Tuesday, May 22, 2012

आशुतोष की कहानी : पिता का नाच


हम पूरबियों, खासकर भोजपुरियों, के मन में नाच के अनेक संस्करण हैं. कोई एक चीज जिसके लिए पक्ष और विपक्ष के सर्वाधिक तर्क हमने सुने वो 'नाच' ही था. नचनिये का धर्म या मरजाद हमेशा से चर्चा का विषय रहा है, इसके किस्से रहे हैं. प्रस्तुत कहानी भी उन्हीं स्मृतियों का एक शानदार संस्करण है.
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यूँ तो वह समय सुबह का था पर नन्दू को उनके  बड़े बेटे जग्गी और छोटे सत्तू ने इतने सख्त लहजे में धमकाया कि झोपड़ी के आसपास का समय गर्म दोपहरी में बदल गया था. नन्दू हतप्रभ थे. दोनों बेटे नन्दू की ऐसी तैसी कर नन्दू की ही कमाई से खरीदी गयी स्कार्पियो में बैठकर धडधड़ाते  हुए निकल गए.

नन्दू के नाचने-गाने को लेकर उनके बेटों का यह रवैया आम बात है, पर आज जिस तरह से वे उनके साथ पेश आये इतने की उम्मीद नन्दू को नहीं थी. पर नन्दू तो नन्दू हैं. उन्हें कुछ नहीं चाहिए. चाहें दुःख हो या सुख वे सिर्फ गायेंगे और नाचेंगे. तुरन्त ही सब कुछ भुला कर नन्दू ने खंजड़ी उठाया और एक चइता शुरु किया. 'सोवत पिया को जगावे हो रामा .........कोयल  बड़ी पापी'....

नन्दू गरीब माँ-बाप के इकलौते  बेटे थे. बचपन से ही उनको गाने का शौक था. भैंस की पीठ पर बैठ कर जब नन्दू मुक्त कंठ से अलाप लेते तब ऐसा लगता कि वह भैंस की पीठ नहीं बादशाह का दरबार हो और वे खुद नन्दू नही तानसेन हों. गाने के इसी जुनून  के चलते नन्दू घर से भागकर एक नाच पार्टी में शामिल हो गये. कुछ दिनों के प्रशिक्षण के बाद नाच के पक्के नचनिया बन गये.

बेतिया के रामउजागिर बाबू की बेटी की बारात में नन्दू पहली बार पूरे मेकअप के साथ स्टेज पर उतरे. खिलता हुआ नाक नक्श, होठों  में फंसी हुयी आधी हँसी ने घराती-बाराती सभी के ऊपर कहर ढा दिया. नगाड़े और हारमोनियम की जुगलबन्दी की लहर में नन्दू ने सतगजी आजमगढिया लहँगा और गोरखपुरी टिकुली के साथ स्टेज पर जब पहला फेरा लिया तो नाच देखने वालों के दिल शामियानें के चारों ओर बंधे कनात से टकराने लगे.


नन्दू ने अपने जीवन के उस पहले बेमिसाल परफारमेंस के आखिर में जब 'इन्हीं लोगों ने ले लिन्हा दुपट्‌टा मेरा' गाया तो स्वयं रामउजागिर बाबू स्टेज पर आ गए. उन्होंने अपनी गोपालगंज वाली पाही नन्दू के नाम करने की घोषणा की साथ ही नन्दू का नाम मीनाकुमारी रख दिया. लोग जान गये थे, रामउजागिर बाबू आज होश में नहीं हैं.

नन्दू के नाम के साथ ही उस नाच पार्टी का नाम ''मीना कुमारी  नाच पार्टी'' हो गया. लोग अपने घर के शादी-ब्याह में मीना कुमारी का नाच कराने को अपनी शान मानने लगे थे. उन दिनों न जाने कितनों ने अपनी मुराद पूरी होने पर काली माई, हनुमान जी के सामने मीनाकुमारी का नाच कराने की मनौती मानी थी.

