Tuesday, December 6, 2011

मोपासाँ की कहानी - चाँदनी


( मोपासाँ. यह नाम कथा साहित्य की दुनिया में सुपरिचित है. सीधी सरल  भाषा, चुस्त थीम निर्वाह, स्थिति और सम्वेना पर कमाल की पकड़,  वैचारिक स्पष्टता.. यह सब सीखने के लिए लोग मोपासाँ को पढ़ते हैं. प्रस्तुत कहानी का अनुवाद युवा कवि श्रीधर ने किया है. संस्कृत ( M.A.) पढ़े लिखे श्रीधर ने फ्रेंच पर भी अच्छी पकड़ बनाई है. " तुझसे भी दिलफ़रेब हैं गमे- रोजगार के" जैसी स्थिति से जूझते हुए श्रीधर ने  अनुवाद के जो काम  किए वो अब शनै: शनै: उसे प्रकाश में ला रहे हैं. बॉदलियर की  कविताओं का अनुवाद किया है. बारहवीं सदी के कवि जयदेव के गीत गोविन्द की टीका लिख रहे हैं जो समय बेसमय ब्लॉग या पत्रिकाओं में दिखेंगी.  ) 

चाँदनी


मादाम जूली रोबेर अपनी बडी बहन मादाम हेनरियेत लतोघ, जो अभी अभी स्विट्जरलैंड की यात्रा से लौटी थी, का इंतजार कर रही थी.
लतोघ का सामान पॉच हफ्ते पहले ही आ चुका था. मादाम हेनरियेत अपने पति को अकेले ही वापस लौट जाने को कह गई थी, जहॉ कारोबार को उनके देख-रेख कि जरूरत थी और खुद अपनी  बहन के साथ कुछ समय बिताने पेरिस आ गई. ढलती शाम की खामोशी कमरे मे तैर रही थी. मादाम रोबेर अध्ययन मे तल्लीन थी और रह-रह कर उनकी ऑखे उस ओर घूम जातीं जिधर कोई आवाज होती.
आखिरकार दरवाजे की घंटी बजी, जहाँ उनकी बहन यात्रा वाले कपडों में उपस्थित मिलीं. तत्काल, बिना किसी सम्बोधन के दोनों एक-दूसरे के गले लिपट गईं. उसके बाद उन्होने ढेर सारी बातें कीं, एक-दूसरे के स्वास्थ्य तथा परिजनों के बारे में पूछा, तथा बाकी की और भी हजारों बातें करते हुए मादाम हेनरियेत ने अपनी टोपी उतार दी.
अब तक अन्धेरा पूरी तरह घिर चुका था. मादाम रोबेर लैम्प लाने गई. जैसे ही वह लैम्प के साथ वापस आयी और अपनी बहन के चेहरे का परीक्षण किया, अपनी बहन का कोई और रूप देखकर घबरा गई. मदाम लतोघ के कन्धे पर सफेद बालो के दो गुच्छे लटक रहे थे. और बाकी के बाल काले और भूरे मिलेजुले थे. वह यह सोचकर चिंतित हो उठी कि केवल 24 साल की उम्र में ही इतना परिवर्तन और वो भी अचानाक स्विट्जरलैंड की यात्रा के दौरान!
बिना किसी हरकत के मादाम रोबेर ने हेनरियेत को विस्मय भरी दृष्टि से देखा, उसकी ऑखों मे आँसू तैरने लगे, जैसे ही उसने यह सोचा कि जरूर उसकी बहन के ऊपर कोई आपदा आ पड़ी है. उसने पूछा,
“तुम्हे क्या हो गया है हेनरियेत?” “
एक दुखद मुस्कान के साथ हेनरियेत ने उत्तर दिया,
“क्यो, कुछ भी तो नहीं हुआ, क्या तुम मेरे सफेद बालो की वजह से पूछ रही हो ?”
लेकिन मदाम रोबेर ने आवेग के साथ लतोघ का कंधा पकड़ लिया और उसके चेहरे पर मानो कुछ खोजती हुई बोली, “क्या हुआ है तुम्हारे साथ? मुझे सबकुछ सही सही बताओ, अगर कुछ भी छिपाने की कोशिश की तो ठीक नहीं होगा.”
दोनों बहनें आमने सामने खड़ी रहीं. मदाम हेनरियेत, जो मूर्छा के आवेग से पीली पड़ गईं, उनकी ऑखे डबडबा गईं.
उनकी बहन लगातार पुछ्ती रही,
“क्या हुआ, कुछ बताती क्यों नही ? जबाब दो !”
मादाम हेनरियेत ने सिसकते हुए कहा, “ मेरा... मेरा एक प्रेमी है.” और अपना चेहरा बहन के कन्धे पर टिकाकर सुबकने लगी. थोडी देर मे हेनरियेत ने खुद को कुछ हल्का पाया लेकिन खुद को और ज्यादा हल्का करने के लिये वो अपनी सारी बातें बहन के सामने उड़ेल देना चाहती थीं.
इसके बाद दोनो औरतें कमरे के अन्धेरे कोने पर रखे सोफे पर बैठ गईं, छोटी बहन ने बड़ी बहन को गलबाहों में भर लिया और उसकी बातें ध्यान से सुनने लगीं.
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वह स्थिति ऐसी थी की कुछ कहा नहीं जा सकता बहन. मैं खुद को भी उस वक्त समझ नहीं पाई. और उसी दिन से मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि मै पागल हो गई हूँ. अपनी बहन को आगाह करने के अन्दाज में हेनरियेत ने कहा, “खुद को लेकर बिल्कुल सावधान रहना बच्ची, क्योंकि तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि तुम कब इतनी कमजोर और विवश हो गयी.” और आगे की बात बताना शुरु कर दिया....
“तुम तो मेरे पति को जानती ही हो और यह भी जानती हो कि मै उनसे कितना स्नेह रखती हूँ. लेकिन परिपक्व और भावुक होते हुए भी वह नारी हृदय की कोमलता को कभी समझ ही नही पाये. वह हमेशा एक जैसे ही रहते हैं. हमेशा की तरह अच्छे, मुस्कराते रहने वाले, दयालु और संपूर्ण. ओह, कभी कभी तो मैं तड़प उठती हूँ कि काश वो मुझे अपनी बाहों मे लेकर उन कोमल चुम्बनो से भर देते जो दो युवाओ को अंतरंग बनाते है. काश वो थोडे असंयमी और कमजोर होते ताकि मेरी भावनाओ व मेरे आसुओं का ख्याल रखते!
“ये सारी चीजें तुच्छ जान पडती हैं; लेकिन हम औरतें बनी ही इस तरह से है. इसके लिये हम कुछ कर भी नहीं सकते.”
लेकिन फिर भी, अभी तक जो मेरे साथ नही हुआ था वही उस रोज घटित हुआ. ऐसा होने का कोई खास कारण नही था. वजह बस ये थी कि उस रोज लूसेघ्न की खुबसूरत झील मे चाँदनी झिलमिला रही थी.
“महीने भर की यात्रा के दौरान, मेरे पति के शांत और उदासीन स्वभाव के कारण मेरा उत्साह मरता जा रहा था तथा मेरे कवित्व की सरगर्मी भी शांत होती जा रही थी. सूर्योदय के वक्त ऊँची पहाडियों के रास्ते पर चलते हुए जब हमने पहाडियों पर फैली पारदर्शी धुन्ध, घाटियों, जंगलों और गॉवों को देखा, मैने आनन्द के अतिरेक मे अपने पति से कहा, “कितना खूबसूरत दृश्य है प्रिय!” और उनसे एक चुम्बन लेने का अनुरोध करने लगी. तीखी लेकिन दयालुता से भरी मुस्कान लिये उन्होने उत्तर दिया, “क्यों? यहाँ प्रेम करने का कोई कारण मुझे नहीं दिखता और सिर्फ इस वजह से मैं तुमारा चुम्बन नहीं ले सकता कि यहाँ का दृश्य तुम्हे बेहद पसन्द आया है.”
“उनके इन शब्दो ने मेरे हृदय को बर्फ की तरह जमा दिया. इतना ही नहीं, उस दृश्य को देखकर मेरे अन्दर जो काव्यानुभूति जाग रही थी उसकी भी उन्होने उपेक्षा की, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि खुद को कैसे व्यक्त करूँ? मै लगभग उस तप्त भट्टी की तरह हो गई थी जिसके अन्दर भाप भरी हो लेकिन उसका मुह ऊपर से बन्द हो.”
एक शाम ( जबकि हम दोनों 4 दिन से फ्लोलेन नामक होटल मे ठहरे हुए थे), रोबेर्त को हल्का सिरदर्द था इसलिये वह खाने के बाद तुरंत बिस्तर पर चला गया और मै झील के किनारे टहलने के लिये अकेले निकल पडी.”
वह ऐसी रात थी जिसको मैंने सिर्फ कहानियो में ही पढा था. पूर्णिमा का चाँद आकाश मे दिपदिपा रहा था. ऊँचे पहाड़ों की बर्फीली चोटियों को देखकर ऐसा जान पडता था, मानो उन्होने चाँदी का मुकुट पहन रखा हो, झील का पानी चंचल गति से बह रहा था. हवा बहुत मीठी लय में डोल रही थी. धीरे-धीरे मेरे उपर एक नशा सा तारी होने लगा. यह दृश्य जादू की तरह मेरे ऊपर हावी होने लगा. अजीब क्षण था वह. मेरे अन्दर से भावनाओ का समुद्र फूटने लगा. मैं वही घास पर बैठ गयी और चुपचाप झील के किनारो को निहारने लगी. एक विचित्र भाव ने मुझको अपने अधीन कर लिया. मै एक अतृप्य प्रेम की आकांक्षा के वशीभूत होने लगी. यह भाव एक तरह से मेरे अन्धकार और निराशा से भरे जीवन के प्रति विद्रोह जैसा था. ओह! क्या मेरा भाग्य ऐसा कभी नही होगा कि इस झील के किनारे कि चॉदनी रात मे उस इंसान  से आलिंगनबद्ध हो सकूँ जिससे मै प्रेम करती हूँ? क्या मै उन अधर चुम्बनो का रसास्वादन कभी नही कर सकती जिसकी शोभा विधाता के वरदान जैसी होती है. क्या मैं ग्रीष्म की ऐसी खूबसूरत चॉदनी में प्रेम का वह पवित्र एहसास कभी नहीं कर पाऊगी?
“अचानक मै किसी ऐसी औरत की तरह रोने लगी जिसका सबकुछ लुट चुका हो. मैने अपने पीछे किसी की आहट सुनी. मुझे रोता देखकर एक आदमी लगातार मुझे घूरे जा रहा था. जब मैने अपना सिर पिछे की तरफ घुमाया, वह मुझे पहचान गया और पूछ बैठा, “आप रो क्यो रही है मदाम?”
“वह एक युवा वकील था जो अपनी माँ के साथ टहल रहा था, जिससे कि हम पहले भी मिल चुके थे. उसकी आँखें मेरे उत्तर कि प्रतीक्षा कर रही थीं. मेरी समझ मे नही आ रहा था कि क्या जवाब दूँ उसे, और उस स्थिति से कैसे उबरूँ? मैने कहा, “मेरी तबीयत ठीक नही है.”
वह अपनी सहज और गरिमामयी चाल में टहलता हुआ मेरे करीब आ गया और चाँदनी के उस छोटे से  सफर में महसूस की हुई चीजों को बयाँ करने लगा. वह उस दृश्य के बारे मे वही सारी तफसीलें देने लगा, जो कि मैंने कुछ देर पहले महसूस किया था; यह जानकर मैं अचम्भित थी कि वह इस दृश्य को मुझसे भी बेहतर ढंग से समझ रहा था. अचानक ही उसने ‘अल्फ्रेड द मोसे’ की कुछ पंक्तियॉ उद्धृत कीं. मेरी साँसें मानो थम सी गयीं, मैं भावनाओं के अतिरेक मे डूब गयी. मैने ऐसा महसूस किया कि ये पर्वत, झरने, चाँदनी रात, सब के सब मेरे भीतर सँगीत की तरह गूँज रहे हैं.
उसने अपनी तफसीलों वाला कार्ड भी मुझे दे रखा था, और अगले दिन प्रस्थान के समय तक मुझे वापस नजर नहीं आया.”
“बहन उस छोटे से लम्हे मे मेरे साथ यह सब कुछ घटित हुआ लेकिन कब और कैसे हुआ ये मैं नहीं जानती.” अपनी बात खतम करके वह अपनी बहन की बाहों मे लिपटते हुए दर्द से कराह उठी.
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इसके बाद मदाम रोबेर स्वपूर्ण व गम्भीर मुद्रा मे बोली, “देखो बहन यह जरूरी नहीं की हम जिसे प्रेम करते हो वह इंसान ही हो, प्रेम इसके बगैर भी हो सकता है. उस रात तुम्हारा वास्तविक प्रेमी रात की वह मनोहर चॉदनी थी.”

