Saturday, January 29, 2011

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की कविताएँ



अफ़ज़ाल अहमद सैयद : जिन्होंने “शायरी ईज़ाद की”.

आधुनिक समय की विश्व कविता अगर कोई संसार है तो अफज़ाल अहमद सैयद उस प्यारे संसार की राजधानी हैं. प्रसंग विशिष्ट सम्वेदना के अटूट चित्रण के लिये विख्यात यह कवि/ शायर कविता के जादुई ‘डिक्शन’ और प्रभावशाली कहन (बयान) के अन्दाज का मास्टर है. जिस संग्रह की कवितायें यहाँ प्रस्तुत हैं ( रोकोको और दूसरी दुनियायें ) उसके पन्नों से गुजरते हुए अफज़ाल की विलक्षण विश्वदृष्टि और इतिहासबोध का पता चलता है. अगर इनका नाम पाकिस्तान और समूचे विश्व के अप्रतिम कवियों की सूची में शुमार होने लगा है तो इसकी ठोस वजह है : पाकिस्तानी समाज में फैल चुकी धर्मान्धता, जातिगत लड़ाईयाँ, सांस्कृतिक क्षरण, क्रूरता और राज्य – प्रायोजित आतंकवाद से कवि की सीधी मुठभेड़. वर्तमान समय के सर्वाधिक रचनाशील और उर्वर कवि अफ़ज़ाल, दरअसल अपने पूरे ढब में भविष्य के (FUTURISTIC) कवि हैं.

1946 (गाजीपुर) की पैदाईश अफ़ज़ाल के नाम कुल चार किताबे और ढेरों अनुवाद हैं. नज्मों की तीन किताबें क्रमश: छीनी हुई तारीख़ (1984) दो ज़ुबानों में सजाये मौत (1990) तथा रोकोको और दूसरी दुनियायें (2000) हैं. गजलों का एक संग्रह – खेमा-ए-स्याह( 1988). वैसे इनका रचना समग्र “मिट्टी की कान” नामक संग्रह में समाहित है.

लिप्यंतरण के बारे में : अफ़ज़ाल का रचना समग्र हमें कैसे मिला, यह बेहद लम्बा और रोमांचक किस्सा है और जिसे फिर कभी बताऊंगा. समूची रचनाओं के अनुवाद/ लिप्यंतरण की इज़ाज़त हमें अफ़जाल साहब ने कुछ यह लिख कर दिया:

Dear Chandan,

I wish I could meet you and your friends Manoj and krishan.

I do hereby give Mr. Manoj Patel my permission to translate and publish my poems in Hindi including those published in " Roccoco and the Other Worlds".


Best regards

Afzal Ahmed Syed.

और सबसे जरूरी यह कि साथी मनोज पटेल ने सिर्फ और सिर्फ अफ़ज़ाल साहब की रचनाओं के अनुवाद/ लिप्यंतरण के लिये उर्दू सीखी. मनोज के उर्दू सीखने और इन नज्मों के लिप्यंतरण में शहाब परवेज़ ने भरपूर सहयोग दिया. मनोज अब तक अफ़ज़ाल साहब के दो संग्रह क्रमश: रोकोको और दूसरी दुनियायें तथा दो ज़ुबानों में सज़ाये मौत का लिप्यंतरण कर चुके हैं और छीनी हुई तारीख़ पर जुटे हैं. नज्मों की ये तीनों संग्रह, एक ही जिल्द में, शीघ्रातिशीघ्र प्रकाश्य.

