Tuesday, August 23, 2011

अपनी नई कहानी : जमीन अपनी तो थी

पिछले वर्ष सितम्बर के शुरुआती दिनों में ' रिवॉल्वर ' प्रकाशित हुई थी. तब से अब तक काफी कुछ बदल गया है. तबादले की वजह से बंगलुरु आ गया. नई जगह और नया काम था, जिसे करने / सीखने में महीनों लग गए. पर यह कहानी तब से लिख रहा था जब नया नया चन्डीगढ़ गया था. फिर तय हुआ कि रिहाईश करनाल रहेगी. उन्हीं दिनों इस कहानी ने मन में आकार लेना शुरु किया था. दो ढाई साल बीते और पूरी भी तब हुई, जब हरियाणा / पंजाब छूट गया.

कहानी का शीर्षक है : जमीन अपनी तो थी . यह शीर्षक, प्रसिद्ध उपन्यासकार जगदीश चन्द्र के उपन्यास से लिया है. ( उस उपन्यास का 'टाईटिल' से हू ब हू लिया है ). वजह दो है : पहली यह कि इससे मौजूँ कोई शीर्षक इस कहानी का सूझ नहीं रह था, दूसरे, इसी माध्यम से मैं जगदीशचन्द्र जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ. जगदीश जी मूलत: पंजाब के रहने वाले थे और हिन्दी में खूब लिखा. 

मेरी इस कथा ले लिए यहाँ क्लिक करें. हम अनुराग वत्स के आभारी हैं कि उन्होने इस कथा को सबद पर प्रकाशित किया. 




3 comments:

Anonymous said...

zamin apni to thee- ek behtreen kahani hai. chandan yahee hai ,ek ek detail se apko badhane me safal. poori kahani me ap katha ke sath sath chalte hai.yeh az kee saoch per ek sateek tippari hai. badhayee chandan ko.

narendra pratap said...

zamin apni to thee- ek behtareen kahani hai.chandan yahi hain,ek ek detail se apko bandhane me safal. poori kahani me ap katha ke sath sath chalte hain. yeh az kee saoch per ek sateek tippari hai. badhayee chandan ko. narendra pratap singh(up)

आशुतोष पार्थेश्वर said...

बात कहाँ से शुरू करूँ, ऐसा क्यों है कि एक तीखी तड़प और मृत्यु; बल्कि कहें कि हत्या; आपकी कहानियों में अनिवार्यतः आ रही है...... जो घट रहा है,उससे तटस्थ नहीं रहा जा सकता, और यह भी सच है कि इस समय का चेहरा कम भयावह और क्रूर नहीं है,पर अपने इस दिलपसंद किस्सागो से इतनी तो ख़्वाहिश रख ही सकते हैं, चुभन तनिक कम कर दे, थोड़ा आसान कर दे, नहीं तो उसकी कहानियाँ अपने साथ ले चलते हुए,हमारी सांस कब्जे में कर लेती हैं । चन्दन अपनी पहली कहानी से डिटेल्स के माहिर हैं, इन डिटेल्स में वे हमारे समय की बेचैनी पिरो देते हैं, गहन धीरज और समझ से भरी रचनात्मकता ! चन्दन बधाई के पात्र हैं ! पर, फिर कहूँगा, भाई अपनी कहानियों से इतना कहो कि कुछ सांस लेने की इजाजत दे दिया करे !