Friday, July 25, 2014

दो दिन और तीन एफ.आई.आर : एक वो हैं जिन्हें चाह के अरमाँ होंगे

22 जुलाई की 'निन्दनीय और दु:खद' घटना के बाद कृष्णमोहन की गिरफ्तारी हुई. एफ.आई.आर ( प्राथमिकी ) दर्ज हुआ. विधान सम्मत धारा 151 लगाई गई. शाम होते-न-होते उनकी जमानत और रिहाई हो गई.

खिलाड़ी, दर्शक और खेल के नियंता पहले से तय थे लेकिन असल खेल इस रिहाई के बाद शुरु हुआ.

सिर्फ मीडिया ही नहीं प्रशासन भी कृष्णमोहन किरण प्रकरण में कृष्णमोहन से बेहद नाराज था और वह चुस्त और मुस्तैद प्रशासन न्याय का ऐसा पक्षधर निकला कि शाम साढ़े सात बजे पुलिस उनके घर फिर आ धमकी. इस बार पुलिस दल के अगुआ  ने 'ऊपर' के दबाव की बात स्वीकारी और यह भी बताया कि दूसरा एफ.आई.आर दर्ज हुआ है. इस बार जो धाराएँ लगाई गई थी वे क्रमश: 107/16 और 151 हैं. चुस्त और मुस्तैद प्रशासन ने शाम साढ़े सात बजे कृष्णमोहन को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया. इस चुस्त और मुस्तैद प्रशासन ने सार्वकालिक महान मीडिया को यह नहीं बताया कि इस बार जो एफ.आई.आर दर्ज हुआ है, उसका आधार निरा काल्पनिक है. आधार यह था कि शाम को अपनी रिहाई के बाद दोनों पक्षों में पुन: मारपीट हुई है. जबकि सच यह है कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था और मीडिया को न बताने के पीछे का राज भी यही कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. लेकिन चुस्त और मुस्तैद प्रशासन को अपने आकाओं का दिल भी रखना था जिन आकाओं का दिल और दिमाग ईलाहाबाद और लखनऊ से संचालित हो रहा था.

जबकि 151 के मसले में गिरफ्तारी भी नहीं हो सकती, यह सुप्रीम कोर्ट तक कह चुका है. फिर भी उस रात चुस्त और मुस्तैद प्रशासन ने कृष्णमोहन को जेलखाने में डाल दिया. चुस्त और मुस्तैद प्रशासन निश्चिंत था कि अगले दिन ये जमानत नहीं ले पायेंगे और उसके आगे तीन दिनों की छुट्टी है. जो समूह कृष्णमोहन के पीछे लगा है, उसका उद्देशय पूरा होता दिख रहा था. उद्देशय संख्या 1: कृष्णमोहन को विश्वविद्यालय से निलम्बित कराना. ऐसा हो गया होता अगर वो अड़तालीस घंटे कैद में रह गए होते.

चुस्त और मुस्तैद प्रशासन को बड़ा सदमा पहुँचा जब उन्हें लगा कि जमानत मिल सकती है. जमानत मिल जाने की सम्भावना प्रशासन पक्ष और विपक्ष के लिए ऐसी विस्मयकारी थी कि उन लोगों ने कृष्णमोहन पक्ष के वकीलों से हाथापाई तक की नौबत खड़ी कर दी थी. किसी तरह जमानत हुई, दिन के दो बजे. आदेश जिला जेल तक पहुँचा.

इस बीच लखनऊ और इलाहाबाद फिर सक्रिय हुए और आनन फानन में चुस्त और मुस्तैद प्रशासन ने तीन ऐसी धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जिनमें रिहाई की सम्भावनाएँ शून्य हैं या उससे भी कम. वे धाराएँ हैं : 494, 498 (A) तथा 506. ज्यादातर 'शोरबाज' बुद्धिजीवियों, जिन्होने अपने घर आँगन में गाली गलौज करना ही सीखा है,  के लिए ये सब एक संख्याँ भर है. उनका इनदिनों मीडिया पर अथाह और अगाध विश्वास उमड़ आया है. वो निर्भया केस का उदाहरण दे रहे हैं, कह रहे हैं कि आखिर इसी मीडिया ने उस केस को 'कवर' किया. उन्हें यह कोई न समझाए कि निर्भया जैसे मामले मीडिया के 'मैनुपुलेशन' से बाहर हो जाते हैं. मीडिया चाहकर भी इन खबरों से छेड़छाड़ नहीं कर सकता. लेकिन जहाँ मीडिया का बस चलता है, वहाँ मीडिया क्या करता है, ये कोई उनसे पूछे जो इसके शिकार हैं. कोई छत्तीसगढ़ की मीडिया से पूछे कि बिनायक सेन और साथियों के साथ उसने क्या किया था. 
( http://nayibaat.blogspot.in/2010/12/blog-post_30.html )

चुस्त और मुस्तैद प्रशासन का दुर्भाग्य यह कि वो कभी सच में चुस्त रहे ही नहीं. वजह कि जब तक इन तीन नई धाराओं वाला मामला जेलअधिकारी तक पहुँचा, वो दूसरे केस में कोर्ट के आदेश पाकर कृष्णमोहन को रिहा कर चुका था.

कुछ लोग अपने गुस्से और चालाकी के घोल में यह कहते हुए पाए गए हैं - वे लोग कृष्णमोहन को इतना मजबूर कर देंगे कि KrishnaMohan आत्महत्या कर लेगा ! जी हाँ. यह तथ्य है.

दूसरी तरफ मेरे कुछ मित्र मुझे इस बात की सलाह दे रहे हैं कि मैं इस मुद्दे पर कुछ न लिखूँ. क्योंकि इस मुद्दे पर कृष्णमोहन का पक्ष रखना भी 'पोलिटकली इनकरेक्ट' होना है. वो मेरे शुभचिंतक हैं जो कह रहे हैं कि इससे मेरा लेखक - जीवन खराब हो सकता है. वे मित्र उन लोगों की दुहाई दे रहे हैं जो चुप हैं. मेरे मना करने के बावजूद मुझे वो सब उल्टा सीधा सुना रहे हैं जो मेरे बारे में कहा जा रहा है और फेसबुक आदि पर लिखा जा रहा है. और मैं मजाक करते हुए इनसे कहता हूँ कि ये तो अच्छा है जो कुछ लोग मेरी बातों के सहारे अपना दिन यापन कर रहे हैं पर सच में इनकी बातें सुनते हुए इतना भर सोच पा रहा हूँ कि क्या ये लोग सचमुच में मेरे मित्र हैं ?  क्या सच का दामन हम इस डर से छोड़ दें क्योंकि कुछ लोग हमारी खिलाफत करते हैं ?

यह तो नहीं होने जा रहा है.

अगर मेरा लेखन डिजर्व करता होगा तो समय उस पर फैसले देगा. लेकिन भविष्य में भी मैं मीडिया या पोलिटिकल करेक्टनेस से डरकर नहीं लिखने जा रहा. मैं सच के साथ रहूँगा.    

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