Sunday, February 7, 2010

निकोलस गियेन की कविता- पहेलियाँ

दाँतों में, सुबह,
और रात चमड़ी में।
कौन है, कौन नहीं?

......... नीग्रो

उसके एक सुन्दर स्त्री न होने पर भी,
वही करोगे जो उसका हुक्म होगा।
कौन है, कौन नहीं?

......... भूख

गुलामों का गुलाम,
और मालिक के संग जुल्मी।
कौन है, कौन नहीं?

......... गन्ना

छुपा लो उसे एक हाथ से
ताकि दूसरा कभी जाने भी नहीं।
कौन है, कौन नहीं?

......... भीख

एक इंसान जो रो़ रहा है
एक हंसी के साथ जो उसने सीखी थी।
कौन है, कौन नहीं?

......... मैं


कवि: निकोलस गियेन (परिचय और कवितायें यहाँ)
अनुवाद: श्रीकांत

5 comments:

Rangnath Singh said...

ये जनाब तो अमीर खुसरो निकले। श्रीकांत आभार। जायका बदलने के लिए।

सागर said...

दाँतों में, सुबह,
और रात चमड़ी में।
कौन है, कौन नहीं?

......... नीग्रो

यह वो वाकई अद्भुत है...

अनिल कान्त said...

ise padhvane ke liye aapka tahe dil se shukriya

sudhanshu said...

is poetry ke anuwad ke liye dhanyavad....

Anonymous said...

ye hai wakai me asli NAYI BAAT !...dhanyawad!
..Vivek