साइबर कैफे पर बैठा लिख रहा हूँ तो अजीब सा परायापन लगा. लगा जैसे यहाँ आना ही नहीं चाहिए था. हो सकता है मात्राएँ गलत पड़ जाए क्योंकि ये जो कुछ भी है गूगल इंडिक ट्रांसलिटरेशन के सहारे लिखा जा रहा है. बहुत दिनों बाद आप सब से मुखातिब हूँ तो और भी अजीब लग रहा है. दरअसल एक जरूरी बात कहनी थी.जब सारा देश सानिया और शोएब की शादी से घबरा रहा है/ पगला रहा है/ अपनी अपनी अनूठी समझ का परिचय दे रहा है वैसे में मैं एक दुखद इतिहास के बीचोबीच खुद को पा रहा हूँ.
बचपन में स्कूल से लौट जब दादा जी अंग्रेजो के बारे में पूछता था तो वो कुछ भी सही नहीं बता पाते थे. बस इतना ही कहते थे की अंग्रेजो ने बहुत जुल्म किया. ये तो बाद में पता चला कि मेरे दादा जी की ही तरह ज्यादातर लोग कभी अंग्रेजो से मुखातिब हुए ही नहीं/अंग्रेजो के सामने पड़े ही नहीं. परन्तु आजादी की लहर में किस्से भी गढ़े गए. इसके बारे में कभी विस्तार से आउंगा पर अभी यह बताना चाह रहा हूँ कैसे हम अचानक अपने आप को इतिहास बना रही जगहों के आस पास पाते हैं.
करनाल एक बहुत छोटी जगह है और मैं उस दिन अहमदाबाद से लौटा ही लौटा था. मेरे एक असिस्टेंट ने बताया कि आज मनोज बबली हत्याकांड मामले का फैसला सुनाया जाएगा. जानकारी भर के लिए बता दू कि मनोज बबली, करोड़ा गाँव के युगल थे, जिन्होंने अपनी मर्जी से विवाह किया. इनकी निर्मम ह्त्या उस समय कर दी गयी थी जब ये देश की बहादुर पुलिस के संरक्षण में पिपली से दिल्ली जा रहे थे. इन्हें बाकायदा बस से उतार कर, मार कर, नाहर में फेंक दिया गया था.
मैंने जल्दी जल्दी रिपोर्ट वगैरह बनाया, सबमिट किया और कचहरी चला आया. कचहरी तथा आस पास की इमारते भरी हुई थीं. तंज हरियाणवी हर जगह गूँज रही थी. जब फैसला सुनाया गया तो अब लोग चाहे जो कहे(और इन लोगो में मैं पत्रकार बंधुओ को भी शामिल कर रहा हूँ) तो किसी को यकीन नहीं हुआ. एक बारगी तो जो जितना बड़ा बुद्धिजीवी था उसने उतना बड़ा झूठ बताया. पर धीरे धीरे लोगो ने फैसले के पक्ष में अपना पाला बदलना शुरू किया. फैसला था: पांच को फांसी, एक को उम्र कैद, एक को सात वर्ष की सजा.हरियाणे का यह तीसरा मौका है जब किसी को फांसी सुनाई गयी
तालिबान के जिस हिन्दू संस्करण के खिलाप यह फैसला है उसके खिलाफ इस स्तर तक खुद को तैयार करना बहुत साहस का कार्य है वरना आप बाहर से चाहे जितनी हल्की बात माने, पर हरियाणा में रहते हुए आप इन पंचायतो के खिलाफ ऊँची आवाज में बोल भी नहीं सकते. इनके अपने तर्क हैं, जैसे हर धोखेबाज के होते है, हू-ब-हू उसी तरह या जैसे तर्क हत्यारों के होते है. यहाँ के आला पुलिस अफसरान तक ने ऑफ़ दी रिकार्ड इन "ओनर कीलिंग्स" का समर्थन किया है, नेताओं और अन्य रीढ़ हीनो की तो बात ही जाने दे.
मनोज की माँ ,चंद्रपति, का यह बहुत बड़ा संघर्ष रहा है. आज भी गाँव वाले उसे प्रतारित करने का कोइ मौका छोड़ नहीं रहे है.उसे अपनी जमीन पर खेती तो नहीं ही करने दे रहे है बल्कि उस जमीन को पट्टे पर लेने वालो को भी डरा धमका रहे हैं. अपने जीवन में धोखे इत्यादि को अपना उद्देश्य बना चुके लोग भी कह रहे है कि वो बुढिया बेकार में तमाशा कर रही है,अब तो जो होना था वो हो लिया. यह संश्लिष्ट विश्लेषण का विषय है पर खुद को इन सारे प्रवाह के बीच पाकर लगा कि जाना जाए आखिर कुछ लोग ऐसी हिमाकत कैसे कर जाते है? वो कौन सा वकील है जो पैसे इत्यादि पर नहीं बिका? और वो जज? सुश्री वाणी गोपाल शर्मा नाम है उनका. सिर्फ फैसले पर ना जाए, उस फैसले को बारीकी से पढ़ने पर मालूम होता है कि उस इस महिला का स्टैंड क्या है और अपने सामाजिक किरदार को लेकर वो कितनी दृढ प्रतिज्ञ है.
