Monday, December 13, 2010

जूलियन पॉल असांज के लिये एलिस वॉकर एक कविता समर्पित करती हैं..


असांज पर कुछ भी कहते हुए अमेरिका, स्वीडन या अन्य विकसित देशों का जिक्र इतनी दफा आयेगा और इतने बुरे किरदार की तरह आयेगा कि आप सोचेंगे: क्या यही लोग हैं जो चीनी नागरिक, राजनीतिक कैदी और शांति के लिये नोबेल पुरस्कार विजेता ल्यू जिआबाओ के लिये इतनी लम्बी लम्बी हाँक रहे हैं? टाईम पत्रिका का कवर फोटो यहाँ देने का सिर्फ एक ही मकसद है कि अमेरिका किस तरह असांज से खौफजदा है इसे बार बार बताने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इतना काफी है देखना कि असांज का मुँह किस देश के झंडे ने बान्ध रखा है.

विकीलिक्स के एडीटर-इन-चीफ जूलियन पॉल असांज के पास ऐसा क्या है जिससे कल का यह नायक( इकॉमोनिस्ट फ्रीडम ऑफ एक्स्प्रेशन अवार्ड, एम्नेस्टी इंटरनेशनल मीडिया अवार्ड आदि से सम्मानित) अब खलनायक बन चुका है? तथ्य यह है कि विकीलिक्स के पास जितनी सूचनायें अमेरिका सम्बन्धित हैं उनमें मात्र छ: फीसद सामग्री ही गोपनीय है.

बलात्कार के जिन आरोपों के तहत असांज को गिरफ्तार किया गया है वे दरअसल छद्म हैं यह किसी से छुपा नहीं. यह तक कि पीड़िता ने भी पहली दफा जब मुकदमा वापस लिया था तो उसके दलील यही थे: यह रजामन्दी से बने सम्बन्ध के दरमियान एक दुर्घटना थी. अब जब सरकारों की मुश्किलें बढ़ने लगी थी तो उस मुकदमें को पुन: शुरु किया गया.

असांज द्वारा किये गये कार्यों को जानना बेहद जरूरी है. वो चाहे कीनिया में राजीनितिक प्रतिद्वदिता में हुई सरकारी हत्याओं का खुलासा हो या अमेरिकी केब्लस का प्रसारण हो, ये सारे कार्य पत्रकारिता के मानक स्तर को और ऊँचा कर देते हैं. असांज ने पत्रकारिता और सूचना प्रसारण सम्बन्धित क्या ही मानीखेज बात कही है: भौतिकी का कोई शोध पत्र लिखने का कार्य हम बगैर पर्याप्त प्रयोग और डाटा के नहीं कर सकते और ठीक यही मानक पत्रकारिता में भी लागू होने चाहियें.

इन्ही जरूरतों के दस्तावेज असांज जमा कर रहें हैं. सत्ता चूकि वे दस्तावेज किसी कीमत पर उपलब्ध नहीं करा सकती इसलिये असांज को हैकिंग इत्यादि जैसे जरा कम नैतिक तरीके अपनाने पड़े और ऐसा कहते हुए भी हमें यह नहीं भूलना होगा कि असांज के उद्देश्य क्या हैं. वार लॉग्स पर टिप्पणी करते हुए वह कहतें हैं: हमें एक ही जीवन मिलता है. इसलिये समय का सदुपयोग और सार्थक इस्तेमाल ही हमारा कर्तव्य होना चाहिये....मैं कमजोरो की ओर से बोलने में ही अपने जीवन की सार्थकता देखता हूँ..और हाँ हरामजादों(bastards) को कुचलने में भी. जाहिर है, इस गाली का प्रयोग असांजे अभिधा में नहीं कर रहे हैं.

हालिया खबर यह है कि अमेरिका, असांजे पर जासूसी के आरोप लगाकर उनपर मुकदमा चलाने की पूरी तैयारी कर चुका है. अब चूकि एक बार वे गिरफ्त में आ चुके हैं तो कितना आसान होगा अमेरिका के लिये असांज का कुचलना, यह हम देखा करेंगे परंतु किसी नाउम्मीदी से नहीं, इस उम्मीद से कि असांज सही सलामत इस जाल से निकल आयें. यहाँ यह कहना मुनासिब होगा कि असांज आधुनिक युग के नायक हैं हर उस इंसान के, जो सपने देखता है.

पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त एलिस वॉकर ( चर्चित उपन्यास ‘द कलर पर्पल’ की लेखिका ) ने अपनी वेबसाईट पर अपनी यह कविता असांज को समर्पित की है, जिसका हिन्दी अनुवाद मनोज पटेल का है:-

मत बनो किसी के दुलारे : एलिस वाकर

(जूलियन असांज के लिए)


मत बनो किसी के दुलारे

रहो बिरादरी से बाहर

अपनी ज़िंदगी के विरोधाभासों को

लपेट लो एक दुशाले की तरह,

पत्थरों से बचने के लिए

और रखने की खातिर खुद को गर्म.

