आज अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस है और वरिष्ठ अमेरिकी कवि मार्क स्ट्रेंड की इन कविताओं का अनुवाद मनोज पटेल ने किया है.
रोशनी का आना
इस उम्र में भी होता है ऐसा
प्रेम आता है और आती है रोशनी
आप जागते हैं और शमाएं जल उठती हैं खुद-ब-खुद
जुटते हैं सितारे, तकिए पे उमड़ पड़ते हैं ख्वाब
बहती है हवा खुशनुमा
इस उम्र में भी दमकती हैं बदन की हड्डियाँ
और कल की गर्द भर उठती है सांसों में.
एकजुट रखने के लिये
मैदान में
मैं हूँ मैदान की अनुपस्थिति
यही होता है हमेशा
जहाँ भी होता हूँ मैं
मैं ही होता हूँ अनुपस्थित.
अपने चलने से मैं
बांटता चलता हूँ हवा को
यही होता है हमेशा
हवा जल्दी से भर देती है वो जगह
जहाँ से अभी-अभी हुआ हूँ मैं अनुपस्थित.
हम सबके पास अपने-अपने कारण हैं चलने के
मैं चलता हूँ
चीजें
एकजुट रखने के लिये.
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