मैंने तय किया है कि मैं इन सबसे मिलूंगा. चारो तरफ जिस अँधेरे की तारीफ़ में इस देश की मीडिया मारी जा रही है( पढ़े टाइम्स ऑफ़ इंडिया के आज और कल के अखबार; वो उन हत्यारों को नायक बनाने का कोई कोर कसार छोड़ना नहीं चाहती है, ढूंढ ढूंढ कर ऐसे ऐसे लोगो के साक्ष्ताकार छाप रही है जो इन हत्याओं को जायज ठहराते है) उसी समय ये जज, ये वकील और वो पत्रकार प्रिंस जिसने सबसे पहले यह खबर लगाई थी, उनसे एक एक कर के मिलना की इच्छा है.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया चाहे जितनी मर्जी जोर से कह ले कि फैसले का असर इन पंचायतो पर नहीं पडा है, पर मैंने करीब से लोगो की आवाज बदलते देखा है. अगर बाकी के मामले में ऐसे ही फैसले आये और उन्हें लागू भी किया जाए तो पंचायतो पर ही नहीं पूरे देश पर असर पडेगा. फिर यह समाचार चैनल शानिया और शोएब से ज्यादा पंचायती मामलों पर टी आर पी लूटेंगे. नेता प्रेम के पक्ष में बोलते हुए पाए जायेंगे. धोखेबाज लोग घडियाली ही सही पर आंसू बहाते पाए जायेंगे.
बचपन में स्कूल से लौट जब दादा जी अंग्रेजो के बारे में पूछता था तो वो कुछ भी सही नहीं बता पाते थे. बस इतना ही कहते थे की अंग्रेजो ने बहुत जुल्म किया. ये तो बाद में पता चला कि मेरे दादा जी की ही तरह ज्यादातर लोग कभी अंग्रेजो से मुखातिब हुए ही नहीं/अंग्रेजो के सामने पड़े ही नहीं. परन्तु आजादी की लहर में किस्से भी गढ़े गए. इसके बारे में कभी विस्तार से आउंगा पर अभी यह बताना चाह रहा हूँ कैसे हम अचानक अपने आप को इतिहास बना रही जगहों के आस पास पाते हैं.
करनाल एक बहुत छोटी जगह है और मैं उस दिन अहमदाबाद से लौटा ही लौटा था. मेरे एक असिस्टेंट ने बताया कि आज मनोज बबली हत्याकांड मामले का फैसला सुनाया जाएगा. जानकारी भर के लिए बता दू कि मनोज बबली, करोड़ा गाँव के युगल थे, जिन्होंने अपनी मर्जी से विवाह किया. इनकी निर्मम ह्त्या उस समय कर दी गयी थी जब ये देश की बहादुर पुलिस के संरक्षण में पिपली से दिल्ली जा रहे थे. इन्हें बाकायदा बस से उतार कर, मार कर, नाहर में फेंक दिया गया था.
मैंने जल्दी जल्दी रिपोर्ट वगैरह बनाया, सबमिट किया और कचहरी चला आया. कचहरी तथा आस पास की इमारते भरी हुई थीं. तंज हरियाणवी हर जगह गूँज रही थी. जब फैसला सुनाया गया तो अब लोग चाहे जो कहे(और इन लोगो में मैं पत्रकार बंधुओ को भी शामिल कर रहा हूँ) तो किसी को यकीन नहीं हुआ. एक बारगी तो जो जितना बड़ा बुद्धिजीवी था उसने उतना बड़ा झूठ बताया. पर धीरे धीरे लोगो ने फैसले के पक्ष में अपना पाला बदलना शुरू किया. फैसला था: पांच को फांसी, एक को उम्र कैद, एक को सात वर्ष की सजा.हरियाणे का यह तीसरा मौका है जब किसी को फांसी सुनाई गयी
तालिबान के जिस हिन्दू संस्करण के खिलाप यह फैसला है उसके खिलाफ इस स्तर तक खुद को तैयार करना बहुत साहस का कार्य है वरना आप बाहर से चाहे जितनी हल्की बात माने, पर हरियाणा में रहते हुए आप इन पंचायतो के खिलाफ ऊँची आवाज में बोल भी नहीं सकते. इनके अपने तर्क हैं, जैसे हर धोखेबाज के होते है, हू-ब-हू उसी तरह या जैसे तर्क हत्यारों के होते है. यहाँ के आला पुलिस अफसरान तक ने ऑफ़ दी रिकार्ड इन "ओनर कीलिंग्स" का समर्थन किया है, नेताओं और अन्य रीढ़ हीनो की तो बात ही जाने दे.
