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Saturday, April 30, 2011

मनोज की खोज : 1 - रोक डॉल्टन गार्सिआ की कविताएँ

रोटी की तरह कविता

1992 की बात है. या 1993 की. मार्टिन एस्पादा ने राजनीतिक कविताओं का संग्रह तैयार किया और उसका नाम दिया : रोटी की तरह कविता. कहना न होगा कि यह पंक्ति रोक डॉल्टन की कविता 'तुम्हारी तरह' से ली गई है.

रोक डाल्टन (अल सल्वाडोर, 1935 - 1975) एक कवि, लेखक, बुद्धिजीवी और क्रांतिकारी की हैसियत से लैटिन अमेरिका के इतिहास की महत्वपूर्ण शख्सियत रहे हैं. अपने छोटे से जीवन में उन्होंने कुल मिलाकर 18 किताबें लिखीं. मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारों से प्रभावित डाल्टन ने क्रांतिकारी एक्टिविस्ट बनने का भी काफी प्रयास किया जिसे यह कहते हुए नकार दिया गया कि क्रान्ति में उनकी भूमिका एक कवि के रूप में ही है. मेक्सिको में निर्वासन में रहने के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया और मौत की सजा सुनाई गई लेकिन वे चमत्कारी ढंग से बच निकले. पर उन दिनों लटिन अमेरिका में सोचने समझने वालों के साथ जो सामान्यत: होता था, ठीक उसी तरह 1975 में उनकी हत्या कर दी गई. 

हम हिन्दी वाले अक्सर "पोलिटकली चार्ज्ड" कविता की बात करते हैं और साथी मनोज पटेल ने ऐसे कवि को ढूँढ निकाला है जिसकी कविताओं से गुजरते हुए हम "पोलिटकली चार्ज्ड" शब्दयुग्म के भाव को पंक्ति दर पंक्ति महसूस करेंगे. हमारा इरादा, रोक डॉल्टन की कविताओं का धनी हिन्दी समाज से परिचय  कराने का, फरवरी का था पर तय हुआ कि इनकी कविताओं के अंग्रेजी संकलन  में मौजूद सभी 142 कविताओं का अनुवाद कर  लिया जाए. हुआ भी यही.

इस परिचायत्मक मेगा पोस्ट के बाद  आपको धड़ल्ले से इनकी कविताएँ पढ़ने को मिलेगी.
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तुम्हारी तरह



तुम्हारी तरह मैं भी
प्रेम करता हूँ प्रेम से, ज़िंदगी,
चीजों की मोहक सुगंध, और जनवरी
के दिनों के आसमानी रंग के भूदृश्यों से.

और मेरा भी खून खौल उठता है
और मैं हंसता हूँ आँखों से
जो जानती रही हैं अश्रुग्रंथियों को.

मेरा मानना है कि दुनिया खूबसूरत है
और रोटी की तरह कविता भी सबके लिए है.

 और मेरी नसें सिर्फ मेरे भीतर नहीं
बल्कि उन लोगों के एक जैसे खून तक भी फैली हैं
जो लड़ते हैं ज़िंदगी के लिए,
प्रेम,
छोटी-छोटी चीजों,
प्राकृतिक भूदृश्यों और रोटी के लिए,

जो कविता है हर किसी की.
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आजादी के आंकड़े


सल्वाडोर के लोगों के लिए प्रेस की आजादी की लागत
20 सेंटावो प्रतिदिन बैठती है
केवल उन्हीं लोगों की गिनती करते हुए जो पढ़ सकते हैं
और जिनके पास बीस सेंटावो से ज्यादा बचे रह जाते हैं
बमुश्किल उतना भर खाने के बाद जितना ज़िंदा रहने के लिए जरूरी है.

बड़े उद्योगपतियों और प्रचारकों के लिए
प्रेस की आजादी
एक श्वेत-श्याम पृष्ठ के लिए हजारों और कुछ रेजगारी की कीमत पर बिकती है
और मुझे नहीं पता कि पाठ्य या चित्र के लिए
प्रति वर्ग इंच की किस दर पर.