*******************************


हमें बहुत सारे फूल चाहिए

हमें बहुत सारे फूल चाहिए
मारे जाने वाले लोगों के क़दमों में रखने के लिए,
हमें बहुत सारे फूल चाहिए
बोरियों में पाई जायी जानेवाली लाशों के चेहरे ढाँकने के लिए,
एक पूरी सालाना फूलों की नुमाईश
ईधी सर्दखाने में महफूज कर लेनी चाहिए
नामजद मरने वालों की
पुलिस कब्रिस्तान में खुदी कब्रों के पास रखने के लिए,
खूबसूरत बालकनी में उगने वाले फूलों का एक गुच्छा चाहिए
बस स्टाप के सामने
गोली लग कर मरने वाली औरत के लिए,
आसमानी नीले फूल चाहिए
येलो कैब में हमेशा की नींद सोए हुए दो नौजवानों को
गुदगुदाने के लिए,
हमें खुश्क फूल चाहिए
मस्ख किए गए जिस्म को सजाकर
असली सूरत में लाने के लिए,
हमें बहुत सारे फूल चाहिए
उन जख्मियों के लिए
जो उन अस्पतालों में पड़े हैं
जहां जापानी या किसी और तरह के रॉक गार्डन नहीं हैं,
हमें बहुत सारे फूल चाहिए
क्योंकि उनमें से आधे मर जाएंगे
हमें रात को खिलने वाले फूलों का एक जंगल चाहिए
उन लोगों के लिए
जो फायरिंग की वजह से नहीं सो सके,
हमें बहुत सारे फूल चाहिए
बहुत सारे अफ्सुर्दः लोगों के लिए,
हमें गुमनाम फूल चाहिए
बेसतर कर दी गई एक लड़की को ढांपने के लिए

हमें बहुत सारे फूल चाहिए

हमें बहुत सारे फूल चाहिए
बहुत सारी रक्स करती बेलों पर लगे
जिनसे हम इस पूरे शहर को छुपाने की कोशिश कर सकें
---
सर्दखाने - कोल्ड स्टोरेज, मुर्दाघर
मस्ख - विकृत
अफ्सुर्द : - उदास

* *
हमारा कौमी दरख़्त

सफ़ेद यास्मीन की बजाए
हम कीकर को अपनी शिनाख्त करार देते हैं
जो अमरीकी युनिवर्सिटियों के कैम्पस पर नहीं उगता
किसी भी ट्रापिकल गार्डेन में नहीं लगाया जाता
इकेबाना खवातीन ने उसे कभी नहीं छुआ
नबातात के माहिर उसे दरख़्त नहीं मानते
क्योंकि उसपर किसी को फांसी नहीं दी जा सकती

कीकर एक झाड़ी है
जिससे हमारे शहर, रेगिस्तान
और शायरी भरी है

काँटों से भरा हुआ कीकर
हमें पसंद है
जिसने हमारी मिट्टी को बहिरा-ए-अरब में जाने से रोका.
------
इकेबाना - फूल सजाने का जापानी तरीका
नबातात - जमीन से उगने वाली चीजें
बहिरा - ए- अरब - अरब सागर

**
एक इफ्तेताही तकरीब

फ्लोरा लक
लहरिएदार स्कर्ट
नीम बरहना शानों
और काली क्रोशिया की बेरेट में
मुख़्तसर जुलूस के साथ
केमाड़ी तक गई

वह स्काच चर्च में रुकी
उसने गैर दिलचस्प तकरीरें सुनीं
सुबह उसे
ट्रालियों के
गैल्वनाइज्ड लोहे की छतों वाले गोदाम
और साठ घोड़ों के अस्तबल का दौरा कराया गया

ट्राम वे की इफ्तेताही तकरीब में
कराची की सबसे खूबसूरत लड़की
खुश नजर आ रही थी

अगर उसका कोई महबूब होता
वह उसे उस दिन बहुत बोसे देती

उसकी खुशी के एहतिराम में
कराची ट्राम वे
नौवें साल तक पटरियों पर दौड़ती रही

और जब
मजबूत ट्रांसपोर्टरों ने
ट्राम की पटरियां उखाड़ दीं

शहर उजड़ना शुरू हो गया
 -----------
इफ्तेताही तकरीब - उद्घाटन समारोह
नीम बरहना शानों - अर्धनग्न कन्धों
बेरेट - टोपी
मुख़्तसर - संक्षिप्त
तकरीरें - भाषण
एहतिराम - सम्मान

