE. VARNA SANJEEV AAJ HANS KE NAUKARI NAHI KAR RAHE HOTE. UDAY PRAKASH KEE TARAH 'BEROJGARI' KA MAJA LE RAHE HOTE. LAGATA HAI AAP JAISE AATMMMUGDH LOG SIRPH APANEE YA APANE PAR CHHAPI CHEEZ HEE PARHTE HAIN. SAMBHAV HO TO ANYATHA KE ANK DEKHIYE, SANJEEV JEE NE KAISE SAMAKALEEN KAHANEE PAR SERIES LIKHI HAI. VAHAN UNHONE JIN LEKHAKON KA JIKRA KIYA HAI UNA ME SE KAI YUVA HAIN HO SAKATA HAI UN ME SE KAIYON KO AAP JANATE BHEE NAHON. TAHALKA KE IS MANCH NE UNHE KOI LEKH LIKHANE KE LIYE AAMANTRIT NAHEE KIYA THA. SANJEEV KO TO SHAYAD YAD BHEE NAHEE HO GA KI TAHALKA SE KAB KOI AAYA YA PHONE PAR HEE UNAKEE CHHOTEE SEE TIPPANI LE LEE. AAP SAMAJHDAR VYAKTI HAIN CHEEZON KO TATASTHA AUR VIVEKSAMMAT NAJARIYE SE DEKHIYE. SANJEEV, GYAN RANJAN AUR KASHINATH KE PASANG ME BHEE AANE KE LIYE AAPAKO AUR AAPAKEE PEERHEE KO DASHAKON LAGENGE. MAT BHOOLIYE KI SOORYA PAR THOOKANA ANATATH KHUD PAR HEE THOOKANA HOTA HAI.<br /><br />SHARAD RANJAN DASAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-49097028039139117022010-07-06T10:04:35.065+05:302010-07-06T10:04:35.065+05:30@ रवि, सारी प्रतिक्रियायें छप रही हैं.@ रवि, सारी प्रतिक्रियायें छप रही हैं.चन्दनhttps://www.blogger.com/profile/06676248633038755947noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-61790816936302918132010-07-06T09:20:32.127+05:302010-07-06T09:20:32.127+05:30Kewal sahmati chhap rahi hai. Virodh wali pratikri...Kewal sahmati chhap rahi hai. Virodh wali pratikriyayein gayab hai. Yah achcha loktantra hai.Ravi bisarianoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-79289711086355290732010-07-05T19:35:31.083+05:302010-07-05T19:35:31.083+05:30tekrival ji yu to loktantra me sbko bolne ka adhik...tekrival ji yu to loktantra me sbko bolne ka adhikar hai.. achha hai lutf uthaiye iska lekin sir ye batayenge ki kisi manch pr bolte hue hume kin bato kya dhyan rakhna chahiye..<br /><br />Agar aap sachmuch me sahityik gatividhio si wakif hai to jaha se e khabar aapne payi hai ki sanjeev ne chandan ki kahani chhapne se mana kr diya tha ( isme kitni sachai hai, ye chandan hi bata sakte hai aur sanjeev bhi sayad)aur chandan isi liye unka virodh kr rahe hai.. to mahodya ye bhi to pata karte apne unhi vishwasniya sutro se ki chandan ne Gyanranjan ka virodh kyo kiya..<br /><br />Agar Pahal ka wo ank aapne padha hoga jisme chandan ki kahani aayi thi to aap payenge ki Gyan ji ne unhe kaise visheshan se nawaja tha. to sahab is virodh ke pichhe ki kahani bayan krne me sharm aa rahi thi kya aapko ya isliye bacha le gaye kyoki aap ka palada kamjor pad jata..<br /><br />mitra aap jaise log hi satya ki ladai ko kmjor krte hai.. itihaas utha ke dekh lijiye humesha aap jaise log maujud rahe hai.. jo kmjor hote hue bhi mauke pr pala badal lete hai.<br /><br />aur kehna na hoga kathakaro ki nayi fauj me Chandan ki apni alag aur khas pehchan banayi hai. aur unhe nazar andaz krna Sanjeev ke bs ki baat nahi hai.. agar aapke is bahumulya khabar me jara bhi sachai hai to aapko ye pata krna chahiye ki chandan ki kahani lautane ke peechhe Sanjeev jaise dhakad sampadak ki kya mansa thi. waise mujhe andaja hai ki chandan bahut sare sampadako ka kahani dene ka pyara sa dawab jhelte honge aur Sanjeev ki to khair....<br />Hare Prakash ji, aap kahne se kya hota hai.. na sahi bhains, gaya (cow) to banana hi padega.. sir ye aapke bade-bujurgo ki ikchha hai.. nai peedhi ke log manushya-virodhi hai. is aashirvaad ko bhul na jaie.. waise aapse kuchh khas ki umeed thi.. chaliye hota hai kabhi kabhi..