Thursday, June 10, 2010
दिल्ली में बच्चे
यह तस्वीर पूजा ने उपलब्ध कराई है.इनके नये मोबाईल – नोकिया 2700 क्लासिक के कैमरे से उतारी गई यह तस्वीर जिस क्षण की है उसके ठीक पहले, जैसा पूजा ने बताया, ये तीनों बहादुर अपनी इस साईकिल पर सवार होकर किसी कार से रेस लगा रहे थे और फिर जो हंसी छूटी कि अब भी मुस्कुरा रहे हैं.
दिल्ली का नाम आते ही कुछ ऐसी जिम्मेदार या फिर क्रूर छवि मन मे उभरती है कि मानो दिल्ली में बच्चे होते ही नही होंगे. और अगर होते भी हों तो शरारते सभ्य शहर के बाहर जाकर करतें होंगे. ऐसी भोली शरारतों के लिये मेरे मन मे धनबाद की जगह सुरक्षित है. मैं आठ और नौ के बीच रहा होउंगा जब पापा के साथ धनबाद एक नातेदारी में गया था. वहाँ एक छोटा बच्चा था, चार या पाँच का, जिसकी तिपहिया साईकिल मैने खूब चलाई थी. मेरे पैर उस खास समय की आवश्यकता से लम्बे थे पर मुझ पर कोई पागल धुन सवार हो गई थी.
अभी देखें तो इन तीनों में से पीछे वाले को छोड़कर किसी की भी उम्र इस साईकिल पर बैठने वाली नही रह गई है पर एक नही, दो नही, तीन तीन सवार इस नन्ही साईकिल पर जमे हैं और जैसे इतना ही काफी नही कि किसी कार से भी रेस लगा चुके हैं तथा इनकी जो मुस्कान है वो नब्बे के दशक का सबसे मशहूर डायलॉग याद दिला रही है.. “ ...जीत कर हारने वाले को बाजीगर कहते हैं.”
इनके पूरे चेहरे पर फैली मुस्कान से मन हरा हो गया. यह चित्र यहाँ दे रहा हूँ इस भली उम्मीद के साथ कि काश ये बच्चा पार्टी अपने जीवन की हर रेस जीते.
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11 comments:
nice photo
आमीन !
aapki dua kabool ho...
अच्छा लगा ये तस्वीर देख के, मैंने तो अपने काम के दौरान बच्चो को इतना दुखी और परेशान देखा है की वो तस्वीरे नहीं भूल पाता.
जब ये पता हो की हार होने वाली है तब हारने की बात ही कुछ और है, हम जब ये भूल कर बड़े हो जाते है तो तकलीफ जादा हो जाती है.
खाली आसमान कितना खूबसूरत होता है !
I live in Delhi(Karol Bagh) but never observed like this. Thanks to Pooja for such pic.
Pankaj Singh.
अरे...जुर्माना लग जायेगा पुलिसवाले अंकल ने नही देखा क्या ?
adbhut.. these picture and then writeup brought a peace in the life of Bhopal. i also wish these children, may they win all the race of life. while going through this post i thought why few things make us happy.. what are special in their nature.. i thought, it is because we percieve ourselves in those stimulus. these children are also representing one of our corner also...
Puja Mam.... thank u....
blog ka naya roop jhakas lag rayela hai boss!
badhiy tasveerein
blog ka naya roop sundar lag raha hai
90 ke dashak ka samvad shayad ye tha- kuchh jitne ke liye kuchh harna padta hai aur haar ke jeetne wale ko baazigar kehte hain
badhiya nostalgic feel kara diya, kyunki mera bachpan bhi unhi galiyon me beeta hai, aur shahar mein bhi bachche aise hi khoob masti karte hain sir....
hemlata
ye photo aisi hai ki it can bring a smile to your face even when you are in stress. wakai bachpan yaad aa gaya.......
aparna jha
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