***
हिदायात के मुताबिक़

वजीरे आजम जोनूब की तरफ नहीं जाएंगी
सदर
सिर्फ अमूदी परवाज करेंगे
सिपाही
ढाई घर चलेंगे
जलावतन रहनुमा
साढ़े बाईस डिग्री पर घूमेंगे
लोग घरों से नहीं निकलेंगे
एक्बुलेंस जिग जैग चलेंगे
तारीख
पहले ही एंटी क्लाक वाइज चल रही है

-------
जोनूब - दक्षिण
अमूदी - लम्बवत, वर्टिकल

* *
एक लड़की

लज्जत की इन्तेहा पर
उसकी सिसकियाँ
दुनिया के तमाम कौमी तरानों से ज्यादा
मौसीकी रखती हैं

जिन्सी अमल के दौरान
वह किसी भी मलिकाए हुस्न से ज्यादा
खूबसूरत करार पा सकती है

उसके ब्लू प्रिंट का कैसेट
हासिल करने के लिए
किसी भी फसादजदा इलाके तक जाने का
ख़तरा लिया जा सकता है

सिर्फ उससे मिलना
नामुमकिन है
पाकिस्तान की तरह
हाला फारुकी भी
पुलिस की तहवील में है

-------
कौमी तराना - राष्ट्र गान
तहवील - कस्टडी, अभिरक्षा

* *
लिप्यंतरण का सारा दारोमदार मनोज पटेल का रहा जिनसे manojneelgiri@gmail.com ( दूरभाष - 09838599333) पर सम्पर्क किया जा सकता है. अफ़ज़ाल की दूसरी कवितायें/ नज्में और गजले समय समय पर मनोज पटेल के ब्लॉग पढ़ते पढ़ते पर प्रकाशित होती रहेंगी.   

66 comments:

miracle5169@gmail.com said...

itana dard samete haiN Sayyed Saheb,afsos ki awam jurrat ko buland nahu kar pa rahi hai,hamesha ki si tarah manoj bhai apni koshish me qamyab haiN.shukriya.

मृत्युंजय said...
This comment has been removed by a blog administrator.
मृत्युंजय said...

शानदार !

aditya vikram said...

लाजवाब ! सही मायने में शायरी इजाद करने वाला शायर ..

anurag vats said...

lajawab hai bhai yah sab
hona is trah
uplabdhi hai
mubarkbad
aapko aur maoj bhai aur krishn se agar aashay krishn mohan hai to unko bhi

anurag vats said...

lajawab hai bhai yah sab
hona is trah
uplabdhi hai
mubarkbad
aapko aur maoj bhai aur krishn se agar aashay krishn mohan hai to unko bhi

kundan pandey said...

taarikh pahale hi anti-clock wise chal rahi hai.. bahut bahut badhiya..

महेश वर्मा mahesh verma said...

दमदार कवितायें और शानदार अनुवाद .आपकी टीम को बधाई . मनोज भाई के श्रम के प्रति जितनी कृतज्ञता व्यक्त की जाए कम है . अफजाल अहमद की कविताओं से पहला परिचय पहल पुस्तिका के जरिये हुआ था .नमक की कान , टूटे हुए चंद से मेरी जान .. ये सब उन दिनों हमारी बातचीत में मुहावरे की शक्ल में पैवस्त हुआ करता था . और इस खबर ने और उम्मीद पैदा की कि ये सारी कवितायें एक जिल्द में मिलने को हैं .. फिर से बधाई और शुभकामनाएं .

kundan pandey said...

मजरूह सुल्तानपुरी ने एक बार फैज़ अहमद फैज़ से परमिशन मांगी थी, उनकी इस लाईन "तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है... मुझसे पहले सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग".. बाद में उन्होंने इस लाइन को बढ़ाते हुए एक गाना भी लिखा.. विदित है. वही दिलदारी, वही प्रेम यहाँ भी... खूब..
कौन कहता है भारत पकिस्तान दुश्मन है!

Unknown said...

this is the achievement for you people..carry on...

Shrikant Dubey said...

मनोज पटेल और चंदन कोशिशों के लिए : Kudos (in simple word).

अफजाल साहब की सहमति और उनकी कविताओं के लिए : Excellent & Fabulous.

