( नई उम्र का प्रेम कितनी कोमल अनुभूतियों से निर्मित होता है इसकी एक बानगी यासूनारी कावाबाता की यह कथा दिखाती है. यासूनारी कावाबाता का जन्म 1899 में जापान के एक प्रतिष्ठित चिकित्सक परिवार में हुआ था. चार वर्ष की उम्र में वह अनाथ हो गए जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनके दादा-दादी ने किया. पंद्रह वर्ष की उम्र तक वे अपने सभी नजदीकी रिश्तेदार खो चुके थे. कावाबाता ने स्वीकार किया है कि उनके लेखन पर अल्पायु में ही अनाथ हो जाने और दूसरे विश्व युद्ध का सबसे ज्यादा असर रहा है. अपने उपन्यास Snow Country के लिए मशहूर कावाबाता को 1968 में साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला. यह सम्मान प्राप्त करने वाले वह पहले जापानी लेखक बने. 1972 में इस महान लेखक ने आत्महत्या कर लिया. अनुवाद मनोज पटेल का है. मनोज द्वारा अनूदित कावाबाता की तमाम कहानियाँ जल्द से भी जल्द ब्लॉग्स पर दिखने लगेगीं)
छाता
बसंत ऋतु की बारिश चीजों को भिगोने के लिए काफी नहीं थी. झीसी इतनी हलकी थी कि बस त्वचा थोड़ा नम हो जाए. लड़की दौड़ते हुए बाहर निकली और लड़के के हाथों में छाता देखा. "अरे क्या बारिश हो रही है ?"
जब लड़का दुकान के सामने से गुजरा था तो खुद को बारिश से बचाने के लिए नहीं बल्कि अपनी शर्म को छिपाने के मकसद से, उसने अपना छाता खोल लिया था.
फिर भी, वह चुपचाप छाते को लड़की की तरफ बढ़ाए रहा. लड़की ने अपना केवल एक कंधा भर छाते के नीचे रखा. लड़का अब भीग रहा था लेकिन वह खुद को लड़की के और नजदीक ले जाकर उससे यह नहीं पूछ पा रहा था कि क्या वह उसके साथ छाते के नीचे आना चाहेगी. हालांकि लड़की अपना हाथ लड़के के हाथ के साथ ही छाते की मुठिया पर रखना चाहती थी, उसे देख कर यूं लग रहा था मानो वह अभी भाग निकलेगी.
दोनों एक फोटोग्राफर के स्टूडियो में पहुंचे. लड़के के पिता का सिविल सेवा में तबादला हो गया था. बिछड़ने के पहले दोनों एक फोटो उतरवाना चाहते थे.
" आप दोनों यहाँ साथ-साथ बैठेंगे, प्लीज ?" फोटोग्राफर ने सोफे की तरफ इशारा करते हुए कहा, लेकिन वह लड़की के बगल नहीं बैठ सका. वह लड़की के पीछे खड़ा हो गया और इस एहसास के लिए कि उनकी देह किसी न किसी तरह जुड़ी है, सोफे की पुश्त पर धरे अपने हाथ से उसका लबादा छूता रहा. उसने पहली बार उसे छुआ था. अपनी उँगलियों के पोरों से महसूस होने वाली उसकी देंह की गरमी से उसे उस एहसास का अंदाजा मिला जो उसे तब मिलता जब वह उसे नंगी अपने आगोश में ले पाता.
अपनी बाक़ी की ज़िंदगी जब-जब वह यह फोटो देखता, उसे उसकी देंह की यह गरमी याद आनी थी.
" क्या एक और हो जाए ? मैं आप लोगों को अगल-बगल खड़ा करके नजदीक से एक तस्वीर लेना चाहता हूँ."
लड़के ने बस गर्दन हिला दी.
"तुम्हारे बाल ?" लड़का उसके कानों में फुसफुसाया. लड़की ने लड़के की तरफ देखा और शर्मा गई. उसकी आँखें खुशी से चमक रही थीं. घबराई हुई वह गुसलखाने की और भागी.
