Wednesday, May 5, 2010

निरूपमा की ह्त्या और महान परिवार की भारतीय परिकल्पना

जीवन में बहुत कम ऐसे मौके आये जब अपने निर्बल और नाकारे होने पर बेहद अफसोस हुआ, उन्ही गिने मौकों में से एक महान भारतीय परिवार द्वारा निरूपमा की हत्या भी है. जबकि निरूपमा से मेरा कोई परिचय नहीं रहा पर जब से यह खबर सुनी तब से किसी भी साथी से बातचीत करने में डर लग रहा है, क्योंकि सभी जेनुइन दोस्तों में इस धतकर्म की उदास चर्चा और कुछ न कर पाने का घायल दुःख है. टी.वी पर इस खबर को देखा नहीं जाता. अखबार अच्छे है जो कि स्थानीय विज्ञापनों की गंदी लालच के चलते इस खबर को एक ख़याल भर जगह भी नहीं दे रहे हैं.
सच यह है कि इस लोमहर्षक हत्याकांड का जिक्र छिड़ते ही मन में अजीब सी हूक उठ रही है. अगर तकनीकी तौर पर भी यह सच है कि निरूपमा ने आत्महत्या की तब भी आप और हम ही नहीं, सभी जानते है कि यह आत्मह्त्या नहीं है. आत्मह्त्या के लिए (अनुकूल) माहौल बनाना भी उतना ही बड़ा अपराध है. इस मुद्दे पर लिखना भी अपराधबोध से ग्रसित कर रहा है, वैसे ही जैसे किसी कसाई को अचानक अपने दायित्व से घृणा होने लगे, जैसे किसी सरकारी नौकर को रिश्वत लेने का अपराधबोध हो. पर कुछ निहायत ही गिरे हुए तर्क हैं जो तथाकथित बुद्धिमानो के कूड़ेदान( मतलब मस्तिष्क) से उठ कर इस घिनोने अपराध में शामिल क्रूर माँ-बाप, परिवार को सही और "बेचारा" ठहराने की गलीज कोशिश कर रहे हैं.

सबसे पहला सवाल कि उनकी इज्जत का सवाल था! वाह से इज्जत! इस परिवार को, मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, जानने वाले हद से हद सौ लोग होंगे. परिचित मात्र. सगे संबंधियों की बात करे तो पचास की संख्या भी बहुत होगी. तो ये पचास लोग,अपने जीवन से फुर्सत पाकर, इनकी महान इज्जत पर हँसे ना, इसलिए निरूपमा की ह्त्या कर दी गई/करा दी गई/आत्महत्या की शक्ल दी गई..जो भी कह ले. अगर इन्हें इज्जत आबरू की सच्छे फ़िक्र होती तो ये पाठक महोदय परिश्रम करते और अपने ही बैंक की किसी बड़ी प्रतिष्ठा का हकदार हुआ होता.

एक बार कथाक्रम के मंच से मैंने साठ और सत्तर के दशक में पली बड़ी पीढी की कुछ बेहद संगीन गलतियों की तरफ इशारा भर किया था तो वहा मौजूद बड़े-बड़ो ने मेरा खिलाफ झौं-झौं कर युवाओं के प्रति अपने गहरे(पढ़े - गंदे) सरोकार जताए थे. मेरा पूरा यकीन है कि अपनी कुछेक अच्छाइयो के साथ इस ख़ास पीढी ने सरकारी, धार्मिक और नैतिक तंत्र को निचोड़ने के सारे गलत-सही तरीके इस्तेमाल किये. यह मैं ही नहीं कहा रहा, आप चाहे तो भ्रष्टाचार को लेकर हुए कुछ भरोसेमंद सर्वेक्षणों की आसान मदद ले सकते हैं. और यह मैं पूरे विश्व की बात कर रहा हूँ. इस हत्याकांड में लिप्त परिवार, बेहद अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है, उसी पीढी से सम्बन्ध रखता है.

निरूपमा के पिता का पत्र उसके कुतर्की होने का गवाह है और इस बात का गवाह भी कैसे युवा पीढी का बड़ा परजीवी वर्ग भी उस घटिया पत्र को 'बेचारे' पिता की 'मजबूरी' मानता है. युवा पीढी का यह ख़ास परजीवी वर्ग आसान तरीको की नौकरिया करता है या बिना मेहनत के ही जीवन काटना चाहता है और इसके लिए धोखे इत्यादि देना ही अपने परम कर्तव्य समझता है. झूठ इसका सगा है. ऐसे लोग पूछ रहे है/या धमकी दे रहे हैं- कि तुम्हारी बेटी होती तो क्या करते?

