पूर्वी देशों की अपनी यात्रा पर मिस्टर पालोमर ने एक बाजार से एक जोड़ा चप्पल खरीदी. घर वापस आकर जब वे उसे पहनने की कोशिश करते हैं तो पाते हैं कि एक चप्पल दूसरी के मुकाबले कुछ बड़ी है और वो उनके पैर में रुकेगी. उन्हें बाजार के एक कोने हर आकर-प्रकार की चप्पलों के ढेर के सामने दुबके बैठे बूढ़े विक्रेता का ध्यान आया कि कैसे वह चप्पलों के ढेर से ग्राहक के पैरों के नाप की चप्पल को तलाश निकालता, उसे पहनाकर जांचता, फिर उस चप्पल की अनुमानित जोड़ीदार की तलाश शुरू करता जिसे मिस्टर पालोमर ने बिना नापे ही स्वीकार कर लिया.
"शायद इस समय" मिस्टर पालोमर सोचते हैं "उस देश में एक और शख्स बेमेल चप्पल की जोड़ी पहने घूम रहा होगा. " और वो एक दुबली-पतली छाया को रेगिस्तानी इलाके में लंगडाकर चलते देखते हैं, उसके पैरों से हर कदम पर चप्पल बाहर छिटक जा रही है, या शायद वो बहुत तंग है जो उसके अकड़े पैरों को अपनी गिरफ्त में लिए हुए है. "मुमकिन है वो भी इस क्षण मेरे बारे में सोच रहा हो कि वो जल्दी मुझसे मिलता और अदला-बदली कर पाता. बहुत से अन्य इंसानी रिश्तों की तुलना में हमारे रिश्ते का बंधन ज्यादा ठोस और स्पष्ट है, तब भी हम कभी नहीं मिल पाएंगे. " दुर्भाग्य के मारे अपने उस अनजाने साथी के प्रति एकता प्रदर्शित करने के लिए मिस्टर पालोमर बेमेल चप्पलों को पहने रहने का फैसला करते हैं ताकि एक महाद्वीप से दुसरे महाद्वीप को होता लंगडाते पैरों का यह प्रतिबिम्बन इस दुर्लभ और परस्पर पूरक रिश्ते को जिन्दा रखे.
वो इस ख्याल पर ठिठकते हैं लेकिन जानते हैं की यह सच के समरूप नहीं है. समानुक्रम में टंके चप्पलों का ढेर समय-समय पर बूढ़े सौदागर के ढेर को भरने के लिए बाजार में आता रहता है. उस ढेर के तल में हमेशा दो बेमेल चप्पलें बची रहेंगी जब तक कि बूढ़ा सौदागर अपना माल ख़त्म नहीं कर लेता (या शायद वह इसे कभी ख़त्म नहीं करेगा और उसकी मौत के बाद उसकी दुकान का पूरा माल उसके वारिसों को मिल जाएगा और फिर उसके वारिसों के वारिसों को), एक चप्पल के लिए सही जोड़ीदार मिल ही जाएगी, बस उस ढेर में तलाशना काफी होगा. गलती बस उसी की तरह के किसी गाफिल ग्राहक के साथ हो सकती है, लेकिन सदियाँ गुजर सकती हैं जबकि इस गलती के नतीजे इस प्राचीन बाजार के किसी अन्य आगंतुक को प्रभावित करें. दुनिया की व्यवस्था में विघटन की सभी प्रक्रियाएं अपरिवर्तनीय हैं, हालांकि उसके नतीजे बड़ी संख्या के घटाटोप में छिपे और विलंबित होते रह सकते हैं. बड़ी संख्या, जिसमें वस्तुतः नए संतुलन, संयोजन और युग्मन की अंतहीन संभावनाएं शामिल हैं.
लेकिन यदि उसकी गलती ने किसी पुरानी गलती को मिटाया भर हो तो ? यदि उसका गाफिल दिमाग अव्यवस्था का नहीं, व्यवस्था का वाहक बना हो तो ? "शायद उस सौदागर ने जानबूझकर ऐसा किया हो" मिस्टर पालोमर सोचते हैं "उस बेमेल चप्पल को मुझे देकर उसने चप्पलों के ढेर में सदियों से छिपी विषमता को दूर किया हो जो उस बाजार में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हो."
वह अनजाना साथी शायद किसी और समय में लंगड़ा रहा था, उनके क़दमों की सममिति एक महाद्वीप से दुसरे महाद्वीप के ही नहीं बल्कि सदियों के फासले को भी पाट रही. इससे उसके प्रति मिस्टर पालोमर के एकता के अनुभव की भावना में कोई कमी नहीं आती. वह अपनी छाया को राहत देते हुए वैसे ही अटपटे ढंग से पैर घसीटते चलते हैं .
