राजधानी दिल्ली के बेहद परिष्कृत जगह प्रगति मैदान के हॉल नम्बर एक पर टँगा यह बोर्ड। लगभग रोज ही यहाँ कोई ना कोई मेला(पुस्तक, व्यवसाय, गाड़ी, घर इत्यादि) लगा रहता है। भाषा की ऐसी अशुद्धियाँ किसी कस्बेनुमा जगह की दुकानों या दीवाल पर लोकल पैंटर की चित्रकारी में दिखे तो और बात है तथा देश की राजधानी और प्रतिष्ठित जगहों पर दिखे तो और।
ताजा ताजा बीते शनिवार की शाम का कोई वक्त था और हम जाने किस बात पर झगड़ रहे थे कि हमने एक सज्जन को फोन पर बात करते सुना। वो सज्जन पुस्तक मेले में भटक गये थे। अब वो अपने मित्र को समझा रहे थे, “मैं क्षृंगार थियेटर के पास हूँ’’। वैसे भी पुस्तक मेले में अगर कोई राह चलते मिल जाये तो मिल जाये वरना ढूंढना तो मुश्किल ही है। पर हम दोनो का ही ध्यान उस व्यक्ति द्वारा उच्चारित ‘क्षृंगार’ शब्द पर टिक गया। हमने कोई ऐसा शब्द, और वो भी संज्ञा, आज तक नहीं सुना था। झगड़े को टाल हम कौतुक में यह देखने आये कि क्षृंगार थियेटर क्या होता है? परंतु इसकी अंग्रेजी देख हमें तसल्ली हुई कि यह और कुछ नहीं, अपनी भाषा का चिर परिचित और बेहद खुशगवार शब्द “श्रृंगार” है।
ताजा ताजा बीते शनिवार की शाम का कोई वक्त था और हम जाने किस बात पर झगड़ रहे थे कि हमने एक सज्जन को फोन पर बात करते सुना। वो सज्जन पुस्तक मेले में भटक गये थे। अब वो अपने मित्र को समझा रहे थे, “मैं क्षृंगार थियेटर के पास हूँ’’। वैसे भी पुस्तक मेले में अगर कोई राह चलते मिल जाये तो मिल जाये वरना ढूंढना तो मुश्किल ही है। पर हम दोनो का ही ध्यान उस व्यक्ति द्वारा उच्चारित ‘क्षृंगार’ शब्द पर टिक गया। हमने कोई ऐसा शब्द, और वो भी संज्ञा, आज तक नहीं सुना था। झगड़े को टाल हम कौतुक में यह देखने आये कि क्षृंगार थियेटर क्या होता है? परंतु इसकी अंग्रेजी देख हमें तसल्ली हुई कि यह और कुछ नहीं, अपनी भाषा का चिर परिचित और बेहद खुशगवार शब्द “श्रृंगार” है।
भाषा के प्रति ऐसी लापरवाही तकलीफ देती है। अब वो सज्जन अगर अपने मित्र को ढूंढ पाने में सफल हुए होंगे तो जब जब यह किस्सा सामने आयेगा वो बार बार कहेंगे कि हम लोग क्षृंगार भवन के पास मिले थे। इस कल्पना को थोड़ी और राह दिखायें तो यह भी हो सकता है कि उस सज्जन के आस पड़ोस में कोई ऐसा भी हो जो इस शब्द पर ताज्जुब खाये और शब्दकोशों की सम्भावनाशील मदद माँग डाले।या फिर....?और नही तो या फिर .......?
9 comments:
Its sad!!!! Even i noticed that word the very first day i visited Pragati Maidaan...It was written at one of the entrance of Gate No 1.. but your eyes think things very differently...
वैसे 'श्रृंगार' भी गलत है; सही वर्तनी 'शृंगार' है.
विस्तृत व्याख्या के लिए यह पोस्ट देखें.
http://hariraama.blogspot.com/2007/10/secrets-of-devanaagarii-sh.html
यह सब जाहिलों का किया धरा है. कृपया को "क्रृपया" और "कृप्या" लिखा दीखता है.
