मेरे प्यारे बॉलीवुड को कुछ हो गया लगता है. नजर – वजर जैसी तीखी कोई चीज लग गई है. हुआ यों कि आज रावण देखा. बड़े दु:ख के साथ कहूँ कि अच्छी फिल्म नही है. काम चलाऊँ कहना भी मुश्किल हुआ जाता है. मणिरत्नम के नाते इस फिल्म से उम्मीद जैसी बँध गई थी. लगा था- रोजा, बॉम्बे और दिल से जैसी बेहतरीन फिल्म होगी पर यह मणिरत्नम की अब तक की सबसे खराब फिल्म है.
हमारे मिथितास में द्रौपदी के बाद सबसे जटिल चरित्र रावण का ही है. राम, अपनी सारी अच्छाईयों के बावजूद, अपने चरित्र में बेहद ‘मोनोटोनस’ है. किसी शाकाहारी चुटकुले की तरह. जैसे स्कूल का कोई सबसे अच्छा बच्चा जो समय पर हंसता है, ठीक नौ पांच पर किताब खोलता है और ठीक नौ सात पर किताब बन्द भी कर देता है..कुछ कुछ वैसा मोनोटोन लिये हुए है राम का चरित्र. कोई इतना अच्छा इंसान/देवता जिसकी नकल भी कोई नही करना चाहता. पर रावण के साथ ऐसा नही है. और यहीं मणिरत्नम चूक गये हैं. पूरी फिल्म के दौरान अभिषेक बच्चन में रावण की छवि का अंश भी नही उभरा है. अगर आज कोई रामायण बनाना चाहे तो अभिषेक को वो सबसे पहले राम के चरित्र के लिये चुनेगा. क्योंकि ‘एक ही चेहरा’ राम के अभिनय के लिये काफी है. रावण के चरित्र में अभिषेक अत्यंत निष्प्रभावी दिखे हैं.
दूसरे,फिल्मकार द्वारा आँख में ऊँगली डाल डाल कर बताने के कारण ही कहना पड़ रहा है कि नक्सलियों को जैसा चित्रित किया गया है, वो मणिरत्नम की समझ पर शक पैदा करता है. कौन ऐसा इंसान है यार जो दिन रात शरीर में कींचड़ लपेटे रहता है. नकसलियों को एलियन की तरह दिखाने वाली समझ ही परेशानी पैदा करती है. इसेक मामले में मणिरत्नम ‘कांति शाह’ के करीब पहुंच गये हैं. नक्सली हमारे और मणिरत्नम की तरह ही इंसान हैं. नकसलियों की जो तस्वीरे ‘एकपक्षधर’ मीडिया हमें उपलब्ध कराता है उनमे भी वो हमारे जैसे ही दीखते हैं. जाहिर है वे लेवाई’स या किलर के जींस में नही होते, उनका स्वास्थ्य वैसा तगड़ा नही होता जैसा उस तस्वीर उतारने वाले का, या खुद मणिरत्नम का....पर आखिर लड़ाई भी तो उसी ‘गैप’ की है.
गोविन्दा ने हनुमान के चरित्र और विक्रम ने राम का चरित्र जीने की कोशिश की है पर एक बार फिर दिशाहीन कहानी की तेज गति में वो बह गये हैं. ऐश्वर्या राय पूरी फिल्म में सिर्फ ऐश्वर्या राय ही लगी है जैसे शाहरूख को कोई भी चरित्र दे दो वो अपना खास शाहरूखपना दिखाने से बाज नही आते.
पूरी फिल्म में बारिश ही बारिश है.अगर आपको ‘अक्स’ की याद हो तो हू-ब-हू वैसी ही सिनेमैटोग्राफी है. क्लोज-अप्स का कमाल है. रहमान भी चुके चुके से लगते हैं. अलबत्ता एक गाने में ऐश्वर्या राय का नृत्य मन को भाता है.
मणिरत्नम की उन मजबूरियों से पर्दा उठे तो शायद कुछ दिलासा हो जिन मजबूरियों की वजह से उन्होने अभिषेक को बतौर रावण चुना.यह भी कि हमारी भाषा के ‘मास्टर्स’ ने जो ‘लीजेंड’ गढ़ दिये, क्या उसे कोई कभी छू नहीं पायेगा?
10 comments:
पढ़कर मन टूट गया. इस फिल्म से बड़ी उम्मीद थी. सोच रहा हूँ देखूँ या ना देखूँ?
राजनीति देख कर आया तभी समझ गया कि मिथकीय चरित्र के साथ खेलना आसान नहीं है...
dekhenge to bolenge
film dekhi....mayoosi hui..Abhishek aur Aishwarya ko dekh kar sochta tha ki shayad GURU jaisa kuch dekhne ko milega..lekin nahin. bikhrepan ko sametne ki adhoori koshish ki gayi hai jo saaf taur par visible hai...
we were hoping a lot from maniratnam, but after going through this review, kafi nirasha hui. ab soch rahi hoon ki ye movie dekhoon k na dekhoon.
Aparna jha
Ajeeb Baat Hai ke raavan naam Padne ke kaaran sab ise ramaayan se kyun jod rahe hai. Chandan jee aaj pahli baar laga ki aapki najar dhoka kha gayee. ye film ramayan ya raavanayan nahi hai, Bas mani ratnam is film se dikhana chahte hain ke koi raavan paida nahi hota.waqt or haalat use raam or raavan banate hain. Har raam me raavan or har raam me raavan hota hai.Ek baar ramayan ko jehan se nikal ke dekho film bahut pasand ayegi.
Prafull Jha
@prafull jha ji
yaani aapko pasand aayi...??
agar aap is blog pe likhte hain just to criticize the author then its a different thing that we cannot help.......
aur agar aapko achhi lagi then watch it again and again...ye movie aapke liye bani hai
mani ratnam does not stand on our expectation .laga koi documentry dekh rahe hai jisko aadivaasion ne khud hi banayi hai
else for everyone i wud say dont waste ur money on this movie
phir bhi 'raajmeeti' se behtar film hai 'Ravan'.
'Ram ka charitra monotonus hai'kya khub kaha aapne.aapko to ye bhi nahi kah sakta ki aapke'Ram'Ramanand Sagar ke serial wale Ram hain.
Ashmantak jee Main Chandan jee ke Blogs issliye padta hoon kyunki ye mujhe pasand atey hai.jaise unhone Kites k baare me likha.or bhi kai saare blogs hai jinhe maine pasand kiya. or apni pasand ke blogs par to main comment kar hi sakta hun.
hai k nahin
mahabakwaas film aur abhishek ki Guru ke vipreet acting ko chhod kar film ek baar bade parde par shandaar cinematograpgy ke liye to dekhni hi chahiye....kamaal ka camera aur kamaal ke close ups aur kamaal ka bakwaas direction
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