Wednesday, April 30, 2014
Tuesday, April 29, 2014
Monday, April 14, 2014
इस महीने की किताब: अजाने मेलों में
प्रमोद जी की भाषा में कहें या यों कह लें कि कहने की कोशिश करे तो बात कुछ यों होगी: कईसे एगो मुहाविरा जीवन में सच होते दिखता है एक्कर निमन नमूना है परमोद जी की किताब. मुहावरा ई है कि बटुली के एगो चावल टोअल जाला. एक्दम्म से अईसे ही..... प्रमोद जी की एक ही कहानी हंस में पढ़ी थी और मुरीद हो गया. तभी से इनकी एकाधिक कहानियाँ या संकलित कथेतर गद्य पढ़ने का इंतजार था. बाद में उसी कहानी का जिक्र बेहद आदरणीय ( उनका ज्ञान तो इतना है कि उन्हें प्रात: स्मरणीय भी कहें तो अतिशयोक्ति न हो ) श्री वागीश शुक्ल ने किया. उसी प्रमोद जी की किताब अजाने मेलों में को "हिन्दी युग्म" ने प्रकाशित किया है.
इस किताब की मेरी प्रति, दुआ की तरह, रास्ते में है. मार्फत होम शॉप 18.
Subscribe to:
Posts (Atom)