मेरे बिहारी सहपाठी "स्पष्ट" को "अस्पष्ट" और "अस्पष्ट" को "अ-अस्पष्ट" बोलते हैं.
कई बार आंचलिकता भी भाषा पर प्रभाव डालती है। इन दिनों मेरा ठिकाना बने इंदौर में ज को झ लिखा जाता है मसलन जेड को यहां झेड लिखते हैं। भोपाल में हमारे एक साथी लगातार दो साल तक बहुत बढ़िया को भोत भड़िया कहते रहे। हालांकि दिल्ली के साथ् तो ऐसी मजबूरी नहीं समझ में आती।
चन्दन जी,
मैं बंगलोर में हूँ पिछले ६ साल से, ज्ञान को अंग्रेजी में jnan तो बहुत लोग लिखते हैं, वैसे कुछ लोग gyan भी लिखते हैं. लेकिन यहाँ अंग्रेजी भाषा के इस शब्द को 'ज्नान' ही उच्चारित किया जा रहा है. आमलोग भी यही बोलते हैं. एक जगह है 'विज्ञान नगर', उसे ज्यादातर लोग 'विग्नान नगर' कहते फिर रहे हैं. हिन्दीभाषी लोग जो काम के सिलसिले में यहाँ आये हैं, वो भी जहमत नहीं उठा रहे इसे सही उच्चारित करने की, और 'विग्नान नगर' अब विज्ञान नगर नहीं हो पायेगा कभी.
- रणजीत कुमार
रंजीत जी, आपकी बात सही है। जैसे सन्दीप ने अंचलो के बारे मे बताया वैसा ही दक्षिण में चलता है। वहाँ कृपा को लिखते तो कृपा ही हैं पर पढ़ते क्रुपा हैं। एक और बात उसकी स्पेल्लिंग krupa है। आप देखेंगे एक कम्प्यूटर की दुनिया में एक मशहूर हिन्दी फॉंट है krutidev. आपको जान कर जरा आश्चर्य होगा कि दक्षिण वाले ही नहीं सारे उत्तर भारतीय भी इसे क्रुतिदेव ही पढ़ते हैं। जबकि यह कृति देव है। अंग्रेजियत ने कई सारे हिन्दी शब्दों का माने बिगाड़ दिये हैं। भारतीय ज्ञानपीठ का होम पेज खूलना हो तो आपको jnanpith ही टाईप करना होगा।
ऐसी विसंगतियों पर एक बड़ी पोस्ट की योजना है। आप के ध्यान में कोई ऐसी बात हो तो जरुर सूचित करें।
@ सन्दीप आंचलिकता वाले पर कुछ तैयार करो। पर हाँ, नई वाली बात के लिये!
श्रृंगार भी अशुद्ध है.इसे ऐसे लिखा जाता है(यूनिकोड में शायद नहीं लिखा जा सकता)कि श्र में जो प्र वाली डंडी है वह न रहे.तब ऋ की मात्रा लगे.खैर,अब मात्राओं,वर्तनी पर कसरत करना कुछ ही लोगों का काम रह गया है.बोलने की तो छोड़ ही दीजिए.इस संबंध में आकाशवाणी को मनहूस कहते मैंने अच्छे-अच्छों को सुना है.कई स्थापित लेखक भी यह सोचकर रचनाएँ रवाना कर देते हैं कि रचना तो पहले ही स्वीकृत है सो संपादक सुधार लेगा.मैंने सुना है नई दुनिया अख़बार में आज भी प्रूफ़रीडर से बहुत काम लिया जाता है.
इसका मतलब आप दिल्ली आये थे। मैने कब से कह रखा है कि आप अगर दिल्ली आओ तो मिलना जरूर।बहुत अच्छे!!!
Nepal me bhi hindi ki ajeeb halat hai....lekin delhi me to log hindi bolna low status symbol mante hai..phir aisi galati to hogi hi...waise mujhse bhi hoti hogi kai galatiya..lekin ye wali kuch jada hi hai...mumbai me hindi ka kafi prayog karte hai..lekin waha ek famous brand name ka hindi me aisa anuwad likha tha ki yaha likhne ke kabil bhi nahi..sms kar dunga!....Vivek
Post a Comment