 डान नेपोलियन वियरा अल्टामिरानो
और डतरिज और पिंटो और अल मुंडो के मालिकों के लिए
प्रेस की आजादी लाखों की है :
जिसमें शामिल हैं इमारतें
सैन्य सिद्धांतों पर बनाई गईं
जिसमें शामिल हैं मशीन और कागज़ और रोशनाई
उनके उद्योगों के आर्थिक निवेश
जो वे दिन-प्रतिदिन बड़े उद्योगपतियों और प्रचारकों से पाते हैं
और सरकार और उत्तरी अमेरिका
और दूसरे दूतावासों से
जिसे वे गारते हैं अपने मजदूरों के शोषण से
जिसे वे ऐंठते हैं ब्लैकमेल से ( "सबसे नामी आदमी की निंदा
न छापकर या मौकापरस्ती से ऐसा राज छापकर
जो समुद्र की सबसे छोटी मछली को डुबो देगा" )
जो वे कमाते हैं "एकमात्र अधिकार" की अवधारणा से, उदाहरण के लिए
"लव इज" तौलिए... "लव इज" मूर्तिकाएं...
जो वे रोज एकत्र करते हैं
सल्वाडोर (और गुआटेमाला) के उन सभी लोगों से
जिनके पास बीस सेंटावो उपलब्ध होते हैं.

पूंजीवादी तर्कशास्त्र में
 प्रेस की आजादी बस एक और धंधा है
और सबके लिए इसकी कीमत
इसके लिए उसके द्वारा किए जाने वाले भुगतान के समानुपाती है :

लोगों के लिए बीस सेंटावो प्रति व्यक्ति प्रति दिन
प्रेस की आजादी की कीमत,

 वियरा अल्टामिरानो डतरिज पिंटो वगैरह के लिए
लाखों डालर प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन
होती है प्रेस की आजादी की कीमत.

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 27 साल


सत्ताईस साल का होना
एक संजीदा बात है
दरअसल तमाम मौजूद चीजों के बीच
सबसे संजीदा बातों में से एक
देखते हुए दोस्तों की मौत
और डूबते हुए बचपन को
शक होने लगता है
अपने खुद के अमरत्व पर.
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  कविता से


मैं तुम्हारा स्वागत करता हूँ कविता
बहुत शुक्रगुजार हूँ आज तुमसे मुलाक़ात के लिए
(ज़िंदगी और किताबों में)
तुम्हारा वजूद सिर्फ उदासी के चकाचौंध कर देने वाले
भव्य अलंकरण के लिए ही नहीं है

इसके अलावा हमारी जनता के इस लम्बे और कठिन संघर्ष के
काम में मेरी मदद करके
तुम आज मुझे बेहतर कर सकती हो

 तुम अब अपने मूल में हो :
अब वह भड़कीला विकल्प नहीं रही तुम
जिसने मुझे अपनी ही जगह से बाँट दिया था

 और तुम खूबसूरत होती जाती हो 
कामरेड कविता

कड़ी धूप में जलती हुई सच्ची खूबसूरत बाहों के बीच
मेरे हाथों के बीच और मेरे कन्धों पर

तुम्हारी रौशनी मेरे आस पास रहती है.
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यकीन


चार घंटों की यातना के बाद, अपाचे एवं अन्य दो सिपाहियों ने कैदी को होश में लाने के लिए उस पर एक बाल्टी पानी फेंक कर कहा : "कर्नल ने हमें यह बताने का हुक्म दिया है कि तुम्हें खुद को बचाने का एक मौक़ा दिया जाने वाला है. यदि तुम सही-सही यह बता दो कि हममें से किसकी एक आँख शीशे की है, तो तुम्हें यातना से छुटकारा दे दिया जाएगा." जल्लादों के चेहरे पर निगाहें फिराने के बाद, कैदी ने उनमें से एक की तरफ इशारा किया : "वह. उसकी दाहिनी आँख शीशे की है."

अचंभित सिपाहियों ने कहा, "तुम तो बच गए ! लेकिन तुमने कैसे अंदाजा लगाया ? तुम्हारे सभी साथी गच्चा खा गए क्योंकि यह अमेरिकी आँख है, यानी एकदम बेऐब." "सीधी सी बात है," फिर से बेहोशी तारी होने का एहसास करते हुए कैदी ने कहा, "यही इकलौती आँख थी जिसमें मेरे लिए नफरत नहीं थी."

जाहिर है, उन्होंने उसे यातना देना जारी रखा.

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अनुवाद : मनोज पटेल

सम्पर्क : manojneelgiri@gmail.com ; http://padhte-padhte.blogspot.com/

Tuesday, March 29, 2011

दुन्या मिखाईल की पाँच कविताएँ

मनोज पटेल ने अनूठे ही अन्दाज में मेरा परिचय विश्व कविता से कराया. विश्व  कविता के बड़े नामों में ही उलझा हुआ मैं था जब मनोज जी ने वेरा पावलोवा, चार्ल्स सिमिक और दुन्या मिखाईल की कविताओं के अनुवाद मुझे भेजने शुरु किए. फिर तो सिलसिला अनवरत है.


