सुबह सुबह बस स्टॉप पर कहीं नहीं जाने के लिए खड़े
होने की बहुत सी वजहें हो सकती हैं मसलन ये कि यह
क्रम बदस्तूर पिछली कई सुबहों से जारी है और इस
निरंतरता में मिल गया है कोई ऐसा अर्थ जो जीवन
की लगातार जारी प्रक्रिया में और कहीं संभव नहीं था.
सुबह सुबह बस स्टॉप पर कहीं नहीं जाने के लिए खड़े होने के मामले में ऐसा भी
हो सकता है कि यह पूरी रात लगातार खड़े रहने के बाद के सुबह की स्थिति हो और
खड़े होने वाले का साथ रात के विस्तृत वीरान और अँधेरे के सिवाय किसी मकान के कमरे से बमुश्किल पहुँच रही एक टुकड़ा रौशनी और बलगम से जकड़ी लम्बी लम्बी खांसियों ने दिया हो.
इसकी एक वजह के तौर पर यह भी सोचा जा सकता है कि
मेहनत और पसीने से कमाई शुरू करने वाला कोई पूंजीपति
सामने की सड़क पार वाले विशालकाय घर और पूंजी के रूप
में अपनी पत्नी और संतानों के असुरक्षाबोध से ग्रस्त रात भर
उनकी रखवाली किया हो अथवा अपनी पत्नी, बेटे और बहुओं
द्वारा खुद को घर में पडी एक गैरज़रूरी चीज़ मान लिए जाने
की उपेक्षा में पूरी रात बस स्टॉप की खुली छत के नीचे खड़ा
खुद के किये को कोसता रहा हो.
ऐसा होने का एक और कारण यह भी संभव है कि खड़ा होने वाला सख्स
सूरज की रौशनी के प्रत्येक खुली जगह में बिखर जाने को दिन नहीं मानता और
खुद पर आरोपित दुनिया भर की मान्यताओं से ऊबकर वह अभी अभी सुबह
की सैर पर निकला हो.
और कोई इसलिए भी तो सुबह सुबह बस स्टॉप पर
खड़ा हो सकता है कि उसे किसी ऐसी जगह जाने
वाली बस का इंतज़ार है जहां अब दुनिया की कोई
बस नहीं जाती लेकिन चूंकि उसने किसी ऐसी ही सुबह
में एक बस से उस सफ़र को तय किया था इसलिए उसे
यकीन है कि वह सुबह कभी न कभी फिर से ज़रूर आएगी.
...............................................................श्रीकांत
कवि से सम्पर्क…..shrikant.gkp@gmail.com
19 comments:
कविता के लिए बहुत ही मौजू और सदाबहार विषय है बस स्टॉप पर खड़ा होना, कभी कभी लगता है जिन्दगी के स्टॉप पर भी हम ऐसे ही खड़े हैं।
क्या पता सुबह-सुबह बस स्टॉप पर खड़े होने का यह भी मतलब हो कि वह उसी स्टॉप से अपने दफ्तर के लिए बस पकडती हो ! वजहे तो बहुत सी हो सकती है मगर जो एक दिल को सोचने पर मजबूर कर देने वाला काल्पनिक दृश्य श्रीकांत जी ने अपनी रचना में प्रस्तुत किया वह अच्छा लगा ! आपकी एक सुन्दर प्रस्तुति !
श्रीकांत, थोड़े बहुत हेरफेर के साथ जीवन में हम सभी कभी न कभी इस मनःस्थिति से गुजरते हैं. कभी-कभी मैं बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार करते करते किसी भी बस में बैठ जाती हूं। मुझे बिल्कुल पता नहीं होता है कि यह बस कहां जाएगी। कंडेक्टर के आने के बाद अधिकतम किराये वाला टिकट लेकर खिडकी के किनारे बैठ बहुत ही हल्का महसूस करती हूं। मुझे नहीं मालूम होता यह बस कहां जा रही है बस अच्छा लगता है। कई बार तो आफिस से आने के बाद मैं सोचती हूं कि कहां जाउं? सोचती हूं घर और ऑफिस के बीच का सफर खत्म ही ना हो।
उस आदमी को वह बस जल्द मिले श्रीकांत जिसका उसे इंतजार है, मेरी कामना है। क्योंकि बस के इंतजार की जो संभावनाएं आपने बताई हैं भगवान करे उनमें से कोई सही न हो; ये संभावनाएं कम आशंकाएं ज्यादा हैं न.
श्रीकान्त जी का शब्द चित्र..बस स्टॉप पर एक ऐसा इन्तजार जो बस कभी नहीं आनी है, कुछ जाना पहचाना सा महसूस होने लगा. बहुत उम्दा.
