Tuesday, May 25, 2010

जफर पनाही की रिहाई और रिहाई के पहले की कैद....

चारेक साल पहले की बात होगी कि एक फिल्म देखने को मिली- “क्रिमसन गोल्ड”. एक ऐसे इंसान की कहानी जो अपने जमीर को, स्वाभिमान को सबसे ऊँचा दर्जा देता है पर उसकी नौकरी ऐसी है कि हर बार उसे किसी ऐसी परस्थिति का सामना करना पड़ता है जहाँ सब कुछ के साथ अपमान का एक पुट मिला होता है. उसके नातेदार, दोस्त उसकी इस मुश्किल से वाकिफ हैं और बाज दफा उसे मुश्किल मे गिरने से बचाते हैं. विशेष तौर पर उसकी होने वाली पत्नी और होने वाली पत्नी का भाई. पर कहानी मे इतने और ऐसे त्रासद मोड़ आते हैं कि हत्या या आत्महत्या मे से कोई एक ही रास्ता बचता है.

इस फिल्म और इससे भी मशहूर तथा सार्थक फिल्म “ऑफसाईड” के ईरानी निर्देशक जफर पनाही आज अपने ही देश,ईरान, की एक जेल से रिहा हुए. वो भी दो लाख डॉलर की जमानत राशि पर. जफर का जुर्म ये था कि चुनाव के बाद हुये प्रदर्शनो में मारी गई नेदा आगा सुल्तान की कब्र पर गये थे. यह विरोध प्रदर्शन तत्कालीन राष्ट्रपति अहमदिनेजाद के दुबारा चुने जाने के खिलाफ चल रहा था. जफर की गिरफ्तारी के बाद दुनिया भर के फिल्मकारों ने अनेकानेक तरीको से दबाव बनाया/बनवाया. अपने ही देश मे सताये गये पनाही की माने तो उनके परिवार को भी लगातार धमकियाँ मिल रही थीं और हैं.

इस केस मे क्या होगा ये आगे की बात है. पर जब बात ईरान की आती है तो हमारे सामने एक ऐसे देश की छवि बनती है जो आज की भयावह तारीखों में भी अपने तईं अमेरिका को मुँहतोड जबाव देता है. अहमदिनेजाद की छवि ऐसे अडिग या उसूल वाले ‘लीडर’ की है जिसके बारे मे लोग शायद यह सोचते भी ना हो कि वो चुनावों में धाँधली जैसी हरकत करेंगे. या फिर जो हिन्दुस्तानी ‘इंटेलिजेंसिया’ है वो भी अपने सार्थक और कभी कभी निरर्थक मन में ईरान के प्रति एक ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ जरुर रखता है. ऐसे में अपने भारतीय मानस मे यह कोई विषय भी नही बन पायेगा कि इतनी सम्वेदनशील फिल्में देने वाले इस निर्देशक के साथ ऐसा क्यों हुआ? आज की तारीख में देशों के आधार पर फिल्मकारों की कोई रैंकिंग हो तो उहापोह दूसरे तीसरे या चौथे स्थान के लिये मचेगी क्योंकि पहला स्थान निसन्देह ईरानी फिल्मकारों को मिलेगा

जिन्होने ‘ऑफसाईड’ देखी हो उन्हे वो दृश्य याद होगा जब लड़कियों को बस में बैठा कर ले जाया जा रहा .है पर वो अपनी मुश्किलों से बाहर और परे इस फिक्र मे मरी जा रही हैं कि ईरान और अमेरिका के बीच उस फुटबाल मैच को कौन जीत रहा है. जिन्होने इत्तेफाकन कुछ भी ना देखा हो उन्हे पनाही की ये दोनो फिल्में जरूर देखनी चाहिये ताकि वो ये जान सके कि पनाही खुद किस कदर और किस हद तक ईरान से जुड़े हुए हैं! मतलब देशविरोधी कोई भी आरोप इन पर लगाना अजब सी गलत बात लगने लगेगी.

4 comments:

डॉ .अनुराग said...

यक़ीनन इन हालातो में ऐसी ईरानी फिल्मे जो मानव मन ओर उसकी संवेदनशीलता को इस तरह से पकडती है ...चौकाती है ....खास तौर से बच्चो को लेकर बनी फिल्मे

kundan pandey said...

i think the best support we can contribute in his favour is wathcing his all movies. whatever situatin Jafar has faced in his country is disgusting. it reminded the autobiograbhy of charlie chaplin in which he has written that only for using the word 'Comerade' he was atlast forced to leave the country 'America' where he rendered his all service through out the life.
it is bitter truth that power has its own characteristics. what the goodness it is carrying does not matter...ultimately on the verge it shows its realities.

Anonymous said...

Watching movies like this helps to believe that the cinema can be a very strong tool for social change...i wish the efforts of Jafar will bring a change.
There is another movie of 2 min. duration on You Tube....it has the same name OFFSIDE...it says more than a life time...a must watch!
- BODHISATVA

Anonymous said...

Watching movies like this helps to believe that the cinema can be a very strong tool for social change...i wish the efforts of Jafar will bring a change.
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- BODHISATVA