दुन्या की कविताएँ किसी ऐसे दु:ख या सघन अनुभूति की तरह सामने आती हैं जिनका सामना हम भरसक नही करना चाहते. जैसे यह कविता – कटोरा(अंग्रेजी में इसका शीर्षक ‘द कप’ है). पाखंड को आप नकारते हैं, शगुन – अपशगुन को आसानी से नकारते हैं पर यह कविता आपको गर्दन पर सवार हो जायेगी जहाँ आप चाहकर इस शगुन – अपशगुन के खेल को आसानी से नकार नही पायेंगे.

खेल कविता पढ़ते हुए मीर के एक शे’र “खुदा को काम तो सौपें हैं मैने सब / रहे है खौफ मुझको वाँ की बेनियाजी का” लगातार याद आता रहा. ऐसे ही तीसरी कविता है – एक आवाज़.

इससे पहले भी मनोज जी  दुन्या की कविताओं के अनुवाद लगातार करते रहे हैं जिन्हें आप यहाँ और यहाँ देख सकते हैं.

                                                      ************




कटोरा

उस स्त्री ने कटोरे को उल्टा करके रख दिया
अक्षरों के बीच में.
एक मोमबत्ती को छोड़कर बाक़ी सारी बत्तियां बुझा दीं
और अपनी उंगली कटोरे के ऊपर रखी
और मन्त्र की तरह कुछ शब्द बुदबुदाए :
ऐ आत्मा... अगर तू मौजूद है तो कह - हाँ.
इस पर कटोरा हाँ के संकेत स्वरूप दाहिनी तरफ चला गया.
स्त्री बोली : क्या तुम सचमुच मेरे पति ही हो, मेरे शहीद पति ?
कटोरा हाँ के संकेत में दाहिनी तरफ चला गया.
उसने कहा : तुम इतनी जल्दी मुझे क्यों छोड़ गए ?
कटोरा इन अक्षरों पर फिरा -
यह मेरे हाथ में नहीं था.
उसने पूछा : तुम बच क्यों नहीं निकले ?
कटोरा इन अक्षरों पर फिरा -
मैं बच निकला था.
उसने पूछा : तो फिर तुम मारे कैसे गए ?
कटोरे ने हरकत की : पीछे से.
उसने कहा : और अब मैं क्या करूँ
इतने सारे अकेलेपन के साथ ?
कटोरे ने कोई हरकत नहीं की.
उसने कहा : क्या तुम मुझसे प्रेम करते हो ?
कटोरा हाँ के संकेत में दाहिनी तरफ चला गया..
उसने कहा : क्या मैं तुम्हें यहाँ रोक सकती हूँ ?
कटोरा नहीं की तरफ के संकेत में बायीं तरफ चला गया..
उसने पूछा : क्या मैं तुम्हारे साथ चल सकती हूँ ?
कटोरा बायीं तरफ चला गया.
उसने कहा : क्या हमारी ज़िंदगी बदलेगी ?
कटोरा दाहिनी तरफ चला गया.
उसने पूछा : कब ?
कटोरे ने हरकत की - 1996.
उसने पूछा : क्या तुम सुकून से हो ?
कटोरा हिचकिचाते हुए हाँ की तरफ चला गया.
उसने पूछा : मुझे क्या करना चाहिए ?
कटोरे ने हरकत की - बच निकलो.
उसने पूछा : किधर ?
कटोरे ने कोई हरकत नहीं की.
उसने कहा : तुम मुझसे क्या चाहते हो ?
कटोरे एक बेमतलब जुमले पर फिरी.
उसने कहा : कहीं तुम मेरे सवालों से ऊब तो नहीं गए ?
कटोरा बायीं तरफ चला गया.
उसने कहा : क्या मैं और सवाल कर सकती हूँ ?
कटोरे ने कोई हरकत नहीं की.
थोड़ी चुप्पी के बाद, वह बुदबुदाई :
ऐ आत्मा... जा, तुझे सुकून मिले.
उसने कटोरा सीधा किया
मोमबत्ती को बुझा दिया
और अपने बेटे को आवाज़ लगायी
जो बगीचे में कीट-पतंगे पकड़ रहा था
गोलियों से छिदे हुए एक हेलमेट से.