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यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
अच्छी कविता के लिये बधाई श्रीकांत जी। बस स्टॉप हमारे जीवन का हिस्सा हो गया है। उपर से जो प्रतिक्रिया स्वरूप बातें राजेय जी और पूजा जी ने कही हैं वो भी शोचनीय बात है। विशेष कर पूजा जी ने कहा है कि कहीं भी जाने वाली बस में बैठ लेती हैं। मैं भी जब दिल्ली शुरू शुरू में आया था तो बस में ऐसे ही बैठा रहता था। पुन: बधाई। चन्दन बाबू, बढ़िया काम कर रहे हो। कहानी भी लिखो। अगली कहानी कहाँ आ रही है? हाल ही में वसुधा में तुम्हारी कहानी पढ़ी। तुम्हारी कहानियों का पता नहीं चल पाता है। ब्लॉग पर यह सूचना भी देते रहो कि कौन सी कहानी कहाँ छप रही है। क्योंकि फोन करना तो तुम्हे आता नहीं है। एक दिन गौतम जी बता रहे थे कि तुम हैदराबाद से करनाल आ गये हो। बनारस आना तो मुलाकात करना। गौतम जी भी शिकायत कर रहे थे कि उनसे भी तुम नही मिले साल भर से। इतने व्यस्त भी मत हो जाओ। चन्दन हमें तुम पर बहुत नाज है। जहाँ तक तुम्हारी कहानी “ शहर की खुदाई में क्या कुछ मिलेगा” का प्रश्न है तो बस इतना समझ लो कि पढ़ते हुए मैं इतना खो गया था कि डर लग रहा था कहीं कहानी खतम ना हो जाये और मैं बार बार पन्ने गिन रहा था कि कितने पन्ने और कहानी बची है। तुमने एक भोली और इमानदार भाषा अर्जित कर ली है। और ये मेघा वाला पात्र कहाँ ढूंढ लिये? इस कहानी को आगे बढ़ाओ। मेरा फोन नम्बर वही बनारस वाला ही है। फोन करना। - - - -- ------ नागेन्द्र
एक मकसद यह भी हो सकता है कि कभी कोई बस से उतरे जिस का उसे इंतजार हो।
@ समीर जी,
धन्यवाद और आपको भी नववर्ष की आत्मीय शुभकामनाएँ। मुझमें और मेरे ब्लॉग विश्वास दिखाने के लिए आपको तहे-दिल से शुक्रिया।मेरी कोशिश रहेगी कि इन उम्मीदों पर खरा उतरूँ। आप तो ब्लॉग की दुनिया के स्टार हैं, मुझ पर अपना आशिर्वाद बनाये रखियेगा क्योंकि आगे इसकी जरुरत पड़ने वाली है।
एक बार फिर, यह साल आपके लिये हो!
चन्दन.
बहुत बढिया और रोचक लगी रचना ।धन्यवाद।
Srikant ji!!!! It is a good composition.... It wasn't the exact poetic form but the feelings & your words selection was mind blowing.... We all always wait for the right or we can say an imaginary Bus in our life to fit our dreams....
But here many desires are negative, its a kind of suspects rather than expectations.... So, i wish the next Bus will carry all the Positive flow & imaginations......
Hi Srikant!
The Poem is fabulous.You have explained the situation which we all face but ignore.
अच्छी लगी कविता पर इस पर कुछ और काम करते तो अच्छा रहता, एक मन:स्थिति को उठाया है आपने जो जिज्ञासा पैदा करती हैं पर उसके संदर्भ में बिखराव सा है ....अच्छा लगा
कविता आस्वाद के व्यक्ति-सापेक्ष संस्कार होते है। जाहिर है कविता-आस्वादन की मेरी व्यक्तिगत सीमाएं हैं। आपकी कविता पर आई टिप्पणियां पढ़ कर मुझे आपकी कविता समझने में सुविधा हुई। आप बेहतरीन रचनाएं लिखते रहें इसी शुभकामना के साथ।
shrikant ji aapki kavita kaaphi achi lagi.umid hi ki edhar bich aapne apne lekhan ko jo viram de rakha hi usko phir se suru karenge.
'bus stop par kanhi na jane ke liye khada hona' its really good coposition......................abhi kuchh dino pahle maine aap ki KAHANI PURVAJ phir se padi.............U ROCK...........
सूरज का फैलना ही सुबह नहीं है, और वह सुबह जिसका कविता में इंतज़ार है वह जल्द आये और ऐसी प्रतीक्षा हर ओर हो,
श्रीकांत को शुभकामनायें
srikant ji very good poem.
श्रीकांत जी मुझे आपकी कविता बहुत अच्छी लगी . आपकी कहानी सपनों के झूट भी बहुत शानदार थी . उसके बाद से मैं आपका फैन हूँ .
आपको नए वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाए .
श्रीकांत जी मुझे आपकी कविता बहुत अच्छी लगी . आपकी कहानी सपनों के झूट भी बहुत शानदार थी . उसके बाद से मैं आपका फैन हूँ .
आपको नए वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाए .
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