कितने गिरे हुए है ये लोग और कैसे मुझसे अब तक जुड़े रहे है,यह मेरी कायर समझ के बाहर है. काश कि निरूपमा मेरी बेटी होती, जिसने पत्रकारिता को अपना कर्मक्षेत्र बनाया, और जिसमे यह साहस और विवेक था कि अपना जीवन साथी खुद चुन सके, वैसी बेटी को मैं, बतौर पिता सलाम करता, और खुद उसकी शादी के इंतजाम करता, उसकी खुशियों में शरीक होता. मिलने जुलने वालो को अपनी बेटी से सीखने को कहता- कहता कि सीखो, निरूपमा से, रिश्ते कैसे निभाये जाते है और जिन्हें हम प्यार करते हैं उनके किये लड़ना भी मेरी निरूपमा से सीखो. उन लड़कियों के सामने अपनी इस महान बेटी की नजीर रखता, जो प्रेम के लिए अमीर और शादी के लिए बहुत अमीर लडको की ताक में झपट्टा मारने को तैयार रहती हैं.

शरीर की असंतुष्ट कामनाओं के बीमार ये हमलावर इस प्रश्न को सबसे आखिर में जैविक हथियार की तरह छोड़ रहे हैं कि निरूपमा को प्रेग्नेंट नहीं होना चाहिए था. मेरी परिपक्व राय यह है कि एक बाईस-तेईस वर्षीय सुशिक्षित, कर्मनिष्ट युवती को इस बात का पूरा पूरा अधिकार होना चाहिए कि उसे क्या करना है? इस बात की तस्दीक अभी कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी की है. फिर भी अगर इन तमाम मेढ़को(कुएं के मेढ़को) की तरह इस बात को तवज्जो भी दे कि उसे प्रेग्नेंट नहीं होना चाहिए था तो मैं पलट के पूछता हूँ कि क्या प्रेग्नेंट होने की सजा मौत है? अगर उसके झूठे माँ बाप( माँ की झूठी बीमारी का हवाला देकर धोखे से उसे घर बुलाया गया था) अपनी इज्जत का इतना ही ख़याल कर रहे थे तो उन्हें उसे अपनी सम्पति से बेदखल कर देना था या कोई दूसरी सजा. पर यह भी क्यों?

मुझे डर है कि कोडरमा के पुलिस वाले भी कही माँ बाप को बेचारे ना समझ ले और जांच तोड़ मरोड़ दे जैसा कि आरुशी हत्याकांड में हुआ. बिना बात की शोर मचाती राजनितिक पार्टियों का तर्क समझ में आता है-अन्धकार युग में फंसे ब्राह्मणों वाला वोट बैंक खतरे में पड़ जाएगा. मीडिया से उम्मीद है कि जेसिका लाल हत्या काण्ड की तरह इस मामले को भी वो दबाने ना देंगे. सबसे ज्यादा उम्मीद प्रिय्भान्शु से है. इस केस में किसी एक को खडा होना ही पडेगा, जैसे हरियाणा के मनोज- बबली ह्त्या काण्ड में मनुज की माँ ने निहत्थी पर डट कर लड़ाई लड़ी. उन कातिलो को सजा दिलाना प्रियाभान्शु की नैतिक जिम्मेदारी है.

प्रियाभान्शु को एक सलाह भी कि हम जैसे कितने ही लोग हैं जो उसके लिए हर वक्त तैयार रहेंगे. इस केस में लड़ने के लिए तुम्हे अगर किसी भी आर्थिक सहयोग जैसे, वकील या रिश्वत की आवश्यकता हो तो तुम अकेले नहीं हो. मैं हूँ, मेरे साथ मेरे कई दोस्त है जो बड़ी से बड़ी रकम जुटाने में तुम्हारी मदद करेंगे. You only have to give me call on 09996027953.

मैंने एक वीडियो देखा जिसमे प्रेमी प्रेमिका छुट्टी मनाने किसी नदी किनारे गए है और वहाँ अचानक प्रेमिका को मगरमच्छ पकड़ लेता है. घड़ियाल की पकड़ से किसी को छुडाना आसान नहीं है पर उसकी कोशिश करना हमारा एकमात्र कर्तव्य होना चाहिए. पर जानते हो प्रियाभान्शु उस प्रेमी ने किया? उसने प्रेमिका को बचाने के बजाय अपना वीडियो कैमरा निकाला और उस पूरी घटना को शूट कर लिया. अपनी मरती हुई प्रेमिका को उसने बचाने के बजाय शूट करना उसने ज्यादा उचित समझा क्योंकि उसे इसके काफी पैसे मिले.