* *

खेल

वह एक मामूली प्यादा है.
हमेशा झपट पड़ता है अगले खाने पर.
वह बाएँ या दाएं नहीं मुड़ता
और पीछे पलटकर भी नहीं देखता.
वह एक नासमझ रानी द्वारा संचालित होता है
जो बिसात के एक सिरे से दूसरे सिरे तक चल सकती है
सीधे या तिरछे.
वह नहीं थकती, तमगे ढोते
और ऊँट को कोसते हुए.
वह एक मामूली रानी है
एक लापरवाह राजा द्वारा संचालित होने वाली
जो हर रोज गिनता है खानों को
और दावा करता है कि कम हो रहे हैं वे.
वह सजाता है हाथी और घोड़ों को
और एक सख्त प्रतिद्वंदी की करता है कामना.
वह एक मामूली राजा है
एक तजुर्बेकार खिलाड़ी द्वारा संचालित होने वाला
जो अपना सर घिसता है
और एक अंतहीन खेल में बर्बाद करता है वक़्त अपना.
वह एक मामूली खिलाड़ी है
एक सूनी ज़िंदगी द्वारा संचालित होने वाला
किसी काले या सफ़ेद के बिना.
यह एक मामूली ज़िंदगी है
एक भौचक्के ईश्वर द्वारा संचालित होने वाली
जिसने कोशिश की थी कभी मिट्टी से खेलने की.
वह एक मामूली ईश्वर है.
उसे नहीं पता कि
कैसे छुटकारा पाया जाए
अपनी दुविधा से.



एक आवाज़


मैं लौटना चाहता हूँ
वापस
वापस
वापस

दुहराता रहा तोता
उस कमरे में जहां
उसका मालिक छोड़ गया था उसे
अकेला

यही दुहराने के लिए :
वापस
वापस
वापस...

नया साल

1
कोई दस्तक दे रहा है दरवाजे पर.
कितना निराशाजनक है यह...
कि तुम नहीं, नया साल आया है.

2

मुझे नहीं पता कि कैसे तुम्हारी गैरहाजिरी जोडूँ अपनी ज़िंदगी में.
नहीं मालूम कि कैसे इसमें से घटा दूं खुद को.
नहीं मालूम कि कैसे भाग दूं इसे
प्रयोगशाला की शीशियों के बीच.

3

वक़्त ठहर गया बारह बजे
और इसने चकरा दिया घड़ीसाज को.
कोई गड़बड़ी नहीं थी घड़ी में.
बस बात इतनी सी थी की सूइयां
भूल गईं दुनिया को, हमआगोश होकर.

* *

झूलने वाली कुर्सी


जब वे आए,
बड़ी माँ वहीं थीं
झूलने वाली कुर्सी पर.
तीस साल तक
झूलती रहीं वे...
अब
मौत ने मांग लिया उनका हाथ,
चली गयीं वे
बिना एक भी लफ्ज़ बोले,
अकेला
छोड़कर इस कुर्सी को
झूलते हुए.

 
अनुवादक से सम्पर्क : 09838599333 ; manojneelgiri@gmail.com

Saturday, January 29, 2011

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की कविताएँ



अफ़ज़ाल अहमद सैयद : जिन्होंने “शायरी ईज़ाद की”.

आधुनिक समय की विश्व कविता अगर कोई संसार है तो अफज़ाल अहमद सैयद उस प्यारे संसार की राजधानी हैं. प्रसंग विशिष्ट सम्वेदना के अटूट चित्रण के लिये विख्यात यह कवि/ शायर कविता के जादुई ‘डिक्शन’ और प्रभावशाली कहन (बयान) के अन्दाज का मास्टर है. जिस संग्रह की कवितायें यहाँ प्रस्तुत हैं ( रोकोको और दूसरी दुनियायें ) उसके पन्नों से गुजरते हुए अफज़ाल की विलक्षण विश्वदृष्टि और इतिहासबोध का पता चलता है. अगर इनका नाम पाकिस्तान और समूचे विश्व के अप्रतिम कवियों की सूची में शुमार होने लगा है तो इसकी ठोस वजह है : पाकिस्तानी समाज में फैल चुकी धर्मान्धता, जातिगत लड़ाईयाँ, सांस्कृतिक क्षरण, क्रूरता और राज्य – प्रायोजित आतंकवाद से कवि की सीधी मुठभेड़. वर्तमान समय के सर्वाधिक रचनाशील और उर्वर कवि अफ़ज़ाल, दरअसल अपने पूरे ढब में भविष्य के (FUTURISTIC) कवि हैं.

