शिमले के संझौली रोड पर दिव्य नैसर्गिक खूबसूरती के बीच वो रहता है। चारो तरफ उंचे और खालिस सफेद पहाड़। बादलों से पटी पड़ी गहरी खाईयाँ। आप पांच मिनट वहाँ ठहरे और मेरा दावा है आप या तो बेतरह खुश या बहुत उदास हो जायेंगे। शिमला से आप आगे बढ़ते जायें और संझौली, किसी याद की तरह, अचानक आपके सामने नमूदार होती जगह है।
पिछले हफ्ते जब मैं शिमला गया तो मन में तय करके गया था कि उस मित्र से जरूर मिलूंगा। बचपन का साथी है और हमने कई अच्छे काम साथ किये हैं। मैं साहित्य की ओर जब घूम रहा था उन दिनों उसके जीवन की स्टीयरिंग गणित की ओर घूम चुकी थी। आज उसकी स्थिति कुछ यों है: दुनिया की निगाह में घनघोर सफल और अपनी निगाह में भयानक असफल। उसकी नौकरी ऐसी कि अच्छे अच्छे रश्क करते हैं। पर पिछले ही साल उसके प्रेम सम्बन्ध समाप्त हुआ है।
हम लोगों के बीच उसका प्रेम मिशाल की तरह फैला था। किसी के साथ गुजारे खास आठ साल कम नहीं होते। वो भी प्रेम में। पर लड़की के घर वालों ने क्या स्वाँग रचा? किसी ज्योतिषी का सहारा लिया और लड़की को उस प्रकांड पंडित ने अंतत: समझा ही डाला कि फलाँ जाति विशेष के लड़के से विवाह करने पर पिता का देहावसान सुनिश्चित है, भाई पर किसी अनिष्ट की आशंका है। लड़की, खासी समझदार लड़की, मान गई। उसने एक झटके में मेरे दोस्त से दूरी बना लिया।
वो अब भी नौकरी पर जाता है। पहले जो बेहद सुलझा हुआ लड़का था, बेहद होशियार, अब लगभग हरेक बात पर फफक पड़ता है। अकेले रहने से डरता है। मुझे रात बिरात फोन लगा देता है। बार बार मेरे कथाकार होने की दुहाई देता है- जैसे मेरे पास कोई चिराग हो। मुझे कुछ नही सूझता कि क्या कहूँ? दरअसल लड़की भी अपनी परिचित ही थी।
मेरे दोस्त को तमाम दूसरे जाहिल और सामंती लोग बार बार यह समझाते हैं(अगर यह सार्वजनिक जगह ब्लॉग ना होता तो इन महानों के लिये मैं नीच शब्द भी लिखता) कि प्रेम का मकसद शादी नही होता...प्रेम आत्मा की अनुभूति है..तमाम तमाम उल जलूल बातें। ऐसा करने वाले उसके इतने करीबी हैं कि वो उन्हे गाली भी नही दे सकता।
दरअसल उसकी कुल आकांक्षा साथ रहने की थी। और हम सबने उसे, उस लड़की के साथ, इतना खुश देखा है कि उसे समझाने वालों को थोड़ी शर्म करनी चाहिये।
सौ सवाल पर या सवा सौ सवाल पर भी उसका कहना यही होता है, “यानी सबसे कमजोर मुझे ही समझा ही गया।“ उसका कहना सही इसलिये है कि जब इसके घर वालों ने इनके जीवन साहचर्य का विरोध किया तो लड़के ने घर छोड़ दिया था और इस पर वो दोनों बहुत खुश थे....।
अब जब सबने उसे तकलीफ पहुंचाई तो उसने उबरने का यह नया तरीका निकाला। वो अपने को पराजित मान चुका है। और रोज ब रोज खुद को इस हार और अपमान की याद दिलाता है। बहुत परिश्रम कर रहा है। नौकरी के बाद का सारा समय गणित को देता है। अकेलेपन से बचने का कोई तरीका नही है उसके पास। अब वो अपने आप को आजाद भी महसूस करता है। कुछेक जिम्मेदारियों के बाद वो नौकरी छोड़ देगा-ऐसा उसका नया उद्देश्य है- और गणित से पी.एच.डी करेगा। उसके फ्लैट में अब भी बीते भले जमाने की तश्वीरें दिख जाती हैं।
जो तस्वीर आप देख रहे हैं, ऐसी ऐसी बीसियों तख्तियाँ उसने अपने कमरे में चिपका रखी हैं। हर सुबह जग कर पहले वो इन तख्तियों को देखता है और फिर उसके बाद घड़ी में समय। मुझे सबकुछ बेहद डरावना लगा। मैने आज तक यही सुना और समझा था कि किसी समस्या से निपटने के लिए उससे दूरी बनानी चाहिये। पर उसके मामले में यह उल्टा हो रहा है।
जब मैने कहा कि मैं तुम्हारी बात को सार्वजनिक करूंगा तो उसने हिदायत दी कि नाम नही आना चाहिये। समझने वाले समझ सकते हैं कि वो अपने नाम की बात नही कर रहा था। और शायद मुझे डराने के लिये ही बार बार वो परशुराम का किस्सा सुना रहा था। मैंने उसे सलाह दी कि तू कुछ दिनों की छुट्टी ले और घर जा। घर अब वो जाना नही चाहता। पर जायेगा। मैने उसके घर वालों को सारा किस्सा समझाया है।
18 comments:
इसपर क्या कहा जा सकता है? लेख पढ़कर दुख हुआ। आपके मित्र को चाहिये कि जीवन में आगे देखें। जो साथ नही है वो सिर्फ इसलिये नही है कि वो साथ रहने के लायक नही था। उनके दोस्तो को उनका साथ देना चाहिये।
यही सच है.पर अंतिम नहीं.
