Thursday, October 28, 2010

मारियो वार्गास योसा की कहानी

मारियो वार्गास योसा. पूरा नाम ‘होर्खे मारियो पेद्रो वार्गास योसा’. वर्ष 2010 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार. 28 मार्च, 1936 में पेरू के शहर ‘आरेकिपा’ में जन्मे योसा का बचपन पारिवारिक विघटन का शिकार रहा, और पेरू से लेकर बोलीविया तक के शहरों में बीता. लेखकीय जीवन की शुरूआत के साथ ही योसा की सक्रियता राजनीति में भी हुई. ‘ला सिउदाद ई लोस पेर्रोस’ (‘शहर और कुत्ते’) नामक उपन्यास के साथ साहित्य में स्थापित होने के बाद, योसा ने इतिहास, राजनीति और प्रेम से लेकर मर्डर मिस्ट्री तक, हर तरह के विषय पर अपनी कलम चलाई. अपने उपन्यासों में भाषा और कथ्य की विलक्षण विविधता योसा को दूसरे किसी भी समकालीन लेखक अलग बनाती है.
नई बात की छोटी पर ‘कमिटेड’ टीम की ओर से योसा को बधाई, जिसे शायद ही वो कभी जान पायें. यह अनुवाद श्रीकांत ने किया है और वो भी मूल स्पेनिश से, कारण कि उसे स्पेनिश रविन्द्र आरोही ने सिखाई है..:)
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छोटा भाई
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रास्ते में किनारे एक बड़ा सा चट्टान पड़ा था, और उस पर एक जहरीला मेंढक था. डेविड उस पर निशाना साधने लगा.

मारना मत - जॉन बोला.

डेविड हथियार नीचे कर लिया और आश्चर्य से अपने छोटे भाई की ओर देखा.

वह गोली की आवाज सुन सकता है - जॉन बोला.

पागल हो गए हो? झरना अभी पंद्रह किलोमीटर दूर है.

हो सकता है कि झरने के पास होने की बात गलत हो, बल्कि मुझे तो लगता है किसी कंदरा में छुपा होगा.

नहीं - डेविड बोला – और अगर वह किसी कंदरा में भी होगा, तो भी ऐसा कभी नहीं सोचेगा कि यह इंसानी मौजूदगी हमारी है.

उधर टोड अपने बड़े से, खुले मुंह में सांस भरता, हौले हौले डोलता रहा, और अपनी उनींदी आंखों के पीछे से मुट्ठी भर अशुद्ध हवा के बीच डेविड को देखता रहा. डेविड ने फिर से अपनी रिवाल्वर तान ली, इत्मीनान से निशाना साधा और घोड़ा दबा दिया.

उसे नहीं लगी - जॉन बोला.

उसे ही लगी - डेविड का जवाब था.

वे चट्टान के करीब आ गए.

टोड के होने की जगह पर एक हरे रंग का मलबा छप गया था.

क्यों,... नहीं लगी?

हां हां, लगी. जॉन बोला.



वे अपने घोड़ों की तरफ बढते रहे. वही ठंडी हवा एक धार की तरह बह रही थी जिसने पूरे सफर उनका साथ दिया था, लेकिन नजारे बदलने लगे, सूर्य पहाड़ों के पीछे की ओर बुझ रहा था, एक पहाड़ी के पैर के पास, कोई धुंधली छाया दूसरी अनेक छोटी छायाओं को छुपा रही थी, चोटियों पर कुंडली की तरह लिपटी बर्फ ने चट्टानों का सा भूरा रंग पहन लिया था. डेविड ने अपने कंधों के उपर से एक कंबल उछाला, जो आराम करने के लिए जमीन पर बिछा दिया गया, और फिर, यांत्रिक तरीके से रिवाल्वर में गोली भरने लगा. डेविड जब तक हथियार तैयार करता, और गोली की पाउच को उछालकर फेंकता रहा, जॉन चोरी छिपे उसके हाथों को देखता रहा, अलग अलग हरकतें करती हुईं उसकी उंगलियों जैसी मरी हुईं सी लग रही थीं, हरकतों से विरक्त.

चलें? - डेविड ने पूछा.

जॉन ने सहमति दी.

सड़क पतली और ढालू थी और घोडों को उपर चढ़ पाने में मशक्कत करनी पड़ रही थी, चट्टानों और पिछले कुछ दिनों में हुई बारिश से बनी नमीं के कारण वे बार बार फिसल जा रहे थे. दोनों भाई चुपचाप चले जा रहे थे. कुछ और दूर चलने पर उनका सामना महीन, और लगभग अदृश्य बूंदों वाली बारिश से हुआ, लेकिन बूंदा बांदी जल्द ही रुक भी गई. तब तक अंधेरा बिखरने लगा था, जब वे एक दूरी से ही गुफाओं को देख सकते थे. पहाड़ अभी दिख रहा था, और एक ऐसे केंचुए की तरह पड़ा था जिसे कि लोग

‘सेर्रो दे लोस ओखोस’ (आंखों के पहाड़) - के नाम से जानते हैं.

उधर चलकर देखें क्या, वो है कि नहीं? क्या कहते हो? - जॉन ने पूछा.

कोई मतलब नहीं वहां जाने का. मुझे यकीन है कि वो झरने से आगे बढ़ चुका है. चूंकि यह राह हमेशा चलती रहती है, इसलिए उसे पता होगा कि यहां उसे कोई भी देख सकता है.

तो फिर क्या करोगे? - जॉन बोला.

और महज एक ही लमहे बाद फिर से पूछा :
और अगर उस शख्स ने हमसे झूठ बोला हो तो?

किसने?

उसी ने, जिसने हमे बताया कि उसे उसने देखा है.

लेयांद्रो? नहीं, ऐसा तो नहीं लगा कि उसने मुझसे झूठ बोला हो. उसने तो कहा कि वह झरने के आस पास ही छुपा है, पक्के तौर पर वहीं कहीं. तुम देख लेना.

रात की पहली पहर के चढ़ आने तक वे बढ़ते रहे. एक गहन कालिमा की चादर ने उन्हें घेर लिया, अंधेरे में, जहां पेड़ पौधों तक को नहीं देखा जा सकता था, ऐसे धुर निर्जन में दूर दूर तक सिर्फ एकांत दिखाई दे रहा था. उन दोनों के सिवाय, एक मात्र भौतिक उपस्थिति के साथ, एकांत. घोड़े पर सवार रहते हुए, जॉन अपनी गर्दन पर झुका हुआ उसके संभावित पदचिह्न खोजने की जुगत करता रहा. जब तक उसे पता चले कि वे उस चोटी पर पहुंच चुके हैं, एक समतल सा भूखंड आ गया. डेविड ने कहा कि अब उन्हें पैदल ही चलना चाहिए. वे घोड़ों से उतर गए, और उन्हें एक चट्टान से बांध दिए. बड़ा भाई अपने घोड़े की गर्दन पर थपकियां देने लगा, पीठ भी थपकाई और उसके कान में कुछ फुसफुसाया.

काश कि तुम्हें कल बर्फ न झेलनी पड़े.

क्या अब हम नीचे उतरेंगे? - जॉन का प्रश्न था.

हां - डेविड का उत्तर - ठंड नहीं लग रही तुम्हें? दर्रे में ठहरकर अगले दिन का इंतजार करना ही बेहतर होगा. वहीं आराम भी करेंगे. तुम्हें अंधेरे में नीचे उतरने से डर तो नहीं लग रहा?

नहीं. उतरते हैं, अगर तुम चाहो.

तत्क्षण से ही वे आराम की मुद्रा में आ गए. डेविड आगे आगे चलता रहा, एक छोटा सा लालटेन और रौशनी की लकीर को थामे हुए, जो उसके और जॉन की टांगों के बीच झूल रहे थे, एक निमिष भर के लिए एक वृत्ताकार अंधेरे ने उनके दरम्यान जगह ली, जिसे कि छोटे भाई द्वारा कुचल दिया जाना था. बस उतना ही वक्त बीता था, कि जॉन की सांसें गहरी चलने लगीं थीं और ढलान की रूखी चट्टानों ने उसकी बांह को खंरोंचों से भर दिया था. उसे सामने सिर्फ रौशनी का चकत्ता दिखा, लेकिन तुरंत ही उसने भाई के सांसों की आवाज भी महसूस की और उसके आने की आहट सुना : रास्ता फिसलन और ढलान का था, इसलिए काफी सावधानी से बढ़ना चाहिए था, ऊंचाई और गड्ढों की टोह लेते हुए. जैसा कि डेविड कर रहा था, हरेक कदम पर जमीन की थाह लेते हुए, पकड़कर आगे बढ़ सकने वाला कोई मुकम्मल सहारा खोज चलता रहा, फिर भी कई बार गिरते गिरते बचा था. जब तक वे दर्रे तक पहुंचते, जॉन को लगने लगा था कि आराम करने का वक्त जरूरत से कई घंटे बाद आया है. वह पूरी तरह से थक चुका था और, तभी, उसने पास ही कहीं झरने की आवाज सुनी. यह एक बड़ी और भव्य, पानी की चादर थी जो एक उंचाई से लगातार बरसती रहती थी, एक झील के उपर, जिसके पानी से एक दूसरी नहर का पेट भरता था, बादलों के गर्जन की तरह गूंजती हुई. झील के चारो तरफ काई और दूसरी वनस्पतियां पूरे साल हरी रहती थीं और लगभग बीस किलोमीटर की चौहद्दी के बीच यह इकलौता हरा भरा भूखंड था.

