Thursday, December 17, 2009

कैसे बताऊँ राज-ए-इश्क....

एक बार फिर करनाल रेलवे स्टेशन।

यह तस्वीर पोस्ट करते हुए एक संकोच मन में लगातार बना रहा कि इसे इजहार का अश्लील नमूना ना समझ लिया जाये और मेरे इस प्रयास को एक उच्श्रृंखल व्यवहार। जबकि मेरा यह भरपूर मानना है कि और जो भी हो, यह कहीं किसी कोने से अश्लील इजहार नहीं है। साथ ही यह भी, बचपन से ऐसी लिखावटों को पढ़ना ठीक लगता है। इजहार के ये तरीके आकर्षण लिए रहे हैं। मालगाड़ियों के लाल डब्बों पर लिखी ये इबारतें अक्सर पढ़ने को मिलती हैं। कहीं कहीं तो गाँव कस्बे का नाम भी दर्ज मिलता है। लड़के और लड़की का नाम भी। मैं सोचता हूँ कि इतनी मेहनत करने की हिम्मत जुटाना भी एक बात है। जिस किसी आशिक ने इसे लिखा होगा उसे जब कभी इसकी याद आती होगी वो, शायद, मुस्कुराता होगा और पुन: एकाध बीते ख्यालों से गुजर कर अपने काम में लग जाता होगा। दक्षिण मध्य रेल के इस डब्बे पर लिखी यह इबारत कहाँ कहाँ घूम आई होगी।

13 comments:

शरद कोकास said...

सिर्फ मालगाड़ी के डिब्बे ही क्यों हमारे देश के आशिकों ने तो कुतुबमीनार और अन्य ऐतिहासिक इमारतों को भी नहीं बक्षा है । इन्हे यह नहीं पता है कि यह क्या नुकसान कर रहे हैं ।यह हिम्मत की बात नही.पागलपन है । महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलो पर इस तरह की हरकते देख कर हमे शर्म आती है ।

Unknown said...

चन्दन भाई, आपने बड़े बड़े पत्थरों पर लिखे इजहार नहीं देखे हैं क्या? वो तो इससे भी ज्यादा रिस्की होता है। वैसे प्रेम करनों वालों के पक्ष में खड़े होने का आपका तरीका भा गया।

Udan Tashtari said...

इसे दीवार पर लिख और रेल के डिब्बों पर लिख इतने सुन्दर वाक्य का किसी वस्तु की सुन्दरता खराब करने में क्यूँ इस्तेमाल करना?


यह वाक्य तो वह है हो हर दिल में लिखा होना चाहिये और हर जुबां पर चस्पा होना चाहिये..फिर देखिये दुनिया कितनी सुन्दर हो जाये!!

Anonymous said...

शरद जी से मैं आपसे सहमत हूँ। इस तरह के आशिकों के लिये अपना बजरंग दल सही है। मालगाड़ी भी किसी के बाप की नहीं है, सरकार की है।

आज इसका ब्लोग देखा। चन्दन जैसे लोगों से यही उम्मीद है, वो ऐसी रद्दी हरकतों को ही पसन्द करेंगे। ये दो कौड़ी के युवा कहानीकार, सम्पादकों के तलवे चाटने वाले, अब ब्लोग की दुकान खोल लिये! इसकी सारी कहानियाँ घटिया है और हिन्दी का दुर्भाग्य की इसकी किताबों के संस्करण भी हो रहे है। अशोक वाजपेयी ने जनसत्ता में लिखता है कि इसकी किताब का तीसरा चौथा संस्करण आ रहा है। एक मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकर है और हिन्दी का कहानीकार भी। अपना परिचय इसलिये ही नहीं लिखा है ताकि मल्टीनेशनल में काम करना और भारत की जनता को लूटने का काम छिपा रहे। लगता है कि भूल गया है—कैसे बनारस में चार चार सौ रूपये तक की ट्यूशन पढ़ाने के लिये लोगो की चापलूसी करते रहता था। लोगों के घरों के चक्कर लगाता था तब जाकर लोग इसे अपने बच्चों को पढ़ाने के लिये कहते थे। लोगो से पैरवी भी लगवाता था। बनारस में आठ दस गवैये इसके दोस्त हैं जो हमेशा घाट ही पर रहते हैं। अपने आप को रफी समझने वाले गवैये! इसी के जैसे विदेशी कम्पनी के दलाल कहानीकार के लिये उदय प्रकाश ने लिखा होगा कि आने वाले भविश्य मे शेयर बाजार का दलाल भी कहानीकार और कवि होगा।

मेरा आपसे यह अनुरोध है कि मल्टीनेशनल कम्पनी के दलाल कहानीकार का ब्लोग की दुनिया से बहिष्कार किया जाये। इसके किसी भी रचना को आप सब कभी मत देखे। इसे कभी मत पढ़िये।

संदीप कुमार said...