मैं थोड़ा पुराने खयालों का हूँ इसलिए प्रेम और विवाह पर आपके गुस्से से सहमत हूँ.मुझे इस संबंध में युद्ध और शांति उपन्यास का वह संवाद हमेशा याद आता है कि मैं जिस लड़की से शादी नहीं कर सकता उससे नहीं कहूँगा कि मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ.पर ये संवाद भी तो कितना पुराना हो गया.अब दोस्त कहकर ऐसे अवसाद से उबर सकता है इंसान.दोस्ती हमारे समय का उदास प्रेम है.काफ़ी हद तक संजीवनी भी जो विवाह जात-पाँत में,दहेज के साथ ही करना चाहते हैं.
मुझे इस पोस्ट में इतना कहानीपन दिखा कि यह भी शिल्प हो सकता है सोच रहा हूँ.आपको इसे कहानी की तरह ही लिखना था.
आजकल का ट्रेंड बन गया है ऐसा प्रेम। इसमें लोगों को धोखा देना बुरा नहीं लगता है बुरा लगता है अगर आप धोखेबाजों को उन धोखों की याद दिलायें। फिर भी जीना इसी का नाम है!
अब इस बात पर क्या कहा जा सकता है चन्दन, जिस दौर से आप के दोस्त गुज़र रहे हैं वह दुनिया का पहला किस्सा नहीं है पर दुखद अवश्य है.... ऐसा बहुत बार होता है जब प्यार का मतलब हमेशा साथ रहना नहीं होता, मैं शायद जो बोल रही हूँ वह पाढको को बुरा लगे पर यह जीवन है और किसी के जाने से जीवन रुकता नहीं है और ना ही किसी के आ जाने से तेज़ रफ़्तार में दौड़ने लगता है....आपके लेख से कहीं न कहीं आपने लड़की को थोडा गलत कहा है, जो मुझे सही नहीं लगता क्यूंकि परिवार के आगे हर इंसान बेबस हो जाता है जिसे वह मज़बूरी का नाम देते हैं.... अगर ८ साल का दर्द आपके मित्र को है तो उतना या शायद उससे ज्यादा (बयां न कर पाने वाला) दर्द उसकी रह चुकी प्रेमिका को होगा.....
मैं आपके दोस्त से यही कहना चाहूंगी कि जीवन में आगे बढिए और ऐसा मान के चलिए जो आपके पास नहीं है, वह आपका था ही नहीं..... बेहतर जीवन के लिए प्रयासरत रहे..........
अपर्णा, ' क्योंकि परिवार के आगे हर इंसान बेबस हो जाता है ' इस बात से पता नहीं कितने लोग इत्तफाक रखते होंगे, लेकिन मैं तो जरा भी नहीं रखता. परिवार की मर्जी से आप ज़िन्दगी के कितने सारे काम करती हैं, कितने फैसले लेती हैं. ये परिवार है या जमींदार, जिसको जरा भी फर्क नहीं पड़ता किसी के फैसले से, किसी की ख़ुशी से.मुझे तो मेरा परिवार कभी बेबस नहीं कर पाया आज तक, कोशिश भी नहीं की,और मैं हो भी नहीं सकता. हमारे रिश्ते बेबस करने और होने के लिए नहीं हैं.