तुम ऐसा नहीं करोगे.

मैं भी उस व्यथा को दर्ज करने की कोशिश कर रहा हूँ, जब निरूपमा को पता चला होगा कि उसे झूठ के सहारे बुलाया गया है, जब उसने अपने इज्जतदार भाई के दोस्तों को अपने आस पास पहरेदारी करते देखा होगा, अपने माँ बाप को अपने खिलाफ पाया होगा, और उस आशंका भरे जीवन के हिस्से को भी दर्ज करने की कोशिश कर रहा हूँ जब उस असहाय को शक हुआ होगा कि क्या पता उसके घरवाले, नातेदार उसकी ह्त्या ना कर दें?

33 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सत्य वचन।

शिरीष कुमार मौर्य said...

शर्म हमको मगर नहीं आती में जीता हमारा ये समाज तब ऐसे ही जियेगा ...सब कुछ सड़ रहा है भीतर...

Unknown said...

I am from same place,Kodarma. But now I shame on of being from kodarma.
How one's parents can do like this?

varsha said...

उस आशंका भरे जीवन के हिस्से को भी दर्ज करने की कोशिश कर रहा हूँ जब उस असहाय को शक हुआ होगा कि क्या पता उसके घरवाले, नातेदार उसकी ह्त्या ना कर दें?
wakayee aisa bhi kya ho jata hai ki god mein sulayee beti ke liye vahin par kante bicha diye jaate hain?

shesnath pandey said...

इस हृदय विदारक घटना को पढ़ने के बाद अभी तो सिर्फ हम यहीं कह सकते है कि हम भी चंदन के साथ है....और चंदन की तरह हम भी प्रियभांशु से आगे आने की और जीत तक लड़ने की गुजारिश करेंगे...
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस घटना को चंदने जिस तरह से हमारे सामने रखा है...उससे नामवर सिंह कि वह टिप्प्णी याद आती है जिसमें उसने कहा था...कि बलॉग लोकतंत्र का पाँचवा स्त्म्भ है....चंदन ने न इसमें सिर्फ घटना का जिक्र किया है...उसके कई सेड को सूक्षमता से रेखांकित किया है...आखिर में अपना फोन नम्बर देकर...और अपने को बाप मानकर.... अभी लिखा नहीं पा रहा हूँ....अभी बस यही कि चंदन अपने इस तेवर के साथ पत्रकारिता की एक नई तमीज दे रहे है....

Manas Jha said...

I am surprised by the growing number of such incidents happening in our society...i find no difference between this act and the khaap panchayats taking the law in their own handsin haryana..its high time something is done and such monsters are brought to justice !!

Anonymous said...

ek aisi ghatna par tippni karne me bhi is baat ka dar bana rahta hai ki ek samvedanshil aah kahin mudda aur charcha tak simatkar na rah jaye. yah bat ab sirf kodarma ki nahin ahi. vichar karne par ham sab apne aas paas ek khaap panchayat ko pate hain... kabhi pita, kabhi pati kabhi pariwar ya pados ya koi aur. hamen iska mukabla karna hi hoga...

Hindi Cinema said...

Is ladaai me ham sab aapake saath hain.

addictionofcinema said...