समय के साथ नन्दू की शोहरत और समृद्धि बढ़ती गई. कई पीढियों की दरिद्रता दूर हो रही थी. नाच के डेढदार की बेटी से नन्दू की शादी हुई. अपनी ही शादी में नन्दू पहले जी भर कर नाचे तब जाकर कहीं फेरे लिए. समय के साथ नन्दू का घर दो बेटों और एक बेटी से भर गया. नन्दू  के मीना कुमारी नाच पार्टी का रूतबा बढता ही जा रहा था. लोग बताते हैं कि एक बार रामउजागिर बाबू ने संजय गाँधी को प्रसन्न करने के लिए पटना हवाई अड्‌डे पर नन्दू का नाच कराया था, जिसके एवज में रामउजागिर बाबू को एम.एल.ए. का टिकट मिला था.
अब  नन्दू बहुत व्यस्त रहने लगे थे. नाच ही उनके लिए सब कुछ था. बच्चे बड़े हुए. दोनों बेटों की शादी हुई.  नन्दू इनमें मेहमान के ही तौर पर शामिल हुए.

वैसे यदि नन्दू याद करें तो उन्हें मुश्किल से याद आयेगी कि जब उनके बाबूजी गुजरे तो वे बलरामपुर में नाच रहे थे. माई की मृत्यु के समय सुल्तानपुर के बड़ागाँव के दिग्गज वकील विजय बहादुर सिंह के घर सोहर गा रहे थे और जब उनकी पत्नी उनके जीवन से जा रही थीं तब वे बगहा में सासंद जी की बहू के स्वागत में बधाई गा रहे थे. नन्दू का बड़ा बेटा जग्गी नन्दू के ही रूपये को पानी की तरह बहा कर जिला पंचायत सदस्य और छोटा बेटा सत्तू सरपंच बन गया था.


बेटों की सामाजिक हैसियत बदल गई. अब उन्हें नन्दू का नाचना-गाना अच्छा नहीं लगता था. वे नचनिया का बेटा कहा जाना पसन्द  नहीं करते. इसके लिए वे कई बार नन्दू को समझा चुके थे. बेटों की गाली-गलौंज चुपचाप सुनते और नाचते रहते. परेशान होकर बेटों ने उन्हें उनकी ही बनायी हवेली से बाहर निकाल दिया. बिना किसी शिकवा शिकायत के नन्दू गाँव के बाहर बगीचे में बने झोपड़े में रहने लगे. वहीं से नाच का शौक पूरा करते थे. नाच की ही कमाई से तीन गाँवों में पाही बनाई, हवेली बनाया और सबकुछ छोड दिया जैसे कुछ था ही नहीं. अब वस एक साध रह गयी थी कि बिटिया का ब्याह हो जाए तो फिर आखिरी दम तक नाचते गाते रहें.

लडकों का ब्याह तो नन्दू के धन-दौलत के बल पर हो गया पर लड़की के ब्याह में नन्दू का नचनिया होना बाधा बन गया. यही वह बात थी जिसने जग्गी, सत्तू की नजरों में नन्दू को साँप बना दिया. नन्दू को अपनी प्रतिष्ठा पर कलंक मानते हुए दोनों बेटे उन पर अक्सर अपना गुस्सा उतारने लगे थे. नन्दू भी समझ नहीं पा रहे थे कि न जाने कितने लोगों की बेटियों के ब्याह में वे नाचते रहे हैं, पर उनकी ही बेटी के ब्याह में उनका नचनिया होना बाधा कैसे बन गया. जग्गी तो अब गुस्से में नन्दू पर हाथ भी उठाने लगा था. नन्दू चुपचाप मार खाते और अकेले पड ने पर रोते.

अब नन्दू स्टेज पर अपनी बेटी के ब्याह के लिए तपस्या करते तो लोगों को लगता कि नन्दू नाच रहे हैं. बेटी  के सुख के लिए दुआ करते तो लोगों को लगता कि नन्दू पाठ खेल रहे हैं. अपनी बेटी के दुःख में रोते तो लोगों को लगता कि नन्दू गा रहे हैं. गुजरते समय के साथ, नन्दू के बेटों ने उनसे अपने सारे संबंध तोड  लिये. अब नन्दू बहुत अकेले पड  गये थे.

