Saturday, September 4, 2010

रिवॉल्वर ( Revolver )

आप मित्रों को यह सूचित करते हुए अत्यंत प्रसन्न महसूस कर रहा हूँ कि मेरी नई कहानी ‘रिवॉल्वर’ वेब पत्रिका ‘सबद’(www.vatsanurag.blogspot.com) पर प्रकाशित हुई है.

किसी भी रचना का प्रकाशन महत्वपूर्ण होता है परन्तु ‘रिवॉल्वर’ के इस रूप में प्रस्तुतिकरण का श्रेय सबद-सम्पादक अनुराग वत्स को जाता है. सत्तर पृष्ठों के विस्तार में फैली इस कहानी को वेब-माध्यम पर प्रकाशित करने तथा कहानी को बेहतरीन सज्जा वाली ‘ई-बुक’ की शक्ल देने के पीछे की समूची तैयारी अनुराग ने जिस लगन से की वो प्रशंसनीय है. अनुराग को धन्यवाद, इसलिये नहीं कि रचना इन्होने प्रकाशित की, बल्कि इसलिये कि कहानी के प्रस्तुतिकरण में जो ‘इंवॉल्वमेंट’ इन्होने दिखाया वो काबिले-गौर है तथा सबक-सिखाऊ भी.

विनम्रता के साथ कहूँ [हालाँकि मेरे विनम्र होते ही ‘मित्रों’ के कान खड़े हो जाते हैं :)] कि मेरे जानते हिन्दी कथाजगत में ‘ई-बुक’ के जरिये कहानी प्रकाशित करने का यह नितांत पहला प्रयास है. वेब दुनिया रंगों से जुड़ी जो सहूलियत हमें मुहैया कराती है उसका सदुपयोग ही इसे प्रिंट से अलग करता है. प्रिंट से याद आया, यह कहानी साखी पत्रिका के नये अंक में प्रकाशित हो रही है.

वैसे, यह कहानी उन रचनाओं में से जो मेरे पिछले लैपटॉप में उन अच्छे इंसानों के साथ चली गई जिन्होने मेरा लैपटॉप चुराया था/ चुराया क्या था, मेरे कन्धे से छीन लिया था. किन्ही तरीकों से अगर वे लैपटॉप खोल पाये होंगे तो उन्हे इस बात का दु:ख जरूर हुआ होगा कि जिस इंसान का यह लैपटॉप है वो इतनी फाईलें दुबारा कैसे बना पायेगा? छोटी को किनारे कर दें तब भी उस लैपटॉप में कुल सात लम्बी कहानियाँ थीं जो अपने अन्दाज में पूरी भी हो चुकी थीं. खैर.

उस लैपटॉप के साथ खोई अपनी अनेक रचनाओं को ‘रिट्रीव’ करने की कोशिश में यह ‘रिवॉल्वर’ पहली कोशिश है. रिवॉल्वर पढ़ने के लिये कृपया यहाँ क्लिक करें.

1 comment:

शरद कोकास said...

सबसे पहले बधाई स्वीकार करो ।
मुझे नही पता था तुम्हारा लैपटोप चोरी चला गया ।
आइन्दा से बैक अप लेकर रखना , कहानी प्रोसेस मे हो तब भी ।
बस पहली फुर्सत मे ही "रिवॉल्वर " क्लिक करता हूँ