Thursday, October 29, 2009

(अ)सत्यम और हैदराबाद का एक मोहल्ला

झूठ के ऊँचे पहाडो पर टिके सत्यम की दास्ताँ सबके सामने है. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में जुटे छात्रो ने सत्यम से जुड़े सभी आकडों को रट लिया होगा.कितने करोड़ का हवाला हुआ? कितने कर्मचारी प्रभावित हुए? कौन कौन से बड़े नाम जुड़े हैं? सॉफ्टवेयर की दुनिया के दूसरे खिलाड़ियों पर इसका क्या असर होगा? इन विषयों पर कितने स्याही खर्च की गई होगी, ये किसी को शायद ही पता हो. इसलिए सत्यम से जुड़ी तमाम बड़ी बातों को रोज होने वाली चर्चा पर छोड़ते हुए हम अपनी बात एक मुहल्ले, उसके निवासियों तथा उनके रोजगार की बात करेंगे.


सत्यम के उठते गिरते इतिहास के साक्षी हैदराबाद का एक मोहल्ला है - येर्रागुड्डा.बीती सदी के आठवे दशक में जब सत्यम अस्तित्व में आया उससे पहले येर्रागुड्डा नाम की जगह गेंहू की खेती के लिए विख्यात थी. सत्यम के प्रादुर्भाव ने यहाँ के निवासियों को परोक्ष रूप से रोजगार मुहैया कराया. सॉफ्टवेयर हब और विशेषकर सत्यम के स्वप्निल उछाल के बाद अमीरपेट - येर्रागुड्डा मार्ग पर सैकडो सॉफ्टवेयर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट खुल आए, इंजीनियर्स और सॉफ्टवेयर टेक्निकल्स की मांग में हुई बेतहाशा वृद्धि इन ट्रेनिंग सेंटरों के उभरने में बड़ी मददगार साबित हुई. यहाँ सैप और ओरेकल मॉड्यूल के ट्रेनिंग लेने वालों की भीड़ लगी रहती थी. आजकल इन खाली सडको को देख कोई उस भीड़ का अंदाजा भी नही लगा सकता. इन कोचिंगसेंटरों के मालिको का कहना है कि यह उनके व्यवसाय का सबसे बुरा दौर है- एक तरफ़ आर्थिक मंदी और दूसरी तरफ़, सत्यम के फ्राड का खुलासा.

वी एस टेक्नोलोजिज के संचालक, कुर्रा श्रीनिवास कहते हैं," अब हमने कोचिंग सेंटर बंद करने का फ़ैसला कर लिया है." श्रीनिवास बताते हैं " कुछ दिनों पहले तक सैप और ओरेकल मॉड्यूल के हरेक बैच में 10 से 15 छात्र रहा करते थे. अब ऐ संख्या गिर कर 2 से 3 रह गई है."


पूजा कॉलेज ऑफ़ सैप सर्टिफिकेशन के प्रबंधक देशिनी उमाकांत का कहना है " यहाँ तक कि पाठ्यक्रम से सम्बंधित पूछताछ के मामलो में भी भारी गिरावट आई है. पहले जहाँ पूछताछ के लिए सौ से अधिक फोन एक दिन में आते थे, अब वो घाट कर हद से हद पाँच और छ: रह गई हैं. व्यवसाय में अस्सी फीसदी की सीधी गिरावट आई है." एक दूसरे परेशान हाल प्रबंधक का कहना है ," छात्र कहाँ हैं? कोचिंग का खर्च ही चला पाना मुश्किल हो गया है. ऐसे में बंद करने के अलावा कोई दूसरा चारा नही है" वैसे इस प्रबंधक का मानना है कि रामलिंगा राजू के फ्रौड के खुलासे का समय( मंदी के समय) बहुत ग़लत था.


कोचिंग संस्थानों के ही हाल को फोटोकोपियर्स भी पहुंचे हैं. एक फोटोकॉपी वाला, जिसने पिछले सात आठ वर्षो में एक बार भी गर्म चाय पी लेने मौका नही पाया होगा, अब चाय पर चाय पी रहा है और समय के साथ सत्यम को कोस रहा है.


कोचिंग संस्थान के मालिकों कि तरह अब्राहम एल, वर्सन जेरोक्स सेंटर के मालिक, भी आई हुई मुश्किल का निजात ढूंढ पाने में असफल हैं. कोचिंग संस्थान के मालिकों कि तरह अब्राहम एल, वर्सन जेरोक्स सेंटर के मालिक, भी आई हुई मुश्किल का निजात ढूंढ पाने में असफल हैं. उनका कहना है कि फोटोकॉपी का उनके व्यवसाय में पचास फीसदी कि गिरावट आई है. वे कहते हैं, " मैंने सुना है, जो छात्र मेरी दूकान पर आया करते थे, घर चले गए हैं." इसके स्सथ वो यह भी जोड़ देते है कि पर्याप्त व्यवसाय न होने के कारण दूकान बंद करनी पड़ सकती है.