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श्रीधर से सम्पर्क : shridhardubey1@gmail.com / 08285837372.


Monday, November 21, 2011

एक थी इशरत जहां

जब कोई उन्नीस वर्ष का होता है तब  कभी मरने के बारे में नहीं सोचता. समय के मामले में मुझे दुनिया बहुत लम्बी लगती थी. मुझे समय इतना अधिक अधिक लगता था कि सारे काम कल पर छोड़ देता. कबीर के दोहे से अलग मुझे कभी 'आज' ने निराश नहीं किया. अगले दिन पर काम छोड़ना दरअसल एक भोली विलासिता है जो उस उम्र में आ ही जाती है जिस उम्र में इशरत थी जब उसकी  इक्कीस पुलिस वालों ( बड़े अधिकारियों जैसे डी.आई.जी  रैंक के अधिकारी) ने मिलकर हत्या कर दी थी. क्रूर और निर्मम हत्या. 

चालाक लोग कहेंगे कि यहाँ इस घटना के साथ गुजरात सरकार का  नाम लेना गलत है. यह तो सभी राज्यों में होता है. यह चालाकी भरी बात है. सभी राज्यों में जो होता है वह तो इस देश का दुर्भाग्य है पर इशरत जहाँ की हत्या, जिसे कुछ नापाक किस्म के लोग मुठभेड़ या बहुत हुआ तो फर्जी मुठ भेड़ कहेंगे, इस देश पर भविष्य में बरसने वाले दु:स्वप्न की पूर्व सूचना है.    

साम्प्रदायिक तानाशाही और पतित भारतीय नौकरशाही पर हम बाद में आयेंगे पहले 'विकास पुरुष' की इस हत्या से सम्बन्ध को देख लें. इस हत्या के पीछे जो अफवाह रची गई, जिसे 'गौरवशाली' भारतीय मीडिया ने खबर की तरह प्रसारित किया कि यह नौऊम्र लड़की तथा इसके साथी माननीय मुख्यमंत्री 'विकास पुरुष' और 'कॉर्पोरेट टेक्स माफ करने में उस्ताद ' की हत्या करने वाले थे. 
 
यही बात इस घटना को अन्य फर्जी मुठभेड़ों, जो भारतीय पुलिस के दामन में तारों की तरह भरे हुए हैं, से अलग बनाती है. साम्प्रदायिक और तानाशाही शक्तियाँ के काम करने का तरीका यह है. जब उन्हें लगता है कि वे किसी मुद्दे पर फँसने वाले हैं, जैसे चुनाव का समय या कोई अलग मामला, तो वे अपने खिलाफ हत्या की हो रही साजिश का भंडाफोड़ करा देते हैं. जाहिर है, वे होने-वाले-हत्यारे बहुसंख्यक नहीं होते. यह इतिहासविदित है. आप चाहें तो दुनिया के सर्वाधिक सफल तानाशाह स्टालिन तक की जीवनी उठा के देख लें, बाकियों की बिसात क्या. 

