कुमार विनोद शहर अम्बाले की पैदाईश। कवि। गज़लसरा। एक कविता संग्रह प्रकाशित। इसी महीने गज़ल संग्रह “बेरंग हैं सब तितलियाँ” आधार प्रकाशन से प्रकाशित। फिलवक्त कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के गणित विभाग में बतौर असोसिएट प्रोफेसर। इनकी गज़लों पर विस्तृत चर्चा के लिये गौतम राजरिशी पर क्लिक। नई बात पर आज इनकी कवितायें। जल्द ही इनकी गज़लों के साथ हाजिर होते हैं।
सफर में
राह में
गर तुम साथ नहीं
तो कोई बात नहीं
बशर्ते कि
अगले पड़ाव पर
फिर से तुम्हारा साथ हो
पत्नी के लिये कवितायें
ऋण
ऋणी बनाने के लिये
क्या माँ ही काफी नही थी
जो तुम
मेरी जिन्दगी में
यूँ चली आई
तुम और मैं
मेरे लिये
तुम
खुशी में
गाया जाने वाला गीत
दु:ख में
की जाने वाली
प्रभु की प्रार्थना
6 comments:
कुमार विनोद जी को पहले भी पढ़ा..बहुत सुखद है उनको पढ़ना!
बहुत सुन्दर रचनायें है विनोद जी के धन्यवाद्
vaah..
दूसरी कविता एक सदियों पुरानी `कृतग्य` पुरुष वाणी को ही दोहराती है. इस तरह पुरुष को ऐसी ही माँ और बीवी की जरुरत होती है और थोड़ी सी ऐसी लाइनों के साथ मुहर लगा डी जाती है.
awesome Vinodji!!!! Such a easy going language, i loved it....Congrats
ऋणी बनाने के लिये
क्या माँ ही काफी नही थी
जो तुम
मेरी जिन्दगी में
यूँ चली आई
अन्दाज़ ही निराला है भई
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