(किसी भी फोटोग्राफर/कैमरा मैन के लिये)
मैं समझता हूँ
पालतू कैमरे को बन्दूक
रंगो को स्याही
अक्षर हैं चेहरे
तस्वीरों के किताबी जीवन में
जीता रहा ज्ज्ज्ज्जूँssssssजीक्क की आवाज में
मैने उतारी है
चुम्बनों में शामिल आवाज की तस्वीर
पानी और हवा में हस्ताक्षर की तस्वीर
मैगी और दोस्ती के स्वाद की तस्वीर
शाम के धूसर एकांत की तस्वीर
भागते पेड़ और रूके समय की तस्वीर
अच्छे वक्तों में प्रेमिका बुरे वक्तों में माँ की तरह
अटूट साथ दिया इस
बगटूट कैमरे ने
मेरी, रिक्शे और रिक्शे वाले की
परछाईयों को आपस में गुंथा देख
कैमरा हो गया खुद-ब-खुद ओन
ज्ज्ज्ज्जजूँsssss के बाद जीक्क्क की
आवाज थी बची हुई जब रिक्शेवाले ने कहा साथी रिक्शेवाले से
“हो मीता पैरवा पीड़ावत हवे”
हे ईश्वर! तू भी नही मांनेगा? पर मेरा कैमरा और मैं
दोनो ही रह गये थे अवाक!
उस दिन तक यह सपाट सच से
थे हम अंजान कि होता है दर्द
रिक्शेवालो को, होते हैं उनके पैर भी
और यह कि रिक्शे और पैर में
कोई सम्बन्ध भी
हारा मैं उतारनी चाही दर्द की तस्वीर
रह गये हम पैरो और पतलून में
उलझ कर मैं और अच्छे दिनों
की प्रेमिका
जबकि भी झुका भी नहीं हूँ मै
संशयात्मा बन कैमरे का लेंस
रहता है घूरता अब
सोचता दिन-ब-दिन
क्या कभी उतार पाउंगा
दर्द की कठिन तस्वीर?
------- सूरज
कवि से सम्पर्क: soorajkaghar@gmail.com
5 comments:
अच्छे वक्तों में प्रेमिका बुरे वक्तों में माँ की तरह अटूट साथ दिया इस बगटूट कैमरे ने*** यार मैं तो कुर्बान गया इस पर...
सूरज को मेरी बधाई मिले, वे लगातार अच्छा काम कर रहे हैं.”
(एक ही पोस्ट का दुहराव ठीक करते हुए "शिरीष कुमार मौर्य जी" का यह कमेन्ट गायब हो गया था.)
Every word of this poem expresses a lot.........Few lines i can relate to myself too coz i like to click photographs.....Congratulations to Suraj ji for such a tremendous collection of thoughts & also for the beautiful representation of the on going feelings.....
कई बार हम ऐसे पलों को भी कैद कर लेते हैं जिनकी खूबसूरती हम बाद में गहराई से महसूस करते हैं....
"उसकी आँखों में लिपटे प्यार की उतारी तस्वीर, हाथों में हाथ डाले मीलों सफ़र तय करती हुई तस्वीर, तेरे जाते हुए वक़्त को थामने की तस्वीर, तुझ बिन नम होती आँखों की तस्वीर"
सूरज जी!!!! ये आपकी बेहतरीन कविताओं में से एक है....मुझे तो बहुत उम्दा लगी यह, अगर आपकी अनुमति हो तो मैं इसे लिख के अपने पास रखना चाहूंगी.......
बाबा की एक साथ कई कविताएँ याद आईं । अनुभूतियों का इतना सघन प्रस्तुतीकरण,सूरजजी की कविताओं का उल्लेखनीय पक्ष है।
मेरी बधाई ।
दर्द को लेकर बेहतरिन कविता है....संवेदना का इतना उद्वेलन कम ही दिखाई पड़ता है...पंक्तियों में गजब का रिदम है....अपनी बुनावट में यह कविता जो लय दे रही है भावों में कही अधिक गहरे तक ले जाकर देखने और समझने का सवाल पैदा कर रही है...अद्भुत.. बधाई सूरज भाई...
bahut badiaa...
vivj2000.blogspot.com
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