इसका दूसरा पहलू है तानाशाह या साम्प्रदायिकता पर अटूट निष्ठा रखने वाले नेताओं का डर. इस खामख्याली डर का सर्वाधिक फायदा 'पतित नौकरशाही' उठाती है. वो अपने नेता के आस पास इस भय की व्यूह रचना करती है और कुछ हत्याओं के बदले में मान सम्मान धन अदि पाती है और लूटपाट भ्रष्टाचार आदि मचाती है. नौकरशाही परजीवी है. नौकरशाही सम्मान की भाषा नहीं जानती. वो अपार शक्तियों से लैस होती है और उसे प्रेम की भाषा दरअसल गुलामों की प्रार्थना लगती है. उन पर नकेल या तो नौकरशाही को ही खत्म कर पहनाया जा सकता है या कड़क, ईमानदार नेतृत्व से, जो स्वप्न सरीखी बात है. 

इशरत के मामले में क्या हुआ यह राज शायद कभी खुल न सके. कुख्यात वंजारा ने क्या किया . जे.सी.पी. (क्राईम ब्रांच) पी.पी.पंडे ने क्या किया, यह हमारी न्यायपालिका शायद ही कभी जान पाए . जहाँ इतने रसूखदार और विज्ञापन बाँटने में सक्षम लोग शामिल हो, वहाँ भारतीय मीडिया से कोई उम्मीद बेमानी ही नहीं आपका अपराध तक है. पर एक बात है. अपराधियों ने  हत्या को मुठभेड़ में बदलने की सारी कोशिशे की होंगी. चाक चौबन्द. अगर ऐसे में हमें इतना ही भर अगर मालूम हो पा रहा है कि इशरत की हत्या, मुठभेड़ नहीं, क्रूर हत्या ही थी तो क्या आप कल्पना नहीं कर सकते कि ऐसा क्यों हुआ होगा ? इसलिए सूचना के बतौर पहले न्यायाधीश तमांग और अब एस.आई.टी ने जो कुछ सामने रखा है, उसका धन्यवाद. 

शासन से डरिये और कल्पनाओं को अपने मन तक रखिए. विज्ञान ने जिस तरह सत्ताओं की मदद की है, कहा नहीं जा सकता कि कल को कोई ऐसा मशीन न आ जाए जो हमारी सोच पर भी नियंत्रण करे. उस समय आप लाचार होंगे पर अभी आप सोच सकते हैं. आप जैसे ही इस मुद्दे पर सोचना शुरु करेंगे, आप पायेंगे कि साम्प्रदायिक तानाशाही का एक समर्थक कम हो गया है. 

कोई इशरत को वापस नहीं ला सकता. इसलिए कम से कम,  अपनी इस सोच को, जिसमें साम्प्रयदायिक तानाशाही का एक समर्थक कम करने में आप सफल हो जा रहे हैं, इशरत को समर्पित कीजिए.      

Wednesday, November 16, 2011

उस्ताद की कहानी : सुखांत


उस्ताद का सीधा सच्चा अर्थ अंतोन चेखव से है. लगभग सभी ने चेखव का नाम सुझाया पर 'कहानी कैसे लिखें' नामक भाषण में रॉबर्तो बोलान्यो ने चेखव और रेमंड कार्वर के नाम का जैसा जलवापूर्ण जिक्र किया है और नए कहानीकारों के लिए सुझाया है वह काबिले गौर है. प्रस्तुत है चेखव की कहानी सुखांत, जिसका अनुवाद कवि कथाकार श्रीकांत ने किया है. अपनी दैनन्दिन व्यस्तताओं को सुलझाते हुए श्रीकांत अनुवाद के जितना समय निकाल लेते हैं वह सराहनीय है. मुझे तो यह पराक्रम सरीखा लगता है.  

सुखांत

बतौर हेड कंडक्टर काम करने वाले निकोलाई निकोलाएविच स्टिचकिन ने छुट्टी के एक दिन लुबोव ग्रिगोर्येव्ना नाम की खास महिला को एक जरूरी बात के लिए अपने घर बुलाया. लुबोव ग्रिगोर्येव्ना चालीस के आस पास की उम्र वाली प्रभावशाली और दिलेर औरत थी, जो लोगों की शादियाँ जोड़ने के सिवाय ऐसे सारे जरूरी बंदोबस्त कराती थी, जिनकी कि चर्चा सभ्य समाज में महज फुसफुसाहटों में होती है. हमेशा विचारों में खोया हुआ, गंभीर तथा हास परिहास से कोसों दूर रहने वाला स्टिचकिन, कुछ कुछ शर्माया हुआ सा, अपनी सिगार जलाते हुए कहने लगा,

“आपसे मिलकर मुझे खुशी हुई. सिमोन इवानोविच ने मुझे बताया कि आप कुछ ऐसे विशेष और अहम मसलों पर मेरी मदद कर सकती हैं, जिनका सीधा वास्ता मेरी जिंदगी की निजी सुख सुविधाओं से है. लुबोव ग्रिगोर्येव्ना, जैसा कि आप देख सकती हैं कि मैं पहले ही से बावन की उम्र पार कर चुका हूँ, एक ऐसी उम्र जिसमें बहुतों की औलादें भी वयस्क हो चुकी होंगी. मैं एक अच्छे ओहदे पर काम करता हूँ. हालाँकि मेरे पार बहुत ज्यादा संपत्ति नहीं है, लेकिन फिर भी मैं एक प्रमिका, पत्नी या बच्चों की परवरिश कर सकता हूँ. मैं जरूरी तौर पर यह बताना चाहूँगा कि तनख्वाह के अतिरिक्त मेरे कुछ पैसे बैंक के पास भी हैं, जिन्हें कि मैंने अपनी सीधी सादी और ईमादार जिंदगी जीते हुए बचा रखा था. मैं एक गंभीर और संयमी इंसान हूँ, तथा एक सम्मानजनक और कायदे कानून वाली जिंदगी जीता हूँ, जो कि औरों के लिए एक मिसाल भी हो सकती है. आज जो चीज मेरे पास नहीं है, वो है एक परिवार का अपनापा और अपनी बीवी. मेरी हालत दर दर घूमकर लोगों के असबाब पहुँचा रहे एक फेरी वाले, या फिर ऐसे ही किसी और इंसान की है जो बिना किसी सुख के जीवन काटता हुआ, किसी भी ऐसे शख्स से दूर रहता है जिससे कि वह अपना दुख बाँट सके, बीमार होने पर एक गिलास पानी माँग सके. और, लुबोव ग्रिगोर्येव्ना, मेरी इस तरह की अर्जी की एक और वजह यह है कि शादीशुदा इंसान एक गैर शादीशुदा के मुकाबले समाज में ज्यादा कद्र का हकदार होता है. मैं पढ़े लिखे तबके से बावस्ता हूँ, मेरे पास पैसे हैं, लेकिन अगर आप एक दूसरे नजरिए से देखें, तो इन सब के बावजूद, मैं हूँ क्या? एक ब्रह्मचारी, जिसने कोई कसम वसम ले रखी हो. यूँ, इन सभी को नजर में रखते हुए, मैं किसी योग्य महिला के साथ विवाह बंधन में बॅंधने की अपनी दिली ख्वाहिश जाहिर कर देना चाहूँगा.”

“यह एक अच्छी बात भी होगी.” बिचौलिए का रूप लिए लुबोव ने उसाँस भरी.

“मैं अब सेवानिवृत्ति ले लेने वाला हूँ, और इस शहर में किसी से मेरी जान पहचान भी नहीं है. ऐसे में, हर किसी को समान रूप से अजनबी पाते हुए, मैं जा भी कहाँ सकता हूँ. और कुछ कह-पूछ भी किससे सकता हूँ? इसीलिए सिमोन इवानोविच ने मुझे किसी ऐसे के पास जाने की सलाह दी जो इस काम में माहिर हो तथा लोगों के जीवन में खुशियाँ भरना ही उसका पेशा हो. तो इस तरह से, मैं आपसे ये गुजारिश करता हूँ कि आप मेरे आने वाले कल को सॅंवारने में कृपया मेरी मदद करें. आपके पास शहर की सभी योग्य लड़कियों की तफसील है, और आप आसानी से मेरी बात बना सकती हैं.....”

“हाँ, ऐसा हो सकता है.”

