Sunday, December 12, 2010

निजार कब्बानी की कविता

निजार कब्बानी को प्रेम कवि मान कर पढ़ने की आदत हिन्दी भाषाभाषी समाज को पड़ चुकी है. जबकि अपने बारे में खुद निजार कब्बानी क्या कहते हैं, इसे देखिये:
ओ मेरे वतन !
तुमने प्रेम और विषाद के कवि का कायांतरण कर डाला
वैसे कवि में जो
चाकू से लिखने लगा है..

यों तो पूजा सिंह ने 'गुस्सैल पीढ़ी' कविता के माध्यम से कब्बानी के तेवर से परिचय कराया था पर उनके दूसरे कवि रूप से विस्तृत परिचय कराने के लिये मनोज पटेल का आभार. साथ ही यह सुखद समाचार भी कि मनोज ने कब्बानी की कविता पुस्तक ‘ऑन एन्टरिंग द सी’ का प्रवाहमान अनुवाद पूरा कर डाला है. उन्हे बधाई. अनुदित पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य..

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गुलाम देश से आई एक गोपनीय रपट


साथियों !
क्या है कविता गर नहीं करती यह एलान बगावत का ?
गर उखाड़ नहीं फेंकती यह निरंकुश सत्ता को ?
क्या है कविता गर यह नहीं भड़काती ज्वालामुखियों को वहां
जहां हमें उनकी जरूरत है ?
और क्या मतलब है कविता का आखिर
गर यह नोच नहीं लेती दुनिया के ताकतवर बादशाहों के सर से ताज ?


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2 comments:

उत्‍तमराव क्षीरसागर said...

प्रेरक कवि‍ता...ऐसे ही जज्‍़बात से ताक़त मि‍लती है।

Arun sathi said...

मुर्दों के बीच में
ज़िंदा रहने के काबिल बनो.