Rajesh said...

Great Poems, Great Poet, Great Translation, Great Effort......

Ashok Kumar pandey said...

इन कविताओं को शाम से कितनी बार पढ़ चुका हूं…पर अभी तक लिखने की मानसिकता नहीं बन पा रही…ख़ामोशी से पिये जाने वाली और फिर देर तक अपने नशे में सराबोर कर देने वाली कवितायें हैं।

जिस तरह मनोज ने इधर लगभग होलटाइमर वाली स्पिरिट से अनुवाद का काम किया है…और वह भी चुपचाप वह सच में आह्लादित करता है। हमारी पीढ़ी के कमिटमेंट पर शक़ करने वालों को मनोज से बहुत कुछ सीखना होगा। उर्दू इन दिनों मैं भी सीख रहा हूं और मुझे पूरा विश्वास है कि हम सब को इसे सीखना ही चाहिये…संभव हो तो संस्कृत भी।

चंदन को बहुत सारी बधाईयाँ और इस कवि को कविता के आशिक़ का प्यार और एहतराम भरा सलाम…उस 'एक जिल्द' का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।

Bakait said...

bahut hi gehrai tak chu jane wali avivyakti...bahut touching...

durgesh said...

ye kaam apne aap me hi bahut kucch kah sakta hai..manoj jee se milne ki aakanshaa prabal hotee ja rahee hai..aur chandan pandey ko shaandaar prstuti ke liye badhahayee...

manisha said...

मुझे बहुत सुखद लगा यह जानना कि इस अनुवाद के लिए मनोज ने उर्दू सीखी. सारी ग़जलें, नज़्में बहुत ही मर्मस्पर्शी और शानदार शायरी की मिसाल हैं मगर
'लज्जत की इतहाँ पर' बहुत खूबसूरत नज़्म है.

आशुतोष पार्थेश्वर said...

इस बड़े और प्यारे काम के लिए मनोज जी को बधाई और आपके प्रति आभार !

अजय said...

bahut hi acchi lagi sir...
man ko chu gayi....

अजय said...

bahut khoob hai sir....
man ko chu leti hai aaki rachnaye...

NKAJAD said...

awesome poems...
specially "hame aur phool chahiye..."

नंद भारद्वाज said...

हमारे समय का इन्‍सान किन कठिन हालात से गजरता हुआ जिन्‍दगी का सफर तय कर रहा है, अफजाल की ये कविताएं वाकई एक गहरे अवसाद के आखिरी छोर से शुरू होती हैं, इन्सान जब तकलीफ की इन्तेहा देख लेता है, तो यही बयान सामने आता है। अफजाल ने फूलों और मासूम लड़कियों के जरिये अपना दर्द बयान किया है -
कितनी मार्मिक हैं ये कविताएं। ये किसी की तारीफ की मोहताज नहीं, इन्‍हें तो उस पाठक की तलाश है, जो उनके पैगाम को आगे ले जा सके। आपको और मनोज को वाकई मुबारकबाद कि ये कविताएं हम तक सुलभ हो पाई।

नंद भारद्वाज said...

इन कविताओं को उन लोगों तक जरूर पहुंचना चाहिये, जो इन हालात से रोज रूबरू रहते हैं।

देवाशीष प्रसून said...

Bahoot Khoob...

Sharad Singhal said...

बहुत दिनों बाद इतनी ज़ोरदार शायरी पढने को मिली , आप सभी लोगों का बहुत बहुत धन्यवाद

खामोश पानी said...

is agmbheer samay men jab padhne ka chalan khatm sa hota ja raha hai, nikhlish kavita kafi dinon baad padhne ko mili, sath hi anuvaad ki apni seemaon men ek lajvab koshish.........

अपर्णा said...

इन कविताओं को कई बार पढ़ा ... एकदम अलग तरह की .. बेमिसाल ..

rabi bhushan pathak said...