देखो लोगो को

खुशी खुशी पागलपन की गर्त में समाते हुए

करतल ध्वनि के बीच ;

उन्हें तिरछी नजरों से देखने दो खुद को

तुम भी देखो उन्हें तिरछी नजरों से ही जवाब में.

रहो बिरादरी से बाहर ;

खुशी-खुशी एकला चलो

(बेचैन)

या भीड़ भरे नदी के पाटों में

कतारबद्ध हो जाओ

दूसरे पोगा पंडितों के साथ.


किनारे पर एक खुशदिल महफ़िल बनो

जहां हज़ारों बर्बाद हो गए

नुकसान पहुंचाती

अपनी निडर बातों के लिए.

किसी के दुलारे मत बनो मगर;

भले बने रहो

बिरादरी से बाहर

मुर्दों के बीच में

ज़िंदा रहने के काबिल बनो.


अनुवादक से सम्पर्क: (+91) 98385-99333.. manojneelgiri@gmail.com























19 comments:

anurag vats said...

kitna bhari padta hai ek aadmi ka kaamkaz ek garvonmatt desh par...oh!!!...do-char aur kii darkar hai...

ANIRUDDH DWIVEDI said...

ज़िंदा रहने के काबिल बनो.
इस जज्बे को सलाम

shesnath pandey said...

कविता असांज के संघर्षों के साथ खड़ी होती है...

Farid Khan said...

इसे यहाँ पोस्ट करने के लिए आभार।

अनिल जनविजय said...

असांज बड़ा काम कर रहे हैं । अमरीकी लोकतन्त्र और बोलने की आज़ादी कितनी नकली है, यह साफ़ दिखाई दे रहा है। अमरीका का 'दुलारा न बनना'
आसान है, दुश्मनों की सूची में जानबूझकर शामिल हो जाना बेहद मुश्किल काम है । असांज ने यही काम किया है। उन्हें मेरा लाल सलाम।

kundan pandey said...

Though, few countries like Russia and Australia have come forward in the support of Assange, but, it is quite tough to say anything about his future, viewing so-called high morality of oldest democratic country of the world. We have seen in Vietnam, Iraq, Afghanistan and in other countries also.

I was watching television day before yesterday and programme based on Assange was going on with heading, “Journalism or Terrorism”. As usual, the anchor was trying to clarify the real scene and intention of Assange.

Even, there is an article published in the last second last issue of Tehelka published so far, with very same concept. In the article, the writer, a retired military man, says that armed forces secure boundaries of any country with the risk of their life. But, such kind of self-claimed journalism has put the country (USA) on threat, the writer claimed.
He put question on the intention of Assenge, asserting that definitely it would not be public welfare.

For the sake of information only, Tehelka has mentioned that the view represented by the writer is his own.

Promoter of global village (self claimed mukhiya of the village) is facing a lot of problem, when villagers have got knowledge about the approach the mukhiya is carrying about them. Courtesy Assange.

Whoever has suspicion over the role of Assange and his intention, should introspect. Everything would become quite clear.

Thanx for the post and thanx to Assange from bottom of my heart.

Unknown said...

Ansaj did what we need to know... Its a waka up call

नवीन कुमार "रणवीर" said...

हमारे देश की जेलों में भी ना जानें कितनें ऐसे असांज बंद होंगे?
यहां भी तो बोलनें पर जेल में डाल दिया जाता है।

Rangnath Singh said...

आज की तारीख में इससे सार्थक पोस्ट कोई दूसरी नहीं हो सकती।

विजय गौड़ said...

anuwaad ke liye manoj ji ka aabhar aur sukriya aapka ise paathko tak pahunchane ka.

ashmantak said...

liked the post.....gud one

Arun sathi said...

मुर्दों के बीच में
ज़िंदा रहने के काबिल बनो.

संदीप कुमार said...

