Monday, January 18, 2010

गाब्रिएल गार्सिया मार्केस की कहानी- गांव में कुछ बहुत बुरा होने वाला है।

गाब्रिएल गार्सिया मार्केस(गाबो)। जिसे अंग्रेजी में कहते हैं- लिविंग लिजेंड। अपने समय का सबसे बड़ा किस्सागो। यकीन करें, इस रचनाकार का कोई भी परिचय अधूरा रह जायेगा। पर अगर आपको शब्दों पर भरोसा नहीं रहा, अगर साहित्य आपको (कुछ निम्नदर्जे के बुद्धिभोगियों की तरह) बेकार बेजान चीज लगती है, अगर धोखा फरेब को ही दुनियावी मूल्य समझते हैं(और क्या पता करते भी हों) तब आप इस रचनाकार की कोई एक कृति पढ़िये, आपको जीवन से प्यार हो जायेगा।दुनिया सुन्दर लगेगी।
गांव में कुछ बहुत बुरा होने वाला है
एक बहुत छोटे से गांव की सोचिए जहां एक बूढ़ी औरत रहती है, जिसके दो बच्चे हैं, पहला सत्रह साल का और दूसरी चौदह की। वह उन्हें नाश्ता परस रही है और उसके चेहरे पर किसी चिंता की लकीरें स्पष्ट हैं। बच्चे उससे पूछते हैं कि उसे क्या हुआ तो वह बोलती है - मुझे नहीं पता, लेकिन मैं इस
पूर्वाभासके साथ जागी रही हूं कि इस गांव के साथ कुछ बुरा होने वाला है।
दोनों अपनी मां पर हंस देते हैं। कहावत हैं कि जो कुछ भी होता है, बुजुर्गों को उनका पूर्वाभास हो जाता है। लड़का पूल’ खेलने चला जाता है, और अभी वह एक बेहद आसान गोले को जीतने ही वाला होता है कि दूसरा खिलाड़ी बोल पड़ता है- मैं एक पेसो की शर्त लगाता हूं कि तुम इसे नहीं जीत पाओगे।
आस पास का हर कोई हंस देता है। लड़का भी हंसता है। वह गोला खेलता है और जीत नहीं पाता। शर्त का एक पेसो चुकाता है और सब उससे पूछते हैं कि क्या हुआ, कितना तो आसान था उसे जीतना। वह बोलता है-.बेशक, पर मुझे एक बात की फिक्र थी, जो आज सुबह मेरी मां ने यह कहते हुए बताया कि इस गांव के साथ कुछ बहुत बुरा होने वाला है।
सब लोग उस पर हंस देते हैं, और उसका पेसो जीतने वाला शख्स अपने घर लौट आता है, जहां वह अपनी मां, पोती या फिर किसी रिश्तेदार के साथ होता है। अपने पेसो के साथ खुशी खुशी कहता है- मैंने यह पेसो दामासो से बेहद आसानी से जीत लिया क्योंकि वह मूर्ख है।
“और वह मूर्ख क्यों है?”
भई! क्योंकि वह एक सबसे आसान सा गोला अपनी मां के एक एक पूर्वाभास की फिक्र में नहीं जीत पाया, जिसके मुताबिक इस गांव के साथ कुछ बहुत बुरा होने वाला है।
आगे उसकी मां बोलती है-तुम बुजुर्गों के पूर्वाभास की खिल्ली मत उड़ाओ क्योंकि कभी कभार वे सच भी हो जाते हैं।
रिश्तेदार इसे सुनती है और गोश्त खरीदने चली जाती है। वह कसाई से बोलती है-एक पाउंड गोश्त दे दोया ऐसा करो कि जब गोश्त काटा ही जा रहा है तब बेहतर है कि दो पाउंड मुझे कुछ ज्यादा दे दो क्योंकि लोग यह कहते फिर रहे हैं कि गांव के साथ कुछ बहुत बुरा होने वाला है।
कसाई उसे गोश्त थमाता है और जब एक दूसरी महिला एक पाउंड गोश्त खरीदने पहुंचती है, तो उससे बोलता है- आप दो ले जाइए क्योंकि लोग यहां तक कहते फिर रहे हैं कि कुछ बहुत बुरा होने वाला है, और उसके लिए तैयार हो रहे हैं, और सामान खरीद रहे हैं।
वह बूढ़ी महिला जवाब देती है- मेरे कई सारे बच्चे हैं, सुनो, बेहतर है कि तुम मुझे चार पाउंड दे दो।
वह चार पाउंड गोश्त लेकर चली जाती है, और कहानी को लंबा न खींचने के लिहाज से बता देना चाहूंगा कि कसाई का सारा गोश्त अगले आधे घंटे में खत्म हो जाता है, वह एक दूसरी गाय काटता है, उसे भी पूरा का पूरा बेच देता है और अफवाह फैलती चली जाती है। एक वक्त ऐसा जाता है जब उस गांव की समूची दुनिया, कुछ होने का इंतजार करने लगती है। लोगों की हरकतों को जैसे लकवा मार गया होता है कि अकस्मात, दोपहर बाद के दो बजे, हमेशा की ही तरह गर्मी शुरू हो जाती है। कोई बोलता है- किसी ने गौर किया कि कैसी गर्मी है आज?
लेकिन इस गांव में तो हमेशा से गर्मी पड़ती रही है। इतनी गर्मी, जिसमें गांव के ढोलकिये बाजों को टार से छाप कर रखते थे और उन्हें छांव में बजाते थे क्योंकि धूप में बजाने पर वे टपक कर बरबाद हो जाते।
जो भी हो, कोई बोलता है, इस घड़ी इतनी गर्मी पहले कभी नहीं हुई थी।
लेकिन दोपहर बाद के दो बजे ऐसा ही वक्त है जब गर्मी सबसे अधिक हो।
हां, लेकिन इतनी गर्मी भी नहीं जितनी कि अभी है।
वीरान से गांव पर, शांत खुले चौपाल में, अचानक एक छोटी चिड़िया उतरती है और आवाज उठती है- चौपाल में एक चिड़िया है।
और भय से काँपता समूचा गाँव चिड़िया को देखने आ जाती है।
लेकिन सज्जनों, चिड़ियों का उतरना तो हमेशा से ही होता रहा है।
हां, लेकिन इस वक्त पर कभी नहीं।
गांव वासियों के बीच एक ऐसे तनाव का क्षण आ जाता है कि हर कोई वहां से चले जाने को बेसब्र हो उठता है, लेकिन ऐसा करने का साहस नहीं जुटा पाता।
मुझमें है इतनी हिम्मत, कोई चिल्लाता है, मैं तो निकलता हूं।
अपने असबाब, बच्चों और जानवरों को गाड़ी में समेटता है और उस गली के बीच से गुजरने लगता है जहां से लोग यह सब देख रहे होते हैं। इस बीच लोग कहने लगते हैं- अगर यह इतनी हिम्मत दिखा सकता है, तो फिर हम लोग भी चल निकलते हैं।
और लोग सच में धीरे धीरे गांव को खाली करने लगते हैं। अपने साथ सामान, जानवर सब कुछ ले जाते हुए।
जा रहे आखिरी लोगों में से एक, बोलता है- ऐसा न हो कि इस अभिशाप का असर हमारे घर में रह सह गई चीजों पर आ पड़े .और आग लगा देता है .फिर दूसरे भी अपने अपने घरों में आग लगा देते हैं।
एक भयंकर अफरा तफरी के साथ लोग भागते हैं, जैसे कि किसी युद्ध के लिए प्रस्थान हो रहा हो। उन सब के बीच से हौले से पूर्वाभास कर लेने वाली वह महिला भी गुजरती है- मैंने बताया था कि कुछ बहुत बुरा होने जा रहा है, और लोगों ने कहा था कि मैं पागल हूं।
(इस कथा का स्पेनिश मूल से हिन्दी अनुवाद श्रीकांत का है। बाईस वर्ष के इस नौजवान ने एक डिप्लोमा कोर्स और अकूत मेहनत के सहारे स्पेनिश भाषा पर जो पकड़ हासिल की है, काबिले तारीफ है। )