1946 (गाजीपुर) की पैदाईश अफ़ज़ाल के नाम कुल चार किताबे और ढेरों अनुवाद हैं. नज्मों की तीन किताबें क्रमश: छीनी हुई तारीख़ (1984) दो ज़ुबानों में सजाये मौत (1990) तथा रोकोको और दूसरी दुनियायें (2000) हैं. गजलों का एक संग्रह – खेमा-ए-स्याह( 1988). वैसे इनका रचना समग्र “मिट्टी की कान” नामक संग्रह में समाहित है.

लिप्यंतरण के बारे में : अफ़ज़ाल का रचना समग्र हमें कैसे मिला, यह बेहद लम्बा और रोमांचक किस्सा है और जिसे फिर कभी बताऊंगा. समूची रचनाओं के अनुवाद/ लिप्यंतरण की इज़ाज़त हमें अफ़जाल साहब ने कुछ यह लिख कर दिया:

Dear Chandan,

I wish I could meet you and your friends Manoj and krishan.

I do hereby give Mr. Manoj Patel my permission to translate and publish my poems in Hindi including those published in " Roccoco and the Other Worlds".


Best regards

Afzal Ahmed Syed.

और सबसे जरूरी यह कि साथी मनोज पटेल ने सिर्फ और सिर्फ अफ़ज़ाल साहब की रचनाओं के अनुवाद/ लिप्यंतरण के लिये उर्दू सीखी. मनोज के उर्दू सीखने और इन नज्मों के लिप्यंतरण में शहाब परवेज़ ने भरपूर सहयोग दिया. मनोज अब तक अफ़ज़ाल साहब के दो संग्रह क्रमश: रोकोको और दूसरी दुनियायें तथा दो ज़ुबानों में सज़ाये मौत का लिप्यंतरण कर चुके हैं और छीनी हुई तारीख़ पर जुटे हैं. नज्मों की ये तीनों संग्रह, एक ही जिल्द में, शीघ्रातिशीघ्र प्रकाश्य.

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हमें बहुत सारे फूल चाहिए

हमें बहुत सारे फूल चाहिए
मारे जाने वाले लोगों के क़दमों में रखने के लिए,
हमें बहुत सारे फूल चाहिए
बोरियों में पाई जायी जानेवाली लाशों के चेहरे ढाँकने के लिए,
एक पूरी सालाना फूलों की नुमाईश
ईधी सर्दखाने में महफूज कर लेनी चाहिए
नामजद मरने वालों की
पुलिस कब्रिस्तान में खुदी कब्रों के पास रखने के लिए,
खूबसूरत बालकनी में उगने वाले फूलों का एक गुच्छा चाहिए
बस स्टाप के सामने
गोली लग कर मरने वाली औरत के लिए,
आसमानी नीले फूल चाहिए
येलो कैब में हमेशा की नींद सोए हुए दो नौजवानों को
गुदगुदाने के लिए,
हमें खुश्क फूल चाहिए
मस्ख किए गए जिस्म को सजाकर
असली सूरत में लाने के लिए,
हमें बहुत सारे फूल चाहिए
उन जख्मियों के लिए
जो उन अस्पतालों में पड़े हैं
जहां जापानी या किसी और तरह के रॉक गार्डन नहीं हैं,
हमें बहुत सारे फूल चाहिए
क्योंकि उनमें से आधे मर जाएंगे
हमें रात को खिलने वाले फूलों का एक जंगल चाहिए
उन लोगों के लिए
जो फायरिंग की वजह से नहीं सो सके,
हमें बहुत सारे फूल चाहिए
बहुत सारे अफ्सुर्दः लोगों के लिए,
हमें गुमनाम फूल चाहिए
बेसतर कर दी गई एक लड़की को ढांपने के लिए

हमें बहुत सारे फूल चाहिए

हमें बहुत सारे फूल चाहिए
बहुत सारी रक्स करती बेलों पर लगे
जिनसे हम इस पूरे शहर को छुपाने की कोशिश कर सकें
---
सर्दखाने - कोल्ड स्टोरेज, मुर्दाघर
मस्ख - विकृत
अफ्सुर्द : - उदास