कुछ नए अंदाज की कविता । फूलों की जरूरत को देश,शहर व नंगी लडकियों की इज्‍जत से जोडते हुए
एक बेहतरीन लय की कविता ।यह उस देश की कविता है जहां कीकर जैसे तुच्‍छ चीज की खास अर्थवत्‍ता है । यह उस देश की भौगोलिक विपन्‍नता कम है,सामाजिक वैशिष्‍टय ज्‍यादा ।

संजीव said...

i was not aware about the legendary poet and his writings ! but now i can say he is one the greatest poet... all of his poetries are the hardcore truth of time... hats off to Afsal Ahmed Syed...and thanks to the blogger...

Akhileshwar Pandey said...

वाकई कमाल की कविताये हैं.

Anonymous said...

ye kavitaye satta kee krurta ka virodh jis masoomiyat se karti hai wah hamaree sambednaon ko jhakjhor kar rakh deti hain

Unknown said...

adbhut kavitaye hai bahi, agli kishto ka intzar rahega.

manas bharadwaj said...

सिर्फ वाह कहने से काम नहीं चलना चाहिए .....पर और कुछ है नहीं मेरे पास ....सच्ची शायरी के लिए कहने को

manas bharadwaj said...

सिर्फ वाह कहने से काम नहीं चलना चाहिए .....पर और कुछ है नहीं मेरे पास ....सच्ची शायरी के लिए कहने को

shesnath pandey said...

अफ़जाल जैसे रौशन खयाल कवि से परिचित कराने के लिए धन्यवाद... आज कहाँ जा रहा है कि कविताएँ हमारी स्मृतियों में जगह नहीं बना पा रही है जो काफ़ी हद तक सही है... लेकिन अफ़जाल की कविताएँ इससे दो चार हाथ करते हुए हमें कही गहरे तक भेदती है... बहुत अच्छी कविताएँ... मनोज भाई अब उर्दू में भी...?स्वागत

Akanksha said...

हमें बहुत सारे फूल चाहिए , बहुत सारी रक्स करती बेलो पर लगे
जिनसे हम इस पूरे शहर को छुपाने की कोशिश कर khamosh sookh chuki kahaniyon ko bde baijjat utha kr, karara thappd mara hai,fake aur apang hote ja rhe manviy smaj. so called progressive duniya ke kroor rup ko foolo ka libas phna ke jis trh se uske nikamme pan ko nanga kiya hai....m just speechless!!!what a contrast and the wonderful way..amazing

Akanksha said...

हमें बहुत सारे फूल चाहिए , बहुत सारी रक्स करती बेलो पर लगे
जिनसे हम इस पूरे शहर को छुपाने की कोशिश कर khamosh sookh chuki kahaniyon ko bde baijjat utha kr, karara thappd mara hai,fake aur apang hote ja rhe manviy smaj. so called progressive duniya ke kroor rup ko foolo ka libas phna ke jis trh se uske nikamme pan ko nanga kiya hai....m just speechless!!!what a contrast and the wonderful way..amazing

Akanksha said...

हमें बहुत सारे फूल चाहिए , बहुत सारी रक्स करती बेलो पर लगे
जिनसे हम इस पूरे शहर को छुपाने की कोशिश कर सकें. khamosh sookh chuki kahaniyon ko bde baijjat utha kr, karara thappd mara hai,fake aur apang hote ja rhe manviy smaj ko. so called progressive duniya ke kroor rup ko foolo ka libas phna ke jis trh se uske nikamme pan ko nanga kiya hai....m just speechless!!!what a contrast and the wonderful way..amazing

ZEAL said...

इस परिचय के लिए आभार ।
एक से बढ़कर एक उम्दा रचनायें।

niranjan dev sharma said...

अफजाल अहमद की कविताओं से परिचित करने के लिए आपका और आपकी टीम का शुक्रिया। बार -बार पढ़ी जा सक्ने लायक कविताएँ हैं।

Ashok Pande said...