<br /><br />Chandan ji aakhir me apko badhai.. ye daring sb me nahi hota hai.. ye cheeje aapko auro se alag karti hai..Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/01628937378165030282noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-55680434846865601292010-07-05T15:41:28.306+05:302010-07-05T15:41:28.306+05:30dr anurag se sahamat hoon. lekin chandan ke sath t...dr anurag se sahamat hoon. lekin chandan ke sath to theek ulta ho raha hai. tehalka ke usee ank me ek behad hee ubaau apathaniya aur ghatiya kahanee chhapee hai inakee. ek bat aur, kaliyaji ki itanee chamachai kyon? chandan kya aap kaliya jee ne yuvaon ke sath jo dhokha kiya us par bhee kuchh kahenge? suna hai ki aap sanjiv se isliye khapha hain ki unhonne aapakee kahanee lauta dee? yakeen nahee hota ki sach ka pakshdhar ek kathakar aisa kar sakata hai. isliye aap hee se poochhata hoon, yah sach hai kya?<br /><br />shivratn tekarivalAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-78153968521994866972010-07-05T12:51:07.315+05:302010-07-05T12:51:07.315+05:30ये सिर्फ दबाते नहीं हैं रचनाकारों को सुपारी लेकर ...ये सिर्फ दबाते नहीं हैं रचनाकारों को सुपारी लेकर ख़त्म कर देते हैं. इनका इतिहास रहा है. अब मौके हाथ में नहीं रहे तो यह बौखलाहट है.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-51502679623559655512010-07-05T12:48:01.128+05:302010-07-05T12:48:01.128+05:30सिर्फ इतना जानता हूँ ....के सचिन की जब आलोचक कड़ी ...सिर्फ इतना जानता हूँ ....के सचिन की जब आलोचक कड़ी आलोचना करते है .....वे अगले दूसरे या तीसरे मेच में शतक लगा देते है .....ओर जम कर खेलते है ......यही एक तरीका है .......डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-6204615304095831582010-07-05T11:40:56.973+05:302010-07-05T11:40:56.973+05:30chandan se kuchh asahmatyan bhi hain.
pahla yh ki ...chandan se kuchh asahmatyan bhi hain.<br />pahla yh ki wh bhains wali upma thik nhi. yuwa lekhak bhains nhi hain, chandan hon to we apni janen<br />dusra yh ki nye lekhak manushyavirodhi nhi hain, iske ek-do udaharan bhi unhe dena chahiye, Nangatalaee ka gawn achchhi kitab hai, gyanranjan aur kashinath singh singh ne achchha likha hai, hm udayprakash kee bhainsen hain,--yh sb kah dene se nye likhak manushya pakshadhar nhi man liye jayenge.<br />nye lekhek bujurgon se kyon khisiya rhe hain, jb unhone khud hi apna chhod kisi auron ke padhne men maja nhi aata....jai ho!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12313797805658263500noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-5200764442439136312010-07-05T00:24:26.431+05:302010-07-05T00:24:26.431+05:30मैं चन्दन की बातों से पूरी तरह सहमत हूँ कि बुजुर्ग...मैं चन्दन की बातों से पूरी तरह सहमत हूँ कि बुजुर्ग पीढ़ी अब पढ़ती नहीं है और फ़तवे जारी करती रहती है। बिना पढ़े ही किसी भी विषय पर कुछ भी कह देना इनके बाएँ हाथ का खेल है। इस तरह की बातों का पूरा-पूरा विरोध होना ही चाहिए। इसके अलावा हिन्दी साहित्य में एक बारीक राजनीति भी चलती है । सिर्फ़ उन्हीं लोगों <br />को चमकाया जाता है जो आसपास रहते हैं और तथाकथित आलोचकों या बुजुर्गों <br />का झोला उठाकर चलते हैं। आपने कहानी की बात की है, लेकिन कविता में भी यही-सब चलता है । करीब दो वर्ष पहले मैंने एक कविता लिखी थी । यह कविता सम्पूर्ण हिन्दी जगत पर लागू होती है। कविता इस प्रकार है :<br /><br />अच्छे कवियों को सब हिदी वाले नकारते<br />और बुरे कवियों के सौ-सौ गुण बघारते<br />ऐसा