Friday, May 7, 2010

एक ही पर अनदेखी और अनजानी राह के साथी.

कर्तव्यनिष्ठ और जुझारू पत्रकार स्वर्गीय सुश्री निरूपमा की निर्मम ह्त्या ने लोगो को गहरे तक विचलित किया है. मेरे बॉस की पत्नी जिनका इन बातो से कोई एक ज़रा लेना देना भी नहीं है, जब उन्होंने इसके बारे में सुना तबसे कई बार पूछ चुकीं है, दोस्तों की साझा प्रतिक्रियाये इसका गवाह है. पर अब तक कोई राह नहीं दिख रही है. जो कातिल और दुर्भाग्य से ताकतवर लोग है उनके पास पैसा है, जाति की एकजुटता है, तंत्र का साथ है, संभव हुआ तो रिश्वत के आधार पर चिकित्सको से बयान बदलवाने का दम है पर जो हमलोग है इनके पास कोई राह नहीं दिख रही है. हमने पिटीशन पर दस्तखत किये पर आगे क्या है, इसका कोई अता पता नहीं है.

पर राह की तलाश में ऐसे अनेक लोग लगे है. इन्ही में से एक संदीप है..जो सम्बंधित लोगो से संपर्क में है और अपनी बात उन्होंने यहाँ तथा इस प्रकार रखी है.

1 comment:

addictionofcinema said...

ham log kis kone me chhipein aur kaise jhuthla dein is sach ko ki is mamle mein agar koi karrvai hui hai to wah itni hi ki Pryabhanshi ke khilaaf mamla darj ho chuka hai.
kaash ye ham dainasor yug me paida hue hote, kuchh aisa hota to dainasorn ko dosh de pate...ab to sab saaf saaf dikh raha hai ki ham sab doshi hain........ghrit aur jaghanya