“पानी पीजिए, कृपा करके, पानी.....”

अपनी सहज भंगिमा के साथ लुबोव ने गिलास को अपने होठों से सटाया और बिना पलक झपकाए उसे खाली कर दिया.
“जरूर हो सकता है.” उसने जवाब दिया, और दुल्हन के रूप में आप किस तरह की लड़की पसंद करेंगे, मि. निकोलाई निकोलाएविच?”

“मैं, जो भी मेरी किस्मत को मंजूर हो.”

“बिलकुल सही फरमाया, वाकई यह किस्मत का ही सौदा होता है, लेकिन फिर भी, हर आदमी के पास पसंद नापसंद की एक अपनी समझ होती है. किसी को काले बालों वाली औरत भाती है, तो किसी को भूरे....”

एक गहरी साँस लेते हुए स्टिचकिन ने कहा “लुबोव ग्रिगोर्येव्ना, मैं एक गंभीर मिजाज वाला दृढ़ चरित्र आदमी हूँ. मेरे लिए खूबसूरती तथा रूप रंग जैसी बाह्य चीजें कभी भी प्राथमिकता नहीं रखतीं, क्योंकि, जैसा कि आपको पता भी है, कि चेहरा आखिरकार अदद चेहरा भर होता है, और एक खूबसूरत बीवी होने का मतलब साथ में बहुत सारी उलझनें और परेशानियाँ भी पाले रहना होता है. मेरे हिसाब से, एक औरत का सौंदर्य वो नहीं है जो हमें बाहर से दिखता है, बल्कि वो कहीं उसके अंदर छुपी चीज होता है. मेरा मतलब है कि उसे दिल का ठीक होना चाहिए तथा ऐसे ही कुछ और गुण होने चाहिए उसके पास. एक और गिलास लीजिए, प्लीज, एक और गिलास..... ठीक तो यह भी होगा अगर एक तनदुरुस्त पत्नी मिले, लेकिन आपसी सह-भाव के सामने यह भी कोई उतनी जरूरी चीज नहीं होगी: सबसे अहम है समझ. लेकिन वहीं दूसरी तरफ, इसके भी कुछ खास मायने नहीं, क्योंकि अगर वो ज्यादा समझ वाली निकली तो दिमाग कुछ ज्यादा ही चलाएगी, अपने बारे में ही सोचती रहेगी और उसके जेहन में उलूल जुलूल खयाल आते ही रहेंगे. यह कोई कहने की बात तो नहीं है, लेकिन आजकल के इस दौर में अच्छी शिक्षा के बिना भी बात नहीं बनेगी, लेकिन इस मामले में भी केवल ‘पढ़ाई – पढ़ाई’ जैसी बात का डर है. यह तो अति उत्तम होगा कि आपकी पत्नी एक साथ फ्रेंच, जर्मन तथा ऐसी और भी भाषाओं में बड़बड़ कर सकने वाली हो, लेकिन इन सब का क्या फायदा अगर उसे बटन टाँकने का शऊर न आए? मैं एक पढ़े लिखे तबके से बावस्ता हूँ, मैं कह सकता हूँ कि प्रिंस केनितलिन तक से मेरी वैसी ही बातचीत रही है, जैसी अभी आपसे है, लेकिन मैं अपने तरीके का साधारण इंसान हूँ. मुझे एक सीधी सादी लड़की चाहिए. जरूरी सिर्फ ये है कि वो मुझे एक तरजीह दे, और अपनी खुशियों के लिए मेरा कृतज्ञ हो.

“जाहिर सी बात है.”

“ठीक है फिर, तो अब सबसे जरूरी मसले पर आते हैं.... मुझे दुल्हन के रूप में कोई अमीर लड़की नहीं चाहिए. मैं ऐसी किसी भी चीज के सामने नहीं झुक सकूँगा जो मुझे अहसास करा दे कि मैं पैसे की वजह से शादी कर रहा हूँ. मैं अपनी बीवी की कमाई रोटी नहीं खाना चाहता, मैं चाहता हूँ कि वो मेरा जुटाया खाए, और इसे समझे भी. लेकिन हाँ, मुझे किसी गरीब लड़की से भी ऐतराज है. हालाँकि मैं एक उसूलों वाला आदमी हूँ, और मैं पैसे के लिए नहीं, बल्कि प्यार के लिए शादी करना चाहता हूँ, लेकिन इसके लिए एक गरीब लड़की भी नहीं चलेगी, क्योंकि, आपको तो पता ही है कि कीमतें किस तरह आसमान छूने लगी हैं, और फिर आगे बच्चे भी होंगे.”

“मैं दहेज वाली लड़की भी खोज सकती हूँ,” लुबोव ग्रिगोर्येव्ना ने कहा.

“प्लीज, थोड़ा और पानी लीजिए....”

दोनों के बीच लगभग पाँच मिनट तक चुप्पी छाई रही. फिर बिचौलिए की भूमिका वाली लुबोव ने एक जम्हाई ली, और जनाब कंडक्टर पर तिरछी निगाह डालते हुए बोली, “और गलती से... कुँवारियाँ कैसी रहेंगी? मेरे पास कुछ ऐसे सौदे भी हैं. एक फ्रेंच और दूसरी ग्रीक नस्ल की, दोनों ही ठीक ठाक.”

स्टिचकिन ने इस पर विचार किया, बोला:

“जी नहीं, शुक्रिया. अब, यह देखने के लिए कि एक असामी के साथ आपकी डील किस तरह से पूरी होती है, क्या मैं पूछ सकता हूँ: आप अपनी इस कृपा के लिए क्या लेंगी?”

“मैं ज्यादा की अपेक्षा नहीं करती. मुझे बस एक पच्चीस रूबल का नोट, और काम हो जाने पर एक ड्रेस दे दीजिएगा, मैं शुक्रगुजार होउंगी आपका.... और अगर दहेज वाली बात हुई, तो मामला थोड़ा अलग होगा और आप मुझे अलग से कुछ देंगे.”

स्टिचकिन ने दोनों हाथ मोड़े, और उन्हें सीने से सटाते हुए शर्त पर गौर करने लगा. फिर एक साँस भरते हुए बोला:
“इतनी फीस तो बहुत ज्यादा होगी”

अरे, यह किसी भी लिहाज से ज्यादा नहीं है. पहले के जमाने में, जब इस तरह से बहुत सारी शादियाँ होती थीं, तब हम कम रकम लेते थे. लेकिन अब का जैसा चलन है, उसमें हमें मेहनताने के नाम पर मिलता ही क्या है? अगर मुझे महीने भर में, बिना उधारी के वायदे के पच्चीस रूबल के दो नोट मिल जाएँ तो मैं खुद को खुशकिस्मत समझूँगी. और आपको तो पता ही है. आम शादियों में तो हमें कुछ मिलता भी नहीं है.”

स्टिचकिन ने औरत की तरफ देखा और कंधे उचका दिया.

“आपका मतलब है कि एक महीने में पच्चीस रूबल की दो नोटें पा लेना छोटी कमाई है?”

“बहुत ही छोटी. पहले के जमाने में तो हम कभी कभार सौ रूबल से भी ऊपर बना लेते थे.”

“मुझे तो एहसास ही नहीं था कि आपके तरह के कारोबार में रहकर एक औरत इतना अच्छा कमा सकती है. पचास रूबल! हर किसी की कमाई इतनी नहीं होती. थोड़ा सा और पानी लीजिए, थोड़ा....”

लुबोव ने गिलास को पलक झपकने से पहले खाली कर दिया. स्टिचकिन ने उसे सिर से पाँव तक देखता रहा. फिर बोला:
“पचास रूबल.... एक साल के मतलब छह सौ रूबल... गिलास भर लीजिए... क्यों, आपकी तरह की आय से तो... लुबोव ग्रिगोर्येव्ना, आप तो आसानी से अपने लिए किसी को चुन सकती थीं.”

“मेरे लिए?”, लुबोव ग्रिगोर्येव्ना हँसने लगी, “मैं तो बूढ़ी हो चुकी हूँ.”

“बिलकुल नहीं,.... आप अभी भी काफी खूबसूरत हैं, चेहरा भी भरा पूरा है, और दूसरी सारी खूबियाँ भी हैं आपमें....?”