हम यहां आराम कर सकते हैं - डेविड बोला.

वे एक दूसरे के पास बैठ गए. रात बर्फ की मानिंद ठंडी थी, हवा नम थी, आकाश मेघाच्छादित. जॉन ने एक सिगरेट सुलगाई. था तो वह थका हुआ, लेकिन फिर भी उसे नींद नहीं आ रही थी. उसने भाई का ढीला पड़कर उबासी लेना महसूस किया, कुछ ही देर में उसने हिलना डुलना बंद कर दिया, उसकी सांसें ज्यादा व्यवस्थित क्रम में चलने लगीं, थोड़ी थोड़ी देर पर सुरसुरी की आवाज करती हुईं. अब सोने की बारी जॉन की थी, सो वह ऐसी कोशिश भी करने लगा. चट्टान के उपर अपनी देह को बिछाकर वह दिमाग को हलचलों से खाली करने की चाहत किया, लेकिन ऐसा हो न सका. उसने दूसरी सिगरेट भी सुलगा ली. तीन महीने पहले जब वह देहात के, अपने अहाते वाले घर पहुंचा था, तब तक उसे अपने भाइयों से मिले दो वर्ष बीत चुके थे. डेविड तो फिर भी वैसे का वैसा था, जिसके लिए नफरत और प्यार करने की चीजें बपचन की ही तरह पहले से तय थीं, लेकिन लेओनोर बदल चुकी थी, बच्ची तो वह बिलकुल ही नहीं रह गई थी, जो सजा भुगत रहे रेड इंडियंस पर पत्थर फेंकने के लिए खिड़की से झांकती रहती थी, बल्कि तब तक वह एक लंबी काया वाली युवती बन चुकी थी, एक स्त्री की सारी भंगिमाओं से लैश, और उसकी खूबसूरती भी उसके चारो ओर उसके सीधेपन की तरह लिपटी रहती थी. एक हिंसक खूबसूरती. उसकी आंखें किसी मशाल की तरह जलती रहती थीं. बहन को याद करते हुए हर बार ही जॉन के खयालों में वह शक्श आ जा रहा था जिसे कि वे तलाश रहे थे, ऐसे में वह एक उनींदापन महसूस करने लगता, जो उसकी आंखों से धब्बे की तरह सटती जाती थी, पेट में एक खाली जगह भर आती थी, जैसे आग से भरा कोई रास्ता.


उस दिन की भोर में, जब उसने कामिलो को घर के अहाते और अस्तबल को विलगाने वाले मैदान के बीच घोड़ों को तैयार करने के लिए गुजरते देखा, तो वह हड़बडी में उठी हुई थी.

चुपचाप निकल लेते हैं - डेविड ने कहा था - बच्ची न जागे तो ही ठीक होगा.

पहाडी के एक खास हिस्से की चोटी से गुजरते हुए, या फिर पैदल चलकर एक तरफ के बोए खेतों, और कुछ ही दूर जाकर खतम हो जाने वाली घर के पास की सडक से उतरते हुए, वह एक अजीब सी वेदना से भरा रहा. इसी क्र्म में उसने अपने उपर झुंड के झुंड उमड़ते मच्छरों का एहसास भी नहीं रहा, जो उस शहरी आदमी की चमड़ी के हरेक खुले हिस्से को यथा संभव निचोड़े जा रहे थे. आगे, चढ़ाई शुरू करने के साथ साथ उसका विषाद जाता रहा. वह कहीं से भी एक अच्छा घुड़सवार नहीं था, और सामने थीं चट्टानों की खतरनाक ढलानें, किसी डरावने प्रलोभन की तरह दिखते, पतले सांप सरीखे रास्ते, दूसरे किनारों पर बिलकुल खुले हुए. वह भरसक चौकन्ना रहा, घुड़सवारी के दौरान हरेक डग में सतर्क, अपने आत्मविश्वास को सहेजते, बिलकुल पास पास आ जाते चक्करदार रस्तों पर एकाग्र रहते हुए.

वो देखो! - जॉन ने लड़खडाती आवाज में कहा.

तुमने तो मुझे डरा ही दिया - बोला - मुझे लगा तुम सो रहे थे.

चुप रहो और वो देखो.

क्या?

वहां, उस तरफ.

पहाड़ी की दूसरी ओर, जहां से झरने का शोर उठ रहा था, एक टिमटिमाती सी रोशनी दिख रही थी.
वहां कोई अलाव है - डेविड बोला - यकीनन, ये वही है. चलो.

क्या सुबह होने तक इंतजार कर लिया जाय? - जॉन फुसफुसाया, अपने सूखे और जलते कंठ की मदद से, जो मानो जल रहा था - अगर वह भागना शुरू कर देगा तो हम उसे इस अंधेरे की धुंध में कभी नहीं पकड़ पाएंगे.

पानी के शोर के आगे उसे हमारी आहट नहीं सुनाई देगी - डेविड ने विश्वास के साथ जवाब दिया, अपने भाई को हाथ की टेक से उठाते हुए. - चलो.

डेविड, ढेर सारे इत्मीनान के साथ, कूद पड़ने के लिए तत्पर देह के साथ झुका हुआ, पहाड़ी से चिपककर सरकता रहा. जॉन भी अपनी तरफ से बढ़ता रहा, लड़खड़ता, लेकिन आंखें उस रौशनी पर एकाग्र जिसकी लौ कभी मद्धम तो कभी तेज हो रही थी, मानों कोई उसे पंखे से हवा कर रहा हो. करीबी बढ़ते जाने के साथ अलाव की रौशनी उन्हें तुरंत तुरंत चट्टानों के उतार चढ़ाव, रूखे पत्थरों, झुरमुटों और झील के किनारे की पहचान करने में मदद करने लगी, लेकिन आगे बढ़ना फिर भी मुश्किल था. जॉन का विश्वास अब तक दृढ़ हो चुका था कि वो जिसे खोज रहे हैं, वह बेशक वहीं है, उन्हीं सारी छायाओं के बीच कहीं छुपा हुआ, रौशनी के ठीक पास कहीं.

वो रहा - डेविड बोला - दिखा?

अलाव अपनी नाजुक फुसफुसाहट के बीच उस अंधेरी और धुंधली आकृति को रौशन कर रहा था, जो थोड़ी गर्मी की ख्वाहिश के साथ अलाव के पास था.

क्या करें? - जॉन ने रुकते हुए पूछा.

लेकिन डेविड तब तक उसके पास से नदारद था, वह क्षण भर में ही उसके दिखे चेहरे की तरफ दौड़ गया था. जॉन ने अपनी आंखें मूंद लीं, उसने पालथी मारे बैठे रेड इंडियन का खयाल किया, आगे की लपटों की ओर बढ़े उसके लंबे हाथ, अलाव की तिनगियों से परेशान, आंख की पलकें : अचानक कुछ नीचे की ओर धमका, जब तक कि दो बलिष्ट भुजाओं ने उसकी गर्दन को जकड़ नहीं लिया, उसे यही लगा होगा कि कोई जानवर है. अंधेरे की छायाओं के बीच से हुए उस अप्रत्याशित हमले के वक्त वह, बेशक, घनघोर आतंक से भर गया होगा, निश्चय ही वह अपना बचाव कर पाने में असफल था, हद से हद वह एक घोघे की तरह अपनी देह की खोल में और भी ज्यादा सिकुड़ सकता था ताकि चोट का असर कुछ कम हो, और अपनी आंखें बड़ी से बड़ी परिधि में खोल सकता था, झुटपुटे के बीच से आक्रमणकारी को पहचान पाने की कोशिश करते हुए. आगे, उसने एक जानी पहचानी आवाज सुनी, ‘ तुमने ये क्या किया, सूअर?’ ‘कुत्ते, क्या कर दिया तूने?’ जॉन ने डेविड की आवाज सुनी और देखा कि वह लात और जूतों से वार किए जा रहा है, कई बार तो उसके जूते की नोक रेड इंडियन की बजाय चट्टानों पर लग जा रही थी. यह उसे और भी ज्यादा गुस्सा दिलाता रहा होगा. जब तक जॉन वहां पहुंचता, पहले तो महज एक गुर्राहट ही सुनाई दे रही थी, मानो रेड इंडियन गरारे कर रहा हो, लेकिन बाद में डेविड की शख्त आवाजें भी आने लगीं, धमकियां और गाली और अपमान से भरे शब्द. जॉन ने झट से अपने दाएं हाथ में रिवाल्वर ले लिया, उसकी उंगलियां धीरे धीरे रिवाल्वर के घोड़े पर दबने लगीं. अचंभे के बीच उसने सोचा कि अगर उसने यों ही गोली चलाई, तो वह भाई को भी लग सकती है, लेकिन हथियार को छोडा नही, दूसरी तरफ, जब तक कि वह अलाव की तरफ बढ़ता, उसे एक गहन सन्नाटा मिला.

