Friday, January 22, 2010

भाई, ये महाराष्ट्र कोई और देश है क्या?

(‘नई बात’ पर सबकुछ भले ढंग से चल रहा है पर एक चीज की कमी खल रही थी-वो थी समसामयिकी की। साथियों की तैयारी से अब वो भी कमी दूर किये देते हैं। कोई बड़ा दावा करने की जगह हम यह कहेंगे कि हर हफ्ते किसी खबर को अपने तईं देखने समझने की कोशिश करेंगे। यह भी जरुरी नही कि खबर बिल्कुल नई ताजी हो। पुरानी बात को हम बार बार, हजार बार कहेंगे-अगर कहने की जरूरत महसूस हुई तो..। इस बार पूजा सिंह का यह ब्लॉगालेख मुंबई की दु:खद परंतु सनातन समस्या पर...। टैक्सी ड्राईवरी के लाईसेंस खेल पर। पूजा की कविता आप पहले इस ब्लॉग पर पहले पढ़ चुके हैं।)
भाई, ये महाराष्ट्र कोई और देश है क्या?

जहाँ तक मुझे जानकारी है मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी है। और शायद महाराष्ट्र भारत का ही एक प्रदेश है। कहा जा सकता है कि मुंबई भारत का प्रवेश द्वार भी है। देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाली मायानगरी, मुंबई में समृद्धि सिर्फ मराठी वासियों से नहीं आई है बल्कि इसे समृद्ध बनाने में गुजरातियों, दक्षिण भारतीयों तथा यू.पी. बिहार बासियों के साथ अन्य प्रदेश के लोगों की भी अहम भूमिका रही है। मुंबई ने हमेशा से देश के लोगों का ही नहीं बल्कि विदेशियों का भी तहेदिल से स्वागत किया है।

उसी मुंबई में, बाल ठाकरे के बाद एमएनएस के सुप्रीमो राज ठाकरे ने गैर मराठी लोगों को जिस तरह से महाराष्ट्र से बाहर करने का आंदोलन चला रखा है अब उसी को आगे बढ़ाने का काम कांग्रेस कर रही है। केंद्र के साथ-साथ महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज कांग्रेस सरकार ने बुधवार को एक फैसले के तहत, राज्य में टैक्सी चालकों के लिए 15 साल के स्थाई निवास के अलावा मराठी भाषा को बोलना, पढ़ना और लिखना अनिवार्य बना दिया है। अब नए टैक्सी चालकों को इन शर्तो को मानना जरूरी होगा अन्यथा उन्हे टैक्सी चलाने का परमिट नहीं दिया जाएगा।

जब इस बात का विरोध हुआ तो माननीय मुख्यमंत्री ने यह कहते हुए अपना बयान बदल लिया है कि मराठी भाषा की जगह उसे(ड्राईवर को) क्षेत्रीय भाषा मराठी, हिन्दी या गुजराती आनी चाहिये। अब इस महान आत्मा को कौन समझाये कि हिन्दी क्षेत्रीय भाषा नही है। विश्व भर में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषाओं मे हमारी हिन्दी का स्थान चौथा है। सबसे दुखद यह है कि क्या मुंबई में सिर्फ हिन्दी भाषी, गुजराती और मराठी ही रहते हैं? दक्षिण भारत का वो विशाल जनसमूह जो मुम्बई में बसा है और अपने श्रम से मुंबई के चहुँमुखी विकास में सहायक है क्या उसे महाराष्ट्र सरकार ने बाहरी आदमी मान कर बाहर भेजने का मन बना लिया है? कोई है जो मुख्यमंत्री के इस बयान को शालीन मानेगा? क्या मुख्यमंत्री को इतने छिछले बयान देने चाहिये?

तुर्रा यह कि अब इस मुद्दे को एक मीडियॉकर नेता, दूसरे की आवाजो की नकल उतार उतार कर अपनी राजनीति चमकाने वाला, ‘वीर’ मराठा राज ठाकरे ने अपने हाथों में ले लिया है। उनका कहना है कि जिन चार हजार नई परमिटों की बात चल रही है, उसमें से अगर एक भी परमिट मराठी मानुस के बजाय किसी और को मिली तो......। इस ‘तो’ का मतलब कौन नही जानता? ...’तो’ यह खानदानी बिगड़ैल, ताकत के नशे में चूर सड़को पर हिंसा का नंगा नाच मचायेगा। आमीन!

देश के सामने इस समय सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद, गरीबी, जनसंख्या और अशिक्षा है न कि मुंबई से गैर-मराठी लोगों का बहिष्कार। और फिर वहां से गैर-मराठी लोग जाएं भी क्यों? हम भारत के नागरिक हैं और वहां रहने का हमारा मूलभूत अधिकार है। जब भारतीय मूल के लोग विदेशों में अच्छे ओहदे पर देखे जाते हैं तो हम अलग ही खुशफहमी में जीते हैं कि अपना आदमी वहां है और वहां की तरक्की में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। फिर भेदभाव सिर्फ बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के साथ ही क्यों जबकि ये कहीं और नहीं अपने देश में रह कर अपना पेट ही तो पाल रहे हैं। सबको पता होना चाहिए कि जब कोई आदमी अपने जड़ के अलग होता है तो किसी दूसरी जगह बसने में उसे कितनी पीड़ा सहनी पड़ी होगी। किसी नए समाज में अपने आपको स्थापित करने में उसे कितना संघर्ष करना पड़ता होगा यह तो उस व्यक्ति विशेष से ही पूछकर जाना जा सकता है।