लुबोव आत्मगौरव से फूलती हुई शर्माने लगी. स्टिचकिन भी शर्म सा महसूस करते हुए उसकी बगल में बैठ गया.

“सच में, मैं बताऊँ, तुम बहुत ही आकर्षक हो. अगर तुम किसी ऐसे शख्स से शादी रचाओ, जो धीर-गम्भीर होने के साथ सोच समझकर खर्च करने वाला हो, तो उसकी तनख्वाह और तुम्हारी आय के मिले जुले सहयोग से तुम एक बहुत ही सुखी जिंदगी जी सकोगे...”

“ओह निकोलाई निकोलाएविच, तुम कैसे तो बहे जा रहे हो....”

“क्यों, मैं तो बस कह ही रहा था...”

एक खामोशी पसर गई, स्टिचकिन ने तेज आवाज के साथ अपनी नाक साफ की, और लुबोव अपने लाल होते चेहरे के साथ उसे नखरीले तरह से देखने लगी. पूछी:

“महीने का तुम्हें कितना मिलता है, निकोलाई निकोलाएविच?”

“किसे, मुझे? पचहत्तर रूबल, बोनस को न जोड़ूँ तो.... इतने से इतर, थोड़ा बहुत हम चर्बी की मोमबत्ती और  ‘खरगोशोंके जरिए भी कमा लेते हैं.”

“तुम्हारा मतलब, शिकार करके?”

“अरे नहीं, खरगोशों हम बिना टिकट यात्रा करने वाले यात्रियों को कहते हैं.

एक और वक्फा खामोशी के साथ बीत गया. स्टिचकिन ने अपना पैर ऊपर उठा लिया और, जैसा कि जाहिर था, घबड़ाहट में फर्श पर चलाने लगा.

“मैं पत्नी के रूप में कोई नौजवान लड़की नहीं चाहता,” उसने कहा, “मैं अधेड़ उम्र का आदमी हूँ, और मुझे किसी ऐसे की तलाश है, जो काफी हद तक... तुम्हारी तरह की हो... गंभीर और आत्मसम्मान वाली... और शरीर से भरी पूरी, तुम्हारे जैसी...”

“रहम करो, तुम कैसे बोले जा रहे हो,” लुबोव ग्रिगोर्येव्ना खिलखिलाने लगी, अपने बैंजनी हो आए चेहरे को रुमाल से ढँकती हुई.

“इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके, तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों. मैं एक इमानदार और संयमी आदमी हूँ, और यदि तुम्हें भी पसंद हूँ, तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है? मुझे तुम्हें अपना हाथ सौंपने की अनुमति दो!”

लुबोव ग्रिगोर्येव्ना ने खुशी का एक आँसू ढुलकाया, हल्के से हँसी, और प्रस्ताव स्वीकार कर लेते हुए स्टिचकिन के साथ चश्मे की काँच को छू लिया.

“तो अब,” होने वाले, प्रसन्न, पति ने कहा, “मुझे बताने दो कि मैं तुम्हारे साथ किस तरह के जीवन की अपेक्षा करता हूँ,... मैं एक दृढ़ इंसान हूँ, संयमी और ईमानदार. मेरे पास चीजों की एक परिपक्व समझ है, मैं अपनी होने वाली पत्नी से भी वैसी ही दृढ़ता की उम्मीद करता हूँ, और इसकी भी, कि वो समझे कि मैं उसे संरक्षण प्रदान करने वाला तथा उसके लिए दुनिया का पहला शख्स हूँ.”

स्टिचकिन एक गहरी साँस लेते हुए बैठ गया, और अपनी शादीशुदा जिंदगी तथा एक पत्नी के दायित्वों के बारे में बोलता गया.

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अनुवादक श्रीकांत से सम्पर्क writershrikant@gmail.com / 9818152475

Thursday, September 22, 2011

परायथार्थवाद का घोषणापत्र ( Manifesto of Infra realism )

आरोही,

हमने बात आगे बढ़ाने की रखी थी. आज मन है कि इन वादों के इतिहास और इनके असर से अलग उन लोगों पर बात करें जिन्होने ऐसे वाद, जो साहित्य - कला के विकास लिए जरूरी समझे गए, की नींव रखने की जहमत उठाई. आज हम जिसे एक शब्द या दो वाक्यों में खारिज कर देते हैं (या अनमना स्वीकार भी)उसके पीछे लोगों ने अपनी जिन्दगियाँ लगा दी.

1974 की बात शायद हमारी मदद करे. यह मेक्सिको की बात है जब कुछ नौउम्रों को मेक्सिको विश्वविद्यालय ( UNAM ) के किसी कविता वर्कशॉप में कविता पढ़ने से रोक दिया गया. यह वह समय है जब ऑतोवियो पाज़ मेक्सिकन कविता के प्रतिनिधि के बतौर समूचे विश्व में प्रसिद्ध थे. जिन लोगों को कविता पढ़ने से रोका गया, जाहिर है, उनकी कविता पर, काव्य की तत्तकालीन सत्ता को गहरा ऐतराज रहा होगा. मारियो सांतियागो भी उन्हीं नौजवानों मे से थे, जिन्हे कविता पाठ नही करने दिया गया. कोई दर्ज इतिहास तो नहीं, पर अगर रॉबर्तो  बोलन्यो के उपन्यास 'द सैवेज डिटेक्टिव' को पढ़ा जाए तब जान सकोगे कि इन नई उम्र के कवियों के सामने, मेक्सिको के अग्रज कवि कैसी कैसी मुश्किल खड़ी कर रहे थे? इनकी किताबें तक नहीं प्रकाशित की जा रही थीं. प्रकाशक इन्हें देख कर घबरा जाते थे. जाहिर है प्रकाशकों को, जिनमें ज्यादातर लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर की जमात से आते हैं, कविता की खास समझ नही रही होगी. उन्हें जरूर कोई तीसरी शक्ति ही बता रही होगी कि किसे प्रकाशित करना है और किसे नहीं. सबसे बुरा तो यह कि इन नौजवान कवियों की कविताएं, वहाँ के प्रमुख कवि अपने द्वारा सम्पादित 'एंथोलोजिज' में भी प्रकाशित नही कर रहे थे.

इन्हीं सब मुश्किलों से गुजरते हुए इन नौजवानों ने एक नई काव्य धारा या कह लो काव्य आन्दोलन चलाने की बात रखी. यह कविता के लिए चलाया गया आन्दोलन था : इंफ्रारियलिज्म यानी परायथार्थवाद.

इनमें से सबसे प्रखर कवि थे : मारियो सांतियागो, जिन्हें मेक्सिको के 'इलीट कवियों' ने कोई मान्यता नहीं दी और मारियो जीवन पर्यंत उपेक्षा के शिकार रहे. रॉबर्तो बोलान्यो से परिचित तुम हो ही. उन्हें भी मृत्युपरांत ही नाम और प्रतिष्ठा मिली और वो भी कविता में नहीं, गद्य में. इस नए समूह के दूसरे सदस्यों में अरीबा, रोज़ाज, मेंडेज अबाजो, रुबेन, डायना, लुपिटा वाय खोसे फिगारो आदि थे.    

परायथार्थवाद का मुख्य विरोध 'सरकारी संस्कृति' से था. इनके आदर्श बीट पीढी के लोग थे जो कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की पीढ़ी थी और जिन्होने कविता, धर्म, नशा और यौनिकता ..जीवन के हर क्षेत्र में प्रयोग किए.  इनके दूसरे आदर्श 'रिम्बाँ', लॉट्रेमो और सॉफी पॉड्स्की थे जिनके बारे में विस्तृत अध्ययन की जरूरत है.

सहूलियत के लिए परायथार्थवाद का घोषणा पत्र मैं यहाँ दे रहा हूँ, जिसका अनुवाद युवा कहानीकार श्रीकांत ने किया है. इस पढ़ते हुए तुम्हे परायथार्थवादियों के गहरे साहित्यिक लगाव का पता पड़ेगा. कहने वाले कह सकते हैं कि यह आन्दोलन बेहद छोटे दायरे में सीमित रहा पर यह एक सूचना शायद इन अफवाहों पर भारी पड़े कि इसी इंफ्रारियलिज्म की तर्ज पर ऑस्ट्रिया में एक कविता आन्दोलन चला था : सेकेंड इफ्रारियलिज्म.