* *
हमारा कौमी दरख़्त

सफ़ेद यास्मीन की बजाए
हम कीकर को अपनी शिनाख्त करार देते हैं
जो अमरीकी युनिवर्सिटियों के कैम्पस पर नहीं उगता
किसी भी ट्रापिकल गार्डेन में नहीं लगाया जाता
इकेबाना खवातीन ने उसे कभी नहीं छुआ
नबातात के माहिर उसे दरख़्त नहीं मानते
क्योंकि उसपर किसी को फांसी नहीं दी जा सकती

कीकर एक झाड़ी है
जिससे हमारे शहर, रेगिस्तान
और शायरी भरी है

काँटों से भरा हुआ कीकर
हमें पसंद है
जिसने हमारी मिट्टी को बहिरा-ए-अरब में जाने से रोका.
------
इकेबाना - फूल सजाने का जापानी तरीका
नबातात - जमीन से उगने वाली चीजें
बहिरा - ए- अरब - अरब सागर

**
एक इफ्तेताही तकरीब

फ्लोरा लक
लहरिएदार स्कर्ट
नीम बरहना शानों
और काली क्रोशिया की बेरेट में
मुख़्तसर जुलूस के साथ
केमाड़ी तक गई

वह स्काच चर्च में रुकी
उसने गैर दिलचस्प तकरीरें सुनीं
सुबह उसे
ट्रालियों के
गैल्वनाइज्ड लोहे की छतों वाले गोदाम
और साठ घोड़ों के अस्तबल का दौरा कराया गया

ट्राम वे की इफ्तेताही तकरीब में
कराची की सबसे खूबसूरत लड़की
खुश नजर आ रही थी

अगर उसका कोई महबूब होता
वह उसे उस दिन बहुत बोसे देती

उसकी खुशी के एहतिराम में
कराची ट्राम वे
नौवें साल तक पटरियों पर दौड़ती रही

और जब
मजबूत ट्रांसपोर्टरों ने
ट्राम की पटरियां उखाड़ दीं

शहर उजड़ना शुरू हो गया
 -----------
इफ्तेताही तकरीब - उद्घाटन समारोह
नीम बरहना शानों - अर्धनग्न कन्धों
बेरेट - टोपी
मुख़्तसर - संक्षिप्त
तकरीरें - भाषण
एहतिराम - सम्मान

***
हिदायात के मुताबिक़

वजीरे आजम जोनूब की तरफ नहीं जाएंगी
सदर
सिर्फ अमूदी परवाज करेंगे
सिपाही
ढाई घर चलेंगे
जलावतन रहनुमा
साढ़े बाईस डिग्री पर घूमेंगे
लोग घरों से नहीं निकलेंगे
एक्बुलेंस जिग जैग चलेंगे
तारीख
पहले ही एंटी क्लाक वाइज चल रही है

-------
जोनूब - दक्षिण
अमूदी - लम्बवत, वर्टिकल

* *
एक लड़की

लज्जत की इन्तेहा पर
उसकी सिसकियाँ
दुनिया के तमाम कौमी तरानों से ज्यादा
मौसीकी रखती हैं

जिन्सी अमल के दौरान
वह किसी भी मलिकाए हुस्न से ज्यादा
खूबसूरत करार पा सकती है

उसके ब्लू प्रिंट का कैसेट
हासिल करने के लिए
किसी भी फसादजदा इलाके तक जाने का
ख़तरा लिया जा सकता है

सिर्फ उससे मिलना
नामुमकिन है
पाकिस्तान की तरह
हाला फारुकी भी
पुलिस की तहवील में है

-------
कौमी तराना - राष्ट्र गान
तहवील - कस्टडी, अभिरक्षा

* *
लिप्यंतरण का सारा दारोमदार मनोज पटेल का रहा जिनसे manojneelgiri@gmail.com ( दूरभाष - 09838599333) पर सम्पर्क किया जा सकता है. अफ़ज़ाल की दूसरी कवितायें/ नज्में और गजले समय समय पर मनोज पटेल के ब्लॉग पढ़ते पढ़ते पर प्रकाशित होती रहेंगी.   

