Tuesday, January 5, 2010

रूपक अलंकार का बहुत उदास उदाहरण

मैं सरो-सामान से लैस सफर पर निकला
हर भले आदमी के रेल की तरह मेरी रेल
भी आई, मैने रोटी खाई ठंढा पानी पिया
खुशी की चादर बिछाई, अटूट नींद सोया
इस उम्मीद से कि अगली सुबह मंजिल
पर हूँगा, मेरा खास सफर पूरा हो जायेगा

सुबह हुई और लोग
मेरे हाल पर हंसे
रेल पूरी रात वहीं
उसी स्टेशन पर
खड़ी रह गई थी

वजहें मौजूद थीं
जो ढूंढ ली गईं


तुम्हारे बगैर मैं
वही रेल हूँ
मंजिल से दूर वही
अभागा हूँ
मैं कहीं नहीं पहुँच पाउंगा
मैं तो जी भी नहीं पाउंगा
तुम्हारे बगैर।


..........................सूरज
कवि से सम्पर्क-soorajkaghar@gmail.com

9 comments:

बवाल said...

बहुत गहरी बात कही है आपने।

अजय कुमार said...

अच्छी रचना , बधाई

निर्मला कपिला said...

्रचना बहुत अच्छी है मगर उतनी निराशा अच्छी नहीं शुभकामनायें

Unknown said...

सूरज जी, आपसे कोई जान पहचान नही है पर आशा करता हूँ कि ये कवितायें आपके व्यक्तिगत जीवन से ताल्लुक नहीं रखती होंगी। बहुत गहरे दु:ख को दर्शाती कविता है और आपकी बाकी कविताओं में भी इतनी सघन निराशा होती है। ऐसे दु:ख से खुद को दूर रखिये, इसी सलाह और शुभकामना के साथ:

आपका प्रशंसक
अरविन्द अनुरागी

Aparna Mishra said...

good one.......

Shrikant Dubey said...

सूरज जी को बधाई. अच्छी लगी कविता.

श्रीकांत

शशिभूषण said...

अभी जबकि मैं यह कविता पढ़ रहा हूँ रेडियो पर गीत आ रहा है-हम तुमसे जुदा होके/मर जाएँगे रो रोके..दुनिया बड़ी जालिम है/दिल तोड़ के हँसती है....पूरा गीत तो सुना ही जा चुका है.यहाँ लिखने का आशय है अगर आज भी सूरज जी ऐसी कविताएँ लिख रहे हैं तो आनंद बख्शी,समीर आदि को बड़ा कवि मानने में किसे ऐतराज होगा?

खैर,मुझे यह कविता नहीं जमी.

आशुतोष पार्थेश्वर said...

सूरजजी को बधाई !

Anonymous said...

SURAJ JI AAPKI KAVITA BAHUT ACHHI LAGI. SHASHIBHUSHAN K LIYE KAVI HONE K MAYNE JANE KYA HAI..MAI TO AANAND BAKHSHI KO BHI KAVI MANTI HU KYA PREM KI PARAKASHTHA AAJ KI KAVITA KA TYAJY VISHAY HAI?
prerna