बहुत हुआ डेविड! - वह चिल्लाया – उसे गोली से मारो. उसकी देह से मत उलझो?

कोई जवाब नहीं आया. अब जॉन को वे दिखाई भी नही दे रहे थे, भाई और रेड इंडियन एक दूसरे से गुत्थमगुत्था होकर रौशनी के घेरे से बाहर निकल गए थे. जॉन उन्हें देख तो नहीं, लेकिन सुन जरूर रहा था, आघात की रूखी आवाजें, और चीत्कार और हांफना.

डेविड – भाग जाओ वहां से - मैं गोली चलाने जा रहा हूं.

हड़बड़ी और बेचैनी के बीच, महज एक ही क्षण बाद उसने फिर से दुहराया

डेविड भाग वहां से. यकीनन मैं गोली चलाने वाला हूं. फिर से कोई जवाब नहीं आया.

पहली गोली चला देने के बाद, जॉन कुछ देर के लिए हैरत के साथ खड़ा रहा, लेकिन फिर वह बिना निशाना साधे फायर करने लगा, तब तक, जब तक कि उसे कारतूस के डिब्बे को ठोंकने से उपजा धात्विक कंपन न महसूस न होने लगा. वह बिना हिले डुले खड़ा रहा, यह भी ध्यान नहीं दिया कि रिवाल्वर उसके हाथों से छूटकर उसके पैर पर गिर गया. झरने की आवाज जैसे कहीं गुम हो गई थी, उसकी पूरी देह में एक झन्नाहट गुजरने लगी थी, त्वचा पसीने से नहा गई थी, सांसें बमुश्किल चल रही थीं. जल्द ही वह चिल्लाया

डेविड!

मैं यहां हूं, जानवर कहीं के! - दूसरी तरफ से आवाज आई, डर और गुस्से की मिलीजुली आवाज.
तुम्हें होश है कि नहीं? तुम मुझे भी गोली मार देने वाले थे? पागल हो गए हो तुम?

जॉन तेजी से मुड़ा, अपनी फैली भुजाओं में भाई को भर लिया, समझ से परे की कोई बात बड़बड़ाने लगा, विलाप करने लगा और जैसे डेविड की किसी भी बात को न सुन रहा हो, जो कि उसे धीरज रखने को कहता जा रहा था. इस तरह से हुई चूक को बार बार कहते हुए जॉन ने कुछ ज्यादा ही समय ले लिया, सुबकते हुए. जब वह थोड़ा संयत हुआ, तो उसे रेड इंडियन की याद आई.

और वो, डेविड?

वो? - डेविड अपना धैर्य वापस लाते हुए, दृढ़ शब्दों में बोला - तुम्हें क्या लगता है, कैसी होगी उसकी हालत?

अलाव जलता ही जा रहा था, लेकिन बेहद कमजोर लौ के साथ. जॉन ने अलाव से सबसे बड़े लट्ठे को उठाया और उसकी रौशनी में रेड इंडियन को खोजने लगा. उसने जैसे ही रेड इंडियन को देखा, कुछ देर के लिए उसकी आंखें फटी ही रह गईं, लट्ठा हाथ से गिरा और बुझ गया.

तुमने देखा था, डेविड?

हैं, मैंने देख लिया था. अब चलते हैं यहां से.

जॉन एकदम से सख्त हो गया था, कुछ भी नहीं सुनते हुए, और जैसे सब कुछ सपने में देखते हुए, कि जैसे डेविड उसे खींचते हुए पहाड़ी पर चला जा रहा था.

ऊपर चढ़ने में उन्हें काफी वक्त लगा. डेविड अपने एक हाथ में लालटेन थामे था, और दूसरे से जॉन को सहारा दे रहा था. जॉन, जो एक चिथड़े की तरह दिख रहा था - जो मजबूत चट्टानों के बीच से सरकता चुपचाप समतल जमीन तक चला जाने वाला था, बिना किसी प्रतिरोध के.

थके हुए से दोनो, अचानक एक चोटी से फिसलकर नीचे आ गिरे. जॉन ने हाथों के बीच अपना घायल सिर थाम लिया था, ढेर सारी खरोंचों के साथ, स्थिर सा, खुले मुह से गहरी गहरी सांसें लेता हुआ. जब तक कि उसकी चेतना लौटे, डेविड लालटेन की रौशनी में उसे नीहार रहा था.

चोट आ गई है न? - डेविड बोला - मैं अभी पट्टी करता हूं.

अपनी रूमाल को दो हिस्सों में फाड़कर दोनों हिस्सों को जॉन के दोनों घुटनों पर बांध दिया, जो पैंट के फटे हिस्से से बाहर झांक रहे थे, खून से नहाए हुए.

फिलहाल के लिए इतना ही, ताकि हमारे वापस लौटने तक घाव कहीं बढ़ न जाए. तुम्हें पहाड़ पर चढ़ने का बिलकुल भी तजुर्बा नहीं है. लौटने के बाद लेओनोर तुम्हारे घाव की देख रेख करेगी.

घोड़े कांप रहे थे और उनके नथुने नीली झाग से सने पड़े थे. डेविड अपने हाथों से उन्हें साफ किया, उनके पुट्ठों और रानों को थपथपाया, उनके कानों के पास जा प्यार से फुसफुसाया : चलो, उठो अभी दूर हो जाएगी ठंड, गर्मियों में चलते हैं.

चढ़ाई के दौरान ही सुबह हुई. पहाड़ियों के बीच एक झीनी उजास छा गई. क्षितिज पर एक सफेद रंग की रोगन चढ़ने लगी, लेकिन गर्त और खाइयां फिर भी अंधेरे से भरी थीं. आगे बढने से पहले, डेविड ने बोतल से पानी की एक लंबी घूंट चढ़ाई और उसे जॉन की तरफ बढ़ा दिया, जिसकी कि पीने की इच्छा नहीं थी. सुबह के समूचे वक्त में वे विपक्षियों के इलाके की एक राह से गुजरते रहे, घोड़ों को उनकी मनचाही रफ्तार से चलने की आजादी दिए हुए. दोपहर के आस पास वे रुके और कॉफी बनाई. डेविड थोड़ा सा पनीर बाकले के साथ खाया, जो कामिलो ने उसके थैले में रख छोड़ा था. जब शाम हुई, तो उन्होंने दो लकड़ियां लेकर एक क्रॉस बनाया. और उससे एक पताका लटका दिया, जिस पर लिखा था, सुबह. घोड़े हिनहिनाते रहे : घर की सीमा का पहचान कराने वाले चिह्न देखकर, शायद.

चलें - डेविड बोला. वक़्त कब का हो चुका. मैं तो थक कर चूर हो गया हूं. और तुम्हारे घुटने कैसे हैं?
जॉन ने उत्तर नहीं दिया.

दुख रहे हैं? - डेविड ने फिर से पूछा.

कल से मैं लीमा छोड़ दूंगा - जॉन बोला.

क्या छोड़ दोगे?
वापस देहात के इस घर् पर नहीं आउंगा. मैं पहाड़ों से तंग आ चुका हूं. अब से हमेशा शहर में ही रहूंगा. देहात के बारे में मुझे अब कुछ भी नहीं जानना.

जॉन ने सामने देखा, डेविड यूं आंखें चुरा रहा था जैसे कुछ खोजने की कोशिश कर रहा हो.

नहीं, - जॉन बोला - हमें अभी यह सब साफ करना होगा.

अच्छा - डेविड ने आवाज में नर्मी लाते हुए कहा - हुआ क्या तुम्हें?