मैं जहाँ तक तुम्हारे आस पास के मित्रों के ऐसे कमेन्ट के बारे में समझ प् रहा हूँ ,बात सिर्फ इतनी है की साठ की पीढ़ी का कचरा इनके उपर इस कदर गिरा हुआ है और ये इस कदर उसमे पांव तक डूबे हुए हैं की उससे ये कभी बाहर नहीं निकल सकते. जो आज तक इस कचरे को नहीं समझ पाए उनसे इस बात की उम्मीद नहीं की जा सकती चन्दन की वो हैवानियत की परतों को समझ पाएंगे. निरुपमा की हत्या हैवानियत है और उस पर ये स्टैंड भी वैसी ही हैवानियत है. कौन सी इज्ज़त और कौन सा सम्मान, ये हम सब जानते हैं. ये सम्मान कितना खोखला है ये कहने की ज़रूरत नहीं है. समस्या तो ये है की हमारे आस पास हमारे मित्रों के रूप में कितने ही लोग हैं जो बातें तो बड़ी बड़ी करते हैं लेकिन वाकई अगर समय आये तो वो भी निरुप्माओं और मनोज बबलियों की हत्याएं करने में रत्ती भर नहीं हिचकिचाएंगे. मैं सचमुच इस तरह की हत्याओं पे उतना ही दुखी होता हूँ जितना अपने आस पास के लोगों के ऐसे विचारों से शर्मिंदा. शर्मिंदा इसलिए की मैं पाता हूँ की मैं उन्हें अपना दोस्त मानता था. ऐसा होता है चन्दन, लोग भी धीरे धीरे परतें खोलते हैं....खास तौर पे हमारे आस पास के क्योंकि हम इन्हें अपने जैसा मानते होते हैं, हमें ज्यादा चोट लगती है. तुम्हारा पोस्ट इस घिनौने कांड के साठ साठ ऐसे स्टैंड पर भी विचार करने की मांग करता है.
मुझे लगता है की जितने भी लोग हैं जिनके सीने में बायीं तरफ कुछ हलचल होती है, वो सभी प्रियाभान्शु के साथ हैं और निरुपमा के कातिल को अंतिम अंजाम तक जाते देखना चाहते हैं.

विमल चन्द्र पाण्डेय

addictionofcinema said...

मैं जहाँ तक तुम्हारे आस पास के मित्रों के ऐसे कमेन्ट के बारे में समझ प् रहा हूँ ,बात सिर्फ इतनी है की साठ की पीढ़ी का कचरा इनके उपर इस कदर गिरा हुआ है और ये इस कदर उसमे पांव तक डूबे हुए हैं की उससे ये कभी बाहर नहीं निकल सकते. जो आज तक इस कचरे को नहीं समझ पाए उनसे इस बात की उम्मीद नहीं की जा सकती चन्दन की वो हैवानियत की परतों को समझ पाएंगे. निरुपमा की हत्या हैवानियत है और उस पर ये स्टैंड भी वैसी ही हैवानियत है. कौन सी इज्ज़त और कौन सा सम्मान, ये हम सब जानते हैं. ये सम्मान कितना खोखला है ये कहने की ज़रूरत नहीं है. समस्या तो ये है की हमारे आस पास हमारे मित्रों के रूप में कितने ही लोग हैं जो बातें तो बड़ी बड़ी करते हैं लेकिन वाकई अगर समय आये तो वो भी निरुप्माओं और मनोज बबलियों की हत्याएं करने में रत्ती भर नहीं हिचकिचाएंगे. मैं सचमुच इस तरह की हत्याओं पे उतना ही दुखी होता हूँ जितना अपने आस पास के लोगों के ऐसे विचारों से शर्मिंदा. शर्मिंदा इसलिए की मैं पाता हूँ की मैं उन्हें अपना दोस्त मानता था. ऐसा होता है चन्दन, लोग भी धीरे धीरे परतें खोलते हैं....खास तौर पे हमारे आस पास के क्योंकि हम इन्हें अपने जैसा मानते होते हैं, हमें ज्यादा चोट लगती है. तुम्हारा पोस्ट इस घिनौने कांड के साठ साठ ऐसे स्टैंड पर भी विचार करने की मांग करता है.
मुझे लगता है की जितने भी लोग हैं जिनके सीने में बायीं तरफ कुछ हलचल होती है, वो सभी प्रियाभान्शु के साथ हैं और निरुपमा के कातिल को अंतिम अंजाम तक जाते देखना चाहते हैं.

विमल चन्द्र पाण्डेय

Anonymous said...

Chandan ji, Pl if possible, contact to priybhanshu. All good Indians need to help him for moral and economical suport.I am also feeling the same that how it would have been happened? How cruel our society is being?

shailesh Singh,
lucknow.

pallavi trivedi said...

itni paripakv raay rakhne ke liye ek paripakv mastishk hona zaruri hai!

Bodhisatva said...

jab apni umar ke log Jati ke mudde par sadi hui daleel dete hai to baut nirasha hoti hai...kabr me pair latkaye logo se to kya asha ki jayegi ab....kal IBN7 par ek sawal poocha gaya..kya hum me se maximum log shadi ke liye matrimonial dekhte samay humesha caste prefer karte hai?...jawab mushkil hai...kyoki ye sabko apraadhi banata hai..aur hum sab hai bhi....literacy ka wardaan hai ki aaj hum me se kuch dekh sakte hai in sabhi bediyo ko...after all the frustation achanak ye khayal aata hai ki kyo na ek jaise sochne wale hum sab counter attack kare bina intzar kiye kisi murder ka...sare roots katne honge..aur shuraat apne ghar se shuru karni hogi....i still doubt ki kitne logo me ye himmat hai..jo yaha hai..aur jo yaha nahi hai wo bhi !