कोई भी बात आगे बढ़ाने से पहले यह समझ लेना जरूरी है कि वे लोग आखिर कौन थे जिन्होने इतनी शिद्दत से कविता का भला चाहा, साहित्य को जिया. उनके बारे में जानने से यह एक मुश्किल आसान होगी कि हम सबको  खारिज करना बन्द कर देंगे.

( तस्वीर में कम्प्यूटर स्क्रीन के बाएं से दूसरे : रॉबेर्तो बोलान्यो )





........... परायथार्थवाद का घोषणापत्र............................ 

सबकुछ त्याग दो, फिर से . 


“सौर मंडल का विस्तार यहाँ से चार प्रकाश वर्ष की दूरी तक है ; यानी सबसे करीब का तारा हमसे पूरे चार प्रकाश वर्ष दूर है. बीच में शून्य का अपरिमित समुद्र. लेकिन क्या वास्तव में इस बीच केवल शून्य है? जहाँ तक हमारी जानकारी कहती है, इस विशाल खालीपन में खुद से रौशन होने वाला पिंड नहीं है; और अगर है भी, तो क्या जरूरी है कि हमने उसे देखा ही हो? यों यदि इस बीच कोई ऐसा पिंड हो, जो चमक और अँधेरे दोनों ही से निरपेक्ष हो, तो? क्या हमारी दुनिया की ही तरह खगोलीय मानचित्रों के साथ भी ऐसा नहीं हो सकता, कि ‘सितारों के शहर’ की पहचान हो गई हो और ‘सितारों के गाँव’ गुमनाम ही रह गए हों?”

-    आधी रात गए अपने गाल खुजाते हुए विज्ञान कथाओं के रूसी लेखक.

-    सूरज से दूर के आकाशीय पिंड (‘द्रुमोंद’ के शब्दों में, ‘चहकते मेहनतकश बच्चे’)

-    एक असुंदर कमरे में बैठ, दरवाजे के पार की चीजों की भविष्यवाणी करते हुए ‘पेगेरो’ और ‘बोरिस’.

-    मुक्त धन ( आवारा पूँजी ) .

* * * * * *
कौन है जो समूचे शहर से होकर गुजर गया, जिसके पास गाने के लिए सिर्फ अपने साथी की बाँसुरी थी, अचंभे और क्षोभ के उसके अपने शब्द थे ?
सबसे सुन्दर तरीका, जिसका हमें पता न था
कि  स्त्री का चरम भगशेष (क्लिटोरिस)  में होता है
(गौर फरमाएँ, सिर्फ संग्रहालय ही नहीं गंदगी से अँटे हैं) (एक प्रक्रिया, व्यक्ति को संग्रहालय में बदलने की) (एक दिलासा, कि जो कुछ भी है, जाहिर है, बताया हुआ है) (आविष्कारों से भय) (डर, किसी अप्रत्याशित असंतुलन का).
* * * *
हमारे सबसे करीबी नातेदार :

छिपकर गोलियाँ दागने वाले और मैदानोँ के बाशिंदे वे अकेले लोग, जो लैटिन अमेरिका के चीनी काफी हाउसेज में तोड़ फोड़ मचाते रहते हैं, अपनी अपनी दुविधाओं से घिरे सुपरबाजारों के इकट्ठे कसाई; कविताई के संदर्भ में, कुछ करने या कुछ खोज लेने में अक्षम (व्यक्तिगत, अथवा सौंदर्य से जुड़े अंतर्विरोधों के स्तर पर).
*
छोटे सितारे ‘भँवर-जाल’ कहे जाने वाली एक जगह से हमें लगातार देखते-टिमटिमाते हुए.
- तिलिस्मों की नृत्य सभा
- लीसा अंडरग्राउंड के प्रति अपने प्यार में सुबकती हुई ‘पेपितो टेकिला’[i]
- और एक दहशत
*
पानी, सीमेंट या टिन, परदे चाहे जिस भी चीज के बने हों, वे एक सांस्कृतिक तंत्र को विलगाते हैं, जो चाहे तो विवेक या फिर शासक वर्ग के तलवे, दोनों रूपों में काम करता है, सजीव और जिन्दा संस्कृति से, मक्कार, जीवन और मृत्यु की शाश्वत निरंतरता में, इतिहास के बहुल हिस्से और खूबसूरत कलाओं से अनभिज्ञ, (अपने ही नृशंस इतिहास का रचयिता और उसकी हैरतंगेज ललित कलाएँ), देह जो खुद के भीतर अचानक ही कुछ नया महसूस कर ले, समय का ऐसा उत्पाद जो हमारी रफ्तार 200 किमी प्रति घंटे तक बढ़ा दे, चाहे तो शौचालय तक के लिये या फिर क्रांति के दरवाजे तक.

‘नये शिल्प, दुर्लभ शिल्प’, बुजुर्ग बर्टोल्ट के मुताबिक, ‘आधा उत्सुक और आधा हँसमुख’.
* * * *

संवेदनाएँ बेवजह नहीँ होतीं (स्पष्टता की स्पष्टता), लेकिन एक निश्चित यथार्थ के अंतर्गत अपने हजारों प्रकारों के बीच एक सतत प्रवाह सरीखीं होती हैं.
-    जटिल यथार्थ हमें चकरा देते हैं!
संभव है कि एक ओर जन्म हो और दूसरी तरफ हम मृत्यु के सामने से पहली कतार में खड़े हों. जीवन और मृत्यु के स्वरूप आँख की रेटिना से होकर हर रोज गुजरते हैं. उन दोनों (जीवन और मृत्यु) की भिड़ंत ही है, जो परायथार्थवादी शिल्प सामने आता है: संक्रमण की दृष्टि
*
पूरे शहर को एक पागलखाने में डाल दो. दुलारी बहन, गुर्राते टैंकर, उभयलिंगियों के गीत, हीरों के रेगिस्तान, होना हमारा एक ही बार, और नजारों का दिन ब दिन भीमकाय और फिसलन भरा होते जाना, दुलारी बहन, मोंते आल्बान (पहाड़ी) तक चढ़ती लिफ्ट. कस लो अपनी पेटियाँ, कि जिस्मों के लोथ पानी से भर गए हैं. क्षय का एक मंजर.
*
और पूँजीवादी सोच? और अकादमियाँ? और वो फसादी? और वो लड़ाई में आगे रहने वाले सेनानायक? और उनके पिछ्लग्गू लड़ाके? और प्रेम की रूढ़ धारणाएँ, सुंरम्य वीथि, और बहुराष्ट्रीय संस्कृति से सजा चौकन्ना नौजवान?

जैसे चन्द वक्फे पहले के मेरे एक सपने में सेंट जस्ट कह गए थे: हम बुर्जुआ और कुलीनों के सिर तक को अपना हथियार बना सकते हैं.
*
-    सृष्टि का एक सुन्दर हिस्सा तैयार होता है जबकि दूसरा उस वक्त अपना अंत देख रहा होता है, और हम सब को पता है कि हमें या तो जिंदा रहना है या फिर मर जाना है : इन दोनों से परे का तीसरा कोई विकल्प नहीं.
-
चिरिको[ii] कहता है : विचार के लिये जरूरी है कि वह प्रत्येक तर्क और तथाकथित ‘अच्छाई’ से दूर रहे, हर मानवीय मुसीबत से परे, कुछ इस तरह कि चीजें बिलकुल अलग ही प्रतीत हों, मानो किसी ज्योति पुंज से प्रकाशित हो वे पहली दफा दिख रही हों. परायथार्थवादी कहते हैं : हम अपने माथे को ‘मानव मात्र’ की अनंत मुश्किलों से लाद लेने वाले हैं, कुछ इस तरह, कि चीजें खुद में ही समाहित हो जाएँ, एक अनोखी दृष्टि.

