Monday, November 15, 2010

नाओमी शिहाब न्ये की कवितायेँ


हम जब यह मान कर चल रहे होते है कि ‘अ’ ने जो लिख दिया वो तो अंतिम महान कृति है और उसे ही दुहरा तिहरा के पढ रहे होते है तभी अचानक से कोई एक रचनाकार सामने आता है और चमत्कृत कर देता है..जैसे नाओमी शिहाब न्ये....

1952 में जन्मीं नाओमी शिहाब न्ये फिलीस्तीनी पिता और अमेरिकी माँ की संतान हैं. खुद को घुमंतू कवि मानने वाली नाओमी जार्डन, येरुशलम से होते हुए अब टेक्सास में रह रही हैं. वे Organica पत्रिका की नियमित स्तंभकार और Texas Observer की कविता संपादक भी हैं. इनके कई कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें प्रमुख हैं : 19 Varieties of Gazelle: Poems of the Middle East, A Maze Me: Poems for Girls, Red Suitcase, Words Under the Words, Fuel, and You & Yours...

अनुवाद, जाहिर सी बात है, मनोज पटेल का है..

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निगाहों की जांच


D है हताश.
और B चाहता है छुट्टी
रहना चाहता है किसी विज्ञापन-पट पर,
होकर बड़ा और बहादुर.
E नाराज है R से कि उसने धकेल दिया है उसे मंच से पीछे.
छोटा c बनना चाहता है बड़ा C मुमकिन हो अगर,
और P खोया हुआ है ख़यालों में.


कहानी, कितना बेहतर है कहानी होना.
क्या तुम पढ़ सकती हो मुझे ?


हमें रहना पड़ता है इस सफ़ेद पट पर
साथ-साथ एक -दूसरे के पड़ोस में.
जबकि होना चाहते थे हम किसी बादल की दुम
जहाँ एक हर्फ़ तब्दील होता दूसरे में,
या चाहते थे गुम हो जाना किसी लड़के की जेब में
फाहे की तरह बेडौल,
वही लड़का जो भैंगी आँखों से पढ़ा करता है हमें
लगता है उसे कि हम में छिपा है कोई गूढ़ सन्देश.
काश कि उसके दोस्त बन पाते हम.
आजिज आ चुके हैं इस बेमतलबपन से.


मशहूर


मछली के लिए मशहूर होती है नदी
तेज आवाज़ मशहूर होती है खामोशी के लिए
जिसे पता है कि वह ही वारिस होगी धरती की
इससे पहले कि कोई ऐसा सोचे भी.


चहारदीवारी पर बैठी बिल्ली मशहूर होती है चिड़ियों के लिए
जो देखा करती हैं उसे घोंसले से.


आंसू मशहूर होते हैं गालों के लिए.


तसव्वुर जिसे आप लगाए फिरते हैं अपने सीने से
मशहूर होते हैं आपके सीने के लिए.


जूते मशहूर होते हैं धरती के लिए,
ज्यादा मशहूर बनिस्बत सुन्दर जूतों के,
जो मशहूर होते हैं फकत फर्श के लिए.


उसी के लिए मशहूर होती है वह मुड़ी-तुड़ी तस्वीर
जो उसे लिए फिरता है अपने साथ
उसके लिए तो तनिक भी नहीं जो है उस तस्वीर में.


मैं मशहूर होना चाहती हूँ घिसटते चलते लोगों के लिए
मुस्कराते हैं जो सड़क पार करते,
सौदा-सुलफ के लिए पसीने से लथपथ कतार में लगे बच्चों के लिए,
जवाब में मुस्कराने वाली शख्स के रूप में.


मैं मशहूर होना चाहती हूँ वैसे ही
जैसे मशहूर होती है गरारी,
या एक काज बटन का,
इसलिए नहीं कि इन्होनें कर दिया कोई बड़ा काम,
बल्कि इसलिए कि वे कभी नहीं चूके उससे
जो वे कर सकते थे...


पोशीदा


अगर आप फर्न का एक पौधा
रख दें किसी पत्थर के नीचे
तो अगले ही दिन हो जाएगा यह
तकरीबन गायब
गोया पत्थर निगल गया हो उसे.


अगर आप दबाएँ रखें किसी महबूब का नाम
बिना उचारे अपनी जुबान के नीचे
यह बन जाता है खून
उफ्फ़
वो हल्की खींची गई सांस
पोशीदा
आपके लफ़्ज़ों के नीचे.


कोई कहाँ देख पाता है
वह खुराक जो पोसती है आपको.

2 comments:

Aparna Mishra said...

मैं मशहूर होना चाहती हूँ घिसटते चलते लोगों के लिए
मुस्कराते हैं जो सड़क पार करते,
सौदा-सुलफ के लिए पसीने से लथपथ कतार में लगे बच्चों के लिए,
जवाब में मुस्कराने वाली शख्स के रूप में.


I liked the 2nd poetry, especially these 4 lines..... Thanks as usual for sharing good poetries..... But Chandan!!!! I am missing Suraj from the Blog, plz ask him to give us a chance to read him......

डॉ .अनुराग said...

पोशीदा ....दिल ले गयी......