लाल्टू said...

प्रिय चंदन,
भरोसा हुआ कि यह मुल्क अभी ज़िंदा है।
इस प्रसंग में कहीं भी मैं कुछ कर सकूँ तो साथ ले लेना.
उठो दोस्तो, उठो - इस समाज को इस अंधकार से दूर करें।

rashmi ravija said...

कई पोस्ट पढ़े इस विषय पर और सच कहूँ तो कई लोगों के चेहरे से पर्दा हट गया और जो भयावह तस्वीर नज़र आई ,उस से तो लगता है हमारे देश की लड़कियों को अपना निर्णय खुद लेने का अधिकार प्राप्त करने में शायद सदी लग जाए. सबसे दुख हुआ यहाँ के नवयुवकों के विचार पढ़ कर, कैसे कह सकते हैं वे 'अपनी बेटी का गला घोंटते समय उस माँ के ह्रदय से उठी चीत्कार लोगों को सुनायी नहीं देती?" अगर सचमुच उसकी माँ शामिल थी तो उनका कोई ह्रदय भी है,'अपनी बेटी के लिए?'चीत्कार कहाँ से उठेगी?'
बहुत बहुत दुख होता है...लोगों के ऐसे विचार पढ़कर. कहीं टिप्पणी देने का मन नहीं हुआ,बस चोखेर बाली पर ये असहमति जताने से नहीं रोक पायी कि लड़कियों को अपने शरीर का पूरा सम्मान करना चाहिए पर अगर कभी ऐसा कुछ हो जाता है तो उसका हल सिर्फ हत्या या आत्महत्या नहीं.
इस आलेख के एक एक शब्द से सहमति है और इस पोस्ट के स्वर में जो दर्द है, महसूस किया है,हमने भी इसीलिए यहाँ मन हो आया कुछ लिखने का.

prabhat ranjan said...

bahut achha likha hai aapne. yeh hamare samaj ki kroor sachai hai jo globalisation ke halle ke bawjood maujood hai.

मसिजीवी said...

वाकई कम से कम अब तक तो ब्‍लॉगजगत के 'संस्‍कृति सिपाहियों' की राय पढ़कर बेहद शर्मिंदगी ही महसूस हो रही थी... उम्‍मीद है विवेक स्‍थापित होगा।

shikha varshney said...

लड़कियों को अपनी जिन्दगी अपनी तरह से भी जीने का हक़ नहीं ...क्या कहूँ ....अब तो ऐसे वाकयो पर शर्म भी नहीं आती..आपकी बातों से १०१% सहमत हूँ.

main akanksha said...

it is very tough to recieve even this information that a member of journalistic society which is known to raise the issue related to the victim of feudal mentality, has become the victims of the same.

kundan pandey said...

what to say...now what would be going in the mind of her mother..i think now she would be feeling proud in the jail that her izzat has been saved

स्वप्नदर्शी said...

I have all my sympathy for Nirupma and I am angry about those values and social system which is responsible for this incident.

However, I have no sympathy for Mr. Priybhanshu, he has not done anything to deserve that. I am also suspicious of his role. I do not know if he was ready to marry or if his family has accepted their relationship. If everything was clear from Priybhanshu side it was more appropriate to send members of his family to talk to Nirupma's family. Or if his family was opposing then he should have accompanied the girl and they should have faced the situation together.

It is quite possible that Priybhanshu and his parents have accepted the girl but they still wanted the traditional marriage and were forcing girl to get consent from her parents so that their share of dowry remains uncompromised.
So Nirupama was possible pushed from both ends.

Aparna Mishra said...

I appreciate Chandan that you took a step towards a big CHANGE we need in our society.... But I doubt who so ever is writing big things here are very strong in their personal (love) life.... How many of us are really ready to go ahead with the one we love without a second thought????

how many of us doesn't look for a Cast, while searching a life partner for us????

It is one of the many cases, which was not expected to be known to us if Nirupama wasn't been in Media....