जबकि संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत देष के नागरिकों को जम्मू कश्मीर को छोड़कर कहीं भी बसने और रोजगार करने का अधिकार मिला हुआ है। फिर सिर्फ राजनीति करने के लिए ऐसी ओछी हरकत क्यों। भारतीय संविधान की प्रस्तावना की वह लाइन ‘’हम भारत के लोग ...’’ मुझमें हमेशा राष्ट्रीयता का संचार करती है। लेकिन देश को तोड़ने जैसी घटनाएं आए दिन घटित हो रहीं हैं, कभी जाति, धर्म तो कभी भाषा को ही आधार बना कर लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है।

तिस पर भी लोकतंत्र के ये पहरुये आम आदमी की मुश्किल बढ़ाने पर लगे हुए हैं। जहाँ तक मुझे जानकारी है, जो मैने पढ़ रखा है, वो यह कि मुख्यमंत्री, मंत्री और सरकारें जनता की भलाई के लिये होती हैं। चाहे चारो तरफ के उदाहरण मेरी जानकारी को गलत ठहरा रहे हो फिर भी प्लीज कोई ये मत कहना कि मैने गलत पढ़ रखा है। कुछ झूठ मुझे अच्छे लगते हैं।


.............................पूजा सिंह

7 comments:

Manas said...

bahut sateek aur badhiya mitra !!

Unknown said...

जरूरी हस्तक्षेप! अब तो यह जानना भी मुश्किल हो गया है कि भारत कोई एक देश है या इसके हज़ार टुकड़े हो चुके हैं। ऐसी ही आग उधर आन्ध्र में लगी है।
इस श्रृंखला को बनाये रखिये। यह भी खबर आ रही है अब कि यह नियम मुम्बई में पहले से ही लगा हुआ है, आशा है पूजा जी इस पर भी निगाह डालेंगी।

आशुतोष पार्थेश्वर said...

ये चिंता, बेचैनी और ये सवाल देश के राजनय को परेशां नहीं करते हैं, कांग्रेस और बीजेपी किस हिसाब से राष्ट्रीय पार्टी हैं, समझ में नहीं आता, अपनी सियासत के लिए ये पूरे देश को चंडूखाना बना देंगे और इन्हें शर्म भी नहीं आएगी, देश में लोकतंत्र नहीं गुंडा तंत्र है, एक बहुत जरूरी चीज यह है कि मीडिया राज ठाकरे जैसे तत्वों को अधिक जगह ही नहीं दे,
ये ऐसे लोग है जिन्हें न अपने इतिहास का पता है और न ही जिनके आँखों में कल के लिए कभी कोई सपना उगता है,
उन्मादी,निर्मम और क्रूर

संदीप कुमार said...

हां पूजा महाराष्ट्र इसी देश का एक प्रदेश है। यह वही प्रदेश है जहां 2008 में एक दो नहीं 3800 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। यह वही महाराष्ट्र है जिसका मुख्यमंत्री मुंबई हमलों के तत्काल बाद होटल ताज में अपने भांड बेटे और एक अच्छे लेकिन चुक गए फिल्मकार के साथ सफलता की संभावनाएं टटोलने के कारण बरखास्त कर दिया गया था। और हां यह वहीं महाराष्ट्र है जहां राहुल राज नामक एक फिल्म प्रेरित युवा सपने की मुंबई पुलिस ने इनकाउंटर में हत्या कर दी थी क्योंकि वह राज्य में उत्तर भारतीयों की निर्मम हत्याओं का प्रतीकात्मक लेकिन हिंसक विरोध कर रहा था और उससे इस मायानगरी की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया था.इसीलिये उसके शव के पास डांस आफ विक्ट्री का मुजाहिरा किया था। उस समय भी राज्य के होम मिनिस्टर ने बड़े फख्र से कहा था कि गोली का जवाब गोली से दिया जाएगा।

चन्दन said...

ये दो टिप्पणियाँ मेरे फेसबुक प्रोफाईल पर पड़ी थी, इसी आलेख के लिंक पर, इन्हे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ:

Shekhar Mallick: महाराष्ट्र में जो भी हो रहा है वह सिर्फ और सिर्फ इस देश को तोड़ने की साजिश है. ये हमारे खुद के लोग देश की एकता, संप्रभुता और अखंडता के लिए प्रत्यक्ष्य खतरा हैं... क्या इन्हें भी देशद्रोही की संज्ञा नहीं दी जानी चाहिए ? जो भी हो रहा है वह मानवीयता और पुरे विश्व के सामने हमारे देश की नाक नीची करने के लिए काफी है. शर्म आनी चाहिए.·

Grijesh Kumar shekar ji yahi to widambna hai is desh ki,ki kuch log arazakta failate hain aur kuch log aansu bahate hain,hona to yah chahiye ki waqt ki zarurat ko samajhte hue ham aage aaye
about an hour ago ·

Unknown said...

ये समस्यायें दिन पर दिन गम्भीर होती जा रही हैं। हम युवा साथियों को इस पर विचार करना चाहिये। जरुरत हुई तो एक साझा मंच भी बने। दरअसल ये समस्या अब तथाकथित विकसित राज्य गुजरात में भी आने जा रही है। अभी एक दंगा भड़का था लुधियाना में, उसके भी कारण यही थे- बिहारी भईया बनाम लोकल गुंडागर्दी। पूजा जी, ऐसे मुद्दों को जोर शोर से उठाना होगा।

Kundan Pandey said...

mam everything is right but unfortunately we can't do anything except writing. After being a citizen of the biggest democracy we have been clenched with the shackles. we know that we people are bieng befooled openly by leaders and parties but...however we can boil the environment by the repetition of our our dissatisfaction with these wrong doings of darn politicians.as you have done ..