कल रात एक कहानी पूरी की। कहानी मंझोली है पर डेढ़ साल से लिखी जा रही थी और कई सारे तरीकों से लिख लिख के छोड़ता रहा। एक बार तो कहानी पूरी हो गई थी, बीते अप्रेल में, पर खुद को ही पसन्द नही आ रही थी।
अब जब पूरी हुई तो मन बहुत उदास हो गया। रात भर नीन्द नही आई। किसी को बताना चाहता था कि आज मैने एक कहानी पूरी की है पर दो तीन बजे किसे बताता। रात की एक दूसरी ही तकलीफदेह घटना से मन कई गुना बेचैन था। बार बार मैं जोर जोर से बोलना चाहता था। लवें तप रही थी। पानी लगातार पीना भी बेअसर जा रहा था। दूध नही था सो लाल चाय बनाकर पिया। स्वाद बहुत खराब था। पर उससे अपना ही ध्यान बँटाने में खासी मदद मिली।
रात रात भर जाग कर और तमाम शहरों के होटलों में रह कर यह कहानी लिखी गई है। एक पैरा जम्मू तो अगला पन्ना जयपुर उसके बाद अगली लाईन बस में, फिर कोई हिस्सा ट्रेन में। मुझे याद आ रहा है कि जब मैं पार पुल वाला हिस्सा लिख रहा था, जुलाई की बात है, उस दिन मैं अमृतसर था और खूब बारिश हो रही थी। अब ये कहानी एक पत्र के फॉर्म में लिखी गई है। आज आखिरी से पहले वाला ड्राफ्ट पूरा हुआ और अभी उसी की मानसिक थकान से उबरने की कोशिश कर रहा हूँ। मानसिक थकान ऐसी है कि एक शब्द लिखने का मन नही हो रहा पर अभी कहानी के कुछ तंतु जो छूट रहे हैं उन्हे टाँकने का काम बाकी है। डरते डरते कुछ मित्रों को पढ़ने के लिये अपनी कहानी भेज रहा हूँ। क्या पता उन्हे पसन्द आये, ना आये।
कहानी का शीर्षक है - “नया”।
उम्मीद है अगले महीने तक आप सबके सामने उस कहानी के साथ उपस्थित हूँगा। तब तक दूसरी कहानी पूरी होने की सम्भावना है। सफर में लगातार रहने के कारण कोई भी कहानी इकट्ठे नही कर पा रहा था पर लगातार के इस सफर और लगातार के ही इस खौफनाक अकेलेपन का सुन्दर पहलू भी है कि कई कई कहानियों पर काम करता रहा और अब सब सही राह पर हैं। कई कई दिन अबोले गुजर जाते हैं। इस महीने कोशिश करूंगा कि सम्भव हो तो यात्रायें कम करूँ। अगर महीने में पांच छ दिन भी समय से कमरे पर आ गया तो अगली कहानी का खांचा खिंच जायेगा।
अब जब पूरी हुई तो मन बहुत उदास हो गया। रात भर नीन्द नही आई। किसी को बताना चाहता था कि आज मैने एक कहानी पूरी की है पर दो तीन बजे किसे बताता। रात की एक दूसरी ही तकलीफदेह घटना से मन कई गुना बेचैन था। बार बार मैं जोर जोर से बोलना चाहता था। लवें तप रही थी। पानी लगातार पीना भी बेअसर जा रहा था। दूध नही था सो लाल चाय बनाकर पिया। स्वाद बहुत खराब था। पर उससे अपना ही ध्यान बँटाने में खासी मदद मिली।
रात रात भर जाग कर और तमाम शहरों के होटलों में रह कर यह कहानी लिखी गई है। एक पैरा जम्मू तो अगला पन्ना जयपुर उसके बाद अगली लाईन बस में, फिर कोई हिस्सा ट्रेन में। मुझे याद आ रहा है कि जब मैं पार पुल वाला हिस्सा लिख रहा था, जुलाई की बात है, उस दिन मैं अमृतसर था और खूब बारिश हो रही थी। अब ये कहानी एक पत्र के फॉर्म में लिखी गई है। आज आखिरी से पहले वाला ड्राफ्ट पूरा हुआ और अभी उसी की मानसिक थकान से उबरने की कोशिश कर रहा हूँ। मानसिक थकान ऐसी है कि एक शब्द लिखने का मन नही हो रहा पर अभी कहानी के कुछ तंतु जो छूट रहे हैं उन्हे टाँकने का काम बाकी है। डरते डरते कुछ मित्रों को पढ़ने के लिये अपनी कहानी भेज रहा हूँ। क्या पता उन्हे पसन्द आये, ना आये।
कहानी का शीर्षक है - “नया”।
उम्मीद है अगले महीने तक आप सबके सामने उस कहानी के साथ उपस्थित हूँगा। तब तक दूसरी कहानी पूरी होने की सम्भावना है। सफर में लगातार रहने के कारण कोई भी कहानी इकट्ठे नही कर पा रहा था पर लगातार के इस सफर और लगातार के ही इस खौफनाक अकेलेपन का सुन्दर पहलू भी है कि कई कई कहानियों पर काम करता रहा और अब सब सही राह पर हैं। कई कई दिन अबोले गुजर जाते हैं। इस महीने कोशिश करूंगा कि सम्भव हो तो यात्रायें कम करूँ। अगर महीने में पांच छ दिन भी समय से कमरे पर आ गया तो अगली कहानी का खांचा खिंच जायेगा।
8 comments:
बहुत मेहनत कर जब मंजिल पर आ जाते हैं तो ऐसी ही स्थितियाँ बनती हैं.
आप इत्मिनान से आराम कर लें और फिर कहानी पढ़वाईये, हम इन्तजार करेंगे.
शुभकामनाएँ.
is kahaani ka intzar rahega!....Vivek
भाई मेरे ब्लॉग पर मेरी नयी कहानी पढ़ें और कहें, कहाँ क्या सुधर करूँ ? http://www.shabdmay.blogspot.com/
hum intzar karenge aapki us kahani ka
सफर में लगातार रहने के कारण कोई भी कहानी इकट्ठे नही कर पा रहा था पर लगातार के इस सफर और लगातार के ही इस खौफनाक अकेलेपन का सुन्दर पहलू भी है कि कई कई कहानियों पर काम करता रहा और अब सब सही राह पर हैं
ऐसा होता है.
- विजय
eagerly waiting for your story moved through many places..........
सुखद समाचार दिया आपने। कब पढ़ने के लिये मिलेगी?
बधाई हो चन्दन यह नया अब डेढ़ साल पुराना तो हो ही गया .. हंस मे भेज दो नया हो जायेगा ।
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