अपर्णा जी कोई भी किस्सा दुनिया का पहला या आखिरी नहीं होता। वह या तो सुखद होता है या फिर त्रासद। मैं अपना नजरिया बताता हूं प्यार का मतलब बिल्कुल साथ रहना ही होता है और किसी के जाने से जीवन बिल्कुल रुक जाता है। चंदन जिसे आत्महंता प्रेम कह रहा है उसका मैं बहुत सम्मान करता हूं। आपकी राय अपनी जगह सही है लेकिन वह एक थर्ड पर्सन की राय है।
चंदन इस दास्तान में पता नहीं कितनी किस्सागोई है लेकिन इसे पढ़कर मन बहुत उदास हो गया। तुम्हारे दोस्त से मिलकर एक बार गले लगने की इच्छा है
उदास कर गये आप,
प्रेम की छुटी हुई कहानी मन भारी कर जाती है, और इतना गहरा अकेलापन तो और भी,
दुख मह्सूसने से कम हो जाता,तो भला था पर वह होता नहीं, उन्हे खुद निकलना होगा, इस घेरे से,
और पूरी तरह, यही कामना है.
आप एक अच्छे मित्र हैं, और एक मित्र का कंधा इस घेरे से सकुशल निकाल लायेगा, इसका भरोसा है.
ye udaas karne wali baat hai...khubsurat chheje kaise dukhi karne lagti hai achanak ye isse pata chalta hai...kiski galati hai ye to decide karna theek nahi...lekin hum ek gandi naali me rah rahe hai...ya to hume ise saaf karna padega ya to kbhi na kabhi is gandh ko jidagi ka hissa banana hoga.
...Vivek
यह किस्सा पढ़कर पीछे खिसके हुए कुछ बरस पहले का वो दोस्त याद हो आया जिसके साथ भी हूँ-ब-हूँ यही हादसा हुआ था . पर उसके मामले में लड़की का परिवार ज्यादा जिम्मेदार नहीं था बल्कि स्वंय लड़की जिम्मेदार थी. खैर मैं यहाँ किसी को दोषी करार नहीं दे रहा हूँ . फिर से कहीं गहरे तक कुछ चुभ सा गया ...
@ सन्दीप, यह किस्सा नहीं है और ना ही इसमे कोई किस्सा गोई है।
@ शशिभूषण जी, जाने पहचाने चेहरों पर कहानियाँ नही लिख पाता हूँ।
@ अपर्णा जी, मैने कोई आरोप नही लगाया। बस एक तथ्य बताया। जैसे कोई आपको तथ्य बताये कि बाल ठाकरे को यू.पी. बिहार वालों का बॉम्बे का पानी पीना भी पसन्द नही। निर्धारित आपको करना है कि कौन दोषी है और कौन सही। परिवार किसी मजबूरी से ज्यादा ज्यादातर मामलों में एक सुडौल बहाने की तरह इस्तेमाल होता है। वरना वही लोग परिवार से सबसे ज्यादा झूठ बोलते हैं। लड़का हो लड़की, मैने खूब देखा है, जब वो किसी नये को पसन्द करने लगते हैं तो उन्हे परिवार और तमाम दूसरे “फ्रॉड” खूब याद आते हैं। मुझे उद्धव की बात ज्यादा मौजूँ लगी। फिर भी आपको धन्यवाद कि आपने एक जुदा राय रखी और बधाई कि आपने पहली बार हिन्दी में लिखा।
@ आशुतोष जी, मैने कई मित्रों को इत्तिला दिया है और हम जल्द ही शिमला में जमा हो रहे हैं।
वक़्त इतनी तेजी से भाग रहा है के अब कुछ भी स्टेबल नहीं है .सो इश्क भी नहीं....सीधी ओर सिंपल बात है जो आपसे प्यार करता है वो कोई बहाने नहीं गड़ेगा ..उसे कोई फिलोसफी कोई हालात बदल नहीं सकते .....
प्यार एक उम्र में शायद इस उम्र में अपने अलग माने रखता है ...या शायद जिंदगी के पायदानों में सबसे ऊपर पर पुराणी कहावत है ओर आज के मौजू पर फिर भी वैसी ही है......वक़्त सबसे अच्छा मरहम है ....सच बातहै
आपके दोस्त ज्यादा भावुक इंसान है ..वो दुःख को जितना खीचेगे .दुःख उतना ही बढेगा ....आठ साल के रिश्ते के बाद अभी तुरंत फुरंत अतिवादी न बन सिचुवेशन को इस तरह हेंडल करे के प्यार भी रुसवां न हो .... .....ओर सो काल्ड ज्योतिष भी फेल हो जाए .....पर अगर सामने वाला शख्स किसी दुसरे से शादी करने को तैयार है तो
बकोल जावेद अख्तर
मोहब्बत मर गयी मुझको भी अफ़सोस है
मेरे अच्छे दिनों की आशना थी......