मनोज की माँ ,चंद्रपति, का यह बहुत बड़ा संघर्ष रहा है. आज भी गाँव वाले उसे प्रतारित करने का कोइ मौका छोड़ नहीं रहे है.उसे अपनी जमीन पर खेती तो नहीं ही करने दे रहे है बल्कि उस जमीन को पट्टे पर लेने वालो को भी डरा धमका रहे हैं. अपने जीवन में धोखे इत्यादि को अपना उद्देश्य बना चुके लोग भी कह रहे है कि वो बुढिया बेकार में तमाशा कर रही है,अब तो जो होना था वो हो लिया. यह संश्लिष्ट विश्लेषण का विषय है पर खुद को इन सारे प्रवाह के बीच पाकर लगा कि जाना जाए आखिर कुछ लोग ऐसी हिमाकत कैसे कर जाते है? वो कौन सा वकील है जो पैसे इत्यादि पर नहीं बिका? और वो जज? सुश्री वाणी गोपाल शर्मा नाम है उनका. सिर्फ फैसले पर ना जाए, उस फैसले को बारीकी से पढ़ने पर मालूम होता है कि उस इस महिला का स्टैंड क्या है और अपने सामाजिक किरदार को लेकर वो कितनी दृढ प्रतिज्ञ है.
मैंने तय किया है कि मैं इन सबसे मिलूंगा. चारो तरफ जिस अँधेरे की तारीफ़ में इस देश की मीडिया मारी जा रही है( पढ़े टाइम्स ऑफ़ इंडिया के आज और कल के अखबार; वो उन हत्यारों को नायक बनाने का कोई कोर कसार छोड़ना नहीं चाहती है, ढूंढ ढूंढ कर ऐसे ऐसे लोगो के साक्ष्ताकार छाप रही है जो इन हत्याओं को जायज ठहराते है) उसी समय ये जज, ये वकील और वो पत्रकार प्रिंस जिसने सबसे पहले यह खबर लगाई थी, उनसे एक एक कर के मिलना की इच्छा है.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया चाहे जितनी मर्जी जोर से कह ले कि फैसले का असर इन पंचायतो पर नहीं पडा है, पर मैंने करीब से लोगो की आवाज बदलते देखा है. अगर बाकी के मामले में ऐसे ही फैसले आये और उन्हें लागू भी किया जाए तो पंचायतो पर ही नहीं पूरे देश पर असर पडेगा. फिर यह समाचार चैनल शानिया और शोएब से ज्यादा पंचायती मामलों पर टी आर पी लूटेंगे. नेता प्रेम के पक्ष में बोलते हुए पाए जायेंगे. धोखेबाज लोग घडियाली ही सही पर आंसू बहाते पाए जायेंगे.
18 comments:
sahi kaha aapne...mujhe lagta hai ki ye faisla meel ka pathar saabit hoga
नेताओं ने अपनी आवाज मे बोला ही कब ?
Bahuat dukhad ghatna hai. Judge sahiba ki sarahana. saumitra
आपके इस लेख ने मुझे इस ब्लॉग का फोलोवर बना लिया.. बहुत शानदार तरीके से लिखा गया है यह लेख..
आपकी ही तरह मैं भी आशावान हूँ..
यह केवल हरियाणा भर की सचाई नहीं है, तीन दिन हुए बक्सर (बिहार) में रेलवे लाइन के पास एक जोड़े का शव मिला. सिर विहिन. लड़कीवाले दबंग थे, धमकी पहले से दे रहे थे,
उस माँ और उस वकील के संघर्ष को सलाम.