8 comments:

अपना अपना आसमां said...

Kamal ka Rupak gadha hai Gabo ne... Great!! Marquez ki our bhi rachnae pesh kare...intjar rahega.

Unknown said...

बहुत खूब! मैं मार्केस का पुराना पाठक हूँ पर आज तक यह कहानी मुझे हिन्दी या अंग्रेजी में नही दिखी। कहानी अच्छी है। श्रीकांत को साधुवाद इतने कठिन श्रम की खातिर। और महाशय आप? चन्दन जी मैं आपके परिचय लिखने के अन्दाज का कायल हूँ। मार्केस के बारे में अगर पांच सर्वश्रेष्ठ वाक्य गिने जायेंगे तो आपका लिखा यह परिचय पहले स्थान पर रहेगा।
आशा है दूसरे अनुवाद भी जल्द देखने को मिलेंगे।

डॉ .अनुराग said...

यक़ीनन दिलचस्प है....ओर कहने का अंदाज उसे ओर भी दिलचस्प बनाता है

Unknown said...

श्रीकांत, मैंने इससे पहले मार्खेज की कोई कहानी नहीं पढ़ी थी . पढ़कर ऐसा लगा की हर जगह का समाज एक जैसा ही होता है. लोग चाहते हैं कि जैसा वे सोच रहे हैं वैसा घटित हो जाये और वे उसका इंतज़ार करने लगते हैं. कुल मिलकर वो महिला पागल नहीं थी बल्कि दूसरे लोग पागल थे जिन्होंने अनहोनी की आशंका में अपना घर ही फूँक डाला. शानदार कहानी का बेहतरीन अनुवाद.

शशिभूषण said...

अच्छी कहानी है.इसे कहेंगे कला की अप्रत्याशित दूरदर्शी घटनाएँ.प्रस्तुति के लिए आभार...

Bodhisatva said...

Great Story....said more than itself....thanks for posting it !

Ravijee said...

translation from spanish to hindi is upto the mark, go ahead abhi to aur anuvaad karna baaqui hai, so lage raho dube bhai. anuvaad ka safar baaqui hai.

batrohi said...

hamesha ki tarah yah kahani bhi Marquez ki ek adbhut kahani hai. ise parhane ke liye bahut dhanyavad.
Batrohi