नये साथियों की सूची में यह होनहार नाम - श्रीकांत दुबे। बाईस की कुल उम्र। हरेक ईमानदार की तरह, पहला प्रेम ही इनके जीवन की पहली रचना हुई। गोरखपुर से बनारस से दिल्ली से अभी बंगलौर। ‘’पूर्वज” कहानी से और साथ ही अपने शानदार व्यवहार से भरपूर चर्चित। पॉच वर्षों के सघन और उर्जावान प्रेम के बाद एक दिन अचानक प्रेमिका को घर की याद आ गई और उसके बाद हमने, हम सबने, किस्से कहानियों में नहीं, असल जीवन में प्रेम का घातक असर देखा। “पहला प्रेम जब राख हो गया खुद को बचाया उस साँवली नृत्य शिक्षिका ने..दंगे के खिलाफ दिखी वह प्रभातफेरी में..” की जीवनदायिनी तर्ज पर श्रीकांत ने खुद को कविता और नौकरी के सहारे बचाया। हम सब उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।
बेहोशी
एक छोटी मृत्यु है बेहोशी.
बेहोशी के बाद होश आना एक पुनर्जन्म के जीवन की तरह है
बेहोशी के बाद बेहोशी के पहले की याददाश्त का धीरे धीरे वापस
आ जाना पिछले जन्म की विरासत को बदस्तूर अगले जीवन
तक लाये जाने जैसा है.
बेहोशी कि प्रक्रिया के दौरान अधिकतम चीज़ों का यथावत
रह जाना एक सुखद आश्चर्य भी हो सकता है लेकिन यह भी
संभव है कि बेहोशी के बाद के समय में बेहोशी के पहले की
याददाश्त कभी वापस न आती हो और बेहोश होने वाला तमाम
दूसरी मान्यताओं की ही तरह बेहोशी की घटना को अपने अतीत से
जुड़ा मानने लगे और पृथ्वी पर सृष्टि के इतिहास की अनेक
व्याख्याओं की तरह उसके मस्तिष्क ने भी अपनी बेहोशी
के पहले के जीवन की एक कहानी गढ़ ली हो और इस अचानक
गढ़े तिलिस्म में पूरी दुनिया सहायक की भूमिका निभाने
लगी हो. कुछ नहीं बदलने का बोध एक अनिवार्य भ्रम भी संभव
है जैसा कि रेटिना पर बने उलटे प्रतिबिम्ब को मस्तिष्क द्वारा हर बार
सीधा देखे जाने की स्थिति में होता है.
बेहोशी संभावनाओं का एक आकाश भी है जिसके भीतर सबसे
सुखद चीज़ प्रेम नहीं है. बेहोशी की दुनिया के भीतर हमारी
भाषाएं और व्याकरण अनावश्यक चीज़ें हैं और संभव है
कि वहाँ अभिव्यक्ति का कोई माध्यम अपनी सदियों जारी
विकास प्रक्रिया को जल्द ही पूरी कर लेने वाला हो जिसके बाद बेहोशी के
भीतर के जीवन कि दिलचस्प कथाएँ, इतिहास, मिथक और
तकनीकों पर बहस और शोधों का सिलसिला चले बेहोशी के बाहर
के जीवन में ब्रह्माण्ड के एक ही ग्रह पर खोजे गए जीवन के इन दोनों स्तरों
में सूचनाओं और संचार का विकास भी जारी हो जाए और दोनों के
बीच संस्कृतियों, रहन सहन और एक दूजे के
इतिहास से उठाए प्रेरक प्रसंगों की अदला बदली भी.
इन दोनों के सिवाय एक तीसरी दुनिया के बारे में भी सोचा जा
सकता है जो मृत्यु है और जिसके भीतर बेहोशी की दुनिया के भीतर के
रहस्यों से कई गुना अधिक संभावनाएं अब तक छुपी हुई हैं
लेकिन बेहोशी और मृत्यु के बाहर के जीवन से दोनों को एक
साथ देखने पर इनमें ढेर सारी चीज़ें एक जैसी लगती हैं.
एक संभावित निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है
मृत्यु एक लम्बी बेहोशी है.
बेहोशी के बाद होश आना एक पुनर्जन्म के जीवन की तरह है
बेहोशी के बाद बेहोशी के पहले की याददाश्त का धीरे धीरे वापस
आ जाना पिछले जन्म की विरासत को बदस्तूर अगले जीवन
तक लाये जाने जैसा है.
बेहोशी कि प्रक्रिया के दौरान अधिकतम चीज़ों का यथावत
रह जाना एक सुखद आश्चर्य भी हो सकता है लेकिन यह भी
संभव है कि बेहोशी के बाद के समय में बेहोशी के पहले की
याददाश्त कभी वापस न आती हो और बेहोश होने वाला तमाम
दूसरी मान्यताओं की ही तरह बेहोशी की घटना को अपने अतीत से
जुड़ा मानने लगे और पृथ्वी पर सृष्टि के इतिहास की अनेक
व्याख्याओं की तरह उसके मस्तिष्क ने भी अपनी बेहोशी
के पहले के जीवन की एक कहानी गढ़ ली हो और इस अचानक
गढ़े तिलिस्म में पूरी दुनिया सहायक की भूमिका निभाने
लगी हो. कुछ नहीं बदलने का बोध एक अनिवार्य भ्रम भी संभव
है जैसा कि रेटिना पर बने उलटे प्रतिबिम्ब को मस्तिष्क द्वारा हर बार
सीधा देखे जाने की स्थिति में होता है.