ऐसी पंचायतें हर दौर में रहीं हैं, शायद ही कोई कानून या उसका भय मात्र इसे दूर कर सके. जिस भीर का मिजाज बदला उसे फिर यू- टर्न लेते कितना वक़्त लगता है. इनकी क्रूरता से लड़नेवाली हर कोशिश को मजबूत करने की जरूरत है. बहुत जरूरी है कि जो दिन-दुनिया को बदलने और खुली हवा का सपना देखते हैं, वे आगे आएं. समाज का सामंती ढांचा, पुरुषों की खोखली प्रतिष्ठा, स्त्रियों से ही अपने सम्मान का आकलन, मुख़्तसर कि बहुत कुछ बदलना होगा, और यह झटके में नहीं हो सकता है,
मीडिया की बेशर्मी का क्या कहना, नंगी और आवारा पूँजी से चालित और मर्यादित मीडिया से इससे अधिक क्या उम्मीद की जा सकती है. उसकी जनपक्षधरता भी टी आर पी की उम्मीदों से तैयार होती है.
दिनों बाद आपका पोस्ट पढ़ा, मेरी बधाई और आदर स्वीकारें.
So, true Chandanji
निस्संदेह हरियाणा के लिए यह फैसला ऐतिहासिक था। मैं TOI नहीं पढ़ता लेकिन जैसा कि आपने बताया है उसे पढ़कर लगता है कि TOI वाले पगला गए हैं !
bahut dino se intzar tha aapke naye blog ka....aur ye bahut jaruri baat kahi aapne jo sab tak pahuchani jaruri hai.
Lekin mujhe dukh tab hota hai jab mai apne aas pas ke logo ko dekhta hu aur unke andar bilkul usi andhepan ka thoda sa ansh milta hai jiske karan Honour Killings hoti hai....Hum sab kahi na kahi jimmedar hai.
BHU ke sociology department ke lagbhag sare budhhijevi logo ko ganda jaatiwad karte dekha maine.....court sirf synptomatic treatment de sakti hai.....asali Virus to humare andar hai!
v.nice chandan ji............true
बहुत बढ़िया आलेख..इस ऐतिहासिक फैसले की गूँज दूर तक सुनायी देनी चाहिए
kitna viradhabhaas ka samay hai. IPL ka Shor aur Mahila bill Ke bandarbant me Prem ka kuchla jana Hitlar ke dadaon dwara.apko yaad hai jhurni aur nanu ki wo kahani, jise karnal ka hi ek ladka apne fantasy ko us pyare khagon me khojta hai, mandi ke un sarpili rahon par.
बहुत खूबसूरत लेख।
बिलकुल सही कहा चन्दन भाई..
:) सैलूट चन्दन भाई.. एकदम सही कहा...
vakai tumahri yah tipapadi patrkarita ke us draisti se hame mukhatib karati hai jis dristi se hamara midiya puri tarah sakshar nahi ho paya hai...dukhad to yah hai ki vah chijo ke bechane me itana masgul hai ki sakshr bhi nahi hona chahta... tujhe bahut bahut badhai
उफ़ इतना जबर्दस्त लेख..इतनी तल्ख साफ़गोई हैरत मे डालती है..जिस समाज के फ़्रेमवर्क को हम तेजी से अंगीकार करते जा रहे हैं..उसमे सारा खेल ’पर्सेप्शन-मैनेजमेंट’ का है..सरकार, मीडिया, प्रबंधन-संस्थान, कार्पोरेट घराने सब इसी खेल मे निष्णात होने के साध्य हैं, औजार हैं..वरना सारी उजली चादरें अगर उघाड़ दी जाँय तो इतनी गंदगी बाहर निकलेगी कि कूड़ाघर शरमा जायें..आउर मीडिया मे डिमांड-सप्लाई का इतना घालमेल है कि समझना मुश्किल है कि मीडिया वो दिखाता है जिसे पब्लिक देखना चाहती है या पब्लिक वो देखती है जो मीडिया दिखाना चाहता है..फ़र्क यह है कि घटनास्थल से २००० किलोमीटर दूर बैठ कर हमें सारी आदर्शवादी बातें सूझती हैं, मगर जब ऐसा ही कुछ या इससे भी बदतर हमारे आसपास होता है तो हमें कुछ भी अस्वाभाविक या बुरा नही लगता...
प्रार्थना है कि कलम की यह अमूल्य निर्भीकता और हौसला बना रहे..जो आज के बिकाऊ चीजों के अंधेरे दौर मे सबसे मुश्किल मगर सबसे जरूरी ताकत है...
बहुत बढ़िया लिखा चंदन भाई,
सच यही है जो सामने आपने देखा और सुना। सब अपने हिस्से का अच्छा करते जाएं....उस अच्छे का भी चालीस फीसदी ही कर दें तो हमारे हिस्से का, बिना अमावस का चांद हमें मिल जाए।
चांद जैसा बेटा नहीं, हमें चांद जैसे माथेवाला समाज चाहिए...
bilkul sahi..aapki bhavnaon ka purzor samarthan karta hoon
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