वैसे यहाँ के कोचिंग संस्थानों ने अपनी अनोखी विस्वसनीयता अर्जित की है. सत्यम के साथ अस्तित्व में आए ये कोचिंग संस्थान भारतीय छात्रों को ही नही, विदेशी छात्रो को भी लुभाते हैं. इसके दो महतवपूर्ण कारण हैं: जिन पाठ्यक्रमो की फीस दिल्ली और बंगलूर में 30,000 और 40,000 रूपये है उन्ही पाठ्यक्रमो के लिए इन कोचिंग संस्थानों की फीस 10,000 रूपये है. छात्रो का कहना है कि यहाँ की फैकल्टी भी काफी अच्छी है. शहर के तकनीकी विशेषज्ञ भी इन सर्टिफिकेट्स को खूब महत्व देते हैं. इनकी विस्वसनीयता का आलम यह है कि आधा पाठ्यक्रम को पूरा कर पाने वाले सर्टिफिकेट्स ने भी बढ़िया से बढ़िया नौकरियाँ लोगों को दिलाई है. लोगो का कहना है कि अब ये बीते जमाने की बातें होंगी.
बुरे दिनों से शिकायत सी एच महेश को भी है. सोफ्टवेयर और हार्डवेयर इंस्टाल करने के व्यवसाय से जुड़े महेश भी व्यवसाय के दुर्दिन के आगे असहाय हैं. फ़िर भी ये अपनी तकलीफ बताने के बजाय सड़क के दूसरी ओर बैठी के लक्ष्मी नाम की बुधी महिला की ओर इशारा करते हैं, जो चुप बैठी हुई है. फलों के जूस की दूकान की मालकिन इस बूढी महिला की दूकान पर कहाँ तो कतार में खडा होना पड़ता तह एक ग्लास जूस के लिए, अब कुछेक ग्राहक ही रह गए हैं.

छात्रावास भी आधे से अधिक खाली पड़े हैं. सैप मॉड्यूल के एक छात्र कौशल कुमार का कहना है कि इन छात्रावासों की रिहाईस में 40% तक की कमी आई है. आई टी क्षेत्र में अपना भविष्य ढूंढ रहे दिल्ली के एक छात्र अखिलेश का कहना है " बैठ कर इंतज़ार कर सकने का संसाधन सबके पास मौजूद नही है. वैश्विक मंदी और सत्यम को धन्यवाद की हम जैसो के लिए निकट भविष्य में रोजगार की कोई संभावना नही दिख रही है. लग रहा है आने वाले दिनों में गिरावट को बढ़ते ही जाना है." अखिलेश फिलहाल हैदराबाद में रुके हुए है और नौकरी के सुखद संदेश का इंतज़ार कर रहे हैं.

अगर आप पहले कभी येर्रागुड्डा आ चुके हो, उन दिनो जब यहाँ रौनके रहा करती थीं, तो अभी एक बार फ़िर जरुर आयें. पसरी हुई वीरानी में आपको आपकी पिछली यात्रा की अनुगूँज लगातार सुनाई देगी. ऐसे में आप एक बार को ही सही पर ये जरुर सोचेंगे कि येर्रागुड्डा को फ़िर से इसकी रौनक वापस कए जा सकती है या नही?

1 comment:

Anonymous said...

किस्सी भी संस्थान में कहते है ४% सच मच में काम के होते है,उनके सचमुच में टीम के हिस्से के लोगो को मिलाया जाये तो ये २०% हो जाता है ,और बाकि ८०% भारती होते है.ये फार्मूला सभी प्रकार की संस्थाओं पे लागु है.अब रेसस्सिओं जैसे दौर में ये जो ८०% होते है ये माहौल खीच देते है.जो सच मच में योग्य है और काम जानते है ,उनके लिए काम की कोई कमी नहीं,ऐसा अभी तक तो मेरा मानना है,हाँ बशर्ते एन्तेर्प्रेंयूर्शिप का आप्शन खुला रखा जाये.
प्प्क लेख ,एक सभ्यता के बसने और उजड़ने जैसा लगा,आज के युग में सभ्यताओं की कहानी भी कुछ सालो की हो गयी है.It was an interesting report.
amit