Saturday, August 31, 2013

रविवार : उदय प्रकाश और महेश वर्मा

ख्यातिलब्ध कवि और कथाकार उदय प्रकाश ने महत्वपूर्ण कवि महेश वर्मा की कविता 'रविवार' का अंग्रेजी तर्जुमा किया है. उदय के मार्फत महेश की कविता बृहद पाठक संसार तक पहुँची है. उदय प्रकाश ने अनुवाद के साथ साथ महेश की कविताओं पर एक सुचिंतित टीप भी लिखी है. उदय प्रकाश जी की यह टीप और तर्जुमा देखकर, कहना न होगा कि, केदारनाथ सिंह की वह कविता याद आ रही है: ली पै और तू फू ( शीर्षक स्मृति आधारित ). मौके दर मौके उदय प्रकाश अपने प्रयासों से अनुज कवियों के प्रति अपनी यह जवाबदारी निभाते रहते हैं.
 
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उदय प्रकाश की टिप्पणी:  इन दिनों बहुत कम ऐसी कवितायेँ पढी हैं . ये चलन और शोर से कुछ दूरी बनाती हुईं , मद्धिम आवाज़ में किसी 'सालिलाक्विस ' जैसी, अपने आप से/ को संबोधित होतीं कवितायेँ हैं . जब हिंदी में समकालीनता को बनाती हुई बहुत सी कवितायेँ हर रोज़ आ रही हैं , आभासी और उससे बाहर कागज़ी दुनिया में ..और ..जैसे कोई हर रोज़ कविता-सम्मेलन हो रहा हो ....तब महेश वर्मा की ये कवितायेँ (और उनकी पहले की भी कई कवितायेँ ) कुछ इस तरह हैं, जैसे किसी तेज़ आर्क्रेस्ट्रा के बीच सितार या किसी दूसरे तार-वाद्य का फकत एक तार बहुत संभाल कर, निहायत धीरे से छेड़ रहा हो. मन्द्र सुरों में शोर के बाच अपनी अलग जगह और व्यक्तित्व बनाती कवितायेँ . भाषा में यह भी संभव है का भरोसा एक बार फिर सौंपती कवितायेँ . बधाई . ( कविताएँ यहाँ

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रविवार

रविवार को देवता अलसाते हैं गुनगुनी धूप में
अपने प्रासाद के ताखे पर वे छोड़ आये हैं आज
अपनी तनी हुई भृकुटी और जटिल दंड विधान

नींद में मुस्कुराती किशोरी की तरह अपने मोद में है दीवार घड़ी 

खुशी में चहचहा रही है घास और
चाय की प्याली ने छोड़ दी है अपनी गंभीर मुखमुद्रा

कोई आवारा पहिया लुढ़कता चला जा रहा है
वादियों की ढलुआ पगडण्डी पर

यह खरगोश है आपकी प्रेमिका की याद नहीं
जो दिखा था, ओझल हो गया रहस्यमय झाडियों में

यह कविता का दिन है गद्य के सप्ताह में

हम अपनी थकान को बहने देंगे एड़ियों से बाहर
नींद में फैलते खून की तरह

हम चाहेंगे एक धुला हुआ कुर्ता पायजामा
और थोड़ी सी मौत
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Sunday

( Translated by Uday Prakash

Angels chill out under warm sun
They have abandoned their avenging souls and byzantine judicial laws
In their holy palaces

The wall clock is dropped deep in
Smile of a girl
In a bliss

Grass is tweeting and
The tea cup rejects its mask of
Sombreness and profound intellectualism

A wheel
An urchin wheel
Spins downwards in a stunning landscape

It was just a rabbit
Vanished behind bush
Obviously, it was not the memory of your
Mislaid girl friend

Sunday is a day for poetry
In a prosaic week

We’d let our collapse flow out through our ankles
As blood flows through our sleeps

We would wish to wear a
Freshly rinsed Kurta and pyjama

And a petty death... 

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1 comment:

miracle5169@gmail.com said...

@ chandan, shayad maiN ise anhgreji me is tarah mehsoos na kar pata,wake'ee adbhut anuwaad hai vo jo ki kavitake bhav hai paathak ko sampreshit kiya gaya jyoN ka tyoN.lekhak bhee ise qubul kareN yuN nahin ke ye "UDAY" ji ka anuwaad kiya hu'aa hai.mujhe anayaas Manoj Patel bhai[Padhte-Padhte]yaad aaye.