यह तस्वीर करनाल रेलवे स्टेशन पर ली गई है। उस आदमी ने, जिसके हाथ में हथकड़ी लगी है, मेरे सामने वह किताब खरीदी जो उसके हाथ में है। दोनों पुलिस वाले उतनी देर उस रस्सी, और उस रस्सी में बँधे आदमी, को थामे खड़े रहे जब तक की उस आदमी ने, जिसके हाथ में हथकड़ी लगी है, अपनी मनपसन्द किताब नहीं खरीद ली। वो किताब ज्योतिष की है। उस आदमी ने, जिसके हाथ में हथकड़ी लगी हुई है, पुलिस वालों को कुछ देर ज्योतिष में अपनी रुचि और गहरे ज्ञान के बारे में बताता रहा जब तक कि उनके प्रतीक्षित रेल की सूचना नहीं हुई।
मुझे यह दृश्य अजब लगा। लगा कि क्या बात है! और आश्चर्य कि तस्वीर को अब ध्यान से देखने के बाद एक नितांत नई और उतनी ही ताकतवर गुत्थी बनती नजर आई – पिछे बैठा प्रेमी युगल। कौन नहीं जानता कि करनाल जैसी छोटी जगहों पर प्रेम करने वालों के लिए ऐसी सुखद मुलाकात परिकल्पना या गप्प होती है।
19 comments:
और एक गुत्थी यह भी कि वही पुलिस वाला जो अपराध करने अथवा अपराध करने के आरोपी को पकडे हुए है, चित्र में रेल्वे की पटरी पार करने का अपराध कर रहा है :)
गुत्थियां ही गुत्थियां :)
बहुत बढ़िया !! एक ही चित्र में इतनी गुत्थियां!!
एक गुत्थी ये भी है कि ये कैसे पता चला कि पीछे बैठे प्रेमी युगल ही हैं ?
आवेश जी सही कह रहे हैं ...चन्दन !
वही वाह क्या बात है गुत्थी में गुत्थी
वाह क्या बात हो गयी अजय जी
एक और गुत्थी में गुत्थी हो गयी अजय जी दो- दो बार आप छा गये वाह क्या बात है.
अविनाश जी को जन्म दिन की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.
ये लीजिए अनजाने में एक गुत्थी बन गई न । उधर का कमेंट इधर आ गया ।
क्या बात है अजय जी गुत्थी में गुत्थी को सुलझाने की कोशिश कर रहे हो
अर्कजेश जी क्या बात है आपका कमेंट तो खुद एक गुत्थी में गुत्थी बन गया कौनसा कमेंट कहाँ गया कुछ पता ही नहीं चला
:)
घुघूती बासूती
उस कैदी के पास पैसे होने चाहिये थे क्या कानूनन किताब खरीदने के लिए??
पता नहीं यह मेरी गुत्थी है या अज्ञानता!!
समीर जी (उड़न तश्तरी वाले), कानून का तो मुझे भी खुद कुछ पता नहीं, पर जब आप गिरफ्तार हो रहे होते है और होकर थाने जा रहे होते हैं तो आपके पास सब कुछ होता है। वैसे मैने कैदी या इसके समानार्थी शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया है।
आवेश जी, किसी सम्भावना से कोई बात बढ़ती नजर आये तो सम्भानाओं को पंख पसारने देने में शायद ही कोई हर्ज हो। वैसे आपकी ही बात पर मैं यों कहूँ कि ये प्रेमी युगल मेरा परिचित है तो शायद आप संतुष्ट हो जावें।
acha hai!!!!
pati-patni kabhi premi ugal nahi ho sakte kya, yo mharo haryano sa, athe kuchh bhi ho ske h.
apane parichit par aapaki najar itane der se gai... vah bhee tasveer ko itanee gaur se dekhane ke baad. chandan ji aisee kalpanasheelata (avishvasneeyata) ko apanee kahani tak hee rahane deejiye. yahaa yadi aavish ji aur sirish kumar ji ne ek takniki khamee batai hai to use udarata se swikariye.har vaakya par daad jarooree nahee hai, kabh-kabhi khujalee ka maja bhee uthana sikhiye.
DHANANJAY
achha hai par kuch missing hai
santosh
bahut khub
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