पहले सबकुछ भला दीखता था
अब सब बुरा लगता है
छोटी घंटी वाला पुराना टेलीफोन
आविष्कार की कुतूहल भरी खुशियां देने को
काफी होता था
एक आराम कुर्सी - कोई भी चीज
इतवार की सुबहों में
मैं जाता था पारसी बाजार
और लौटता था एक दीवार घड़ी के साथ
-या कह लें कि घड़ी के बक्से के साथ -
और मकड़ी के जाले सरीखा
जर्जर सा विक्तोर्ला (फोनोग्राम) लेकर
अपने छोटे से 'रानी के घरौंदे' में
जहां मेरा इंतजार करता था वह छोटा बच्चा
और उसकी वयस्क मां, वहां की
खुशियों के थे वे दिन
या कम से कम रातें बिना तकलीफ की।
श्रीकांत का अनुवाद
10 comments:
"सही बात है बीता हुआ अक्सर अच्छा लगता है....."
प्रणव सक्सैना
amitraghat.blogspot.com
सघन अभिव्यक्ति ........
सुन्दर कविता और संदर अनुवाद.
खुशियो के थे वे दिन .. बहुत सुन्दर कविता है और बेहतरीन अनुवाद भी ।
theek hai bhai,theek hai
सुन्दर कविता और सुन्दर अनुवाद ! आभार ।
सुन्दर उपमाओ के साथ सुन्दर कविता...
बहेतरीन प्रस्तुति .....
achi kavita ka achcha anivaad hai, par iis bar vartaniyon ka kya ho gaya hai, vartani achchhi nahi hone se thoda kyesh huaa, operator ko thoda iis baare mein hidayat dein. mangalmay bhavishiya ki kanmana kartein hain aur asha kartein hain ki anudit kavitayein padane ko mite raheingein.
achi kavita ka achcha anivaad hai, par iis bar vartaniyon ka kya ho gaya hai, vartani achchhi nahi hone se thoda kyesh huaa, operator ko thoda iis baare mein hidayat dein. mangalmay bhavishiya ki kanmana kartein hain aur asha kartein hain ki anudit kavitayein padane ko mite raheingein.
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