तुमने सही लिखा है चंदन लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। अक्सर किशोरावस्था से गुजर रहे बच्चे अपनी भड़ास मिटाने के लिए ऐसी लड़कियों के साथ अपना नाम जोड़ कर इन स्थानों पर लिख देते हैं जिन्हें वे तमाम कोशिश् के बाद भी पटा नहीं पाते। यार इन बेनामी कीड़ों को प्रतिबंधित करो यहां भी वमन करने आ पहुंचे। जानते हो ये बेनामी दरअसल टायलेट लिटरेचर के लब्धप्रतिष्ठित लोग हैं। तुमने रेल के डिब्बे पर लिखी इबारत छापी है ये रेल के शौचालयों में लिखने वाले लोग हैं।

शशिभूषण said...

चंदन,
यह पोस्ट पढ़कर दिनेश कुशवाह की कविता वह जो शिलालेख नहीं है याद आ गई.अपनी एक कविता की ये लाईने भी याद आ रहीं हैं.

सोचता हूँ किसी रात चुपके से लिख आऊँ
ताजमहल में तुम्हारा नाम
अपनी दुनिया के चारों ओर बना डालूँ
चीन की दीवार
मेरे खयालों में कोई न आए तुम्हारे सिवा
खींच लूँ आत्मा की कुटिया के सब ओर
उल्टी लक्ष्मण रेखा.

शरद कोकास जी और समीर(उड़न तश्तरी) जी की बातों को अस्वीकार नहीं किया जा सकता.नैतिकता के प्रश्न हमेशा प्रासंगिक होंगे.पर सृजनशीलता स्वयं नैतिक होती है.कहन की मासूमियत बौद्धिक चीर फाड़ से क़ीमती होती है.इस पोस्ट पर थोड़ ठहरें सोचें.मानता हूँ अभिव्यक्ति के ये दुस्साहस बुरे हैं पर अभिव्यक्ति के वैध रास्तों के कुत्ते कम बुरे नहीं.कई बार यही हमें नालियों में धकेल देते हैं.

पर ये बेनामी कौन हैं?
हमारे समय का यह कैसा विद्रूप है कि जब नाम-धाम वाले बच्चों के लिए स्कूल,किताबें नहीं तब विनाशकारी दिमाग़ अध्ययनी सुविधाओं से लैस हैं.क्या आगे सूचनाएँ विध्वंसकारियों के ही हत्थे होंगी?
निश्चित तौर पर ये जनसत्ता पढ़ते होंगे,तभी अशोक वाजपेयी का हवाला दे रहे हैं.साथ ही बनारस से भी इनका ताल्लुक होगा क्योंकि इस बाज़ार होते जा रहे शहर के घाटों तक इनकी पहुँच है.आश्चर्य यह हो रहा है कि ये सुविधाएँ इनकी चेतना में कैसी सड़ी गली भावना रोप रहीं हैं.इन्हें चंदन के ट्यूशन पढ़ाने से भी एतराज़ रहा है जबकि यह इतनी खुद्दार बात है कि कोई भी पसीज जाए,हौसले और गर्व से भर जाए.ऐसी अधोमुखी मानसिकता का उद्गम आमतौर पर ईर्ष्या होती है.
मुझे लगता है बेनामी बीमार हैं.ईर्ष्यालु हैं.चंदन के स्वावलंबन से दुखी हैं.हालांकि कोई भी आलोचना से बाहर नहीं होता पर चंदन ने अच्छी कहानियाँ लिखी हैं इसमें शक नहीं.कुछ लोंगों को व्यक्तिगत खुन्नस को सैद्धांतिक जामा पहनाने की बीमारी होती है.यह एक तरह की हीन भावना होती है.खास क़िस्म की हीनताओं के धनी हैं बेनामी.