क्यों है, ये बताएँ ज़रा, भाई अनिल जी<br />अच्छे कवि क्यों नहीं कहलाते हैं सलिल जी<br /> <br />क्यों ले-दे कर छपने वाले कवि बने हैं<br />क्यों हरी घास को चरने वाले कवि बने हैं<br />परमानन्द और नवल सरीखे हिन्दी के लोचे<br />क्यों देश-विदेश में हिन्दी रचना की छवि बने हैं<br /><br />क्यों शुक्ला, जोशी, लंठ सरीखे नागर, राठी<br />हिन्दी कविता पर बैठे हैं चढ़ा कर काठी<br />पूछ रहे अपने ई-पत्र में सुशील कुमार जी<br />कब बदलेगी हिन्दी कविता की यह परिपाटीअनिल जनविजयhttps://www.blogger.com/profile/02273530034339823747noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-13270300408009980542010-07-04T19:33:30.278+05:302010-07-04T19:33:30.278+05:30hi,chandan ji.. aapke pahle ke sabhi post padhe ...hi,chandan ji.. aapke pahle ke sabhi post padhe hain maine , aur aap ekdam sateek likhte hain ..bahut bahut bahut bahut accha likhte hain aap.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06896255474942326716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-20529699596016280352010-07-04T13:07:53.185+05:302010-07-04T13:07:53.185+05:30Chandan Bhai, Aapki baat se sehmat hoon.Yani conte...Chandan Bhai, Aapki baat se sehmat hoon.Yani content se, structure se nahin.Pratikriya lazmi hai par uksau patrkarita ki bhasha ki jaghe yadi vivekpurn aur dhardaar aalochnatmak tippani hoti to adhik kargar hoti aur sahi arthon main vinamr nivedan bhi. 'sansanikhej'<br />sahitya ka dharam kaise ho sakta hai - Niranjanniranjan dev sharmahttps://www.blogger.com/profile/16979796165735784643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2828598581662518679.post-43944981942220389502010-07-04T12:34:41.282+05:302010-07-04T12:34:41.282+05:30बहुत बढ़िया चन्दन | बधाई आपको इस बोल्ड स्टैंड के ल...बहुत बढ़िया चन्दन | बधाई आपको इस बोल्ड स्टैंड के लिए | अच्छी बहस की है आपने | नई पीढ़ी को मनुष्य विरोधी कहने वाले ज्ञानरंजन ने युवा लेखकों को पहल में न केवल छापा है, बल्कि प्रशंसात्मक टिप्पणियों के साथ छापा है | पहल'88 में खुद आपकी कहानी "मित्र की उदासी" के साथ आपका परिचय देने के बाद उन्होंने कहा है " (चन्दन पाण्डेय ने) कुछ ही कहानियों से अपना ध्यान आकर्षित किया |........ पहल, चन्दन पाण्डेय का अभिवादन करती है |" 'जंक्शन' के साथ पहल'90 में छपी अपनी टिप्पणी में तो वो यहाँ तक कह गए हैं की "चन्दन पाण्डेय की आगामी राह आसान नहीं है | प्यार करने वाली और झपट्टा मारने वाली ताकतों के बीच वे रच रहे हैं और लेखकीय समझदारी के साथ आगे बढ़ रहे हैं |" चन्दन, अपने साथियों की अपेक्षा आपके पास चुप लगा जाने के जादा कारण मौजूद थे लेकिन आपने उचित ही सत्य का पक्ष चुना है |<br /><br /> पता नहीं ज्ञानरंजन जी को ये मनुष्य विरोधी होने का इल्हाम अब जाकर कैसे हो गया | मेरे पास लखनऊ से प्रकाशित 21 दिसंबर, 2008 के राष्ट्रीय सहारा में छपा ज्ञानरंजन जी का एक साक्षात्कार है जिसमें समकालीन रचना परिदृश्य पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में वो कहते हैं, "ऐसा नहीं है की नए रचनाकार ठीक नहीं लिख रहे हैं | उनमें काफी नयापन भी है और एक नई समझ भी, लेकिन उनकी भूमिका और महत्व को रेखांकित करने वाला कोई नहीं है | यह उनका दुर्भाग्य है की उनकी रचनाशीलता को पहचानने वाला कोई आलोचक हिंदी में नहीं है | समकालीन परिदृश्य में जो संकट दिखाई देता है, वह रचनाशीलता का संकट नहीं, बल्कि आलोचना का संकट है |" <br /><br />यह संकट अब बुजुर्ग लेखकों और VRS ले चुके संपादकों के माध्यम से भी प्रकट हो रहा है | आदरणीय ज्ञानरंजन जी अब आखिरी वक्त में मुस्लमान होने चले हैं इसलिए जादा प्याज खा रहे हैं |<br /><br />Manoj Patelमनोज पटेलhttps://www.blogger.com/profile/18240856473748797655noreply@blogger.com