जब कोई उन्नीस वर्ष का होता है तब कभी मरने के बारे में नहीं सोचता. समय के मामले में मुझे दुनिया बहुत लम्बी लगती थी. मुझे समय इतना अधिक अधिक लगता था कि सारे काम कल पर छोड़ देता. कबीर के दोहे से अलग मुझे कभी 'आज' ने निराश नहीं किया. अगले दिन पर काम छोड़ना दरअसल एक भोली विलासिता है जो उस उम्र में आ ही जाती है जिस उम्र में इशरत थी जब उसकी इक्कीस पुलिस वालों ( बड़े अधिकारियों जैसे डी.आई.जी रैंक के अधिकारी) ने मिलकर हत्या कर दी थी. क्रूर और निर्मम हत्या.
चालाक लोग कहेंगे कि यहाँ इस घटना के साथ गुजरात सरकार का नाम लेना गलत है. यह तो सभी राज्यों में होता है. यह चालाकी भरी बात है. सभी राज्यों में जो होता है वह तो इस देश का दुर्भाग्य है पर इशरत जहाँ की हत्या, जिसे कुछ नापाक किस्म के लोग मुठभेड़ या बहुत हुआ तो फर्जी मुठ भेड़ कहेंगे, इस देश पर भविष्य में बरसने वाले दु:स्वप्न की पूर्व सूचना है.
यही बात इस घटना को अन्य फर्जी मुठभेड़ों, जो भारतीय पुलिस के दामन में तारों की तरह भरे हुए हैं, से अलग बनाती है. साम्प्रदायिक और तानाशाही शक्तियाँ के काम करने का तरीका यह है. जब उन्हें लगता है कि वे किसी मुद्दे पर फँसने वाले हैं, जैसे चुनाव का समय या कोई अलग मामला, तो वे अपने खिलाफ हत्या की हो रही साजिश का भंडाफोड़ करा देते हैं. जाहिर है, वे होने-वाले-हत्यारे बहुसंख्यक नहीं होते. यह इतिहासविदित है. आप चाहें तो दुनिया के सर्वाधिक सफल तानाशाह स्टालिन तक की जीवनी उठा के देख लें, बाकियों की बिसात क्या.
इसका दूसरा पहलू है तानाशाह या साम्प्रदायिकता पर अटूट निष्ठा रखने वाले नेताओं का डर. इस खामख्याली डर का सर्वाधिक फायदा 'पतित नौकरशाही' उठाती है. वो अपने नेता के आस पास इस भय की व्यूह रचना करती है और कुछ हत्याओं के बदले में मान सम्मान धन अदि पाती है और लूटपाट भ्रष्टाचार आदि मचाती है. नौकरशाही परजीवी है. नौकरशाही सम्मान की भाषा नहीं जानती. वो अपार शक्तियों से लैस होती है और उसे प्रेम की भाषा दरअसल गुलामों की प्रार्थना लगती है. उन पर नकेल या तो नौकरशाही को ही खत्म कर पहनाया जा सकता है या कड़क, ईमानदार नेतृत्व से, जो स्वप्न सरीखी बात है.
इशरत के मामले में क्या हुआ यह राज शायद कभी खुल न सके. कुख्यात वंजारा ने क्या किया . जे.सी.पी. (क्राईम ब्रांच) पी.पी.पंडे ने क्या किया, यह हमारी न्यायपालिका शायद ही कभी जान पाए . जहाँ इतने रसूखदार और विज्ञापन बाँटने में सक्षम लोग शामिल हो, वहाँ भारतीय मीडिया से कोई उम्मीद बेमानी ही नहीं आपका अपराध तक है. पर एक बात है. अपराधियों ने हत्या को मुठभेड़ में बदलने की सारी कोशिशे की होंगी. चाक चौबन्द. अगर ऐसे में हमें इतना ही भर अगर मालूम हो पा रहा है कि इशरत की हत्या, मुठभेड़ नहीं, क्रूर हत्या ही थी तो क्या आप कल्पना नहीं कर सकते कि ऐसा क्यों हुआ होगा ? इसलिए सूचना के बतौर पहले न्यायाधीश तमांग और अब एस.आई.टी ने जो कुछ सामने रखा है, उसका धन्यवाद.
शासन से डरिये और कल्पनाओं को अपने मन तक रखिए. विज्ञान ने जिस तरह सत्ताओं की मदद की है, कहा नहीं जा सकता कि कल को कोई ऐसा मशीन न आ जाए जो हमारी सोच पर भी नियंत्रण करे. उस समय आप लाचार होंगे पर अभी आप सोच सकते हैं. आप जैसे ही इस मुद्दे पर सोचना शुरु करेंगे, आप पायेंगे कि साम्प्रदायिक तानाशाही का एक समर्थक कम हो गया है.