किसी तरह जग्गी ने पड़ोस के जिले में अपनी बहन की शादी की बात चलाई. उसने लड़के वालों से बताया कि लडकी के माँ-बाप दोनों मर चुके हैं.  लड़के वाले कुछ तो बिना माँ-बाप की लड़की पर दया कर और कुछ रूपये की माया से तैयार हो गए.


शादी की बात कर लड़के सीधे नन्दू के झोपड़े पर आये. जग्गी ने सख्त लहजे में समझाया कि तुम्हें इस शादी से कोई मतलब नहीं रखना है. लड़के वालों से बता दिया गया है कि लड की के माँ-बाप दोनों मर चुके हैं.  नन्दू झटका खा गए.  वे सिर्फ इतना बोल पाये कि 'लेकिन हम तो जिंदा हैं, बस सत्तू ने लपक कर उनका गर्दन पकड  लिया 'तुम मरोगे लेकिन हम सबको मार कर....'. नन्दू के गले से गों-गों की आवाज आ रही थी. सत्तू गुस्से में था - 'चाहते क्या हो तुम लड की सारी उमर कुँवारी बैठी रहे, नचनियां का बेटा बनकर तो हम जी रहे हैं पर नचनिया की बेटी से कोई ब्याह नहीं करना चाहता.' यह कहते हुए सत्तू ने जोर से नन्दू के पेट में लात मारी. नन्दू दर्द से कराहते हुए वहीं दुहरे हो गए.

जग्गी ने नन्दू को घसीटते हुए झोपड़ी से बाहर कर दिया. फिर एक-एक कर नाच का सारा समान झोपड़ी के बीचों-बीच में इकट्‌ठा करने लगा. नाल, नगाड़ा, हारमोनियम, नाच के पर्दे, कपड़े सबकुछ.अन्त में सत्तू ने नन्दू का मेकअप बॉक्स उठाया, जिसके जादू से नन्दू मीनाकुमारी में बदल जाते थे. नन्दू ने अपनी आँखें बंद कर ली। जग्गी ने झोपड़े में आग लगा दिया. सत्तू ने वह बक्सा भी आग में फेंक दिया. नन्दू चेतना शून्य हो गये थे. वे अपनी जिंदगी की एक-एक आस को राख में बदलते देख रहे थे.


लड़के वालों के घर बरिच्छा की शानदार तैयारी की गई थी. जलपान के बाद बरिच्छा का कार्यक्रम शुरु हुआ. मंत्रोचार के बीच जैसे ही जग्गी ने लड़के को तिलक लगाने के लिए उठा वैसे ही लड़ेके के दादा ने उसे टोका ''अभी ठहरो बेटा, पहले आपको मेरी एक शर्त पूरी करनी होगी''

जग्गी घबरा गया ''लेन-देन की सारी बात हो चुकी है  अब कैसी शर्त ? दादा ने कहा ''मेरा यह इकलौता पोता है, इसके जन्म पर इसकी दादी ने एक  मन्नत मांगी थी, पहले उसे आप पूरा करने का वचन दीजिए तभी यह शादी हो पायेगी''

जग्गी अपने रूतबे और पैसे के गुरूर में बोला '' दादा! आप शर्त बताइये''

दादा ने पूरे अभिमान के साथ कहा कि ''शर्त यह है कि मेरे पोते की शादी में मीनाकुमारी का ही नाच होना चाहिए. ''

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आशुतोष. पड़रौना - कुशीनगर - रामकोला - गोरखपुर - गजब की दिल्ली और वर्धा में रहते, पढ़ते आजकल सागर में. एकेड्मिक्स में गहरी रुचि. अस्सी और नब्बे के दशक वाले लोक के अनुभवों से गहरे परिचित. पहली कहानी ' रामबहोरन की अनात्मकथा'  प्रतिष्ठित पत्रिका 'तद्भव' में प्रकाशित. प्रस्तुत कहानी दैनिक भाष्कर के रविवारीय परिशिष्ट रसरंग में प्रकाशित.  कहने का अपना अन्दाज. फिल्म 'छपरहिया' के लिए कथा लेखन. कई कहानियाँ शीघ्र प्रकाश्य की स्थिति में.

सम्पर्क :   09479398591 तथा prominentashu@rediffmail.com