बेहोशी संभावनाओं का एक आकाश भी है जिसके भीतर सबसे
सुखद चीज़ प्रेम नहीं है. बेहोशी की दुनिया के भीतर हमारी
भाषाएं और व्याकरण अनावश्यक चीज़ें हैं और संभव है
कि वहाँ अभिव्यक्ति का कोई माध्यम अपनी सदियों जारी
विकास प्रक्रिया को जल्द ही पूरी कर लेने वाला हो जिसके बाद बेहोशी के
भीतर के जीवन कि दिलचस्प कथाएँ, इतिहास, मिथक और
तकनीकों पर बहस और शोधों का सिलसिला चले बेहोशी के बाहर
के जीवन में ब्रह्माण्ड के एक ही ग्रह पर खोजे गए जीवन के इन दोनों स्तरों
में सूचनाओं और संचार का विकास भी जारी हो जाए और दोनों के
बीच संस्कृतियों, रहन सहन और एक दूजे के
इतिहास से उठाए प्रेरक प्रसंगों की अदला बदली भी.
इन दोनों के सिवाय एक तीसरी दुनिया के बारे में भी सोचा जा
सकता है जो मृत्यु है और जिसके भीतर बेहोशी की दुनिया के भीतर के
रहस्यों से कई गुना अधिक संभावनाएं अब तक छुपी हुई हैं
लेकिन बेहोशी और मृत्यु के बाहर के जीवन से दोनों को एक
साथ देखने पर इनमें ढेर सारी चीज़ें एक जैसी लगती हैं.
एक संभावित निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है
मृत्यु एक लम्बी बेहोशी है.
..................................श्रीकांत
(पूर्वज कहानी तद्भव 16 में प्रकाशित)
(कोट की हुई कविता पंक्ति मशहूर कवि आलोक धन्वा की कविता “सात सौ साल पुराना छन्द” से है।)
(कोट की हुई कविता पंक्ति मशहूर कवि आलोक धन्वा की कविता “सात सौ साल पुराना छन्द” से है।)
18 comments:
बहुत सुन्दर कविता श्रीकांत जी। निरंतर लिखते रहिये।
चन्दन जी, कविता के साथ साथ आपका कवि से परिचय कराने का तरीका भी बहुत अच्छा है। आपका लिखा हुआ परिचय पढ़ कर कवि का मान और बढ़ जाता है मन में।
मेरे पास एक फोटो है - चिर युवा वाचस्पति जी और....मैं, चन्दन, अनिल, मयंक और हमारा ये श्रीकांत चौबे..
***
मुझे याद आया
मेरे प्रिय कवि वीरेन डंगवाल का ये कथन कि
'प्रेम तुझे ख़ुश और तबाह रखेगा....'
बुदबुदाते हुए कहा मैंने
बड़े भाई जीवन अगर फला तो इसी तबाही के बीच ही कहीं फलेगा.
***
श्रीकांत की कविता ने कई पुराने पन्ने पलटाये हैं....उसे मेरी शुभकामनायें.
अच्छी कविता। बधाई।
Shandar kavita k liye srikant ko badhai aur bahut dinon bad srikant se bhent karane k liye chandan ko badhai
awesome!!!!!!!!!
shrikant meri badhaee swikaren.
gr8 go ahead my buy
मेरे प्यारे दोस्त श्रीकांत हमेशा खुश रहो । तुम्हारी कविता तो अच्छी है ही पर इस कविता में एक बात जो सबसे अच्छी है वो है कि जीवन के विभिन्न पहलुओं को बड़ी ही गहराई से समझकर तुमने अपनी रचना में उतारने की कोशिश की है । मेरी शुभकामनाएं हमेशा तुम्हारे साथ हैं । संतोष यादव
bahut accha shrikant ji lage rho
hum to kayal ho gaye...........!
Really different!! Bahot acchhe Shrikant Ji-Ashutosh
bahut badhiya mai nahi janta tha ke tum itana achha likhte ho bahut bahut badhai bhai!
Binod mishra.
behoshi ko anek prapekshya mein dekhana aapke giyan aur anubhav ka parichayak hai. haan kavita mein philosophy achcha hai. par aam pathak k liye thoda samajh se pare ho sakta hai. congratulation. dher sari badhaiyan. yunhi aise likhte rahein.
ब्लॉग की दुनिया में यह मेरा पहला दाखिला था, जिसे आप सब ने मेरी उम्मीदों से आगे बढ़कर सराहा. आपकी टिप्पड़ियों ने मुझे लिखने, और चूंकि इस मामले में काफी आलसी हूँ, इसलिए लिखते रहने की प्रेरणा दी.
आप सब को बहुत बहुत शुक्रिया.
श्रीकांत दुबे
जीवन-मृत्यु पर यह एक उम्दा दार्शनिक कविता है. श्रीकांत भाई को मेरी बधाई. और आपको प्रस्तुति के लिए.
चंदन भाई एक बात और... क्या यह वही श्रीकांत है जिनकी कविता मुक्तिबोध स्मृति 2008 में पुरस्कृत हुई है....
@शिरीष भइया, दरअसल श्रीकांत, दुबे है। चौबे नही।
@ प्रदीप जी, वही श्रीकांत है।
bahut good
very nice to hear that it will give energy to write more nd more...nd it can also be useful to break ur laziness...than dont worry i will be there till lambi behosi...
nd my friend as u have found way for urself by ur own...i dont think that these words can boost u...there are some more reasons to keep ourself in behosi...may those people dont want to fight but dont worry...u have broken ur behosi so congrats nd keep blossoming in this new avatar on blog...
Post a Comment