Wednesday, December 23, 2009

होठों के फूल

नहीं,
नहीं है कुछ भी ऐसा मेरे पास
जो तुम्हे चाहिये

मुझे चाहिये
तुम्हारी निकुंठ हँसी से झरते बैंजनी दाने
तुम्हारे होठों के नीले फूल
अपने चेहरे पर तुम्हारी फिरोजी परछाईं
मुझे निहाल कर देगी

अपने भीतर कहीं छुपा लो मुझे
मेरा यकीन करो
जैसे रौशनी
और बरसात का करती हो
किसी पीले फूल
किसी जिद
किसी याद से भी कम जगह में बसर कर लूंगा मैं

अब जब तुम्हे ही मेरा ईश्वर करार दिया गया है
तो सुनो
मुझे बस तुम्हारा साथ चाहिये
अथवा मृत्यु।

............................................सूरज
कवि से सम्पर्क – soorajkaghar@gmail.com

6 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

प्रेम से सराबोर एक सुंदर अभिव्यक्ति..बहुत बढ़िया लगा..धन्यवाद

Aparna Mishra said...

i am speechless

संगीता पुरी said...

इतना गहरा प्‍यार .. सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

संदीप कुमार said...

प्रेम में आस्था का दस्तावेज है सूरज की यह कविता। चंदन सूरज को सामने लाने के लिए तुम्हार आभार. उनकी कविताओं का रंग एकदम जुदा है

manjari said...

last para achha hai ........

vandana gupta said...

gahan premanubhuti.