Sunday, January 10, 2010

निज़ार कब्बानी की दो कवितायें


निज़ार कब्बानी (1923-1998) अरब जगत में प्रेम , ऐंद्रिकता , दैहिकता और इहलौकिकता के कवि अपनी कविता के बल पर बहुत लोकप्रिय नामचीन गायकों ने उनके काव्य को वाणी दी है. साहित्यिक संस्कारों वाले एक व्यवसायी परिवार में जन्में निज़ार ने दमिश्क विश्वविद्यालय से विधि की उपाधि प्राप्त करने के बाद दुनिया के कई इलाकों में राजनयिक के रूप में अपनी सेवायें दीं जिनसे उनकी दृष्टि को व्यापकता मिली. उनके अंतरंग अनुभव जगत के निर्माण में स्त्रियों की एक खास भूमिका रही है ; चाहे वह बहन की आत्महत्या हो या बम धमाके में पत्नी की मौत. परिचय साभार कबाड़खाना. यहाँ प्रस्तुत हैं उनकी दो कवितायें.


जब जब मैं तुम्हे चूमता हूँ


हर लम्बी जुदाई के बाद
जब मैं तुम्हे चूमता हूँ
मुझे महसूस होता है
किसी लाल पोस्टबॉक्स में
कोई प्रेम पत्र छोड़ रहा होऊँ


गर्मियों में


गर्मियों में
मैं समुद्र किनारे पड़ा रहता हूँ
और तुम्हारे बारे में सोचता हूँ
तुम्हे लेकर मैं क्या महसूसियत रखता हूँ
अगर यह कभी मैं समुद्र को बता देता
तब ये समुद्र अपने कूल-किनारे
अपने घोंघो
अपनी मछलियों को छोड़
मेरे पीछे चला आया होता

3 comments:

आशुतोष पार्थेश्वर said...

सुन्दर, महसूसियत शब्द खटका, कबाडखाना पर इनकी रचनाओं ने पहले भी आकर्षित किया था, आपको बधाई !

KUMAR VINOD, KURUKSHETRA said...

Nizar Kabbani ki kavitaye dil ko chu gayi. Man vaisa nahi raha, jaisa ki inhe padhne se pahle tha : ek halchal see hone lagi hai, gahre kahin bahu gahre mei.

Aparna Mishra said...

It is very nice poem, i read the above one earlier also..... A desperation for Love can easily be felt thru the words