कोई इशरत को वापस नहीं ला सकता. इसलिए कम से कम, अपनी इस सोच को, जिसमें साम्प्रयदायिक तानाशाही का एक समर्थक कम करने में आप सफल हो जा रहे हैं, इशरत को समर्पित कीजिए.
11 comments:
सत्ताओ का चरित्र ही दमनात्मक होता है और फिर यदि सत्ता फासीवादी दिमाग के हाथो में आ जाये तो फिर सिर्फ यही हो सकता है.....इतिहास ऐसे उदाहरनों से भरा पड़ा है....दुःख की बात यह है कि इस वैज्ञानिक चेतना के युग में भी ऐसे इतिहास बार बार दोहराए जाते है और धर्म उन्हें हर तरह से संरक्षण प्रदान करता है....रामजी तिवारी..
चंदन ये पोस्ट बहुत कुछ कहती है और बहुत सारे सवाल छोड़ भी जाती है । मसलन जिस परिवार की बेटी को आतंकवादी कहकर मार डाला गया था उससे हमारा समाज किस तरह की उम्मीदें रखता है, और उससे भी भयावह वो बात कि इस तरह के उदाहरण किस तरह की खतरनाक असुरक्षा पैदा कर रहा है युवाओं के बीच। तिस पर हैरानी की बात ये भी है कि जिम्मेदार लोगों को लगातार ये खेल खेलने का माहौल और इजाजत मिलती रहती है।
बेहतरीन लिखा है, लेकिन अधूरा लिखा है, इशरत एक हिन्दू लडके से प्यार करती थी, जब वो उसके प्यार में मुल्ला बन गया तो उस लडके के बाप की मिलीभगत से ये सारा खेल खेला गया था, लेकिन इनके साथ मारे गये दो बेकसूर कौन थे,
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-708:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
चंदन जी,
बहुत सारे प्रश्न छोड़ता हुआ सुंदर आलेख,
जिसे दो चार लाइने लिख कर टिप्पणी देने से
मन में उठ रहे विचारों को व्यक्त नही किया जा सकता,
बहुत ही निर्भीक एवं सटीक टिपण्णी . मोदी की स्वार्थान्धता बुद्धिजीवी वर्ग से छुपी नहीं है पर खुद को हिंदुत्व का हिमायती बताकर जनता के मन में मैल पैदा करने में यह तथाकथित 'विकास पुरुष' सफल रहा है. खेदजनक है की अभी भी भेड़ की खाल में भेड़िये को पहचानना हम नहीं सीखे.
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कांग्रेस और इशरत जहाँ की माँ का कहना है
की उसे इनकाउंटर से 4 दिन पहले ही मुंबई से
किडनैप किया गया था ..............
अब सबसे बड़ा सवाल ये है की यदि उसे 4 दिन
पहले किडनैप किया गया तो उन्होंने
इसकी शिकायत पुलिस को क्यों नहीं की ?
क्या इससे पहले भी इशरत जहाँ अपने परिवार
वालो को बिना सुचना दिए हुए कई दिनों तक घर
से गायब रहती थी ?
क्या कभी उसके परिवार ने ये जानने की कोशिश
की वो इतने दिनों घर से गायब होकर
कहाँ जाती है और क्या करती है ?
इन बातो से स्पष्ट है की इशरत
जहाँ पाकिस्तानियो के चंगुल में फंस चुकी थी और
वो नरेन्द्र मोदी को मरने के प्लान में पूरी तरह
शामिल थी ......ये भी हो सकता है की ये बाते
उसके घरवालो को भी पता हो और वो भी इस
प्लान में शामिल हो
Kuchh detail me likhiye. Ye to adha adhura lekh hai jisme keval apne ek hi paksh ki bat ko likha hai. Kripya sabhi muddo pr sampradayikta se ht kr sochiye. Agr sampradayik hokar soochenge to hr bat k hajar mtlb niklenge
Kuchh detail me likhiye. Ye to adha adhura lekh hai jisme keval apne ek hi paksh ki bat ko likha hai. Kripya sabhi muddo pr sampradayikta se ht kr sochiye. Agr sampradayik hokar soochenge to hr bat k hajar mtlb niklenge
यह संभव है कि इशरत अन्य तीन लोगों(शायद जिनमें दो पाकिस्तानी थे)के साथ षड्यंत्र मे शामिल रही हो (शायद हो भी ऐसा)? किन्तु क्या इससे पूरी न्यायिक प्रक्रिया को ताक पर रखकर किसी सरकार को किसी की हत्या करने की छूट मिल जाती है?
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