जॉन वापस अपने भाई की तरफ आया, उदास चेहरे लेकिन भारी आवाज के साथ.

क्या हुआ मुझे? तुम्हें पता है कि तुम क्या पूछ रहे हो? भूल गए झरने के पास के उस शख्स को? अगर मैं इस अहाते वाले घर् में रहूं, तो मुझे यह भूल जाना होगा कि यह यहां पर हर रोज घटने वाली एक घटना नहीं है.

थोड़ा रुककर फिर से कुछ जोड़ना चाहा, “जैसे तुम”, लेकिन चुप रह गया.

वह एक संक्रमित हो गया कुत्ता था - डेविड बोला . तुम्हारा शक सिर्फ एक बकवास है. शायद तुम भूल रहे हो कि तुम्हारे भाई ने तुम्हारे लिए क्या क्या किया है?

जॉन का घोड़ा ठीक उसी वक्त रुक गया और झुकने और पिछले पैरों पर खड़ा होने लगा.

अब यह मेरे काबू से बाहर होने वाला है - जॉन बोला.

लगाम ढीली करो. उसका गला कस रहा है.

जॉन ने लगाम छोड़ी और घोड़ा ठीक हो गया.

तुमने मेरा जवाब नहीं दिया. - डेविड बोला. - तुम भूल गए क्या कि हम उसकी तलाश करने क्यों गए थे?

नहीं - जॉन का जवाब - मैं भूला नहीं हूं.

दो घंटे बाद वे कामिलो की झोपड़ी तक पहुंचे, जो थोड़ी उंचाई पर बनी थी, फाॅर्म हाउस और अस्तबल के बीच. इससे पहले कि दोनो भाई दरवाजे पर पहुंचकर खड़े हों, वह खुला और चौखटे पर कामिलो नमूदार हुआ. बांहों पर पड़ती झोपड़ी के खर पतवारों की छाया और थोड़े झुके सिर के साथ वह उनकी ओर बढ़ा और दोनों घोड़ों के बीच पहुंचकर, रुकते हुए उनकी लगामें पकड़ लिया.

सब ठीक ठाक? डेविड ने पूछा.
कामिलो ने नहीं के अंदाज में मुंडी घुमा दी.

बच्ची लेओनोर...

क्या हो गया लेओनोर को? जॉन बीच में बोल पड़ा.

अपनी लड़खड़ाती जुबान में कामिलो बताने लगा कि लेओनोर ने अपने कमरे की खिड़की से, एकदम भोर के वक्त अपने भाइयों को देख लिया था, और जबकि वे घर से थोडी दूरी पर ही रहे होंगे, उसने उन्हें खुले मैदानों में बूटों और चढ़ाई वाली पतलूनों में देख लिया था, अपने घोड़े तैयार किए जाने का आदेश देते हुए. कामिलो, डेविड के निर्देश के मुताबिक, लेओनोर की इस बात को मानने से इनकार कर दिया. फिर वो खुद ही एक जिद के साथ अस्तबल में घुसी, किसी पुरुष की तरह अपने हाथों से कोंचकर घोड़े को उठाई, और कंबल और दूसरे सामान, अस्तबल के सबसे छोटे और अपने प्यारे घोड़े कोलोरादो पर रख दिया.

जब वह घोड़े पर सवार होने की तैयारी कर रही थी, तो घर के नौकर और खुद कामिलो उसे पकड़ लिए . काफी वक्त तक वे उस बच्ची की मार और गालियां सहते रहे, जो, इसलिए दी जा रही थीं कि लेओनोर को अपने भाईयों के पीछे पीछे उनकी ओर जाने दिया जाय.

ओह! उसे इसका बदला चुकाना ही होगा - डेविड बोला - यह कमीनी खासिंता थी, मुझे पक्का पता है.

हमें उस रात लेआंद्रो से बात करते उसने सुन लिया था, जब वह मेज ठीक कर रहा थी. वो तो गई.
लेओनोर काफी हिंसक हो गई थी - कामिलो जारी रहा - नौकर चाकरों को गालियां देने और उन्हें नोचकर घायल कर देने के बाद वह जोर जोर से चिग्घाड़ने लगी और वापस घर में आ गई.

लेओनोर को एक शब्द भी पता नहीं चलना चाहिए - जॉन बोला.

हां, एक शब्द भी नहीं - डेविड सहमत हुआ.

कुत्तों का भूंकना सुन लेओनोर जान गयी कि वे आ गये हैं. वह अर्धनिद्रा में थी जब एक तेज गुर्राहट रात को चीरती हुई उसकी खिड़की के नीचे से गुजरी, भाप की मनिंद. यह हांफता हुआ जानवर स्पोकी था, जिसने अपनी गुर्राहट के सनका देने वाले से उनके आने की बात की पुष्टि कर दी थी. बाद में उसने घोड़े की हल्के से पड़ रही टापें सुनीं और, छोटी, गर्भवती कुतिया दोमितिला की दहाडें भी. कुत्तों का आक्रोश धीरे धीरे कम हुआ, उनका भूँकना धीरे धीरे हाँफने तक में सिमट गया, जब उन्हें हमेशा की ही तरह इस बार भी डेविड ही मिल गया. लेओनोर ने एक झरोखे से, भाइयों को घर के पास आते देखा और मुख्य द्वार के खुलने और बंद होने की आवाजें सुनीं. वो उनके सीढियों से चढने और अपने कमरे में आने का इंतजार करती रही. दरवाजा खुलते ही जॉन ने लेओनोर को छूने के लिये हाथ बढा दिया.

हैलो मेरी बच्ची - डेविड बोला.

लेओनोर ने खुद को आगे बढ़ाकर छोड़ दिया ताकि वे उसे गले लगा सकें, और उन्हें चूमने का काम नहीं की. जॉन ने लैंप जलाकर रौशनी कर दी.

मुझे क्यों नहीं बताया? तुम दोनों को मुझे जरूर बताना चाहिए था. बाद में तो मैं खुद ही आ जाती, लेकिन कामिलो मुझे ऐसा करने नहीं दिया. तुम्हें उसे सजा देनी ही होगी, डेविड, अगर तुम देखते जैसे उसने मुझे पकड़ रखा था, तो तुम्हें वह मेरा घोर अपमान और मुझ पर की जा रही क्रूरता लगती. मैं उससे मिन्नतें करती रही कि मुझे जाने दे, और उसने एक न सुनी.

लेओनोर बोल तो ज्यादा ताकत के साथ रही थी, लेकिन उसकी आवाज बार बार टूट जाती थी. उसके बाल मुड़े हुए और अस्त व्यस्त थे और पैर नंगे. डेविड और जॉन उसे शांत करने की कोशिश कर रहे थे, वे उसके बालों को सहला रहे थे, उस पर मुसकान छोड़ रहे थे और उसे ‘बच्ची’, ‘मेरी प्यारी बच्ची’ कहे जा रहे थे.

हम तुम्हें परेशान नहीं करना चाहते थे - डेविड बोला - और हमने निकलने का फैसला एकदम से ले लिया. तब तक तुम सोई हुई थी.

हुआ क्या? लेओनोर ने पूछा.

जॉन ने बिस्तरे से एक कंबल उठाया और अपनी बहन को उसमें लपेट दिया. लेओनोर तब तक चुप हो गई थी. वह थक चुकी थी, उसका मुंह अधखुला रह गया था लेकिन निगाहों में फिर भी कोई आतुरता थी.

कुछ नहीं - डेविड बोला - कहीं कुछ भी नहीं हुआ. वह हमे मिला ही नहीं.

लेओनोर के चेहरे से तनाव दूर हुआ, उसके होठों पर एक राहत का भाव उभर आया.

लेकिन कभी न कभी तो मिलेगा ही - डेविड बोला. ऐसी भंगिमा के साथ, जिसमें लेओनोर को उठ जाने का निर्देश भी झलक रहा हो. वह पीछे की ओर मुड़ गया.

एक सेकेड - लेओनोर बोली - अभी जाओ नहीं.

जॉन तब तक हिला भी नहीं था.

हां? - डेविड बोला - क्या हुआ, मेरी गुडिया?

अब उसे ज्यादा खोजने की जरूरत नहीं है.

तुम उसकी फिक्र मत करो - डेविड बोला - और यह सब भूल जाओ. यह पुरुषों का मामला है. सब हम पर छोड़ दो.

लेओनोर की रुलाई फिर से फूट पड़ी, इस दफा कुछ ज्यादा ही तेज. वो अपने हाथों को माथे पर रख ली थी, पूरे जिस्म में जैसे विद्युत का प्रवाह होने लगा था, और उसकी चीखें कुत्तों के लिए एक नए ही तरीके से अलार्म बन गईं, जो दो पैरों पर खड़े होकर खिड़की की तरफ मुह करके भौंकना शुरू कर दिए. छोटा भाई फिर भी बिना हिले डुले चुपचाप खड़ा रहा.

