आस्था का जिस्म घायल रूह तक बेजार है
क्या करे कोई दुआ जब देवता बीमार है
तीरगी अब भी मजे में है यहाँ पर दोस्तों
इस शहर में जुगनुओं की रौशनी दरकार है
भूख से बेहाल बच्चों को सुनाकर चुटकुलें
जो हँसा दे, आज का सबसे बड़ा फनकार है
मैं मिटा के ही रहूँगा मुफ़लिसी के दौर को
बात झूठी रहनुमा की है मगर दमदार है
वो रिसाला या कोई नॉवल नहीं है दोस्तों
पढ़ रहा हूँ मैं जिसे वो दर्द का अखबार है
खूबसूरत जिस्म हो या सौ टका ईमान हो
बेचने की ठान लो तो हर तरफ़ बाजार है
रास्ते ही रास्ते हों जब शहर की कोख में
मंज़िलों को याद रखना और भी दुश्वार है
(कुमार विनोद का परिचय यहाँ)
10 comments:
खूबसूरत जिस्म हो या सौ टका ईमान हो
बेचने की ठान लो तो हर तरफ़ बाजार है
kamaal ka sher hai... adbhut... yaad reh jaayega.
bahut hi shandar gazal
भूख से बेहाल बच्चों को सुनाकर चुटकुलें
जो हँसा दे, आज का सबसे बड़ा फनकार है
मैं मिटा के ही रहूँगा मुफ़लिसी के दौर को
बात झूठी रहनुमा की है मगर दमदार ह
बहुत खूबसूरत गज़ल है बधाई
बहुत बढिया .. शुभकामनाएं !!
उनकी ग़ज़लों की तारीफ़ में क्या कहें...आह! जब से पढ़ रहा हूं, एक सुरुर का आलम है...
bahut achhi ghazal. Kumar Vinodji ko badhai.
Wonderful!!!!
Congratulations Kumar Vinodji, its one of the best composition I read at this blog...... My all best wishes to you.....
Happy Holi to all the readers
अच्छी गज़ल है ।
bahut waqt baad, gazal ko is rang mai dekha...
भूख से बेहाल बच्चों को सुनाकर चुटकुलें
जो हँसा दे, आज का सबसे बड़ा फनकार है
jabardast...
Post a Comment