जूलियन पॉल असांज के बारे में बात करने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता। एक ऐसे समय में जबकि देश का घोटालाकाल और देश में पत्रकारिता जगत के (स्वयंभू ) नायकों का पतनकाल पूरी गति से चल रहा है। बरसों बरस में गढ़ी मूर्तियों का ऐसा काला कुरूप सच सामने आ रहा है, दुनिया बदलने का सपना लेकर पत्रकारिता की दुनिया में आई हम जैसों की एक पूरी पीढ़ी मजबूरन या
तो तर्जुमे को जीवन का आखिरी सच मान बैठी है या फिर पीआर एजेंसी से आने वाली कैब और उसके सस्ते महंगे तोहफों को, वैसे में जूलियन असांज नामक का आदमी दरअसल तराशा हुआ ऐसा चकाचौंध आईना है जिसमें हममें से कई अपनी काली शक्लें देखने में डर रहे हैं। सारी दुनिया में गंध मचाने वाले अमेरिका के
लिए मेरे पास कोई गाली नहीं है तो यह भी उतना ही सच है कि असांज के सम्मान में कहने के लिए भी मेरे पास शब्दों का अभाव है। सिर्फ सम्मान है। असांज सिर्फ के काम को महज खोजी पत्रकारिता या ऐसे ही किसी और सनसनीखेजशब्द में नहीं बांधा जा सकता। उन्होंने जो जीवन स्वेच्छा से चुना है उसे हममें से अधिकांश मजबूरी में भी जीना नहीं चाहेंगे। शायद यही अंतर उन्हें असांज बनाता है।

रही बात अमेरिका की तो मुझे नहीं लगता कि उस नामुराद देश के पास इतना धैर्य है कि वह असांज को सजा सुनाने के लिए किसी प्रक्रिया की प्रतीक्षा करेगा। किसी भी दिन असांज को गोली लगने या किसी दुर्घटना में उनकी मौत की खबर आ सकती है और हमें इसके लिए मानसिक रूप से तैयार रहना होगा।
लेकिन एक फर्क तो आया है इस दरमियान। दुनिया के किसी कोने में जब भी कभी,शोषण, सच्चाई, साहस की बात होगी तो वह दरअसल जूलियन असांज की बात होगी।
हमेशा की तरह एक बार फिर वही चिरपरिचित खेल चालू हो गया है झूठ के साथ सच्ची लड़ाई में कथित नैतिकता को हथियार बनाकर सच को परास्त कर देने काखेल। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि हर बार की तरह जूलियन असांज एक बार फिर विजेता होकर निकलेंगे और अगर ऐसा नहीं भी होता है तो भी जो सच्चाई का जो
पत्थर वो फेंक चुके हैं वह समय के गर्भ में जाकर ठहरेगा और एक ऐसी पूरी पीढ़ी तैयार करेगा जो झूठ और अन्याय की आंखों में आंखें डालकर उनका प्रतिकार करेगी।

शशिभूषण said...

जूलियन पॉल असांज की गिरफ़तारी दमनकारी सत्ता द्वारा स्त्री अधिकार का अनुचित इस्तेमाल भी है.यहीं से यह भी देखा जा सकता है कि सच के लिए,कमज़ोरों के लिए उठे हुए सिर और प्रतिबद्ध हाथों को कुचलने के लिए कैसे स्त्री अस्मिता को भी हथियार की तरह सम्हालकर रखा जाता है.वे इतने नृशंस हैं कि सच और सूचना के दमन का कोई रास्ता अपना सकते हैं यह जानना भयावह है.

दुनिया की वे नारीवादी ता़क़तें कहाँ हैं जिनके पास सच के साथ खड़े होने की हिम्मत है...यह लड़ाई तभी जीती जाएगी जब औरतें भी लड़ेंगी.क्या दुनिया के किसी देश में अब तक सच्ची लड़ाई में आगे आनेवाली स्त्रियाँ सचमुच पीछे हैं?...

संदीप की बात ग़ौर करने लायक है-हमेशा की तरह एक बार फिर वही चिरपरिचित खेल चालू हो गया है झूठ के साथ सच्ची लड़ाई में कथित नैतिकता को हथियार बनाकर सच को परास्त कर देने का खेल.

पोस्ट के बारे में क्या कहूँ?
बेहद ज़रूरी और सार्थक है.
चंदन और मनोज का हौसला यूँ ही क़ायम रहे.

डॉ .अनुराग said...

असांज जैसे लोग एक बेहतर दुनिया के आवश्यक टूल है .....जो अमेरिका का या किसी भी सत्ता का असल चेहरा बेरहमी से सामने रखते है ....दरअसल वे चौथे खम्बे की नई डेफिनेशन है.....

नया सवेरा said...

... ek shaandaar post !!!

Aparna Mishra said...

Thanks for the post Chandan.....

madan soni said...

सत्ता--वह चाहे चीन की हो या अमेरिका की या कहीं और की--अपने अपराध-बोध और अंदरूनी भय का प्रतिकार ऐसी ही हिंसा से करती है. मैं असान्ज के साहस और एलिस वॉकर के प्रतिरोध को प्रणाम करता हूँ.
मदन सोनी

मनोज पटेल said...

नई बात के साथियों के लिए :
तस्लीमा नसरीन फेसबुक पर,- ''Leaks do not kill people. Secrets do.''

और नाओमी क्लीन twitter पर, - " Rape is being used in the #Assange prosecution in the same way that women’s freedom was used to invade Afghanistan. Wake up!"