अफ़ज़ाल अहमद एक अरसे से मेरे सर्वप्रिय कवियों में हैं. उनकी मोडर्निटी और विट भारतीय उपमहाद्वीप की आधुनिक कविता में अद्वितीय हैं. भाई मनोज पटेल को इस बड़े काम के लिए बधाइयाँ. और व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद. मुझे पता है अनुवाद या लिप्यान्तरण किस कदर थैन्कलैस उपक्रम होता है. लेकिन किसी भी सभ्य समाज की बौद्धिक उन्नति के लिए बेहद ज़रूरी भी.

शुक्रिया!

जय पुष्‍प said...

नौजवानों की पत्रिका 'आह्वान' में अफजाल साहब की कविता 'शायरी मैंने ईजाद की' जबसे पढ़ा तबसे उनकी और रचनाएं पढ़ने की इच्‍छा रही है। उनकी कविताओं के प्रकाशन का बेसब्री से इंतजार रहेगा।

जय पुष्‍प said...

नौजवानों की पत्रिका 'आह्वान' में अफजाल साहब की कविता 'शायरी मैंने ईजाद की' पढ़ने के बाद से उनकी और रचनाएं पढ़ने की इच्‍छा रही है। मनोज जी और उनके साथियों के प्रयास से अफजाल साहब की कविताओं के प्रकाशन का बेसब्री से इंतजार रहेगा और इसके लिए प्रयासरत साथी बधाई के पात्र हैं।

main aparna said...

really nice.... awesome!

shesnath pandey said...

इतनी प्रतिक्रिया देख कर एक बात तो तय है कि अगर कविताएँ अच्छी होंगी तो लोग पढ़ेंगे और बार-बार पढ़ेंगे... " हमें बहुत सारे फूल चाहिए" इस पंक्ति को गज़ब का स्पेस मिला है... माखन लाल चतुर्वेदी पुष्प की अभिलाषा में सहादत पाए वीर के लिए बिछना चाहते है लेकिन अफ़जाल उस भावुकता के अंतर्विरोधो को भी रेखांकित करते है...
"हमें रात को खिलने वाले फूलो का एक जंगल चाहिए/उनलोगो के लिए जो फायरिंग की वजह से नहीं सो सके..."शांति के इस आलम तक वही पहुँच सकता है जो कही गहरे तक उन गोलियों के आवाज़ के साथ उतर कर अपनी बेचैनी का हिसाब माँगा हो...

ANIRUDDH DWIVEDI said...

यह कवि वाकई ऐसे हैं कि इन्हें पढने के लिए नई भाषा सीखी जा सकती है.चन्दन और मनोज जी को बहुत-बहुत बधाई

ANIRUDDH DWIVEDI said...
This comment has been removed by the author.
प्रदीप जिलवाने said...

चंदनजी आपने बहुत ही उम्दा कवि से इस बार परिचय करवाया है. बधाई

Rangnath Singh said...

कवि के कविताएं जितनी सुंदर हैं उतना ही सुंदर आप सब का इन्हे प्रस्तुत करने का प्रयास रहा। बहुत ही कम समय में मनोज,श्रीकांत जैसे युवा लेखकों ने अपने साहित्यिक अनुवादों से भविष्य के प्रति आश्वस्त कर दिया है।

Rangnath Singh said...

कवि की कविताएं जितनी सुंदर हैं उतना ही सुंदर आप सब का इन्हे प्रस्तुत करने का प्रयास रहा। बहुत ही कम समय में मनोज,श्रीकांत जैसे युवा लेखकों ने अपने साहित्यिक अनुवादों से भविष्य के प्रति आश्वस्त कर दिया है। हार्दिक शुभकामनाएं..

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

चन्दन भाई बहुत बहुत शुक्रिया यह लिंक भेजने के लिए! अफजाल अहमद साहब की कवितायेँ पहले 'पहल' पुस्तिका के मार्फ़त पढ़ी थीं. तभी से मैं उनका फैन हो गया था. आज उनकी इन कविताओं ने फिर मेरा यकीन दुरुस्त किया है कि सत्ता कितनी भी क्रूर, हिंसक और ताकतवर क्यों न हो कविता सर उठाकर उसके सामने चुनौती पेश करती है. इतना अवसाद, दुःख, क्रोध और व्यंग्य लिए होने के बावजूद पानी की तरह बहती कवितायें हैं ये. बड़े कवि की यही तो निशानी है.
अशोक पांडे जी ने सही कहा है कि हिन्दी में अनुवाद कार्य एक थैंकलेस जॉब है. अशोक भाई ने स्वयं अद्भुत अनुवाद कार्य किया है और कर रहे हैं. यहाँ भाई मनोज पटेल के जज़्बे और लगन की जितनी सराहना की जाए कम है.