ठीक है - डेविड बोला - तुम रोना बंद करो और हम उसे खोजना.

झूठ, तुम उसे मार डालोगे. मैं जानती हूं तुम्हें.

नहीं मारूंगा मैं उसे - डेविड बोला - अगर तुम्हें लगता है कि उस कमीने को सजा नहीं मिलनी चाहिए...
उसने मेरे साथ कुछ भी नहीं किया - लेओनोर एक झटके में बोल गई, अपने होटों को चबाते हुए - सब झूठ था.

मैं इसे नहीं मान सकती कि वह हर तरीके से मेरा पीछा करता था - लेओनोर बुदबुदाई - सारे दिन मेरे पीछे एक साये की तरह लगा रहता था.

गुनहगार दरअसल मैं हूं - दुख भरी आवाज में, डेविड बोला - एक औरत का खुले मैदानों में अकेले फिरना खतरनाक होता. मैंने उसे हुक्म दिया था कि तुम्हारा खयाल रखे. मुझे एक रेड इंडियन पर ऐतबार नहीं करना चाहिए था. सब एक जैसे हैं.

उसने मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं किया, डेविड - लेओनोर थोड़ी संयत हुई. - मुझ पर यकीन करो, मैं बिलकुल सच कह रही हूं. कामिलो से पूछ लो, कहीं कुछ भी नहीं हुआ था. हां, इतना तक जरूर हुआ... मै सिर्फ खुद को उसकी निगरानी से मुक्त करना चाहती थी, इसलिए वह पूरी कहानी मैंने खुद ही गढ़ी थी. कामिलो को सब पता है, पूछ लो उससे.

लेओनोर ने अपनी हथेली के पिछले हिस्से से गालों को पोछ लिया. उसने कंबल उठाया और अपने कंधों पर डाल लिया. लगा जैसे अभी अभी वह किसी दुःस्वप्न से बाहर आई है.

हम इस पर कल बात करेंगे - डेविड बोला - अभी हम थके हुए हैं. सोना जरूरी है.

नहीं - जॉन बीच में आ धमका.


लेओनोर ने उसे अपने काफी करीब पाया, वह तब तक भूल चुकी थी कि डेविड के साथ जॉन भी था. उसका चेहरा सोच की लकीरों से भर गया, उसकी नाक का निचला हिस्सा नम हो गया, स्पोकी के टपकते थूथन की तरह.

क्या तुम फिर से दुहराओगी, जो तुमने अभी अभी कहा? . एक अजीब तरह की भंगिमा के साथ जॉन बोला - फिर से बताओ कि कैसे तुमने हम सबसे झूठ बोला.

जॉन - डेविड बोला - मुझे लगता है तुम उस पर यकीन नहीं कर पाओगे. अभी वह हमें झांसा देना चाहती है.
मैंने सच कहा था - लेओनोर गिड़गिड़ती हुई सी बोली, एक के बाद एक दोनों भाइयों की तरफ देखती हुई. - उस दिन मैंने उसे खुद को अकेला छोड़ देने का हुक्म दिया, लेकिन उसने इसे नही माना. मैं नदी तक गई और वह मेरे पीछे पीछे आता रहा. और मैं सुकून से नहा भी नहीं पाई. वह बुत की तरह खड़ा मुझे घूरता रहा, किसी जानवर की सी निगाहों से, इसलिए मैं वापस आई और यही बात बता दी.

रुको, जॉन - डेविड बोला - कहां चले? रूको?

जॉन मुड़कर दरवाजे तक पहुंच चुका था, जब डेविड ने उसे रोका, वह भड़क गया और एक मुहफट की तरह अपमानित करने के लहजे में बोलने लगा - उसने बहन को वेश्या और भाई को सूअर और निर्दयी जैसे शब्दों से नवाजा, डेविड, जो उसका रास्ता रोकने की कोशिश कर रहा था, को एक जोर का धक्का दिया और घर से कूदते फांदते बाहर निकल आया, कई तरह की चोटों के निशान छोड़ता हुआ. लेओनोर और डेविड खिड़की से, उसका पागलो की तरह चिल्लाते हुए घर से बाहर के मैदान से गुजरना देखते रहे, वह अस्तबल में घुसा और थोड़े ही समय बाद कोलोरादो की पीठ पर सवार होकर निकल आया.

कोलोरादो, लेओनोर का चतुर घोड़ा, चुपचाप चलता रहा, अपनी लगाम थामे अनभ्यस्थ कलाइयों के निर्देश के मुताबिक : शिष्टता के साथ मुड़ते, रास्ते बदलते और पूंछ के भूरे अयालों को पंखे की तरह हिलाते हुए, पहाड़ों के बीच के संकरे रास्तों की कगारों तक पहुंचते हुए, शहर तक. लेकिन शहर पहुंचते ही वह बागी हो गया. पुट्ठे पर चोट करते ही वह सीधा खड़ा होकर हिनहिनाने लगा, वह किसी नर्तकी की तरह एक पूरा चक्कर घूम गया और वापस अपने मैदानों की तरफ आ गया, तेज रफ्तार में भागते हुए.

वह उसे उछालकर फेंक देगा . लेओनोर बोली.

नहीं, तुम आराम से रहो. वो वैसे ही रहेगा.

बहुत सारे रेड इंडियन्स अस्तबल के दरवाजे तक निकल आए थे और छोटे भाई को हैरत से घूरे जा रहे थे, जो घोड़े पर सख्ती से सवार था, बार बार उसकी बगलो में एड़ लगा देता था और उसके माथे पर कलाई से चोट कर दे रहा था. चोट के असर में आकर कोलोरादो कभी इधर भागता था, तो कभी उधर, सनकी सा होकर, वह चक्कर पर चक्कर लगाता रहा, संकरे से संकरे रास्तो पर भी, और घुड़सवारी कर रहा जॉन उसकी पीठ पर बैठा सिपाही भर लग रहा था. लेओनोर और डेविड, उन दोनों का दिख जाना, फिर थोड़ी ही देर में गायब हो जाना देखते रहे, आराम से, जैसे ऐसी घरेलू चीजों के आदी हों, और लगातार चुप रहे, मूर्तिकी तरह खड़े. अचानक, कोलोरादो ने जैसे आत्म समर्पण कर दिया : अपने दुर्बल माथे को धरती तक झुलाते हुए, जैसे अपने किए पर शर्मशार होकर वह खुद ही शांत हो गया हो, गहरी गहरी सांसें -भरते हुए. तब उन्हें लगा कि वह लौट आया है - जॉन घोड़े को चलाते हुए घर तक ले आया और दरवाजे के ठीक सामने रुका, लेकिन उतरा नहीं. जैसे उसे फिर से कुछ याद आ गया हो, वह पीछे मुड़ गया, दुलकी चाल में सीधे उस संरचना की ओर बढ़ने लगा जिसका नाम “ला मुग्रे” था. वहां, वह एक छलांग लगाकर उतर गया. दरवाजा बंद था और जॉन ने ताले को अपने जूते की नोक से सम्मानित किया. फिर, नीचे मौजूद इंडियंस को चिल्लाकर बोला, कि वे सारे बाहर आ जाएं, कि उन सबकी सजा पूरी हो गई है. उसके बाद जॉन वापस घर की तरफ आया, धीरे धीरे टहलते हुए. दरवाजे पर डेविड उसका इंतजार कर रहा था. जॉन शांत दिख रहा था . वह पसीने से नहाया हुआ था और उसकी आंखें स्वाभिमान से जल रही थीं. डेविड उसके करीब आया, उसे कंधे से पकड़कर भीतर ले गया.