बेनामी जी,आप देशभक्ति की किसी फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में भाग क्यों नहीं लेते?बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अधिकांश छुपे आलोचक वहाँ जज होते हैं.छोटी-छोटी सफलताएँ कुंठा कम करती हैं.
विनम्रता पूर्वक कह रहा हूँ दलाली आपकी नज़र में है.
आप चंदन का बहिष्कार चाहते हैं?
मैं दुआ कर रहा हूँ आप जल्दी स्वस्थ हों.

चन्दन said...

अनानिमस टाईप लोगो का क्या जवाब दिया जाये? ये बेचारे लोग हैं जिन्हे किन्ही पारिवारिक या सामाजिक या फिर मॉ (शायद बाप भी) की किन्ही दुश्वारियों के कारण कोई नाम तक नही मिल पाया, वैसे लोगो का क्या जबाव दें? वैसे ब्लॉग की दुनिया में आने के बाद ही पता चला कि ये तमाम बेनामी और कई सारे छद्म नाम वाले जीव मुझे कितनी गम्भीरता से पढ़ते हैं। उल्टे मैं आपका आभारी हूँ, अनॉनिमस जी, आपने मेरा परिचय लिखा। साथ ही उन मित्रों का भी शुक्रिया जो घड़ी भर रात से ही इस अनर्गल कमेंट की बात बताते रहे। मेरे साथ रहे।

@शरद जी, जहाँ तक कुतुब मीनार का सवाल है, मैं एक सूचना ‘शेयर’ करना चाहूँगा कि एक रिपोर्ट के मुताबिक कुतुब मीनार के उपर से उड़ने वाली जहाजों, जिनमे सभ्य लोग होते है, के कारण कुतुब मीनार में कम्पन हो रही है और उस पर किसी अनहोनी का गम्भीर खतरा मंडरा रहा है। मैं नहीं समझता कि असभ्य आशिकों ने किसी इमारत को ऐसे खतरे में डाला होगा। ये आपका जबाव मै नहीं दे रहा। बस आपकी बात आगे बढ़ा रहा हूँ।

तल्ख़ ज़ुबान said...

raaj-e-ishq to bade bade nahin samajh paaye par ise samjhne kee koshish hamein badhiya lagi. is post kee mool samajh ko na samajhte hue kai samajhdaar log use saarvajanik jagahon par likhne kee anaitikta se jod rahe hai. baat ibaarat kahan likhi hai, iski nahin ho rahi - kyon likhi hai iski ho rahi hai ya honi chahiye.
well picked chandan ji, keep it so on.

रहिमन said...

चन्दन जी, क्या नजर पाई है! कहाँ कहाँ से उड़ा लाते हैं! तल्ख जबान ने अच्छी बात कही है। बिना नाम वाले आदमी की बातों का ध्यान मत दीजिये, जानते हैं विरोध भी उसी का होता है जिसमे ताकत होती है। आप लगे रहिये। बनारस का अपने ग्रुप की फोटो लगा सकते हैं? बिना नाम वाला आदमी उसे देख कर जल जायेगा। आप शानदार काम करते हैं।

manjari said...

thts gud.

Rangnath Singh said...

हमें तो संदीप पाण्डेय का कमेंट मौजूँ जान पड़ता है। मेरा अनुभव भी यही है कि सघन और सांद्र प्रेम संकोची होता है। मैं ऐसी इबारतों में कोई उद्दातता नहीं देखता। बीएचयू के विश्वनाथ मंदिर की दिवारों पर या ताजमहल की दीवारों पर ऐसे "ए प्लस बी" पढ़कर तो कोफ्त ही होती है।

डॉ .अनुराग said...

हमें तो दिलचस्प लगी......

Aparna Mishra said...

Chandanji!!!!! Tht ws a new eye for a regular act which v see in our daily life but hardly bother to observe or react....But i wud like 2 mention one more thing also that we shud not harm our national properties as such,it harms the dignity of nation....Directly or Indirectly it affects the beauty of OUR NATION(OUR HOME)....

Anonymous!!!!! I am feeling bad for you that u doesn't have even Guts to speak what u really think with your name, if u really think such things about Chandan, u should come up with your name.... Anyways Thanks to you that you told us the Struggling & an Innovative part of him, by your message his respect will increase in everyone's eye.... His devotion & tallent can be understood by the skill he's handling MNC as well his Writing capability with all the same effort & effect.... If u want to prove yourself better, talk about your goods...."Critisizing others never increase your value".....