इस वर्ष दिल्ली में हुई बरसात की तरह, मतलब रोजाना की बारिश की तर्ज पर, नई बात पर भी अब महाकवि पाब्लो नेरुदा की कवितायें लगातार प्रकाशित होंगी. अनुवाद किसका है, अब यह भी बताने की जरूरत है क्या? वैसे महज सूचनार्थ : पाब्लो नेरुदा की लम्बी कविता ‘द सेपरेट रोज़’ का अनुवाद श्रीकांत ला रहे हैं और साथ ही पाब्लो से सम्बन्धित एक ‘सरप्राईज’ भी..
रेल के सपने
बिना रखवाली के स्टेशनों पर
सोती हुई रेलगाड़ियां
अपने इंजनों से दूर
सपनों में खोई थीं।
भोर के वक्त मैं दाखिल हुआ
टहलता, हिचकिचाता
मानो भेदता कोई तिलिस्म
चारो ओर बिखरी थी यात्रा की मरती गंध
और मैं खोजता हुआ कुछ
डिब्बों में छूट गई चीजों के बीच।
जा चुकी देहों की भीड़ में
निपट अकेला था मैं,
ठहरी थी रेलगाड़ी।
हवा की सांद्रता
अवरोध की महीन पर्त थी
अधूरी रह गई बातों और
उगती बुझती उदासियों पर।
गाड़ी में छूट गईं कुछ आत्माएं,
जैसे चाभियां थीं बिन तालों की,
सीट के नीचे गिरी हुईं।
फूलों के गुच्छे और मुर्गियों के सौदे से लदीं,
दक्षिण से आई औरतें
जो शायद मार डाली गई थीं,
जो शायद वापस लौटकर बिलखती भी रहीं थीं,
शायद बेकार चले गए थे सफर में खर्च उनके भाड़े
उनकी चिताओं की आग के साथ,
शायद मैं भी उनके ही साथ हूं, उन्हीं के सफर में,
यात्रा में छूटी उनकी देहों की भाप,
और गीली पटरियां,
सब कुछ यथावत हैं शायद
रेल की स्थिरता में।
मैं एक सोता हुआ यात्री
यक ब यक जाग गया हूं
दुखों से सराबोर!
मैं बैठा रहा अपनी सीट पर
और रेलगाड़ी दौड़ती रही
मेरी देह की रहगुजर
ढहाती हुई मेरे भीतर की सारी हदें -
यूं अचानक, वह हो गई मेरे बचपन की रेल,
बिखरा धुंआ सुबहों का,
खट्टी मीठी गर्मियां।
बेतहाशा भागतीं, और भी थी रेलगाडियां
दुखों से इस कदर लबालब थे उनके डिब्बे,
जैसे बजरियों से भरी मालगाड़ी,
तो इस तरह दौड़ती रही वह स्थिर रेलगाड़ी
सुबह के फैलते उजाले में
मेरी अस्थियों तक को दुखाती हुई।
अकेली रेल में अकेला सा मैं,
लेकिन सिर्फ मैं ही नहीं अकेला
बल्कि मेरे साथ अनगिन अकेलेपन
सफर की शुरूआत की आस लगाए
प्लेटफार्म पर बिखरे
गंवई लोगों सरीखे अकेलेपन।
और रेलगाड़ी में मैं,
जैसे एक ठहरा गुबार, धुंए का
घिरा हुआ,
जाने कितनी मौतों के बाद की
जाने कितनी जड़ आत्माओं से!
मैं, गुम हो गया उस सफर में,
कि जिसमें ठहरी हुई है हर चीज
मुझ अकेले के दिल के सिवाय।
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9 comments:
कविता जितनी अच्छी है, अनुवाद भी उतना ही अच्छा है।
- अनिल जनविजय
anuwaad achha hai isliye kavita parne mai achhi lagi...
ajnabi parivesh mai asmita ki akulahat ki anavarat bhawna ka atyant sattek varnan hai ye kavita....lekhak tatha anuvadak ko hardik badhaee....
aapka anuvad asl kavita lagti hai our asal kavita anuvaad.
जिसमें ठहरी हुई है हर चीज
मुझ अकेले के दिल के सिवाय।
-बहुत उम्दा अनुवाद..उतर गया तरलता से.
श्रीकन्त जी, पाब्लो की कविता सुबह जगकर चाय से पहले पी. अनुवाद से मूल क आनन्द मिला.हमारी हिन्दी का हाल चाल इसी से दुरुस्त होगा. और चाहिये.
अनुवाद सरल है.. कविता तो निसंदेह उम्दा है..
अच्छी कविता है... अनुवाद से ऐसा नहीं लगता कि यह किसी हिन्दी से इतर कवि की कविता है... बधाई...
रेलगाड़ी पर लिखी कविताओं से भावनात्मक लगाव है।
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