Tuesday, January 18, 2011

यासूनारी कावाबाता की कहानी : छाता

( नई उम्र का प्रेम कितनी कोमल अनुभूतियों से निर्मित होता है इसकी एक बानगी यासूनारी कावाबाता की यह कथा दिखाती है. यासूनारी कावाबाता का जन्म 1899 में जापान के एक प्रतिष्ठित चिकित्सक परिवार में हुआ था. चार वर्ष की उम्र में वह अनाथ हो गए जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनके दादा-दादी ने किया. पंद्रह वर्ष की उम्र तक वे अपने सभी नजदीकी रिश्तेदार खो चुके थे. कावाबाता ने स्वीकार किया है कि उनके लेखन पर अल्पायु में ही अनाथ हो जाने और दूसरे विश्व युद्ध का सबसे ज्यादा असर रहा है. अपने उपन्यास Snow Country  के लिए मशहूर कावाबाता को 1968 में साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला. यह सम्मान प्राप्त करने वाले वह पहले जापानी लेखक बने. 1972 में इस महान लेखक ने आत्महत्या कर लिया. अनुवाद मनोज पटेल का है. मनोज द्वारा अनूदित कावाबाता की तमाम कहानियाँ जल्द से भी जल्द ब्लॉग्स पर दिखने लगेगीं)


छाता

बसंत ऋतु की बारिश चीजों को भिगोने  के लिए काफी नहीं थी. झीसी इतनी हलकी थी कि बस त्वचा थोड़ा नम हो जाए. लड़की दौड़ते हुए बाहर निकली और लड़के के हाथों में छाता देखा. "अरे क्या बारिश हो रही है ?"

जब लड़का दुकान के सामने से गुजरा था तो खुद को बारिश से बचाने के लिए नहीं बल्कि अपनी शर्म को छिपाने के मकसद से, उसने अपना छाता खोल लिया था.

फिर भी, वह चुपचाप छाते को लड़की की तरफ बढ़ाए रहा. लड़की ने अपना केवल एक कंधा भर छाते के नीचे रखा. लड़का अब भीग रहा था लेकिन वह खुद को लड़की के और नजदीक ले जाकर उससे यह नहीं पूछ पा रहा था कि क्या वह उसके साथ छाते के नीचे आना चाहेगी. हालांकि लड़की अपना हाथ लड़के के हाथ के साथ ही छाते की मुठिया पर रखना चाहती थी, उसे देख कर यूं लग रहा था मानो वह अभी भाग निकलेगी.

दोनों एक फोटोग्राफर के स्टूडियो में पहुंचे. लड़के के पिता का सिविल सेवा में तबादला हो गया था. बिछड़ने के पहले दोनों एक फोटो उतरवाना चाहते थे.

" आप दोनों यहाँ साथ-साथ बैठेंगे, प्लीज ?" फोटोग्राफर ने सोफे की तरफ इशारा करते हुए कहा, लेकिन वह लड़की के बगल नहीं बैठ सका. वह लड़की के पीछे खड़ा हो गया और इस एहसास के लिए कि उनकी देह किसी न किसी तरह जुड़ी है, सोफे की पुश्त पर धरे अपने हाथ से उसका लबादा छूता रहा. उसने पहली बार उसे छुआ था. अपनी उँगलियों के पोरों से महसूस होने वाली उसकी देंह की गरमी से उसे उस एहसास का अंदाजा मिला जो उसे तब मिलता जब वह उसे नंगी अपने आगोश में ले पाता.

अपनी बाक़ी की ज़िंदगी जब-जब वह यह फोटो देखता, उसे उसकी देंह की यह गरमी याद आनी थी.

" क्या एक और हो जाए ? मैं आप लोगों को अगल-बगल खड़ा करके नजदीक से एक तस्वीर लेना चाहता हूँ."

लड़के ने बस गर्दन हिला दी.

"तुम्हारे बाल ?" लड़का उसके कानों में फुसफुसाया. लड़की ने लड़के की तरफ देखा और शर्मा गई. उसकी आँखें खुशी से चमक रही थीं. घबराई हुई वह गुसलखाने की और भागी.

पहले, लड़की ने जब लड़के को दुकान से गुजरते हुए देखा था तो बाल वगैरह संवारने में वक्त जाया किए बिना वह झट निकल आई थी. अब उसे अपने बिखरे बालों की फ़िक्र हो रही थी जो यूं लग रहे थे मानो उसने अभी-अभी नहाने की टोपी उतारी हो. लड़की इतनी शर्मीली थी कि वह किसी मर्द के सामने अपनी चोटी भी नहीं गूंथ सकती थी, लेकिन लड़के को लगा था कि यदि उस वक्त उसने फिर उससे अपने बाल ठीक करने के लिए कहा होता तो वह और शर्मा जाती.

गुसलखाने की ओर जाते वक्त लड़की की खुशी ने लड़के की घबराहट को भी कम कर दिया. जब वह वापस आई तो दोनों सोफे पर अगल-बगल यूं बैठे गोया यह दुनिया की सबसे स्वाभाविक बात हो.