Anonymous said...

सराहनीय प्रयास. ऐसे कवि को सामने लाने के लिये आपका शुक्रिया. मनोज जी को बधाई.

मयंक प्रकाश
मुजफ्फरपुर

Aparna Mishra said...

Congratulations 2 every1 associated with this post....

"WOW" is the only word I can use for this.... Thanks a lot

rakesh ranjan said...

chandan bhai, aapne 2-3 roj pahle link bheji thi, lekin tab padhne ka mood nahin ban paaya. socha baad me padhunga. abhi-abhi ye kavitaayen padhin. laajawaab aur maarmik samvedna se bhari! observation bhi kamaal ka! sab kuchh anaayas, aadameeyat ke kaleje se nikli hui aah, ek gahri aah ki tarah! bhaasha me bhi koi teem-taam nahin. hajaari prasad dwivedi ne kaha tha--bhaasha ki sahajta tyag aur tapasya se aati hai... shukriya! bahut shukriya!

Brajesh Kumar Pandey said...

बहुत बढ़िया चन्दन भाई.एक सार्थक प्रयास है ये उम्दा साहित्य को पठनीय रूप में सामने लाने का.मनोज भाई खास कर बधाई के पात्र है कि उन्होंने उर्दू सीखा .अफजल की कवितायेँ लोक- गल्प के माध्यम से जीवन बोध को उद्घाटित करती है .कीकर के पेड़ के माध्यम से वीरानी में आशा का संचार हुवा है .शुक्रिया चन्दन भाई ,मनोज भाई .

addictionofcinema said...

bahut badhiya aur zaroori kavitayen. shukriya Manoj ji, shukriya Chandan

डॉ .अनुराग said...

एक बड़ा सा शुक्रिया ......इन्हें शेयर करने के लिए...बुकमार्क करने जैसा पेज है !!!!

Anonymous said...

अद्भुत संवेदना की कवितायेँ हैं...हिंदी की प्रचलित काव्य धारा से बिलकुल ही अलग,एक खास तरह की चमक और पैनापन लिए हुए.उनकी हमें बहुत सारे फूल चाहिए कविता स्मृति में सदा के लिए जड़ जमा लेने वाली रचना है,,,भाई वाह. कीकर वाली कविता भी बेहद तल्खी से अपनी मौजूदगी को धरती पर पैरों को जमाये रखने के लिए जरुरी शर्त मनवा लेती है.....

यादवेन्द्र , रूडकी

ANIRUDDH DWIVEDI said...

किसी गैर विवादस्पद पोस्ट पर इतनी प्रतिक्रियाएं यह दिखाती हैं कि यदि कवितायेँ अच्छी हों तो वे पढ़ी और सराही जायेंगीं.आप लोग काबिले-तारीफ कम कर रहे हैं.शुक्रिया.

Anonymous said...

afzal sahab ki shayri se pahli bar mutarif huva. aise shayar ko mera salam. chandan aapne bahut jaruri kam ko anjam diya hai. jo kam hamare hukmran nahin kar paye vah ab shayri, adab aur aap jaise naujavan anjam denge. aap logo se bahut ummed hai. aap sab kamyab ho.
sajid khan, gorakhpur

Mita Das said...

achhi kavita...anuvad bhi achha......

Rajesh said...

achhi kavitayen.

Anonymous said...

Afzal Ahmad ki aur bhi poems kab pada rahe hai.

Unknown said...

jabardast kavitaye

ravindra vyas said...

badhiya kaam hai dost!

ravindra vyas said...

badhiya kaam hai dost!

आशुतोष कुमार said...

behad moolywaan kaam .