Jivan apne sampurna rup me bda jatil hai. Asahy hota hai dosti,prem jaise sambandho ka is prakar tutana.Ab sochiye, prem me priy ki asimit ADAWAT ko mahsus karna, jhelna kaisa hota hoga...mushkil hai, samay v aise ghawo ko jaldi nhi bhar pata.Itna awasya hai k achchhe mitra hume hmesa bhra-pura rkhte hai.Aapke mitra aur aapke liye Ashesh Shuvakanksha.
आज कल के जमाने में अगर आप किसी पर भरोसा करतें हैं तो गलती आपकी है। अभी मेरे ऑफिस में एक केस हुआ जिसमें लड़का और लड़की हमेशा साथ रहते थे। साल भर रहे। जिस दिन लड़का ऑफिस नही आती तो लड़की दिन भर उससे फोन करते रहती थी। लड़का भी समझदार था। वो हम लोगों को अपनी फ्यूचर प्लानिंग की बात बताता था। इसी बीच उनका एक नया सुपर बोस आ गये। बॉस भी पढ़ा लिखा और स्मार्ट आदमी हैं। पर नहीं मालूम क्यों उन दोनों में झगड़ा होने लगा। बॉस के साथ वो ज्यादा समय बिताने लगी। और जब लड़्के ने पुरानी चीजें याद दिलाई तो उसे लड़की ने बहुत खराब खराब बताया। कई दिन तो उनका झगड़ा ऑफिस में ही होने लगता था। लड़की ने उसे अपने गलती के लिये सोरी बोल दिआ और सब खतम हो गया। बाद में जब लड़का रोने लगा कई बार तो उसका ट्रांसफर करा दिया गया। हम लोगों ने इसका विरोध किया पर कुछ नही हुआ। क्या कर सकते थे? वैसे लड़का बड़ा सीधा था। किसी को तुम नही कहता था। पता नही धोखेबाजी करने वालों को चैन कैसे मिलता होगा?यह पता करना मुस्किल है। आपके मित्र के खबर पढ़ कर मुझे उस लड़के की याद आ गई। अब उसका ट्रांसफर हुए साल भर हो गया फिर भी उसने मेरे जन्मदिन पर फोन किया था। आप अपने मित्र से बताईये कि वो दुनिआ में अकेले नही है। सब ठीक हो जायेगा।
rahe aur bhi hai mohabbat ke raho ke siva, raahate aur bhi hai wasl ke rahat ke siva
mitra kya ye title aap ko sahi laga ? jisme aapne prem ke aage aatmhanta aur asafal jaise aapne visheshan laga rakkhe hai, ye savaal mera aapse hai. kuch katre kuch shayro ke aapke mitr ke naam__ हम जानते तो इश्क न करते किसू के साथ,
ले जाते दिल को खाक में इस आरजू के साथ।
__नि दिमाग है कि किसू से हम,करें गुफ्तगू गम-ए-यार में
न फिराग है कि फकीरों से,मिलें जा के दिल्ली दयार में
कहे कौन सैद-ए-रमीद: से,कि उधर भी फिरके नजर करे
कि निकाब उलटे सवार है, तिरे पीछे कोई गुबार में
कोई शोल: है कि शरार: है,कि हवा है यह कि सितार: है
यही दिल जो लेके गड़ेंगे हम,तो लगेगी आग मजार में
__सोज़िश-ए-दर्द-ए-दिल किसे मालूम
कौन जाने किसी के इश्क़ का राज़
मेरी ख़ामोशियों मे लरज़ां हैं
मेरे नालों के गुमशुदा आवाज़
__ये अहदे-तर्क़े-मोहब्बत है किसलिये आखिर
सुकूने-क़ल्ब इधर भी नहीं, उधर भी नहीं
चन्दन जी,अपने मित्र से कहिये जो उनका था ही नहीं उसके लिए परेशान होने कि क्या जरुरत है,अगर वो लड़की आपके मित्र से प्यार करती तो जाती ही नहीं और चली गयी इसका मतलब वो उनसे प्रेम नहीं करती थी,अच्छा हुआ जो उसने आपके मित्र को सच बता दिया,वरना वो जिन्दगी भर धोखे में रहते कि वो उनसे प्रेम करती है.दूसरी बात जब हम किसी को प्रेम करते है तो उसके साथ जीना चाहते हैं,हमारे समाज में साथ रहने के लिए विवाह के अलावा कोई विकल्प नहीं है,live in relationship सब के बस कि बात नहीं और फिर अनावश्यक समाज से जूझना पड़ता है.............अंततः अपने मित्र से कहिये कि वो उनसे प्रेम नहीं करती थी वो एक छलावा मात्र था,अच्चा हुआ जो चली गयी.........................
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