चलते हैं यहाँ से - उसने कहा - बस थोड़ा वक्त और लगेगा, कि जितने में लेओनोर तुम्हारे घुटने ठीक कर दे.
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श्रीकांत से संपर्क : 9873964044 : shrikant.gkp@gmail.com

Sunday, October 24, 2010

ओरहान वेली की सात कवितायेँ



नये जमाने के अनुवादकों में सर्वाधिक याद नाम अशोक पाण्डेय का है, कारण कि उनके अनुवाद हमने पढ़े बहुत हैं. येहुदा आमिखाई की कवितायें, फर्नादो पैसोआ की कवितायें, लॉरा एस्कीवेल का शानदार उपन्यास “लाईक वॉटर फॉर चॉकलेट’’ का अनुवाद (जैसे चॉकलेट के लिये पानी) आदि कुछ ऐसी रचनायें हैं जो तुरंतो एक्सप्रेस की तरह अभी याद आ रही हैं. फिर उनके ब्लॉग कबाड़खाना(नाम से ठीक उलट काम वाला ब्लॉग) पर कविताओं के अनुवाद का जो दौर शुरु हुआ, उसने हम नये लोगों को कई कई स्तरों पर चैतन्य किया. पर अशोक जी को थोड़ी जलन होगी कि यह पोस्ट हम सिद्धेश्वर सिन्ह को समर्पित कर रहें हैं. कबाड़खाना और फिर कर्मनाशा के माध्यम से सिद्धेश्वर जी ने विश्व कविता के मानीखेज हिस्से से हमारा परिचय कराया, जिनमें निज़ार कब्बानी जैसा महाकवि भी शामिल है. सिद्धेश्वर जी लगातार अनुवाद कर रहे हैं. कल उनके द्वारा अनुदित तुर्की कवि ओरहान वेली की कवितायें क्रमश: इन्ही दोनों ब्लॉग पर पढ़ी. मित्र मनोज पटेल ने, उनसे प्रेरित होते हुए कल ही कल में ओरहान वेली की सात चुस्त दुरुस्त कविताओं के अनुवाद कर डाले, जो यहाँ आपके सामने हैं. और हाँ, यह पोस्ट सिद्धेश्वर जी के लिये हो, यह सुन्दर विचार भी मनोज भाई का ही है.


(तुर्की कवि ओरहान वेली को 36 वर्ष(1914-1959) की छोटी उम्र मिली. कम उम्र ही जैसे काफी ना हो कि यह विरल कवि दुर्घटनाओं का भी शिकार हुआ, कोमा में रहा, और जब तक जिया सृजनात्मक लेखन व अनुवाद का खूब सारा काम किया .)
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अपनी मातृभूमि के लिए

क्या कुछ नहीं किया हमने अपनी मातृभूमि के लिए !
किसी ने दी जान अपनी ;
किसी ने दिए भाषण.

हमारी तरह


सोचता हूँ क्या कामुक होते होंगे
सपने किसी टैंक के ?
क्या सोचता होगा
अकेला खड़ा हवाई जहाज ?
क्या गैस मास्क को नापसंद होगा
चांदनी रात में सुनना
एकसुर गान ?
क्या रायफलों को नहीं आती होगी दया
हम इंसानों जितनी भी ?

घर के भीतर


सबसे अच्छी होती हैं खिड़कियाँ :
कम से कम देख तो सकते हैं आप उड़ते हुए परिंदे
चारो तरफ दीवालों को घूरने की बजाए.

शुक्र है खुदा का


शुक्र है खुदा का कि एक और शख्स है इस मकान में,
साँसे हैं
और है किसी के क़दमों की आहट,
खुदा का शुक्र है.

अकेलापन


जो नहीं रहते अकेले जान ही नहीं सकते कभी
कि कैसे खामोशी से पैदा होता है डर,
कैसे बातें करता है कोई खुद से
और भागता फिरता है आइनों के बीच
एक ज़िंदा शख्स की तलाश में
समझ ही नहीं सकते वे सचमुच.

मैखाना


जब मुहब्बत ही नहीं रही उससे
तो उस मैखाने में जाऊं ही क्यों
जहाँ पिया करता था हर रात
उसी के ख्यालों में गुम ?

रास्ता चलते यूं ही

रास्ता चलते यूं ही
अचानक अहसास होता है अपने मुस्कराने का
पागल समझते होंगे लोगबाग मुझे
मुस्कराहट और बढ़ जाती है इस एहसास के साथ.


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Tuesday, October 19, 2010

मोहसिन हामिद की कहानी: जिबह


(अगर आप मानव मन के भय संसार की सीधी अभिव्यक्ति के काईल हैं तो मोहसिन हामिद को जरूर पढ़ें. 1971 और पाकिस्तान में जन्मा यह कथाकार मनुष्य के अकेले होते जाने को अपना विषय बनाता है. यह अकेलापन भी ऐसा कि किसी इंसान के खिलाफ, जाहिर है वह इंसान किसी सभ्य सभ्यता का प्रतिनिधि है, पूरा समय भिड़ गया है. उपरी तौर पर देखें तो वह इंसान दूसरों से ही नहीं बिल्कुल अपने खास लोगों से भी बचता फिरता है जैसे सारी समस्याओं की जड़ वही हो. सामाजिकता मात्र को अपनी आलोचना का साग सत्तू बनाकर लगभग ठप्प पड़ चुके लोग इसे उदार होते होते भी आत्मग्रस्त होने के अलावा कोई दूसरा दर्जा नहीं दे पाते. जबकि इस बात की गिरह मीर ने यों खोली है: साये की तरह हमपे अजब वक्त पड़ा है.

इस समय के बेहतरीन रचनाकारों में से एक मोहसिन हामिद की इस कहानी ‘जिबह’ का अनुवाद मनोज पटेल ने किया है.)

जिबह


मैनें खिड़की के टूटने की आवाज़ सुनी. एयर कंडिशनर चालू नहीं था कि ये आवाज़ दब पाती. मैं बिस्तर से उठा. मैनें सोचा कि काश मैं इस उम्र में न होता. काश कि मैं अपने माँ-बाप जितना बुजुर्ग या अपने बेटे जितना छोटा होता. काश कि मुझे अपनी बीवी से यह न कहना पड़ता कि वह जहाँ है वहीँ रहे और सब कुछ ठीक हो जाएगा. वह भी ऐसी आवाज़ में जिस पर उसे तो क्या मुझे भी भरोसा न हो पाए. हम दोनों नीचे शोरगुल सुनते हैं. मैं पत्नी से कहता हूँ: 'बेहतर होगा तुम कपड़े पहन लो'.

बिजली नहीं है इसलिए रास्ता देखने के लिए मैं अपने मोबाइल की रोशनी का इस्तेमाल करता हूँ. तब तक लकड़ी की सीढियों पर तेजी से चढ़ते क़दमों की आवाज़ सुनाई देने लगती है. मैं अपने बेडरूम का दरवाज़ा बंद कर खुद को भीतर कैद कर लेता हूँ. कई टार्चों की रोशनी में तमाम परछाइयां दौड़-भाग रही हैं. मैं अपने दोनों हाथ ऊपर उठा देता हूँ. मैं ही उनसे कहता हूँ ‘'मैं यहाँ हूँ'’. मैं इसे जोर से कहना चाहता हूँ. लेकिन बच्चे की आवाज़ में फुसफुसाता हूँ, 'सब ठीक-ठाक है'.

मैं फर्श पर पड़ा हूँ. किसी ने मुझ पर वार किया है. मुझे पता नहीं कि हाथ से या डंडे से. मेरा मुंह किसी तरल चीज से भर गया है और मैं एक लफ्ज़ भी नहीं बोल पा रहा हूँ. मेरा गला घुट रहा है और मुझे सांस लेने के लिए अपने जबड़ों को खोले रखना पड़ रहा है. मेरे हाथ पीछे करके दोनों कलाइयां एक-दूसरे से बाँध दी जाती हैं. ये बिजली वाले टेप जैसा लगता है, वैसा ही जैसा बचपन में गली क्रिकेट खेलने के लिए हम टेनिस गेंद के चारो तरफ लपेट दिया करते थे. मैं मुंह के बल पड़ा हूँ और भीषण दर्द की वजह से होश खोने के पहले मेरे मुंह से कुछ अस्फुट से स्वर निकलते हैं.

मैं दो लोगों के बीच में हूँ. वे दोनों मुझे बगलों से थामे हुए सामने के दरवाज़े से बाहर घसीट रहे हैं. मुझे वक़्त का अंदाजा नहीं मिलता लेकिन अब भी रात है. बिजली आ जाने की वजह से गेट की लाइटें जल गई हैं. चौकीदार मर चुका है. वह एक बूढ़ा आदमी था जो दोहरा होकर जमीन पर पड़ा है. उसका चेहरा कितना पतला है, लगता है जैसे हम उसे भूखों मार रहे थे. मैं हैरत में हूँ कि इनलोगों ने उसे कैसे मारा होगा. उसके खून के निशानों को मैं गौर से देखने की कोशिश करता हूँ, लेकिन मेरे पास ज्यादा वक़्त नहीं है.

