Saturday, October 5, 2013

राहुल द्रविड़ : कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था.

पिछले मैच में हर्ष भोगले ने जब राहुल द्रविड़ को क्रीज पर देखा तो सारे शोर-ओ-गुल के बीच एक बात कही - देख लीजिए इन्हें, जितनी देर देख सकते हैं. जो क्रिकेट को प्यार करने वाले हैं उनके लिए एक दर्दीली बात है यह. राहुल द्रविड़ अपने क्रिकेट जीवन के आखिरी कुछ मैच खेल रहे हैं. रविवार को वो अपने जीवन का अंतिम आधिकारिक मैच खेलेंगे.

पिछले ( ओटागो वोल्ट्स ) की तरह आज के मैच ( चेन्नई सुपरकिंग्स - सेमीफाईनल ) में भी मन सहमा हुआ था कि यही कहीं आखिर मैच न साबित हो. पर आज की जीत से एकगुनी खुशी बढ़ी. राहुल को खेलते देखना ऐसा है जैसे आपके मन की कोई सुन्दर साध कोई दूसरा पूरी कर रहा हो. 
  
कैशोर्य-दिनों में हम सब के बीच कई खेमें बँटे थे. उनमें से एक यह था - सचिन बनाम राहुल. यह आभास दोस्तों के इस दुनिया में बिखर जाने के बाद हुआ कि दरअसल हम सब एक साथ इन तीनों को पसन्द करते थे - राहुल, सचिन और वी.वी.एस. ( क्रिकेट अपने समूचेपन में एक व्यवसाय, शक्ति-संतुलन, राजनीति का अड्डा है या रहा होगा और इसलिए भी जो इसके भीतर के कुछेक हिस्से सिर्फ खेल के नाते पसन्द करते हैं, उन्हें खेल और खेल की राजनीति को एक ही बताया जाना अनबूझ लगता है. वो खेल की कला और पूँजी की कला में फर्क जानते हैं पर स्थूल तर्कों के आगे अपनी ही प्रतिक्रिया समझ नहीं पाते. )

खेल को देशों की लड़ाई के बतौर देखना मुझे कभी पसन्द नहीं रहा. क्लब-क्रिकेट का सलीका बेहतर जान पड़ता है. विश्व कपों की हिस्टीरिया के आगे हो सकता है क्लब क्रिकेट की ट्रॉफी अखबारी मानसिकता का इतिहास न झेल पाए, पर राहुल द्र्विड़ ( शेन वॉर्न के बाद) ने शिद्दत से राजस्थान रॉयल्स को एक बेहतरीन टीम बनाया है. आज के मैचोपरांत वक्तव्य में प्रवीण ताम्बे ने राहुल के प्रति कृतज्ञता जताई. ताम्बे भावुक हो गए थे और इधर मैं भी. 

चौतरफा यह बात फैली है, इक्तालीस वर्ष की उम्र में प्रवीण को पहचान मिली है. सब बातों के बीच बेचारगी का एक पुट है पर जब राहुल से यह सवाल मंजरकेर ने किया तो राहुल का जवाब अनूठा था: उसने पिछले बीस सालों से हर तरह की गेंदबाजी की है और मुझे उस पर पहले ही दिन से भरोसा है. ताम्बे ही नहीं राहुल ने जो नए विश्वसनीय चेहरे इस क्लब क्रिकेट के जरिए हमें दिखाए उनमें संजू सैम्सन और राहुल शुक्ला हैं. 

वैसे द्रविड़ पर उम्र का दवाब दिख जा रहा है. उनका बैट देरी से नीचे आ रहा है और जिस अन्दाज में उनका विकेट जा रहा है उसे देख कर लगता है, दीवाल छिद गई है. फिर भी मेरी तमन्ना है कि रविवार का मैच राजस्थान रॉयल्स ही जीते. राहुल उस दिन बोल्ड न हों. मेरे पास समय हो. मैं आठ से ग्यारह के बीच किसी 'मेल' में न उलझूँ और उस दिन अपने इस अतिप्रिय खिलाड़ी को आखिरी बार आधिकारिक मैच खेलते हुए देखूँ. आमीन.      

2 comments:

Unknown said...

बहुत आत्मीयता से लिखा है चन्दन जी आपने ।
राहुल संभवतः इकलोते खिलाड़ी हैं जिन्होने इस खेल की कलात्मकता और संस्कारों को बचाये रखा.

Unknown said...

बहुत आत्मीयता से लिखा है चंदन जी आपने ।
राहुल संभवतः इकलौते खिलाड़ी हैं जिन्होंने इस खेल की कलात्मकता और संस्कारों को बचाए रखा ।