पिछले वर्ष सितम्बर के शुरुआती दिनों में ' रिवॉल्वर ' प्रकाशित हुई थी. तब से अब तक काफी कुछ बदल गया है. तबादले की वजह से बंगलुरु आ गया. नई जगह और नया काम था, जिसे करने / सीखने में महीनों लग गए. पर यह कहानी तब से लिख रहा था जब नया नया चन्डीगढ़ गया था. फिर तय हुआ कि रिहाईश करनाल रहेगी. उन्हीं दिनों इस कहानी ने मन में आकार लेना शुरु किया था. दो ढाई साल बीते और पूरी भी तब हुई, जब हरियाणा / पंजाब छूट गया.
कहानी का शीर्षक है : जमीन अपनी तो थी . यह शीर्षक, प्रसिद्ध उपन्यासकार जगदीश चन्द्र के उपन्यास से लिया है. ( उस उपन्यास का 'टाईटिल' से हू ब हू लिया है ). वजह दो है : पहली यह कि इससे मौजूँ कोई शीर्षक इस कहानी का सूझ नहीं रह था, दूसरे, इसी माध्यम से मैं जगदीशचन्द्र जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ. जगदीश जी मूलत: पंजाब के रहने वाले थे और हिन्दी में खूब लिखा.
मेरी इस कथा ले लिए यहाँ क्लिक करें. हम अनुराग वत्स के आभारी हैं कि उन्होने इस कथा को सबद पर प्रकाशित किया.