मुझे लगता है कि वे चार लोग हैं. उनके पास ताम्बई रंग की 81 माडल करोला है. जब मैं छोटा था तो हमारे पास ऐसी एक कार हुआ करती थी. लेकिन यह कार बहुत खस्ताहाल है. वे डिग्गी खोलकर मुझे उसमें पटक देते हैं. अब मैं कुछ देख नहीं पा रहा. मेरे चेहरे का कुछ हिस्सा एक खुरदुरी कालीन पर और बाक़ी हिस्सा अतिरिक्त टायर पर है. इसका रबर मुझसे चिपक रहा है, या शायद मैं ही इससे चिपक रहा हूँ. कार के शाकर खराब हो चुके हैं और हर झटका इसे पटक रहा है. मैं दांतों के डाक्टर के यहाँ होने जैसा महसूस करता हूँ जबकि दर्द पहले से होता रहता है और आपको पता होता है कि अभी और दर्द मिलने वाला है. आप इस दर्द को कम करने के लिए तमाम दिमागी तरकीबों पर सोचते हुए अपनी बारी का इंतज़ार करते होते हैं.

मैं ज्वरग्रस्त महसूस करता हूँ, कंपकंपी लेकर आने वाले तेज मलेरिया बुखार सा जो मुझे नींद के अन्दर-बाहर बहाता रहता है. मैं उम्मीद करता हूँ कि इन लोगों ने मेरे बेटे, मेरी बीवी और मेरे माँ-बाप को जान से नहीं मारा होगा. मेरी बीवी के साथ बलात्कार नहीं किया होगा. मैं उम्मीद करता हूँ कि वे मेरे साथ और जो भी करें, मुझपर तेज़ाब का इस्तेमाल नहीं करेंगे. मैं मरना नहीं चाहता लेकिन अब मरने की बहुत परवाह भी नहीं करता. बस ये चाहता हूँ कि वे मुझे यातना न दें. मैं यह नहीं चाहता कि कोई मेरे अंडकोषों को प्लास से दबा कर पीसे या मेरी आँख में जलती हुई सिगरेट डाल दे. मैं नहीं चाहता कि कार का यह सफ़र कभी ख़त्म हो. अब मैं इसका आदी होता जा रहा हूँ.

वे मुझे सूरज की रोशनी में बाहर निकालते हैं. वे सब मुझसे काफी बड़े, लम्बे-चौड़े हैं. वे मुझे एक ऐसे मकान में ले जाते हैं जिसकी दीवारों से पेन्ट झड़ रहा है और मुझे बाथरूम में बंद कर देते हैं, जिसमें कोई खिड़की नहीं बस एक रोशनदान है. मैनें पैन्ट में ही पेशाब कर दी थी जो अब सूख चुकी है. इसकी वजह से मेरे पैरों में खुजली सी हो रही है. मैं चूं-चपड़ नहीं करता और वहां बैठकर उनका साथ देने के लिए खुद को तैयार करता हूँ. मैं उम्मीद करता हूँ कि मुझे नमाज़ अता करने का ढंग ठीक-ठीक याद होगा. मैं उनसे कहूंगा कि मुझे नमाज़ पढने दें. यह दिखाने के लिए हम एक ही जैसे हैं. लेकिन मैं यह ख़तरा भी नहीं उठा सकता. नमाज़ अता करने में की गई मेरी किसी भी गलती को वो भांप लेंगे और तब तो स्थिति और खराब हो जाएगी. शायद मुझे अपने आप में बुदबुदाना चाहिए ताकि वे सोचें कि मैं मजहबी आदमी हूँ.

अंधेरा होने पर वे फिर वापस आ जाते हैं. वे जिस ज़बान में बात कर रहे हैं उसे मैं नहीं समझ पाता. मुझे यह अरबी या पश्तो नहीं लगती. क्या है यह ? क्या यह चेचेन है ? कौन सी ज़बान है यह कमबख्त ? ये कमबख्त लोग कौन हैं ? मेरी आँखों से आंसू बहने लगे हैं. ये अच्छा है. मैं जितना दयनीय लगूं उतना ही अच्छा. 'जनाब' मैं अधिकतम संभाव्य खुशामदी लहजे में उर्दू बोलने की कोशिश करता हूँ, 'मुझसे क्या खता हो गई ? मुझे माफ़ कर दीजिए'. मेरा मुंह ठीक से काम नहीं कर रहा इसलिए मुझे धीमे बोलना पड़ रहा है. तिस पर भी मेरी आवाज़ से लगता है कि मैं नशे में हूँ, या जैसे किसी ने मेरी आधी जुबां ही काट ली हो.

वे मेरी बातों पर ध्यान नहीं देते. एक आदमी तिपाए पर वीडियो कैमरा व्यवस्थित कर रहा है. दूसरा कार की बैटरी के आकार के एक यू पी एस में तार जोड़ रहा है. मैं यह सब समझ रहा हूँ. लेकिन मैं यह नहीं चाहता. बलि का बकरा नहीं बनना चाहता मैं. वैसा ही जैसा कि हमने ईद पर खरीदा था. वो एक अच्छा बकरा था लेकिन उसकी आँखें मरी-मरी सी थीं. मुझे उसकी आँखें नहीं पसंद थीं. कुछ चबाता हुआ वह बगल से देखने पर अच्छा लगता था. वह एक पालतू की तरह था. हालांकि मैंने उसे कभी पालतू नहीं बनाया लेकिन वह पालतू जैसा ही हो गया था. उसके पैर छोटे थे. इतने छोटे कि वह पत्तियों तक पहुँचने के लिए एक ईंट पर खडा हो सकता था. मेरे माँ-बाप ने एक आदमी द्वारा उस बकरे को मैदान में पटकते देखने की इजाज़त मुझे दे दी थी. उसने एक दुआ पढ़ी थी और बकरे को खुदा के नाम पर कुर्बान कर दिया था.

'रुकिए, ऐसा न करिए', मैं अब अस्पष्ट, बेमतलब आवाज़ में अंग्रेज़ी बोलने लगा हूँ. लफ्ज़ मेरे मुंह से टपक पड़ रहे हैं. मेरा उन पर बस नहीं रहा. वे आंसुओं की तरह हो चले हैं. 'मैनें हमेशा खुद को काबू किए रखा, मजहब के बारे में कभी कुछ नहीं लिखा. हमेशा अदब से पेश आया. अगर मुझसे कोई खता हुई हो तो बताइए मुझे. मुझे जो लिखना हो बताइए. मैं अब कभी कुछ लिखूंगा ही नहीं. अगर आप लोग ऐसा चाहते हैं तो मैं कभी कुछ नहीं लिखूंगा. यह मेरे लिए कोई मुद्दा नहीं है. यह कोई जरुरी नहीं. हम एक ही जैसे हैं. हम सभी. भरोसा करिए'.

वे मेरे मुंह पर टेप चिपका देते हैं और मुझे पेट के बल लिटाकर खूटों से बाँध देते हैं. उनमें से एक मेरी पीठ पर चढ़ जाता है और बाल पकड़कर मेरा सर ऊपर उठाता है. वह कामुक ढंग से यह काम करता है. मैं सोचता हूँ कि क्या पता मेरी बीवी अभी तक ज़िंदा है या नहीं और मेरे न रहने पर क्या वह किसी गैर मर्द के साथ सोएगी. कितने मर्दों के साथ सोएगी वह ? मैं उम्मीद करता हूँ कि वह ऐसा नहीं करेगी. मैं उम्मीद करता हूँ कि वह ज़िंदा बची हो. मैं अब उस शख्स के हाथ में लंबा सा चाकू देख सकता हूँ. वह कैमरे की तरफ देखते हुए कुछ बोल रहा है. मुझसे अब कुछ और नहीं देखा जाता. मैं अपनी आँखें बंद कर लेता हूँ. काश कुछ ऐसा होता कि मेरी छाती अभी फट जाती और मैं तुरंत मर जाता. मैं और नहीं रुकना चाहता.

और तभी मैं यह सुनता हूँ. अपने खून के फव्वारे के तेजी से बाहर फट पड़ने की आवाज़ सुनता हूँ. आँखें खोले मैं अपने खून को फर्श पर रोशनाई की तरह बहते देखता रहता हूँ. मैं रोशनाई देखता रहता हूँ, इससे पहले कि मेरा शरीर उससे खाली हो, मेरा खात्मा हो जाता है.

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किसी पत्रिका से बिना बताये रचना उठाये जाने को अगर ‘साभार’ के केटगरी में शामिल कर सकतें हैं तो यह कहानी ग्रांटा से साभार.