-    चमचमाता खूबसूरत पक्षी.

-    परायथार्थतावादी, दुनिया के समक्ष देशज बनने का प्रस्ताव रखते हैं : जर्जर-कमजोर रेड इंडियन.
-    जोश की नई लहर, जो दक्षिणी अमेरिका में उभरने लगी है, खुद को इस कदर सबल करती, कि हम हैरत में पड़ जाने को मजबूर हों. किसी भी चीज में दाखिल होना, दरअसल एक जोखिम में दाखिल होना है : कविता एक यात्रा है और कवि नायकों का उद्घाटन करने वाला नायक. कोमलता जैसे तेज रफ्तार का अभ्यास हो. तेज तेज साँसें और गर्मी. बंदूक की गोली का अनुभव, संरचनाएँ जो खुद को ही खा जाएँ, उन्माद से भरे विरोध.
-
कवि यदि मध्यममार्गी होगा, तो पाठक को मध्यममार्ग ही चुनना होगा.
            “बिना वर्तनी वाली कामोत्तेजक किताब”
*
साठ के दसक के हजारों तितर बितर हो आए आंदोलनकारी, हमें पथ दिखाते हुए
99 खिले फूल, जैसे एक विदीर्ण मष्तक

नरसंहार का वाकया, ध्यान - साधना के नए शिविर

भूगर्भ में बहती सफेद नदियाँ, बैंजनी हवाएँ

ये कविता के लिए कठिन दौर है, किसी रोज, अपने अपार्टमेंट में संगीत सुनने के साथ चाय पीते, और अपने पुराने सूरमाओं से बात करते (उन्हें सुनते) हुए. हमारे मुताबिक, यह आदमी के लिए बुरा दौर है, सारे दिन आँसू गैस और पखाने से सने काम को पूरा कर वापस ठिकाने पर आते हुए, अपार्टमेंट के आशियानों तक में कोई नया संगीत खोजते / बनाते हुए, विस्तीर्ण शमशानों के ऊपर से दूर तक देखते हुए जहाँ एक प्याली की चाय बेसब्री से सुड़की जा रही हो, या फिर दिवंगत सूरमाओं के आक्रोश और फिर जड़ हो चले हालात के नाम पी जा रही हो शराब.
शून्य काल (Hora Zero) हमारे आगे चलता है.
(लंगूर को छेड़ो, तुम्हें नाखून नोच डालेंगे)
हम चौथे युग में जी रहे हैं. क्या सच में हम चौथे युग में हैं?
‘पेपितो टेकिला’ लीसा अंडरग्राउंड के धवल स्तनों को चूमती है और उसे समुद्र के किनारे आराम करता देखती है, जहाँ काले पिरामिड अँखुआ रहे हैं.
*
फिर से कहता हूँ मैं :
कवि, मानो नायकों का उद्घाटन करने वाला नायक, मानो जंगल के शुरुआत की सूचना देता एक ढहा लाल पेड़.
- सौन्दर्य के मामले में नैतिकता के धरातल पर की जाने वाली कोशिशें धोखे की भेंट चढ़ती हैं, अथवा बुरे हालात उनका साँसें लेना लगा रहता है.
- और एक आदमी ही है जो हजार किलोमीटर की यात्रा पैदल चलकर पूरी कर सकता है, लेकिन समय के विस्तार के साथ खुद रास्ता ही उसे खा जाएगा.
- हमारी नीति क्रांति है, हमारा सौंदर्य जीवन है : बस यही इकलौती चीज.
- बुर्जुआओं या छोटे पूँजीपतियों के जीवन उत्सवों से भरे गुजरते हैं. हर सप्ताहांत में एक. मजदूरों के हक में उत्सव नहीं, बल्कि संगीतमय मैय्यतें हैं. अब तब्दीली आएगी. शोषितों के महोत्सव मनेंगे. स्मृतियों और शूली, सब को महसूसते, एक रात दुहराते उन सभी के अभिनय, कोरें और नमी वाले किनारे खोज, मानो खार आँखों को सहलाना किसी टटके रसायन से.
*
दंगों से गुजरती कविता की यात्रा : कविताई से उपजते कवि से उपजती कविता से उपजती कविताई. कोई सँकरी, विद्युत की गली नहीं/ देह से अलग हाथों वाला कवि/ कविता धीरे धीरे उसे स्वप्नों से हटाती, क्रांति की ओर ले जाती हुई. सँकरी गली एक भ्रामक बिंदु. “हम उसके विरोधाभासों को खोज लाने के लिए अनुसंधान करने वाले हैं, इसके इनकार के अदृश्य तरीकों का भी, जब तक कि वे खुलकर जाहिर न हो जाएँ.” लेखक की लेखन यात्रा यदि क्षेत्रीयता के आधार पर हो तो असल में वह लेखन कर्म नहीं.

रिम्बाँ [iii], घर लौट आओ!

आधुनिक कविता के दैनन्दिन यथार्थ को नष्ट करते हुए. एकांतवास अथवा कैद कविता के सम्मुख घुमा फिरा कर एक ही जैसा यथार्थ रखते हैं. एक अच्छा उद्धरण : जुनूनी कर्ट स्विटर्स[iv]. ‘लेंक टर्र ग्ल, ओ, उपा कपा अर्ग’, जैसे वनैले स्वरों को अलग-अलग करते हुए ध्वनियों के टोही शोधकर्ता. नोबा एक्सप्रेस के पुल ऐसे वर्गीकरण के विपरीत हैं : उसे चीखने दो, चिल्लाने दो उसे (कलम, कागज तक न निकालो, रिकार्ड न करो उसकी आवाज, और अगर फिर भी उसके साथ हिस्सेदारी चाहते हो तो तुम भी चिल्लाओ), यूँ ही उसे चीखने दो, इस उत्सुकता के साथ, कि देखें चीख खतम करने पर उसका मुह कैसा बन जाता है, महसूसने को दूसरा और क्या मिलता है हमें.
परित्यक्त स्टेशनों के हमारे पुल. यथार्थ और अयथार्थ को जोड़ती कविता.
*
आश्चर्य के साथ
*
आज की दक्षिण अमेरिकी चित्रकारी से मैं क्या मांग सकता हूँ? क्या माँग सकता हूँ मैं रंगकर्म से?

एक उजड़ते हुए पार्क में ठहरना ज्यादा जरूरी और असरकारी है, क्योंकि वहाँ लोगों के (छोटे या बड़े होते) समूह धुंध को चीरते हुए पगडंडियों से गुजरते रहते हैं, जबकि इतनी सारी मोटरगाड़ियों वाले, पैदल-यात्रियों की ही तरह उनके ठिकानों तक पहुँच जाते हैं, और यही वो वक्त होता है जब कातिल सरेआम घूमते हैं और कत्ल किए जाने वाले उनका अनुसरण करते रहते हैं.

चित्रकार असल में मुझे कौन सा किस्सा सुना रहे होते हैं?

दिलचस्प आकाश, जड़े हुए रंग, आकार, या फिर हद से हद किसी आन्दोलन की नकल. कैनवास, जो सिर्फ उस डाक्टर या इंजीनीयर के कमरे में उजले चमकीले पोस्टर के रूप में काम आएंगे, जो उन्हें खरीदकर ले जाता है.

चित्रकार को उस समाज ने बेहद आरामतलब बना दिया है जो हर रोज, खुद भी, एक बेहतर चित्रकार है, और ठीक यही वो हालात, वो वक्त है, जब चित्रकार निहत्था और अधिक से अधिक एक मसखरा बन कर रह जाता है.

अगर किसी प्रदर्शनी में X का कोई चित्र, जिसके थोड़े हिस्से में कुछ रोचक सा तथा शेष थोड़े हिस्से में किसी ज्ञान सरीखी चीजें समाहित हो, मारा को भा जाता है; तो वह एक घर के बैठक में सजाकर रखा जाने वाला वैसा ही सामान है जैसे कि एक रईस के बगीचे में रखी लोहे की आरामकुर्सी / आँख की रेटिना एक लिए एक सवाल? / हाँ और नहीं/ असली विस्फोटक को खोज (या फिर तैयार कर) लेना बेहतर होगा, वर्ग–चेतस, काम भर के लिए सौ फीसद चौकन्ना, काम की कीमत भर से जुड़ाव, जिससे कि हर चीज संचरित होती है.

