चन्द्रिका। विचारों तथा उम्र से युवा। राजनीति और समाज के बारे में स्पष्ट और तीक्ष्ण समझ। महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय में ‘किसी’ पाठ्यक्रम के छात्र। आप इनके ब्लॉग
http://www.dakhalkiduniya.blogspot.com/ पर इनकी सचेत चिंतन प्रक्रिया तथा सरोकारों से लैस सामाजिक, राजनीतिक चेतना से परिचित होंगे। फैजाबाद से बनारस से अब वर्धा। यहाँ इनकी कवितायें। इनके पास भी खूब सारी प्रेम कवितायें हैं, वो सारी कवितायें ‘नई बात’ पर प्रकाशित होंगी, आपको यह सूचना देते हुए मैं बेहद प्रसन्न हूँ। अलबत्ता आज की कविता प्रेम पर नहीं, गुजरे साल पर है।
बीते सालयह साल बहुत हल्का रहा
इतने हल्के रहे रात और दिन
कि चुरा ले गया कोई
पूरा का पूरा बरस
और हमें पता भी नहीं चला
गर्मी में नहीं हुई कोई गर्मी
बारिश में हम उतना भी
नहीं भींगे जितना
कोई पेड़
कोई पुलिया
कोई रास्ता
हर बार की तरह
एक मोड़ तक आते आते
बदल गया पूरा मौसम
एक छत है आदमी के सिर पर
जो नहीं आने देती
पूरा का पूरा मौसम
डस्टबिन में पड़ा है
बीते साल का कैलेंडर
और वहाँ बची रह गई है
कई सालों की जगह ॥
..........................चन्द्रिका
3 comments:
बहुत बढ़िया!!
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
हल्का रहा !! हमसे तो काटे नहीं कटा साथी ये साल
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
.आप को तथा आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
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