जब वे स्टूडियो से जाने वाले थे तो लड़के ने छाते की तलाश में इधर-उधर नजरें दौड़ाईं. तब उसने ध्यान दिया कि लड़की उसके पहले ही बाहर निकल गई है और छाता पकड़े हुए है. लड़की ने जब गौर किया कि लड़का उसे देख रहा है तो अचानक उसने पाया कि उसका छाता उसने ले रखा है. इस ख्याल ने उसे चौंका दिया. क्या बेपरवाही में किए गए उसके इस काम से लड़के को यह पता चल गया होगा कि उसके ख्याल से तो वह भी उसी की है ?

लड़का छाता पकड़ने की पेशकश न कर सका, और लड़की भी उसे छाता सौंपने का साहस न जुटा सकी. पता नहीं कैसे अब यह सड़क उस सड़क से अलग हो चली थी जो उन्हें फोटोग्राफर की दुकान तक लाई थी. वे दोनों अचानक बालिग़ हो गए थे. बस छाते से जुड़े इस वाकए के लिए ही सही, दोनों किसी शादीशुदा जोड़े की तरह महसूस करते हुए घर वापस लौटे.

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Friday, December 24, 2010

महाकवि नाजिम हिकमत की कवितायें


( महाकवि नाजिम हिकमत को पढ़ते हुए यह एहसास लगातार बना रहता है कि जैसेजीना हमारी जिम्मेदारी है”. इनकी कविता में जो उम्मीद के स्वर हैं वे किन्ही वायवीय स्वप्न सरीखे नहीं हैं. यह उम्मीद गूलर का फूल भी नहीं है जो आज तक किसी को दिखे ही नहीं. उनकी कविता की दिखाई उम्मीद - राह बहुत खास परंतु प्राप्य लक्ष्यों की तरह होती है. अपने अदना से ब्लॉग पर नाजिम को पोस्ट करते हुए मैं बे-इंतिहा खुश हूँ.)

अनुवादक का नाम बार बार बताना कहाँ जरूरी होता है....

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दिल का दर्द : नाजिम हिकमत


अगर मेरे दिल का आधा हिस्सा यहाँ है डाक्टर,

तो चीन में है बाक़ी का आधा

उस फौज के साथ

जो पीली नदी की तरफ बढ़ रही है..

और हर सुबह, डाक्टर

जब उगता है सूरज

यूनान में गोली मार दी जाती है मेरे दिल पर .

और हर रात को डाक्टर

जब नींद में होते हैं कैदी और सुनसान होता है अस्पताल,

रुक जाती है मेरे दिल की धड़कन

इस्ताम्बुल के एक उजड़े पुराने मकान में.

और फिर दस सालों के बाद

अपनी मुफलिस कौम को देने की खातिर

सिर्फ ये सेब बचा है मेरे हाथों में डाक्टर

एक सुर्ख़ सेब :

मेरा दिल.

और यही है वजह डाक्टर

दिल के इस नाकाबिलेबर्दाश्त दर्द की --

न तो निकोटीन, न तो कैद

और न ही नसों में कोई जमाव.

कैदखाने के सींखचों से देखता हूँ मैं रात को,

और छाती पर लदे इस बोझ के बावजूद

धड़कता है मेरा दिल सबसे दूर के सितारों के साथ.

* *


दरअसल, यह कुछ इस तरह से है


खड़ा हूँ मैं राह दिखाती हुई रोशनी में,

भूखे हैं मेरे हाथ, खूबसूरत है दुनिया.


बाग का बड़ा हिस्सा नही पातीं मेरी आँखें

कितने आशापूर्ण हैं वे, कितने हरे-भरे .


एक चमकीली सड़क गुजर रही है शहतूत के पेड़ों से होकर

कैदखाने के अस्पताल की खिड़की पर खड़ा हूँ मैं.


दवाओं की गंध नहीं ले पा रहा मैं --

जरूर गुलनार के फूल खिल रहे होंगे कहीं आस-पास.


इस तरह से है यह :

गिरफ्तारी तो दीगर मसला है,

असल मुद्दा है हार न मानना.

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अनुवादक से सम्पर्क: 09838599333; manojneelgiri@gmail.com


शुरुआती पंक्तियों में कोट की हुई पंक्ति "जीना हमारी जिम्मेदारी है" कवि मित्र सूरज की आगामी कविता की पंक्ति है.