Government (our constitution), At the age of 18 give us right to Vote & elect a Leader for the Country but our social system, even after achieving the age of 21 doesn't give us a right to choose a life partner..... Many people who try to change the social bond, suffer with this kind of result......

We truly need a "change of base root to make a healthy & flourished tree"....

We should start with our home first to change such minds, who are acting like a DIMAAK for the nation's Social growth...........

Anyways....... We all are in your Priybhanshu, at least Morally.....

Aparna Mishra said...

Anyways...........we all are in your SUPPORT Priybhanshu, at least morally

Bodhisatva said...

Thanks Aparna! This is what I also want to know that how many rebels can actually start it with their own life & family. My experience says that 80% people who talk against caste system end up flowing into their so-called family culture...and they name it the love & concern for their parents & family. No doubt here in the list of comments there may be people of the same kind. It takes an open mind to see the reality and courage to fight....dating a girl is very easy everybody does..but how many go to the next level? It seems we need a dictatorship for few years where even a thought of discrimination will be punished.
On the top of all this it is shocking that few people are trying to support this crime on their blogs.....they are the real culprits....i wish for their Public Humiliation...let's not leave it like any other Breaking news!

Aparna Mishra said...

Right Bodhisatva...... I agree

Change should begin from Us....

Dhiresh said...

abhi kuchh der pahle kisi jha ka Haribhoomo men lekh padha jo is hatya ko agar-magar ke saath jayaj thahra raha tha. apne kaii `brahman` aur khaastar `jhaa` doston se baaten karte dar lag raha tha ki wo bhi vahii beemar yuva na nikalen. kathit `bahumat` ke beech kafi kaam ki jarurat hai. Jo kutark yahan `izzat` walon ki gandi duniya ne diye hain, vahee khaap-panchayton ke hain. Chandan Bhaii, is baare men jald hi kuchh post karunga.

kundan pandey said...

bodhisatva is right because something special is needed to change the mind setup of youth...it is worth noticing that evey youth supports weaker section while watching movie but when turns of taking action comes in their lives they just denied with various excuses.

what i am thinking now a day that if few people are working in the interest of public but a big and powerful group of people are also working to save thier interest. they are very sharp and smart so if we people are really eager to do even a little change in the society there is need to change our language and bocome moore harsh referring to language and attitude.
there is a need of a dictator who could become inhuman in this context and punish them who are following dual standars, especially on the name of welfare of cast and creed and also society and country, should be punished severly. and i think this could be done only by a dictator.

kundan pandey said...

one thing i would also like to add here that a lot of exclusive are waiting to come on surface from journalistic zone of the country..this death might be a start..i could say from my personal experience that this fourth pillar of the country is really being rotten..more than 95 per cent members of the field are crying on their condition....

Anonymous said...

it seems that Nirupama's murder has inspired crimes more than punishment. There is a series of killing like this everyday...and the killers are proud of the act. If Democracy & liberty means such an impotent Social Control & currpt administration then better we have true Communist Government...Bhagat Singh predicted a stinking society like this and its the same we have now....i feel its my own body which is converting into an ugly shape when i see people around me....if this is our culture then SHAME ON IT !!
- BODHISATVA

Anonymous said...

The case might have shaken the media, but the reality is that media's role is only confined to informing people and presenting thier view (that too only in a graceful manner. People might have different opinion. No body has the right to abuse others if they have different view. We should be a little graceful in our discussion.

Anonymous said...

(On being Graceful)
Having different views should be confined to expression only, but the views which are anti-human and against fundamental rights they should be attacked at every forum, at every front. As far as being graceful is concerned, the other end is doing enough jobs to inject humiliation,indecency and cruelty! And in this case the appeal to be graceful in discussions is a coward plea..nothing else!
The scholars of Manu Smriti has been killing human dignity from many years and this gives a right to every human being to abuse those who are a part of it.
They have left no grace in the war to be inculcated further.....lets see if Mr. Anonymous can justify the “other opinion” with showing identity....not anonymously!
....BODHISATVA

शेखर मल्लिक said...

चन्दन भाई, हम सभी में ये जायज गुस्सा भरा हुआ है. मैं आपके साथ हूँ. पर झारखण्ड के जो राजनितिक हालत हैं, और कानून के रक्षकों का चरित्र है, स्थिति अफसोसजनक कही जा सकती है. पर इस लड़ाई को मुकाम तक पहुचाना होगा. दोषियों को वो सजा मिले कि फिर कोई ये घिनौना अपराध ना करे.

Anonymous said...

I love it when individuals come together and share views.
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