पहले, लड़की ने जब लड़के को दुकान से गुजरते हुए देखा था तो बाल वगैरह संवारने में वक्त जाया किए बिना वह झट निकल आई थी. अब उसे अपने बिखरे बालों की फ़िक्र हो रही थी जो यूं लग रहे थे मानो उसने अभी-अभी नहाने की टोपी उतारी हो. लड़की इतनी शर्मीली थी कि वह किसी मर्द के सामने अपनी चोटी भी नहीं गूंथ सकती थी, लेकिन लड़के को लगा था कि यदि उस वक्त उसने फिर उससे अपने बाल ठीक करने के लिए कहा होता तो वह और शर्मा जाती.
गुसलखाने की ओर जाते वक्त लड़की की खुशी ने लड़के की घबराहट को भी कम कर दिया. जब वह वापस आई तो दोनों सोफे पर अगल-बगल यूं बैठे गोया यह दुनिया की सबसे स्वाभाविक बात हो.
जब वे स्टूडियो से जाने वाले थे तो लड़के ने छाते की तलाश में इधर-उधर नजरें दौड़ाईं. तब उसने ध्यान दिया कि लड़की उसके पहले ही बाहर निकल गई है और छाता पकड़े हुए है. लड़की ने जब गौर किया कि लड़का उसे देख रहा है तो अचानक उसने पाया कि उसका छाता उसने ले रखा है. इस ख्याल ने उसे चौंका दिया. क्या बेपरवाही में किए गए उसके इस काम से लड़के को यह पता चल गया होगा कि उसके ख्याल से तो वह भी उसी की है ?
लड़का छाता पकड़ने की पेशकश न कर सका, और लड़की भी उसे छाता सौंपने का साहस न जुटा सकी. पता नहीं कैसे अब यह सड़क उस सड़क से अलग हो चली थी जो उन्हें फोटोग्राफर की दुकान तक लाई थी. वे दोनों अचानक बालिग़ हो गए थे. बस छाते से जुड़े इस वाकए के लिए ही सही, दोनों किसी शादीशुदा जोड़े की तरह महसूस करते हुए घर वापस लौटे.
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अनुवादक से सम्पर्क : 09838599333 ; manojneelgiri@gmail.com
9 comments:
खूबसूरत घटना है , कहानी तो नहीं कह सकता | मनोज का अनुवाद जरूर बेहद शानदार है |
आह!गज़ब का चित्रण किया है……………भीगते अहसासों का। शानदार्।
Terrific!!!!
मनोज भाई, एक प्यारी सी पर संपूर्ण कथा के लिये आप बधाई के पात्र हैं..लेखक की प्रबुद्धता किसी के प्रमाण की मोहताज नहीं और आपका अनुवाद बहुत प्रशंसनीय है..कहीं भी कोई तार टूटता हुआ नही दिखता जैसे कथा को उसके मूल रुप में ही पढ रहे हों..१९८० के दशक के अंत में एक कहानी किसी मित्र ने सुनायी थी..जापानी कथा कार कि जिसे दुनिया की सबसे बेहतरीन कहानी कहा गया था...’महाविज्ञ’ उसे पढने के तमन्ना है...किसी नामचीन रिसाले में छप चुकी है...अगर हो सके तो देखियेगा...मेहरबानी होगी.
आपका पुन: धन्यवाद
वाह ! बहुत काव्यात्मक। बहुत अच्छा अनुवाद भाई। आभार।
सुन्दर लघुकथा है!
इसे प्रिंट मीडिया में भी आना चाहिए!
ओह.....! कितनी नाजुक कहानी, इसे बहुत आहिस्ता-आहिस्ता फिर से पढ़ना पड़ेगा और उसके बाद फिर से.
रोमांस और शर्म का ये गुलाबी मेल अजब है...
Bahut khub
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