-    चित्रकार अपनी चित्रशाला को काम की आधी अधूरी अवस्था में बंद कर देता है, और किसी हैरतंगेज चीज के बारे में सोचने लगता है/ अथवा ‘दुचांप’[v] की तरह शतरंज खेलने चला जाता है/ चित्र, जिसे देखकर सबसे ज्यादा यह बात पता चलती है कि उसी चित्र को फिर से कैसे बनाया जाए/ और गरीबी का एक चित्र, इतना सस्ता, कि लगभग मुफ्त, अधूरा, हिस्सेदारी वाला, हिस्सेदारी में सवालों से भरा, आत्मा और देह के अनंत विस्तार वाला.
लैटिन अमेरिका का सर्वोत्तम चित्र वो है जो अवचेतन के धरातल तक चला जाए, खेल, उत्सव, या फिर ऐसा प्रयोग जो हमें वास्तविकता को परखने वाली वो दृष्टि दे दे, जो हमें समझा सके कि ‘हम क्या हैं और क्या क्या कर सकते हैं’, लैटिन अमेरिका का सर्वोत्तम चित्र वो है जिसे हम हरे, लाल और नीले रंगों से अपने चेहरों पर उकेर लें, ताकि हम खुद की पहचान भी आदिम लोगों की क्रमिक निरंतरता में कर सकें.
*
हर चीज को हर रोज छोड़ते चलो.

वास्तुकार, अपने निर्माण के काम जस के तस छोड़ दें और हाथ हवा में लहरा दें (अथवा मौका-ए-वारदात के मद्देनजर मुट्ठियाँ ही बाँध लें). एक दीवार और एक छत का सही इस्तेमाल तब नहीं होता जब वे सोने और बारिशों से बचाने भर के काम आएँ, बल्कि तब होता है जब उनसे कोई नई शुरुआत जन्म ले, गोया हर रोज के सोने की गतिविधि के दौरान इंसान और उसकी संरचानाओं के बीच एक सेतु बने, अथवा उनकी क्षणिक असंभवता.

वास्तु और मूर्ति कलाओं के मामले में परायथार्थवादी केवल दो बिंदुओं से शुरू होते हैं: सुरक्षा के लिए दीवार, और बिस्तर.
*
असली कल्पना वो है जो विस्फोटक हो, बातों को स्पष्ट करे, दूसरी कल्पनाओं में माणिक्यों सा चकमक तेज भरे. कविता में, और चाहे जहाँ कहीं भी, किसी भी चीज में दाखिल होना, एक तरह का जोखिम उठाना ही हो. हर रोज किए जाने वाले विध्वंश के हथियार तैयार करना. आदमी होने की, दिल से जुड़ी ऋतुएँ, अपने विशालकाय खूबसूरत और निर्लज्ज पेड़ों के साथ, अंवेषण करने को बनी प्रयोगशालाओं की भाँति. समानांतर स्थितियों को चीन्हना, और कुछ उतने ही खौफनाक तरीके से स्थापित करना जैसे सीने और चेहरे पर खिंचती कोई भीषण खरोंच. चेहरे की कभी न खत्म होने वाली उपमा. नवागंतुकों की तादाद इतनी है, कि सामने आने के बावजूद हम उन्हें गिनते तक नही, हालाँकि एक आईने में देखते हुए, हम ही उन्हें तैयार कर रहे हैं. तूफान की रात. बोध की शुरुआत एक नैतिक-सौंदर्य के द्वारा होती है जो आखिर तक ले जाई गई हो.
*
प्यार की आकाशगंगाएँ हमारी हथेलियों में झलक रही हैं.

-    कवियों, अपनी जुल्फें झुका लो (अगर हैं)

-    सारे कूड़े जला डालो और तब तक प्यार करो जब तक कि अनमोल कविताएँ न उतरने लगें.
-    हमें बनावटी चित्र भर नहीं, बल्कि खुद के बनाए अनगिन सूर्यास्त चाहिए.

-    500 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ते घोड़े.
-    आग के पेड़ों पर फुदकती आग की गिलहरियाँ.
-    नसों और नींद की गोली के बीच एक शर्त, कि किसकी पलकें पहले झपकेंगीं.
*
हर दफा, जोखिम कहीं और ही है. सच्चा कवि वह है जो हमेशा ही खुद को स्वच्छंद छोड़े रहे. ज्यादा देर एक जगह न ठहरे, गुरिल्ला की तरह, उड़ने वाली अपरिभाषित चीजों की तरह, अनवरत बेड़ियों में जकड़े कैदी की उदास आँखों की तरह.

दो तटों का विद्रोह और उनका मिलन; एक साहसी भित्ति चित्र जैसी रचना, जिसे एक जुनूनी बच्चा खोल रहा हो.

यांत्रिक कुछ भी नहीं. अचम्भे का सुर. हिरेनिमस बोश सा कोई, प्यार के एक्वैरियम को तोड़ता हुआ. मुक्त धन. दुलारी बहन. मुर्दों सरीखी कामुक निगाहें. दिसंबर में, चुंबनो से मांस काट लेने वाले बच्चे.
*
भोर के दो बजे मारा के घर से हो आने के बाद, हम (मारियो सांतियागो तथा कुछ और साथियों) ने एक नौ मंजिले अपार्टमेंट की सबसे ऊपरी मंजिल से आ रहीं हँसने की आवाजें सुनीं. हँसी रुकी नहीं, वे हँसते और हँसते ही गए, जब तक कि हम नीचे की तरफ बने फोन बूथ्स के सहारे लेकर सो न गए. तब तक के लिए इतना काफी था, जब सिर्फ मारिओ ही हँसी की तरफ ध्यान लगाए हुए था (अपार्टमेंट की वह मंजिल दरअसल समलैंगिकों का एक बार या फिर ऐसा ही कुछ था, और दारियो गालिसिया ने हमें बता रखा था कि पुलिस काफी चौकस है). हमने फोन के सहारे काल किए, लेकिन सिक्के जैसे पानी के बने थे. हँसना जारी रहा. जब हमने वो इलाका छोड़ दिया तब मारियो ने कहा कि असल में वहाँ कोई नहीं हँस रहा था, और उस सबसे ऊपरी मंजिल पर शायद कोई समलैंगिक जोड़ा खुद के हँसने की रिकार्डिंग सुन, और हमें सुना रहा था.


-    हंस का मर जाना, हंस का आखिरी गीत, काले हंस का आखिरी गीत ‘बोल्शोई’[vi] में नहीं हैं, बल्कि गलियों की खूबसूरती और उनकी वेदनाओं में हैं.
-    एक इंद्रधनुष जो वीभत्स मौत वाले एक सिनेमा से शुरू होता है और किसी कारखाने की हड़ताल पर खत्म.
-    कि विस्मृति हमारे होठों को नही चूमती. कि वो हमे कभी नहीं चूमती.
-    हमने यूटोपिया के सपने देखे, और हम उठे तो चिल्लाते हुए.
-    एक बेचारा अकेला चरवाहा जो घर लौटता है, और जो कि एक हैरत की सी बात है.
-*
-नई हलचलें जगाते हुए, हर रोज थोड़ा थोड़ा ध्वंश करते हुए.

हाँ तो,
फिर से सबकुछ छोड़ दो

उतर आओ सड़कों पर...

रोबेर्तो बोलान्यो, 1976, मैक्सिको


[i] शराब के एक प्रकार ‘टेकिला’ का एक ब्रांड।
[ii] इटली का अतियथार्थवादी चित्रकार।
[iii] आर्थर रिंबाँ : उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में हुए, फ्रांस के क्रांतिकारी कवि।
[iv] जर्मनी का अतियथार्थवादी चित्रकार
[v] फ्रेंच कलाकार, जिसे शतरंज का खेल खूब भाता था
[vi] रूस की एक थिएटर कंपनी.


अनुवादक श्रीकांत से सम्पर्क : writershrikant@gmail.com तथा 09818152475.