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(यह अनुवाद इटालो कालविनो (Italo Calvino) की किताब मिस्टर पालोमर के आखिरी अध्याय का है. मेरे प्रिय रचनाकारों में से एक कालविनो के बारे में विस्तृत परिचय के लिये हमारे जमाने पर सर्वाधिक एहसान करने वाले गूगल (सर्च) की मदद लें. अनुवाद मनोज पटेल का है. यह उम्मीद भी कि मनोज द्वारा समूची किताब का अनुवाद भी हमें जल्द ही पढ़ने को मिलेगा.)
"शायद इस समय" मिस्टर पालोमर सोचते हैं "उस देश में एक और शख्स बेमेल चप्पल की जोड़ी पहने घूम रहा होगा. " और वो एक दुबली-पतली छाया को रेगिस्तानी इलाके में लंगडाकर चलते देखते हैं, उसके पैरों से हर कदम पर चप्पल बाहर छिटक जा रही है, या शायद वो बहुत तंग है जो उसके अकड़े पैरों को अपनी गिरफ्त में लिए हुए है. "मुमकिन है वो भी इस क्षण मेरे बारे में सोच रहा हो कि वो जल्दी मुझसे मिलता और अदला-बदली कर पाता. बहुत से अन्य इंसानी रिश्तों की तुलना में हमारे रिश्ते का बंधन ज्यादा ठोस और स्पष्ट है, तब भी हम कभी नहीं मिल पाएंगे. " दुर्भाग्य के मारे अपने उस अनजाने साथी के प्रति एकता प्रदर्शित करने के लिए मिस्टर पालोमर बेमेल चप्पलों को पहने रहने का फैसला करते हैं ताकि एक महाद्वीप से दुसरे महाद्वीप को होता लंगडाते पैरों का यह प्रतिबिम्बन इस दुर्लभ और परस्पर पूरक रिश्ते को जिन्दा रखे.
वो इस ख्याल पर ठिठकते हैं लेकिन जानते हैं की यह सच के समरूप नहीं है. समानुक्रम में टंके चप्पलों का ढेर समय-समय पर बूढ़े सौदागर के ढेर को भरने के लिए बाजार में आता रहता है. उस ढेर के तल में हमेशा दो बेमेल चप्पलें बची रहेंगी जब तक कि बूढ़ा सौदागर अपना माल ख़त्म नहीं कर लेता (या शायद वह इसे कभी ख़त्म नहीं करेगा और उसकी मौत के बाद उसकी दुकान का पूरा माल उसके वारिसों को मिल जाएगा और फिर उसके वारिसों के वारिसों को), एक चप्पल के लिए सही जोड़ीदार मिल ही जाएगी, बस उस ढेर में तलाशना काफी होगा. गलती बस उसी की तरह के किसी गाफिल ग्राहक के साथ हो सकती है, लेकिन सदियाँ गुजर सकती हैं जबकि इस गलती के नतीजे इस प्राचीन बाजार के किसी अन्य आगंतुक को प्रभावित करें. दुनिया की व्यवस्था में विघटन की सभी प्रक्रियाएं अपरिवर्तनीय हैं, हालांकि उसके नतीजे बड़ी संख्या के घटाटोप में छिपे और विलंबित होते रह सकते हैं. बड़ी संख्या, जिसमें वस्तुतः नए संतुलन, संयोजन और युग्मन की अंतहीन संभावनाएं शामिल हैं.
लेकिन यदि उसकी गलती ने किसी पुरानी गलती को मिटाया भर हो तो ? यदि उसका गाफिल दिमाग अव्यवस्था का नहीं, व्यवस्था का वाहक बना हो तो ? "शायद उस सौदागर ने जानबूझकर ऐसा किया हो" मिस्टर पालोमर सोचते हैं "उस बेमेल चप्पल को मुझे देकर उसने चप्पलों के ढेर में सदियों से छिपी विषमता को दूर किया हो जो उस बाजार में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हो."
वह अनजाना साथी शायद किसी और समय में लंगड़ा रहा था, उनके क़दमों की सममिति एक महाद्वीप से दुसरे महाद्वीप के ही नहीं बल्कि सदियों के फासले को भी पाट रही. इससे उसके प्रति मिस्टर पालोमर के एकता के अनुभव की भावना में कोई कमी नहीं आती. वह अपनी छाया को राहत देते हुए वैसे ही अटपटे ढंग से पैर घसीटते चलते हैं .
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(यह अनुवाद इटालो कालविनो (Italo Calvino) की किताब मिस्टर पालोमर के आखिरी अध्याय का है. मेरे प्रिय रचनाकारों में से एक कालविनो के बारे में विस्तृत परिचय के लिये हमारे जमाने पर सर्वाधिक एहसान करने वाले गूगल (सर्च) की मदद लें. अनुवाद मनोज पटेल का है. यह उम्मीद भी कि मनोज द्वारा समूची किताब का अनुवाद भी हमें जल्द ही पढ़ने को मिलेगा.)
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