Wednesday, October 13, 2010

वेरा पावलोवा की आठ कवितायेँ


1940 में जन्मी रूसी कवियत्री वेरा पावलोवा की पहचान यह भर नहीं है कि वे शीर्षकविहीन कवितायें लिखतीं हैं. वेरा की पहचान यह भी नहीं है कि उनकी कविता विचार(आईडिया) केन्द्रित होती है. होता दरअसल यह है - ज्यादातर कवि किसी नर्म और अकेले विचार को गुलाब की टहनी समझ कर छीलना पसन्द करतें हैं और इस कदर चाकू चलाते हैं कि जैसे टहनी को काट ही डालेंगे. कुछेक कवि तो क्रूर पिता की मानिन्द विचार को अनबोलते बच्चे की तरह लेते हैं और उसे ऐसे मैदान में अकेला छोड़ देते हैं जहाँ उस बच्चे के उपर से हवाई जहाज के हवाई जहाज गुजर रहें हो. कितना शोर! बच्चा डर जाता है और सारी तैयारियों के बावजूद सदा-सर्वदा के लिये कविता बनने से इंकार कर देता है.

इन सबसे ठीक उलट, वेरा किसी कौंध या किसी विचार को ही अपनी कविता का विषय बनाती हैं. ऐसा करते हुए वो विचार को, अंतत:, अमीर करतीं हैं. विचार को खूबसूरत भावों का स्वेटर पहनाती हैं. उसे आग या हथियार की तरह नहीं, बल्कि शामिल रोटी की तरह, सबके लिये तैयार करती हैं.

कविता चयन और अनुवाद मनोज पटेल का है. मनोज पटेल जी के इस अनुवाद के साथ इस ब्लॉग के सौ पोस्ट पूरे हुए!!
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वेरा पावलोवा की आठ कवितायेँ
1)
अगर ख्वाहिश है कोई
तो लाजिमी है अफ़सोस
अफ़सोस है कोई अगर
तो जरुर बाक़ी होगी याद
अगर बाक़ी है कोई याद
तो क्या था अफ़सोस को
और
अफ़सोस नहीं था अगर
तो ख्वाहिश ही कहाँ थी.
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2)

नामवरों से गुफ्तगू करने के लिये
चढ़ा लेना उनका चश्मा ;
यकसां होने को किताबों से
लिखने बैठ जाना उन्हें फिर से ;
संपादन करना पाक फरमानों का
और कायनात की तनहा कैद में
आधी रात के पहर
दीवाल थपथपाते बातें करना घड़ी से

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3)

आओ स्पर्श करें एक-दूसरे को
जब तक हैं हमारे हाथ,
हथेली और कुहनियाँ...
प्यार करें एक-दूसरे से
दुःख पाने के लिये,
दें यातना और संताप
कुरूप करें और अपंग
ताकि याद रखें बेहतर,
और बिछ्ड़ें तो कम हो कष्ट

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4)

खून की रवानी के खिलाफ
जूझता है जोश जन्म लेने को,
ज़बान की रवानी के खिलाफ
लफ्ज़ तोड़ देते हैं पतवार,
ख़यालों की रवानी के खिलाफ
बहती है ख्वाबों की कश्ती,
बच्चे की तरह हाथ चलाते तैरती हूँ मैं
आंसुओं की रवानी के खिलाफ.
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5)

उसने ज़िंदगी दी तोहफे में मुझे.
मैं क्या दे सकती हूँ बदले में उसे ?
अपनी कवितायेँ.
कुछ और है भी तो नहीं मेरे पास.
लेकिन फिर क्या सचमुच वे हैं मेरी ही ?
वैसे ही जैसे बचपन में
माँ के जन्मदिन पर देने के लिए
मैं चुना करती थी कोई कार्ड
और कीमत चुकाती थी पिता के पैसों से.


क्या मेरी कवितायेँ सचमुच हैं मेरी ही.
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6)

एक वायस मेल है कविता :
कहीं बाहर चला गया है कवि
बहुत मुमकिन है न आए कभी लौटकर
कृपया अपना सन्देश छोड़ें
गोली की आवाज़ के बाद.
................................................
7)

सर्दियों में होती हूँ कोई जानवर,
एक बिरवा बसंत में,
गर्मियों में पतंगा,
तो परिंदा होती हूँ पतझड़ में.
हाँ औरत भी होती हूँ बाक़ी के वक़्त.
-----------------------------------------------
8)

बस इतना जान पाती कि किस जुबान का
तर्जुमा है तुम्हारा ‘आई लव यू’ ,
और पा जाती वह असल,
तो देखती शब्दकोष
जानने को कि तर्जुमा है चौकस
या तर्जुमा-नवीस की नहीं है कोई खता.
...............

Saturday, October 9, 2010

माइआ अंज़ालो की कविता: मैं हूँ कि उठती जाती हूँ.


सुप्रसिद्ध अमरिकी कवियत्री माइआ अंज़ालो (Maya Angelou) की इस बेहतरीन कविता के अनुवाद में मनोज पटेल ने बहुत सिर धुना है. वजह है, इस कविता का अंग्रेजी शीर्षक: And Still I rise. समूची कविता में ‘Still I rise’ इतनी इतनी बार दुहराया गया है कि यह बहुलार्थी हो गया है. परंतु अनुवाद के दौरान हमें कोई ऐसा हिन्दी शब्द नहीं मिला जो ‘Still I rise’ में प्रयुक्त ‘rise’ के सटीक बैठे. इस तरह महीनों पहले हुआ इस कविता का अनुवाद कहीं किनारे लग गया.

फिर हमारी मदद को बेंजीन के सूत्र के आविष्कार की घटना ही आई. कहा जाता है कि केकुले( जर्मन वैज्ञानिक) कई सालों तक बेंजीन का सूत्र ढूढ़ते रहे और असफल रहे. फिर एक रात उन्हे स्वप्न आया कि एक सांप उनके दरवाजे से लटका है और एक झटके में अपनी पूंछ को गोल घुमा कर अपने मुँह में दबा लेता है. इसके बाद के किस्से से तो जितना आप परिचित है उतना ही हम भी. और उतना ही मेरा मित्र ‘वीकिपीडिया’ भी.

ठीक इसी तरह एक दिन मनोज जी ने बताया कि उन्होने बार बार दुहराये गये ‘rise’ शब्द को क्रमिक विकास में दर्शाते हुए हर बार Still I rise के लिये नया ध्वन्यार्थ लिये शब्द का प्रयोग किया है. इस तरह यह अनूठी कविता आपके सामने है.


मैं हूँ कि उठती जाती हूँ.

तुम दर्ज कर सकते हो मेरा नाम इतिहास में
अपने तीखे और विकृत झूठों के साथ
कुचल सकते हो मुझे गन्दगी में
लेकिन फिर भी धूल की तरह
मैं उड़ती जाउंगी.

क्या मेरी बेबाकी परेशान करती है तुम्हें ?
क्यों घिरे बैठे हो उदासी में ?
क्योंकि मैं यूँ इतराती चलती हूँ
गोया कोई तेल का कुआं उलीच रहा हो तेल
मेरी बैठक में.

जैसे उगते हैं चाँद और सूरज
जैसे निश्चितता से उठती हैं लहरें
जैसे उम्मीदें उछलती हैं ऊपर
उठती जाउंगी मैं भी.

क्या टूटी हुई देखना चाहते थे तुम मुझे ?
झुका सर और नीची निगाहें किए ?
आंसुओं की तरह नीचे गिरते कंधे
अपने भावपूर्ण रुदन से कमजोर.

क्या मेरी अकड़ से ठेस पहुँचती है तुम्हें ?
क्या तुम पर बहुत भारी नहीं गुजरता
कि यूँ कहकहे लगाती हूँ मैं
गोया मेरे घर के पिछवाड़े सोने की खदान में हो रही हो खुदाई

तुम शब्दों के बाण चला सकते हो मुझ पर
चीर सकते हो मुझे अपनी निगाहों से
अपनी नफरत से कर सकते हो क़त्ल
फिर भी हवा की तरह
मैं उड़ती जाउंगी.

क्या मेरी कामुकता परेशान करती है तुम्हें ?
क्या तुम्हें ताज्जुब होता है कि
मैं यूँ नाचती फिरती हूँ
गोया हीरे जड़े हों मेरी जांघों के संधि-स्थल पर ?

इतिहास के शर्म के छप्परों से
मैं उड़ती हूँ
दर्द में जड़ जमाए अतीत से
मैं उगती हूँ

एक सियाह समंदर हूँ मैं उछालें मारता और विस्तीर्ण
जज़्ब करता लहरों के उठने और गिरने को

डर और आतंक की रातों को पीछे छोड़ते
मैं उड़ती हूँ
आश्चर्यजनक रूप से साफ़ एक सुबह में
मैं उगती हूँ

उन तोहफों के साथ जो मेरे पुरखों ने मुझे सौंपा था
मैं उठती हूँ

मैं ही हूँ सपना और उम्मीद गुलामों की
मैं उड़ती हूँ
मैं उगती हूँ
और मैं ही उठती हूँ.
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